17. पवित्र आत्मा के वरदान

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17. Holy Spirit gifts

साप्ताहिक पाठ – निर्गमन, अध्याय 7-14; मलाकी, अध्याय 1-2

प्रश्‍नोत्‍तर के लिये पाठ – इफिसियों, अध्याय 4; 1 कुरिन्थियों, अध्याय 14

यीशु ने अपने शिष्यों से प्रतिज्ञा की कि उन्हें पवित्र आत्मा दिया जाएगा। उसने उनसे कहा,

‘विश्वास करनेवालों में ये चिन्‍ह होंगे कि वे मेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को निकालेंगे, नई नई भाषा बोलेंगे, साँपों को उठा लेंगे, और यदि वे प्राणनाशक वस्‍तु भी पी जाएँ तौभी उनकी कुछ हानि न होगी; वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएँगे।’ (मरकुस 16:17-18)

शिष्यों से ये प्रतिज्ञा क्यों की गई?

उन्होने सिद्ध किया कि उनका सन्देश परमेश्वर की ओर से था

यीशु क्रूस पर चढ़ा दिये गये; परमेश्वर ने उन्‍हें मृतकों में से जिला उठाया। वे अपने चेलों के एक छोटे से दल को छोड़कर स्‍वर्ग में चले गये और चेलों के इस दल से कह गये कि,

‘सारे जगत में जाकर सारी सृष्‍टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो।’ (मरकुस 16:15)

यह एक कठिन कार्य था। क्‍या लोगों ने उनको सुना होगा? और निश्‍चय ही लोगो ने इस पर विश्‍वास नही किया होगा कि एक आदमी तीन दिन तक मरे रहने के बाद फिर जिन्दा हो गया? परन्तु यह आश्चर्य जनक होते हुए भी सत्य है।

इसलिए शिष्यों को आश्चर्य कर्मों को करने की सामर्थ्य दी गई, ताकि इस चिन्ह द्वारा लोग जान सकें कि उनका सन्देश (सुसमाचार) परमेश्वर की ओर से था। हम पढ़ते हैं कि पिन्तेकुस्त के दिन किस तरह उन्होंने अन्य-अन्य भाषाओं (बोलियों) में, जिन्हें उन्होंने कभी नहीं सीखा, यहूदियों को प्रचार किया था और जिन्हें वे परमेश्वर की सामर्थ्य के बिना बोल नहीं सकते थे। यह अन्य-अन्य "भाषाओं में बोलना” कहलाता था।

कोई आश्चर्य नहीं कि लोग आश्‍चर्यचकित हो गए थे और कोई आश्चर्य नहीं कि उन्होंने उनको सुना।

आत्मा के वरदान कलीसिया की अगुआई में सहायक ठहरे

पिन्तेकुस्त के दिन प्रचार करने के परिणाम स्वरुप तीन हजार पुरुष और स्त्रीयां शिष्यों के साथ हो लिए और मसीही बन गए (प्रेरितों के काम 2:41)। इस तरह मसीही कलीसिया ने अच्छी शुरुआत की।

परन्तु उनकी कठिनाइयाँ भी आप सोच सकते हैं। इतने बड़े मसीही परिवार को कुछ ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता थी जो कुटुम्बियों की अगुआई करें, उन्हें शिक्षा दें और सब बातों के प्रबंध करने में उन्हें सलाह दें। वे नए नियम से नहीं सीख सकते थे क्योंकि उस समय तक नया नियम लिखा नहीं गया था।

इसलिए आत्मा के वरदान न केवल अविश्वासियों को प्रेरितों के सुसमाचार (सन्देश) की सत्यता पर प्रतीति करने के लिए भेजे गए परन्तु पहिले मसीहियों की सहायता और शिक्षा और पहली कलीसियाओं को सुसंगठित करने के लिए भी दिये गये।

वे वरदान क्या थे?

1 कुरिन्थियों 12:22 में पौलुस प्रेरित बताता है कि कलीसिया के भिन्न भिन्न सदस्यों को अलग वरदान दिए गए और किस तरह प्रत्येक सदस्य को दूसरों की भलाई के लिए काम करना था। 28-29 पदों में वह इन वरदानों की एक सूची देता है।

‘परमेश्वर ने कलीसिया में अलग अलग व्यक्ति नियुक्त किए हैं: प्रथम प्रेरित, दूसरे भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिक्षक, फिर सामर्थ्य के काम करनेवाले, फिर चंगा करनेवाले, और उपकार करनेवाले, और प्रबन्ध करनेवाले, और नाना प्रकार की भाषा बोलनेवाले।’ (1 कुरिन्थियों 12:28)

पहिले तीन वरदान, सबसे मुख्य, पहिले मसीहियों की शिक्षा के लिए थे।

वरदानों का अन्त

हम देख चुके हैं कि मसीहियों के दिनों में नया नियम नहीं था – उस समय वह लिखा ही नहीं गया था और हमें बताया गया कि यह भी एक कारण था कि ये वरदान कितने आवश्यक थे।

हम प्रभु यीशु का जीवन वृतांत और प्रेरितों की पत्रियांपढ़ सकते है। परन्तु पहिले मसीहियों के पास कोई लेख नहीं थे। इसलिये प्रेरितों, भविष्यद्वक्ताओं और शिक्षकों के आत्मा के ये वरदान पहली कलीसियाओं के लिये अति आवश्यक थे।

जब नया नियम लिख लिया गया, तब परमेश्वर की ओर से इस विशेष सहायता की कोई आवश्यकता नहीं रही। वह सब कुछ जो मसीहियों को जानना आवश्यक है उनके लिये बाइबिल में लिखित है। इसलिये आत्मा के वरदान ले लिये गए।

पौलुस प्रेरित ने कहा ऐसा होगा जब ये वरदान उठा लिये जायेंगे। 1 कुरिन्थियों में हम पढ़ते हैं,

‘प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियाँ हों, तो समाप्‍त हो जाएँगी, भाषाएँ हों, तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।’ (1 कुरिन्थियों 13:8)

ऐसा नही लगता है कि जैसे ही नया नियम लिखा गया ये वरदान अचानक ले लिये गए, परन्तु जैसे जैसे समय बीतता गया जिन्हें ये वरदान प्राप्त थे उनकी मृत्यु हो गई और उनके बाद आनेवाले मसीहियों को ये वरदान नहीं दिये गये।

क्या आज किसी को ये वरदान प्राप्त है?

आज भी कुछ लोग दावा करते हैं कि उन्‍हें पवित्र आत्मा के वरदान प्राप्‍त है विशेष कर बीमारों को चंगाई देने और अन्‍य अन्‍य भाषायें बोलने के वरदान। जो लोग ऐसा दावा करते है हम उनको कैसे जांच सकते है?सबसे पहले तो हमें वह बात याद रखनी चाहिये जो प्रेरित पौलुस ने 1 कुरिन्थियों के अध्‍याय 13 में कही कि ऐसा समय आयेगा जब ये वरदान नही रहेंगे। यदि यह समय नया नियम लिखे जाने के बाद शुरू नही हुआ तो फिर यह कब शुरू हुआ? एक बात तो निश्चित है कि ऐसा आने वाले परमेश्‍वर के राज्‍य में नही होगा, क्‍योंकि तब तो इनसे भी कही अधिक वरदान दिये जायेंगे।

दूसरी बात हमें ध्‍यान देनी चाहिए कि पवित्र आत्‍मा के वरदान सच्‍ची कलिसिया की सहायता के लिए दिये गये। सच्‍ची कलिसियां परमेश्‍वर के वचन पर विश्‍वास करती है और उसका प्रचार करती है। आज जो लोग इस सामर्थ को रखने का दावा करते है उनमें से सब नही तो अधिकाशं उन बातों का प्रचार करते है जो परमेश्‍वर के वचनानुसार नही है। इसलिए हमें इन दावों को अस्वीकार करना चाहिए।

और तीसरे हमें यह स्‍वीकार करना चाहिए कि हम इन चमत्‍कारों से प्रभावित नही है। ऐसी अधिकांश चंगाईयों के विषय में हम शीघ्र ही देखते है कि वास्‍तव में ये चंगाई हुयी ही नही है और अन्‍य दूसरी चंगाईयों की विज्ञान के द्वारा व्‍याख्‍या की जा सकती है। सम्‍मोहन करने वाले भी अधिकाशंत: ऐसे परिणाम प्राप्‍त कर सकते है।

जो लोग बाइबिल में लिखी बातों पर विश्‍वास करते है वे कभी भी इन वरदानों को रखने का दावा नही करते, क्‍योंकि वे जानते है कि जब नये नियम का लिखा जाना सम्‍पूर्ण हो गया तो ये वरदान उठा लिये गये।

अन्त में एक और याद रखने योग्‍य बात यह है कि जब हम बाइबिल को पढ़ते हैं तो हम वास्‍तव में परमेश्वर की आत्मा को प्राप्त करते है। इसलिए यदि हम बचना चाहते है तो हमें जितना अधिक हो सकें बाइबिल को पढ़कर ईश्‍वर द्वारा दिये गये इस अद्भुत वरदान की प्रसन्‍नसा करें।

सारांश

  1. पवित्र आत्मा के वरदान पहिले के मसीहियों को दिए गए थे।
  2. वे दो अभिप्राय से दिए गए थे:
    1. अविश्‍वासियों के लिए एक चिन्ह।
    2. पहली कलीसियाओं को मजबूत बनाने के लिए।
  3. ये केवल उस समय तक के लिए दिये गये जब तक कि नए नियम की पुस्तकें लिखी नहीं जा चुकी। उसके बाद इन वारदानों को समाप्‍त हो जाना था।
  4. उनके लोप होने के बाद कोई भी व्यक्ति पवित्र आत्मा की सामर्थ्य द्वारा आश्चर्य कर्मों को नहीं कर पाया है।
  5. जो व्यक्ति आज भी आश्चर्य कर्मों के करने का दावा करते हैं उनमें सम्‍मोहन जैसी कोई विचित्र शाक्ति हो सकती है। परन्तु वह पवित्र आत्मा की सामर्थ्य नहीं है।