5. परमेश्वर का राज्य – पृथ्वी पर शान्ति

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5. The kingdom of God – peace on earth

साप्ताहिक पाठ – उत्पत्ति, अध्याय 15-17; लूका, अध्याय 15-18

प्रश्‍नोत्‍तर के लिये पाठ – भजन संहिता 72; यशायाह, अध्याय 35

पृथ्वी पर शान्ति – कब?

जब यीशु का जन्म हुआ तो स्वर्गदूतों ने आनन्द में होकर गीत गाये। उनके गीत के शब्द लूका के दूसरे अध्याय और उसके चौदवें पद में लिखें हैं।

‘आकाश में परमेश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है शान्ति हो।’ (लूका 2:14)

तब भी उस दिन से आज तक पृथ्वी पर सच्ची और स्थाई शान्ति कभी नही हुई है। और न ही होगी जब तक कि यीशु परमेश्वर के राज्य को स्थापित करने के लिए इस्राएल में दौबारा नही आयेंगे।

पुराना नियम हमें उस राज्य के बारे में बहुत कुछ बताता है जो शान्ति और समृद्धि वह राज्य लाएगा उसके कई चित्रों को दर्शित करता है।

उस राज्य का विस्तार

भजन संहिता 72 को पढ़िए। इस भजन में हमें उस समय का चित्र दिया गया है जब कि परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर होगा। परन्तु पल भर के लिए आठवें पद पर विचार कीजिए।

‘वह समुद्र से समुद्र तक और महानद से पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करेगा।’ (भजन संहिता 72:8)

यह पद हमें बताता है कि यीशु द्वारा इस्राएल में स्थापित राज्य का विस्तार पूरी पृथ्वी पर होगा। यही बात हम भजन संहिता के दूसरे अध्याय और उसके आठवें पद में पाते हैं जहाँ परमेश्वर यीशु से कहता है,

‘मुझ से माँग, और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्‍पत्ति होने के लिये, और दूर दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूँगा।’ (भजन संहिता 2:8)

एक और पद को देखें। जकर्याह के 14 वें अध्याय और उसके नवें पद को पढ़िए।

‘तब यहोवा सारी पृथ्वी का राजा होगा; और उस दिन एक ही यहोवा और उसका नाम भी एक ही माना जाएगा।’ (जकर्याह 14:9)

मसीह का शासन (राज्य)

यीशु मसीह, अपनी राजधानी, यरूशलेम से राज्य (शासन) करेगा, जिसको उसने एक बार ‘महाराजा का नगर’ कहा था (मत्ती 5:35)।

उसकी व्यवस्था समस्त पृथ्वी में फैल जाएगी जैसा कि हम यशायाह के 2 अध्याय और उसके 1-4 पदों में पढ़ते हैं कि,

‘यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम में से निकलेगा।’ (यशायाह 2:3)

एक आदर्श राज्य

मान लीजिए आप से पूछा जाये कि आप किन परिस्थितियों में एक आदर्श संसार में रहना पसन्‍द करेंगे। सबसे पहली बात जो आप सोचेंगे वह है सुरक्षा; डर से स्‍वतन्‍त्रता , और अपने परिश्रम के फलों का आनन्द लेने के लिए शान्ति। वस्तुतः आपके मस्तिष्‍क में शायद कुछ ऐसी ही तस्‍वीर हो जैसी मीका बताता है:

‘वह बहुत से देशों के लोगों का न्याय करेगा, और दूर दूर तक की सामर्थी जातियों के झगड़ों को मिटाएगा; इसलिये वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल, और अपने भालों से हँसिया बनाएँगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरूद्ध तलवार फिर न चलाएगी; और लोग आगे को युद्ध-विद्या न सीखेंगे। परन्तु वे अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले बैठा करेंगे, और कोई उनको न डराएगा; सेनाओं के यहोवा ने यही वचन दिया है।’ (मीका, अध्याय 4, पद 3-4)

परन्तु इसके पहिले कि शान्ति हो, मनुष्यों द्वारा परमेश्वर के द्वारा बताए हुए मार्गों पर चलने के लिए सच्चा प्रयास होना चाहिए। जब तक मनुष्‍य अपने ही मार्गो पर चलते रहेंगे, संकट बना रहेगा। इसलिए प्रभु यीशु का सबसे पहला काम सभी राष्ट्रों को परमेश्वर के मार्गों को सिखाना होगा।

परन्तु आप कह सकते है कि कुछ ऐसे भी होंगे जो नही सुनेंगे! यह सच है, और जो उनकी आज्ञा का पालन नहीं करेंगे उन्हें सजा मिलेगी (वे दण्ड के भागी होंगे) जैसा कि हम यशायाह में पढ़ते हैं: ‘अपने फूँक के झोंके से दुष्ट को मिटा डालेगा’ (यशायाह 11:4) – क्योंकि स्मरण रखिए जब यीशु वापिस आयेंगे तो वे सर्व सामर्थी होगा।

यीशु के शासन में उसकी प्रभुता में, सब लोग वही करना सीखेंगे जिससे परमेश्वर प्रसन्न हो – यशायाह अध्याय 26 और उसका नौवां पद हमें यही बताता है

‘जब तेरे न्याय के काम पृथ्वी पर प्रगट होते हैं, तब जगत के रहनेवाले धर्म को सीखते हैं।’ (यशायाह 26:9)

यशायाह के अध्याय 32 में आप पढ़ेंगे, ‘धर्म का फल शान्ति और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्चिन्त रहना होगा।’ (यशायाह 32:17)

सभी के लिए समृद्धि

ऐसी समपूर्ण स्थितियों में सब तरफ उन्नति होगी। क्‍या आपने भजन संहिता अध्याय 72 को पढ़ा वह कहता है,

‘देश में पहाड़ो की चोटियों पर बहुत सा अन्न होगा।’ (भजन संहिता 72:16)

पहाड़ों की चोटियाँ सामान्‍यत: बहुत निर्जन (खाली) रहती हैं। यदि पहाड़ो की चोटियों पर मुट्ठी भर अन्न है तो हम कल्पना कर सकते हैं कि घाटियों में अन्न की कितनी बहुतायत होगी। भजन संहिता 67 और उसके 6 पद में हम पढ़ते हैं।

‘भूमि ने अपनी उपज दी है, परमेश्वर जो हमारा परमेश्वर है, उसने हमें आशीष दी है।’ (भजन संहिता 67:6)

मरुस्थल भी उन दिनों में हरे होंगे। यशायाह अध्याय 35 के उन सुन्दर पदों को पढ़िए जो हमें बताते हैं किस तरह से,

‘जंगल और निर्जल देश प्रफुल्लित होंगे, मरुभूमि मगन होकर केसर के समान फूलेगी; वह अत्यन्त प्रफुल्लित होगी और आनन्द के साथ जयजयकार करेगी।’ (यशायाह 35:1-2)

मानसिक और शारीरिक चंगाई

इन आशीषों के साथ अच्छे स्वास्थय और शारीरिक शाक्ति की आशीषें भी आएँगी।

लगभग दो हजार वर्ष पूर्व जब यीशु इस पृथ्वी पर थे, उन्‍होंने परमेश्वर द्वारा दी गई सामर्थ को उपयोग में लाकर बहुत से रोगियों को चंगा किया। परमेश्वर के राज्य में यह सामर्थ फिर से देखी जाएगी। इस विषय में यशायाह अध्याय 35 और उसके 5 और 6 पद को पढ़िए।

‘तब अंधों की आँखें खोली जाएँगी और बहिरों के कान भी खोले जाएँगे; तब लंगड़ा हरिण की सी चौकड़ियाँ भरेगा और गूँगे अपनी जीभ से जयजयकार करेंगे।’ (यशायाह 35:5-6)

हम यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि लोगों की आयु वर्तमान समय की आयु से और अधिक होगी। जकर्याह नबी 8 अध्‍याय के 4 और 5 पद में बताते है कि ऐसा ही होगा।

‘यरूशलेम के चौकों में फिर बूढ़े और बुढ़ियाँ बहुत आयु की होने के कारण, अपने अपने हाथ में लाठी लिए हुए बैठा करेंगी। नगर के चौक खेलनेवाले लड़कों और लड़कियों से भरे रहेंगे।’ (जकर्याह 8:4-5)

ये पद यरूशलेम विषय में बताते हैं परन्तु जैसा हमने देखा है परमेश्वर के राज्य की आशीषों का विस्तार सारी पृथ्वी पर होगा।

परमेश्वर का विश्‍वस्‍त वचन

शायद आप सोचते हों “यह सब सुनने में तो बहुत अच्छा है, मन भावना है परन्तु यह इतना अच्छा है कि सच नही हो सकता है।”

यदि वे प्रतिज्ञाएँ जिनके बारे में हम पढ़ चुके हैं मनुष्यों द्वारा की गई होती तब निश्चय ही हम उनमें कोई भरोसा, कोई विश्वास न कर सकते। अच्छे से अच्छे आदमी भी जो प्रतिज्ञाएँ करते है वे भी मानवीय दुर्बलताओं के कारण उन्‍हें पूरा नही कर सकते।

परन्तु ये परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ हैं और उनमें हम अपना पूर्ण विश्वास रख सकते हैं।

यशायाह अध्याय 55, पद 6 से 11 तक पढ़िए विशेष रूप से 11 पद को ध्यान पूर्वक पढ़िये,

‘उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।’ (यशायाह 55:11)

और इस तरह से हम आनन्द से उस समय की प्रतीक्षा कर सकते है जब, ‘आकाश में परमेश्वर की महिमा और पृथ्वी पर...शान्ति होगी।’ (लूका, अध्याय 2, पद 14)

सारांश

  1. जब यीशु वापिस आयेंगे, तो वे संसार के राजा बनेंगे।
  2. यरूशलेम उस राज्‍य की राजधानी होगी।
  3. समस्त संसार में शान्ति और समृद्धि, स्वास्थ्य और आनन्द होगा।
  4. उसके संसार में व्याप्त राज्य में, हर एक जन परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना सीखेगा।