11. जीवन और मृत्यु के विषय में बाइबिल की शिक्षा - पहला भाग

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11. Bible teaching about life and death – Part 1

साप्ताहिक पाठ – उत्पत्ति, अध्याय 36-38; याकूब, अध्याय 4-5

प्रश्‍नोत्‍तरी के लिये पाठ – भजन संहिता 49; उत्पत्ति, अध्याय 2

“अपनी जवानी में मैं जो कर सकता था वह सब मैं आज नही कर सकता हूं" कितनी बार हम इन शब्दों को सुनते हैं! वे कितने सच हैं! यह जानने के लिये हमें 70 साल की आयु तक पहुंचने का इन्‍तजार करने की जरूरत नही है जब हम शक्ति विहिन हो जायेंगे बल्कि यह हम अपनी मध्‍य अवस्‍था में ही देख सकते है कि हम उतना तेज नही चल सकते या उतना तेज नही सोच सकते है जितना हम जवानी में करते थे।

जीवन व्यतीत करते हम वृद्ध होते जाते हैं और इस पर सोचने से हम निश्चयता से जानते हैं कि एक दिन हम सबको मरना है। भजनकार के ये शब्‍द बिल्‍कुल सच है जब वह कहता है कि,

‘हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष के भी हो जाएँ, तौभी उनका घमण्ड केवल कष्ट और शोक ही शोक है; वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं।’ (भजन संहिता 90:10)

सब मनुष्‍य मरते हैं। यह सच ही कहा गया है कि जीवित रहने के विषय में एक ही बात निश्चित है कि एक दिन हम सबको मरना है।

पृथ्वी पर पहला आदमी

हम सब क्यों बूढें होते है और मर जाते हैं? इसके उत्तर के लिये हमें बाइबिल की पहली पुस्तक में सबसे पहले आदमी और स्त्री के विषय में पढ़ना चाहिए।

परमेश्वर ने आदमियों और स्त्रीयों के रहने के लिये पृथ्वी को बहुत ही सुन्दर बनाया। उसने पौधों पशुओं को पहले बनाया और जब सब तैयार हो गया, उसने एक आदमी को बनाया।

उत्पत्ति 2 अध्‍याय और 7 पद हमें बताता है कि,

‘यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा।’ (उत्पत्ति 2:7)

अद्भुत प्रवीणता से एक मानव का शरीर बनाया गया। हम भूमि पर पड़े उस निर्जीव शरीर की कल्‍पना कर सकते है। फिर आगे क्या हुआ? परमेश्‍वर ने:

‘उसके नथनों में जीवन का श्वास फूँक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन गया।’ (उत्पत्ति 2:7)

आदमी सांस लेने लगा। वह जीवित था! वह देख सकता, सुन सकता, सोच सकता और महसूस कर सकता था। निसन्देह वह परमेश्वर के द्वारा बनायी गयी सभी चीजों में सबसे अधिक अदभुत था।

आदम अकेला है

‘यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक वाटिका लगाई, और वहाँ आदम को जिसे उसने रचा था, रख दिया।’ (उत्पत्ति 2:8)

आदम (यही नाम परमेश्वर ने इस आदमी को दिया) वाटिका की देख भाल करता था। परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, ‘तू वाटिका से सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है; पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना’ (उत्पत्ति 2:16-17)। यहोवा परमेश्वर ने उसे पहले से जता दिया

‘जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।’ (उत्पत्ति 2:17)

आदम के साथ रहने वाले केवल जानवर ही थेऔर वे उसके समान नही सोच सकते थे। आदम अकेला हो गया और परमेश्वर ने कहा,

‘आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उस से मेल खाए।’ (उत्पत्ति 2:18)

उत्पत्ति 2:21-23 में आप पढ़ेंगे कि परमेश्वर ने आदम को भारी नींद में डाल दिया, तब उसने उसकी एक पसली निकालकर स्त्री को बनाया, जो आदम के साथ रहे और उसके जीवन में सहभागी हो।

आदम औद हव्वा परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करते हैं

उत्पत्ति 3:1-13 पढ़िये और आप देखेंगे कि किस प्रकार पहली स्त्री हव्वा ने सर्प की बात सुनकर परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया और किस तरह आदम ने भी परमेश्‍वर की आज्ञा का उल्‍लंघन किया।

परमेश्वर की आज्ञा का उल्‍लंघन कर उन्होंने पाप किया और हम पहले देख चुके है कि पाप की मजदूरी मृत्‍यु है। आदम और हव्वा भी इस बात को जानते थे क्योंकि परमेश्वर ने उनसे कह दिया था कि,

‘जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।’ (उत्पत्ति 2:17)

दण्ड

यह विपत्ति लाने पर सर्प को उसका हिस्‍से की सजा मिली।आदम और हव्वा को मृत्यु की सजा मिली और उन्हें वाटिका से बाहर निकाल दिया गया। यघपि इस घटना के बाद आदम और हव्‍वा लम्‍बे समय तक जीवित रहे, लेकिन वे मरने वाले प्राणी हो गए। और ठीक हमारे समान ही वे थकते थे और बीमार होते थे और अन्त में बूढ़े हुए और मर गये। इस प्रकार परमेश्वर का वचन सत्‍य ठहरा कि,

‘तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।’ (उत्पत्ति 3:19)

आपको याद होगा किस जब परमेश्वर ने आदम को रचा तो उसने, ‘उसके नथनों में जीवन का श्वास फूँक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन गया।’ (उत्पत्ति 2:7)

सब मनुष्य ‘जीवित प्राणी’ हैं, परन्तु जब उनकी सांस रुक जाती है तो वे मर जाते है।

जैसा कि सभोपदेशक का लेखक कहता है:

‘क्योंकि जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, और न उनको कुछ और बदला मिल सकता है, क्योंकि उनका स्मरण मिट गया है। उनका प्रेम और उनका बैर और उनकी डाह नष्ट हो चुकी, और अब जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है उसमें सदा के लिये उनका और कोई भाग न होगा।’ (सभोपदेशक 9:5-6)

या जैसे हम भजन संहिता 146 :3-4 में पढ़ते हैं,

‘तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नहीं। उसका भी प्राण निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएँ नष्ट हो जाएँगी।’ (भजन संहिता 146:3-4)

संसार में पाप और मृत्यु

पाप और मृत्‍यु हमें किस प्रकार प्रभावित करती है यह समझने में पौलुस हमारी सहायता करता है। रोमियों 5 अध्‍याय और 12 पद में वह कहता है कि,

‘एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया; और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया।’ (रोमियों 5:12)

आदम और हव्वा पापी बन गए। हम उनकी सन्तान हैं और इसलिये हम भी पापी हैं।

हमारी प्रकृति पापमय है;या जैसे पौलुस कहता है कि प्रकृति से हम 'पाप की सन्‍तान' है अपने पिता आदम के समान हमने पाप किया, और उसी के समान हम मरते है।

इसमें हमारा दोष नहीं कि हमारी प्रकृति पापमय है। और इसमें निश्‍चय ही परमेश्वर का भी कोई दोष नही है। इसमें आदम का दोष था और यह हमारा दुर्भाग्य है। यदि हम इस बात के लिए परमेश्‍वर पर दोष लगाते है तो यह हमारी बहुत ही बड़ी मूर्खता है। बल्कि हमें तो परमेश्‍वर का धन्‍यवाद देना चाहिए। हमें उसका धन्‍यवाद देना चाहिए कि यह सब होने के बाद भी उसने हम सब को जीवित रहने का अवसर दिया, वास्‍तव में जिसके हम अधिकारी नही है, और विशेष रूप से हमें उसका धन्यवाद देना चाहिये कि उसने हमें हमारी निराशाहीन दयनीय दशा से छुटकारे (मुक्त होने) के लिये एक मार्ग, एक साधन दिया। जन्म से ही पापी प्रकृति का होने के लिये हम दोषी नहीं हैं परन्तु हम बड़े दोषी हो जाते हैं यदि हम परमेश्वर के दिये हुए बचाव (मुक्ति) के मार्ग की उपेक्षा करते हैं।

सारांश

  1. परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से बनाया।
  2. उसने उसे जीने के लिये उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया।
  3. परमेश्वर ने आदम को एक आज्ञा दी। उसने उससे कहा कि यदि वह उसकी आज्ञा को भंग करेगा, तो उसकी सजा मौत होगी।
  4. आदम और हव्वा ने परमेश्वर की आज्ञा को भंग किया। वे मरने वाले प्राणी बन गए।
  5. सब मनुष्य आदम की सन्तान हैं; सब पापी हैं और सभी को मरना है।
  6. जैसा हम आगे के तीन अध्‍यायों में देखेंगे कि मसीह मनुष्‍यों के जीवन में जीने की एक आशा लाया।