22. जीवन की नवीनता में चलना

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22. Walking in newness of life

साप्ताहिक पाठ – भजन संहिता 119; फिलेमोन

प्रश्‍नोत्‍तर के लिये पाठ – इब्रानियों, अध्याय 12

जब हम बपतिस्मा लेते हैं तो हमारा फिर से जन्म होता है। नीकुदेमुस को, जो रात को उसके पास आया, यीशु ने कहा,

‘यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।’ (यूहन्ना 3:3)

आगे चलकर यीशु समझाता है कि वह प्राकृतिक जन्म के विषय में नहीं परन्तु आत्मिक जन्म के विषय में सोच रहा है। वह कहता है

‘जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है।’ (यूहन्ना 3:6)

जब एक बच्चा पैदा होता है तो एक नया जीवन आरम्भ होता है उसी तरह जब हम बपतिस्मा लेते हैं, तो हम "मसीह में" एक नया जीवन आरम्भ करते हैं।

पौलुस प्रेरित हमें बताता है:

‘यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्‍टि है।’ (2 कुरिन्थियों 5:17)

यदि हमें यीशु मसीह में बढ़ना है, प्रौढ़ होना है, तो हमें निरन्तर उसके लिये प्रयत्न करते रहना है। यदि हम प्रयत्न न करते तो वह “पुराना मनुष्यत्व” जिसका बपतिस्मा लेने के द्वारा हमने त्याग किया फिर से हम पर कब्जा कर लेगा।

मार्ग में सहायता

यदि मसीह में बढने के लिए हमें अकेले ही परिश्रम करना पड़ता तो हम मसीह में कभी नहीं “बढ़ सकते”। परन्तु परमेश्वर ने हमें वह सब दिया है जो हमारी आत्मिक वृद्धि के लिये आवश्यक है।

उसने हमें प्रभु यीशु के द्वारा प्रार्थना में उसके पास आने का विशेष अधिकार दिया है। हम अपनी सब कठिनाईयां, अपने सुख और दुख, विश्वास और गुप्तरुप से उस तक ले जा सकते है; नम्रता पूर्वक उसके पास आकर सहायता मांग सकते है और यीशु के नाम से हमें सुनने की विनती कर सकते हैं।

उसने हमें अपना वचन – बाइबिल – दिया है। इससे बढकर हमारा और कोई मार्ग दर्शक नहीं हो सकता; यह हमें और अधिक परमेश्वर के प्रबन्ध और मर्गो के विषय में सिखाएगा; जैसा परमेश्‍वर हमसे चाहता है उसके अनुसार काय्र करने में यह हमारी सहायता करेगा और मसीह में नए मनुष्यत्व को प्राप्त करने में हमारी सहायता करेगा। 2 तीमुथियुस में हम पढ़ते हैं कि

‘सम्पूर्ण पवित्रशास्‍त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है, ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्‍पर हो जाए।’ (2 तीमुथियुस 3:16-17)

परमेश्‍वर ने हमें उसके वचन और उसकी विधियों के विषय में सोचने के लिये योग्‍यता दी है। नीतिवचन की पुस्तक के 23 अध्‍याय में लिखा है,

‘जैसा वह अपने मन में विचार करता है, वैसा वह आप है।’ (नीतिवचन 23:7)

यदि हम अपने मनों को अधिकाधिक परमेश्वर की बातों पर लगाएं, हम धीरे धीरे अच्छे पुरुष और स्त्रियां बन जाएगे।

विश्वास करना और विश्वास पर चलना

पढ़ने और प्रार्थना करने और मनन करने से हमें अच्‍छे काम करने में सहायता मिलती है। किसी ने एक समय यीशु से पूछा,

‘व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?’ (मत्ती 22:36)

यीशु के उत्तर को हम 37-39 पदों में पढ़ते हैं

‘तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।’ (मत्ती 22:37-39)

इन आज्ञाओं को मानना आसान नहीं है। हम परमेश्वर से अपने सारे मन, प्राण और बुद्धि के साथ तभी प्रेम रख सकेंगे यदि हम अपने आपको बार बार ये याद दिलाते रहें कि परमेश्वर ने हमसे कितना प्यार किया है और उसने हमारे लिये कितना काम किया है।

उसने हमारे लिये इतने बड़े बड़े काम किये है कि किस तरह हम उसका ऋण चुका सकते है? हम उसके लिये कुछ नहीं कर सकते हैं।

परन्तु हमारे लिये यीशु की दूसरी आज्ञा क्या है? ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।’ (मत्ती 22:39) यहाँ कुछ है जो हम कर सकते हैं। हम दूसरे लोगों की सहायता कर सकते हैं और उनके प्रति अपनी चिन्ता और प्रेम को प्रगट कर सकते हैं जैसे कि परमेश्वर ने प्रेम को हम पर प्रगट किया।

सबसे बड़ी बात जो हम दूसरों के लिये कर सकते हैं वह यह है कि उन तक हम परमेश्वर के राज्य के शुभ सन्देश को पहुंचाए जिस सभुसन्देश में हम स्वंय विश्वास करने लगे है। जैसे परमेश्वर ने हमें उसकी विधियां मानने और उसके राज्य के आनन्दों में भाग लेने का निमंत्रण दिया है, वैसे ही हमें भी दूसरो को उस आनन्द में भाग लेने के लिये जिसे हमने पा लिया है निमंत्रण देना जरुरी है।

यीशु ने एक समय कहा,

‘इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।’ (मत्ती 7:12)

हमारे प्रेम के कार्य जो हम दूसरों के प्रति करते है उन्हें परमेश्वर ग्रहण करेगा मानो कि वे उसके प्रति किये गए हों। इसलिये जो प्रेम परमेश्‍वर ने हमसे किया उसकी प्रसन्‍नसा करने के लिए कुछ कार्य है जो हम कर सकते हैं।

मसीही और संसार

संसार में आज बहुत सी बातें है जो अधार्मिक हैं। उदाहरण के लिये कई पुस्तकें, समाचार पत्र लेख और तस्वीरें हैं जो जल्दी हमारे मनों को बुरी और अशुद्ध बातों की तरफ ले जाती हैं और कभी कभी ये चीजें हमारे मन को बहुत आकर्षित करती हैं। परन्तु वे चाहे हमें कितना ही क्यों न आकर्षित करें-हमें उनसे दूर ही होना है; यदि हम दूर नहीं होते हैं तो वे हमें परमेश्वर से अलग कर देगी।

संसार के आमोद प्रमोद में भाग न लेने के कारण हो सकता है कि हमें कुछ मित्रों को खोना पड़े क्योंकि वे नहीं समझ सकेंगे कि क्यों जिन बातों में हम एक समय उनके साथ आनन्द लेते थे अब उन्हें करने के लिये इन्कार करते है।

परन्तु हम बहुत से वे नए मित्र पाएंगे; जिन्होंने हमारे समान अपने को संसार से अलग कर दिया है और वे हमारे साथ एकता के सूत्र में बंध जाएंगे। वे परमेश्वर की सन्तान होगें और मसीह में भाई और बहन होंगे।

यीशु का स्मरण

बपतिस्मा लेने के द्वारा हम एक नयी शुरूआत करते है। जब हम बपतिस्मा ले लेते है तो हम सीधे और सकरे मार्ग पर प्रस्थान करते हैं जो हमें परमेश्वर के राज्य तक ले जाता है। परन्तु आखिर हम मनुष्य ही है और हम जल्दी भूल जाते हैं कि यीशु ने हमारे लिये क्रूस की मृत्‍यु सहकर हमारे लिये कितना बड़ा काम किया।

यीशु जानते थे कि कितनी सरलता से उसके शिष्य उसे भूल जाएंगे: इसलिए उसने उनसे स्मरण कराने के लिये कुछ करने को कहा। लूका रचित सुसमाचार के 22:14-20 पदों को पढ़िये। यह वह कहानी है जो अन्तिम भोजन के नाम से प्रसिद्ध हैं क्योंकि यह अन्तिम भोजन है जिसे यीशु ने अपनी मृत्यु के पहिले अपने शिष्यों के साथ लिया।

देखिये किस तरह रोटी और दाखरस उसके शिष्यों को याद दिलाने के लिये थी कि यीशु ने कैसे उनके लिये अपने प्राणों को दे दिया। उसने उनसे कहा, ‘मेरे स्मरण के लिये यही किया करो’ (लूका 22:19)। अब 1 कुरिन्थियों 11:23-28 को पढ़िये।

पहिले के मसीही हर सप्ताह के प्रथम दिवस पर यीशु को उस रीति से याद करने के लिये, जिसकी आज्ञा उसने उन्हें दी थी, इकट्ठे होते थे।

प्रभु यीशु के सच्‍चे शिष्‍यों को ठीक उसी रीति से, रोटी तोड़ने और दाखरस पीने में, संगति करनी होगी जैसे पहले के शिष्‍य करते थे (इस संगति के लिए प्राय: रविवार का दिन सुविधाजनक होता है) और यीशु मसीह के उस बलिदान को याद करना चाहिए कि किस तरह हमारे लिए उनके शरीर को तोड़ा गया और उनके लहू को क्रूस पर बहाया गया।

जैसे जैसे हम मसीह में बढ़ते जाते है, यीशु को इस रीति से स्मरण रखना हमारे लिये ज्यादा से ज्यादा आवश्यक और महत्वपूर्ण हो जाता है जो हमारी इस सत्यता को जानने के लिये कि वह हर समय हमारे साथ है हमारी सहायता करेगी।

आपका निर्णय जरुरी

जब आप ये सब बातें पढ़ चुके होंगे तो आप एक दोराहे पर खड़े व्‍यक्ति के समान होंगे। तो अब आप जानते है कि एक रास्‍ता है जो मृत्‍यु की ओर ले जाता है और दूसरा रास्‍ता है जो जीवन की ओर ले जाता है।

जिन लोगों ने परमेश्‍वर के वचन में विश्‍वास कर लिया है और मसीह में बपतिस्‍मा ले लिया है स्‍वंय यीशु मसीह जीवन के मार्ग के इस सफर में उनके साथ है। क्या आप भी उनके साथ होना चाहेंगे? क्या आप परमेश्वर के वचन के उत्तम और श्रेष्ट सन्देश पर विश्वास करेंगे? क्या आप मसीह में बपतिस्मा लेना चाहेंगे? याद रखिये यीशु ने कहा,

‘जो विश्वास करे और बपतिस्मा ले उसी का उद्धार होगा।’ (मरकुस 16:16)

सारांश

  1. प्रतिदिन हमें बाइबिल से थोड़ा बहुत पढ़ने का प्रयत्न करना चाहिये और प्रार्थना भी करनी चाहिये।
  2. बपतिस्मा लेने के बाद हमें विश्‍वासियों के साथ संगति करनी चाहिये, और यीशु मसीह की याद में रोटी तोड़नी चाहिए। (यह सच है कि हमेशा ऐसा सम्भव नही होता क्योंकि हो सकता है कि जहां आप रहते हैं वहां आप ही के समान विश्वास रखने वाले लोग न हों।)
  3. हमें उन सब बातों को छोड़ने की कोशिश करना चाहिये जो हमें पाप में डाल सकती हैं।
  4. हमें निरन्तर दूसरो की भलाई करने की कोशिश करनी चाहिये।