15. पिता और पुत्र

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15. The Father and the Son

साप्ताहिक पाठ – उत्पत्ति, अध्याय 48-50; 1 पतरस, अध्याय 1-3

प्रश्‍नोत्‍तर के लिये पाठ – यशायाह, अध्याय 45

एक समय जब यीशु अपने पिता से प्रार्थना कर रहे थे तो उन्‍होंने इन शब्दों का प्रयोग किया,

‘अनन्‍त जीवन यह है कि वे तुझ एकमात्र सच्‍चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।’ (यूहन्ना 17:3)

इसलिये हमें परमेश्वर पिता और उसके पुत्र प्रभु यीशु को अवश्य जानना चाहिये। अनन्त जीवन इसी ज्ञान पर निर्भर है।

हम बाइबिल को पढ़ने से परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह के विषय में सीख सकते हैं। हमारे लिये परमेश्वर के विषय में कुछ भी जानना असम्भव है जब तक कि हम स्‍वंय उसके (परमेश्‍वर) द्वारा दिये गये सन्‍देश (बाइबिल) का अध्‍ययन न करें।

परमेश्वर ने खुद कहा है,

‘मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है।’ (यशायाह 55:8-9)

सब का एक ही परमेश्चर और पिता

हम बाइबिल से परमेश्वर के बारे में क्या सीख सकते हैं? तीमुथियुस को अपनी पत्री लिखते समय पौलुस प्रेरित परमेश्वर के बारे में बताता है:

‘जो परमधन्य और एकमात्र अधिपति और राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है, और अमरता केवल उसी की है, और वह अगम्य ज्योति में रहता है, और न उसे किसी मनुष्य ने देखा और न कभी देख सकता है।’ (1 तीमुथियुस 6:15-16)

यदि बाइबिल हमें केवल यहोवा परमेश्वर की सामर्थ और पवित्रता के बारे में ही बताती तो हम निश्चय उसका भय मानते परन्तु उससे प्रेम करने में हमें कठिनाई होती। परन्तु परमेश्वर ने हम पर प्रगट कर दिया है कि वह दयालु और करुणा निधान भी है।

जब मूसा इस्राएलियों को अपनी अगूआई में मरुस्थल व जंगली भूमि में से ले जा रहा था तो उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पडा जिनसे वह निराश हो गया और अपने कार्य को करते रहने के लिए उसने सहायता के लिए परमेश्वर से प्रार्थना में कहा, ‘मुझे अपना तेज दिखा दें।’ (निर्गमन 33:18)

फिर अध्याय 34, पद 6-7 में हम पढ़ते है कि परमेश्वर ने अपने को मूसा को इन शब्दों में प्रगट किया (मूसा के सामने होकर यों प्रचार करते हुए चला)

‘यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य है।’ (निर्गमन 34:6)

जब हम परमेश्वर की भलाई, उपकार के बारे में सोचते हैं, हम भजन संहिता के गीतकार के साथ कह सकते हैं,

‘हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्र नाम को धन्य कहे!’ (भजन संहिता 103:1)

परमेश्वर का पुत्र

आरम्भ से ही परमेश्वर ने अपने पुत्र को हमारा ऊद्धारकर्ता होने के लिए भेजने का आयोजन (प्रबन्ध) किया। पुराने नियम में यीशु के विषय में कई भविष्यवाणियाँ है जिसमें एक यशायाह 7 में है जहाँ हम पढ़ते हैं,

‘इस कारण प्रभु आप ही तुम को एक चिन्ह देगा। सुनो, एक कुमारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखेगी।’ (यशायाह 7:14)

इम्मानुएल का अर्थ है “परमेश्वर हमारे साथ” यहाँ परमेश्वर अपने ही पुत्र को भेजने की प्रतिज्ञा कर रहा है। और ऐसा ही हुआ। पौलुस प्रेरित कहता है,

‘जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा जो स्त्री से जन्मा, और व्यवस्था के अधीन उत्‍पन्न हुआ।’ (गलातियों 4:4)

उनके जन्म के पूर्व, स्वर्गदूत ने उनकी माता से कहा,

‘पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्‍पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।’ (लूका 1:35)

अपना प्रचार कार्य शुरू करन से पहले यीशु ने यरदन नदी में बपतिस्मा लिया। इसी समय परमेश्वर ने उन्‍हें पवित्र आत्मा दिया जिसका मतलब था कि उनके पास असीमित सामर्थ थी और परमेश्वर ने उनसे कहा (अर्थात यह आकाशवाणी हुई),

‘यह मेरा प्रिय पुत्र है, तुझ से मैं प्रसन्न हूँ।’ (मरकुस 1:11)

यीशु मसीह की प्रकृति

क्योंकि यीशु एक स्त्री से जन्में इसलिए उनकी प्रकृति भी ठीक हमारी प्रकृति के समान थी। इब्रानियों 2 में हम पढ़ते हैं,

‘इस कारण उस को चाहिए था, कि सब बातों में अपने भाइयों’ के समान बने।’ (इब्रानियों 2:17)

निश्चय ही पुर्नरुत्थान से पहले यीशु हमारे समान थे। पुर्नरुत्थान के बाद उन्‍हें एक सामर्थी, अविनाशी शरीर दिया गया।

क्योंकि यीशु परमेश्वर के पुत्र थे, इसलिए दुर्बल मानवीय प्रकृ‍ति होने के बाद भी उनका आदर्श चरित्र था।

एक गलत विचार

बहुत से लोग ईश्वर के विषय में बाइबिल की शिक्षा की उपेक्षा करते है और इसलिये वे एक ऐसी बात में विश्वास करने लगे हैं जिसे वे त्रिएकता (त्रिएक परमेश्वर) कहते हैं। उनका कहना है कि परमेश्वर में तीन व्‍यक्ति विद्यमान है पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा और तीनो बराबर हैं। (अगले पाठ में हम पवित्र आत्मा पर विचार करेंगे।)

त्रिएकता शब्द और वाक्‍यांश ‘परमेश्वर पुत्र’ बाइबिल में कहीं नहीं है। वास्‍तव में यह विचार बाइबिल की शिक्षा के विपरीत है। जिस तरह एक पुत्र कभी भी अपने पिता के बराबर नहीं हो सकता है, उसी तरह यीशु भी कभी परमेश्वर के बराबर नहीं हो सकते है। उन्‍होंने कभी भी परमेश्वर के बराबर होने का दावा नहीं किया परन्तु सब बातों के लिये अपने पिता पर निर्भर रहे। उन्‍होंने कहा,

‘पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है।’ (यूहन्ना 5:19)

यह सच है कि यीशु ने एक बार कहा, ‘मैं और पिता एक हैं।’ (यूहन्ना 10:30)

लेकिन हम भी यदि किसी व्यक्ति से पूरी तरह सहमत हैं अर्थात दोनो एक ही मत के हैं तो हम कहते हैं कि हम दोनो एक ही हैं। इसी विचार के अनुसार यीशु और उसके शिष्य एक थे क्योंकि यूहन्ना 17 में वह प्रार्थना करते है कि,

‘वे (शिष्य) सब एक हों; जैसा तू हे पिता मुझ में है, और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों।’ (यूहन्ना 17:21)

1 कुरिन्थियों 15:24-28 को पढ़िये। विशेषरूप से 28 वें पद पर ध्यान दीजिये,

‘और जब सब कुछ उसके अधीन हो जाएगा, तो पुत्र आप भी उसके अधीन हो जाएगा जिसने सब कुछ उसके अधीन कर दिया, ताकि सब में परमेश्वर ही सब कुछ हो।’ (1 कुरिन्थियों 15:28)

यह पद हमें बताता हैं कि पृथ्वी पर यीशु के एक हजार साल के राज्य के अन्त होने पर यीशु परमेश्‍वर के अधीन रहेगा, और सब में केवल परमेश्वर ही सब कुछ होगा।

त्रिएकता में विश्वास कहां से आया?

पहली कलीसिया के विश्‍वासी त्रिएकता में विश्वास नहीं करते थे। जो बाइबिल सिखाती थी वे उसमें विश्वास करते थे कि,

‘परमेश्वर एक ही है, और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात्‍मसीह यीशु जो मनुष्य है।’ (1 तीमुथियुस 2:5)

यीशु के जन्म के तीन सौ साल बाद मसीहियों ने त्रिएकता में विश्वास करना शुरु कर दिया; और यह विश्वास बाइबिल पर नहीं परन्तु प्राचीन यूनानियों के विचारों पर आधारित था जो एक सच्चे अद्वैत परमेश्वर के बारे कुछ नहीं जानते थे।

पहले मसीहियों का सच्चा विश्वास

प्रेरितों के विश्वास वचन में, जो यीशु के स्वर्गारोहण के लगभग सौ साल बाद संग्रहित किये गये और जिनमें हमें पहले मसीहियों का विश्‍वास दिखता है, हम पढ़ते हैं,

“मैं विश्वास करता हूँ सर्वशक्तिमान परमेश्वर पिता में जो स्वर्ग और पृथ्वी का सृजनहार है और उसके एकलौते पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह में जो पवित्र आत्मा से गर्भ में आया और कुवारी मरियम से उत्पन्न हुआ।” (प्रेरितों के विश्‍वासी वचन)

यह बाइबिल की सच्ची शिक्षा हैं।

सारांश

  1. केवल एक ही परमेश्वर है।
  2. परमेश्वर त्रिएक नहीं है। त्रिएकता का सिद्धान्त बाइबिल में नहीं है।
  3. यीशु मसीह परमेश्वर नहीं है; वह परमेश्वर का पुत्र है।
  4. यीशु एक मनुष्य है परन्तु वह और किसी भी मनुष्य से बहुत ही अधिक बडा और महान है।
  5. उसका जन्म एक महान अश्चर्य कर्म था क्योंकि उसकी माता कुंवारी थी। केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही उसका पिता था।