1. The Bible our Guide
साप्ताहिक पाठ – उत्पत्ति, अध्याय 1-3; लूका, अध्याय 1-3
प्रश्नोत्तर के लिये पाठ – भजन संहिता 1; 19; 119 पद 89-112
मार्गदर्शक की आवश्यकता
जब हम एक ऐसे स्थान को जाते हैं जहां पहले कभी नही गए हैं, हमें एक मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है। हम उस स्थान का एक नक्शा या स्थान सूचक पुस्तक खरीदें। हम किसी एक मित्र से जिसे उस स्थान का पूरा ज्ञान है उस स्थान के बारे में पूछ सकते हैं। हमारा एक मार्गदर्शक अवश्य होना चाहिए।
इसी प्रकार जीवन यात्रा में हमें एक मार्गदर्शक की आवश्यकता है। हमें यह जानना आवश्यक है कि जीवन का उद्देश्य क्या है और हमें दिन प्रतिदिन किस तरह क्या करना चाहिए। बाइबिल में हमें इन प्रश्नों के उत्तर मिलते है।
जब हम अपने चारो ओर संसार की अदभुत वस्तुओं को देखते है, और उन पर ध्यान देते हैं कि किस प्रकार अद्भुत रीति से हमारा शरीर बनाया गया है, तो हमें दृढ़ निश्चय हो जाता है कि यह सब कार्य एक महान विधाता का है। परन्तु हम किस तरह से उस के विषय में और अधिक जान सकते हैं, कि विधाता हमसे क्या चाहता है, और हम क्या करे!
व़ास्तव में इन सब प्रश्नों के उत्तर बाइबिल में है। परमेश्वर ने, जो सब चीजों का महान रचीयता है, हमें वह मार्गदर्शक पुस्तक दी है जिसकी हमें आवश्यकता है। यदि हम परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहते हैं तो हमें उस मार्गदर्शक पुस्तक को लेना चाहिये, उसको पढ़ना चाहिये, अध्ययन करना चाहिये और उस के विषय दिन प्रतिदिन सोचना चाहिये।
बाइबिल के दावे
बाइबिल बड़े-बड़े दावे करती है। यह अधिकार के साथ परमेश्वर का वचन होने का दावा करती है। पुराने नियम के भविष्यद्वक्ताओ ने कई बार अपने संदेश को इन शब्दों से आरम्भ किया है कि ‘परमेश्वर यह कहता है’। पौलुस प्रेरित हमें बताता है कि ‘सम्पूर्ण पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है।’ (2 तीमुथियुस, अध्याय 3, पद 16)
यदि ये दावे सच नही होते और यदि बाइबिल परमेश्वर का वचन नही होती, तो हम बाइबिल को अलमारी में रखकर उसे भूल सकते थे। और उसकी शिक्षाऐं अच्छी होने के बावजूद भी, उनका हमारे ऊपर कोई प्रभाव नही होता।
क्योंकि बाइबिल सच है, तो जब तक हम परमेश्वर को नजरअंदाज ना करना चाहे और अपने आप को जीवन की उस दी गयी आशा से अलग न करना चाहे तब तक हमें परमेश्वर के वचन की इस पुस्तक को नजरअंदाज करने का साहस हम लोगों को नही करना चाहिये।
हम कैसे जानते हैं कि बाइबिल सच है?
यह विश्वास करने के लिए कि बाइबिल सच है, क्या तर्क हैं? बाइबिल सत्य है यह विश्वास करने के इतने तर्क हैं कि हम उन सबका विवरण यहां नही कर सकते हैं, केवल कुछ का यहां उल्लेख करेंगे।
प्रथम उसकी सत्यता के लिए प्रभु यीशु मसीह का वचन है। प्रभु यीशु मसीह के दिनों में केवल पुराना नियम ही था और यीशु मसीह पुराने नियम के हर एक शब्द पर विश्वास करते थे। जब कभी उनकी किसी भी बात और कार्य की सत्यता का विरोध किया गया तो उन्होंने उसकी सत्यता का प्रमाण पुराने नियम से दिया।
जब सदूकी उसके पास आए और विवाद करने लगे कि मृतकों में से जी उठना अर्थात पुनरुत्थान जैसी कोई बात नहीं है, यीशु ने उत्तर दिया, ‘तुम पवित्रशास्त्र और परमेश्वर की सामर्थ्य नहीं जानते; इस कारण भूल में पड़े हो।’ (मत्ती 22:29)
तब पुराने नियम से प्रमाण देते हुए उन्होंने सिद्ध करके बताया कि मृतकों में से जी उठने (पुनरुत्थान) की आशा ईश्वरीय वचन का एक अशं थी। (यशायाह 26:19; दानिय्येल 12:2)
प्रभु यीशु मसीह ने अब्राहम, इसहाक, याकूब, दाऊद और सुलेमान और अन्य दूसरे पुराने नियम के लोगों के विषय में बातें की; और जिस तरह प्रभु यीशु मसीह ने इन सब लोगों के विषय में बातें की उससे हम जान जाते है कि प्रभु यीशु मसीह पुराने नियम के इन लोगों के विषय में अच्छी तरह से जानते थे और विश्वास करते थे।
बाइबिल की सत्यता के लिए दूसरा तर्क यह है कि अब तक कोई भी बाइबिल को झूठा साबित नही कर पाया है। बाइबिल के बहुत से विरोधियों ने, जिनमें से कुछ बहुत ही चतुर व्यक्ति भी थे, बाइबिल को झूठा साबित करने की कोशिश की परन्तु वे सब अपने प्रयास में असफल रहे। यदि हम गम्भीरतापूर्वक इस पर विचार करें, तो हमें यह मानना पड़ेगा कि यह एक अद्भुत बात है।
इसके बाद बाइबिल की भविष्यद्वाणियों का अद्भभुत रीति से पूरा होना है। बाइबिल सैकड़ों वर्षों बाद होनेवाली घटनाओं के विषय में समय समय पर बताती है। उदाहरण के लिए मत्ती के दूसरे अध्याय में हम पढ़ते है कि ज्ञानी पुरुष (ज्योतिषी) हेरोदेस के पास आए और पूछा कि ‘यहूदियों का राजा जिसका जन्म हुआ है, कहाँ है?’ (मत्ती 2:2) हेरोदेस ने यही प्रश्न महायाजकों से किया। उन्होंने उससे कहा ‘यहूदिया के बैतलहम में’ (मत्ती 2:5)। उन्हें कैसे मालूम हुआ? क्योंकि सैकडों वर्ष पूर्व इसकी भविष्यवाणी पुराने नियम की एक पुस्तक में की जा चुकी थी – मीका, अध्याय 5, पद 2 में।
बाइबिल का इतिहास जो कि लम्बे समय पहले लिखा गया उसको बार-बार आधुनिक खोजों के द्वारा सच साबित किया गया है।
हम बाइबिल की सत्यता के और दूसरे प्रमाण भी खोज सकते हैं, लेकिन सबसे अच्छी विधि स्वयं बाइबिल को पढ़ना है। तब हमें धीरे-धीरे यह मालूम हो जाता है कि किस तरह से बाइबिल का एक भाग दूसरे भाग से कितनी अच्छी तरह से मेल खाता है।
बाइबिल की पुस्तकों का सूचीपत्र
बाइबिल व़ास्तव में एक पुस्तक नहीं है बल्कि कई पुस्तकों का एक संग्रह है –जिसमें कुल 66 पुस्तकें है इसमें से 39 पुराने नियम में और 27 नए नियम में है। वे हजारों वर्षों में विभिन्न लेखकों द्वारा लिखी गई थी तो भी वे सब मिलकर एक पूरी कहानी प्रस्तुत करती हैं – इस कहानी की शुरूआत उत्पत्ति से परमेश्वर के मनुष्य को बनाने के उद्देश्य से होती है और उस समय तक होती है जब ‘जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया, और वह युगानुयुग राज्य करेगा।’ (प्रकाशित्वाक्य, अध्याय 11, पद 15)
पुराना नियम
पुराने नियम की पहिली पाँच पुस्तकें, परमेश्वर के सेवक, मूसा के द्वारा लिखी गई थी। पहली पुस्तक उत्पत्ति कहलाती है जिसका अर्थ है "आरम्भ"। यह हमें पृथ्वी पर के पहले मनुष्यों के साथ परमेश्वर के व्यवहार के बारे में बताती हैं।
उसके बाद निर्गमन, लैव्यव्यवस्था, गिनती और व्यवस्थाविवरण नामक पुस्तकें हैं। ये चार पुस्तकें हमें बताती है कि किस तरह ईश्वर यहूदियों को, जिन्हें उसके अपने लिए चुन लिया था, मिस्र से बाहर लाया और उन्हें कनान देश (इस्राएल) दिया। तब इसके बाद वे पुस्तकें हैं जो यहूदियों के इतिहास और परमेश्वर का उनके साथ व्यवहार का वर्णन करती हैं।
जब हम भजन संहिता की पुस्तक में आते है तो हमें कुछ बहुत ही उत्तम कविता मिलती है जिनकी समानता नहीं है। शायद आपको कविता पसन्द ना हो? परन्तु बाइबिल की कविता कुछ अलग तरह की है। उदाहरण के लिये भजन संहिता 8 और उसके पद 3 और 4 को लीजिये।
‘जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्त किए हैं, देखता हूँ; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले?’ (भजन संहिता 8:3-4)
क्या आप ने रात में आकाश में तारों को देखकर कभी ऐसा अनुभव नहीं किया!
इसके बाद भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें है – यशायाह, यिर्मयाह और यहेजकेल की बड़ी और कुछ छोटी भविष्यद्वाणियों की पुस्तकें।
आपकी बाइबिल के आरम्भ में बाइबिल की सब पुस्तको की सूची होगी- यहां पर केवल सरसरी तौर पर आपको इन पुस्तकों का क्रम और विषय बताया गया है।
नया नियम
नये नियम की शुरूआत मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना द्वारा लिखी गयी, प्रभु यीशु मसीह के जीवन की, चार अलग-अलग कहानियों से होती है।चारों अपने ही तरीके से यीशु मसीह के जीवन चरित्र का वर्णन करते हैं।
इसके बाद यीशु मसीह के मृतकों में से जी उठने के बाद क्या हुआ यह कहानी है। फिर हम ‘प्रेरितों के कामों का वर्णन’ नामक पुस्तक में पहली कलीसिया के संगठन के विषय में पढ़ते हैं।
तत्पश्चात नवीन कलीसियों के सहायतार्थ भिन्न प्रेरितों द्वारा लिखित पत्रियाँ हैं और अन्त में प्रकाशितवाक्य नामक पुस्तक है।
फिर से हम आपको बता दें कि यदि आप को बाइबिल की सम्पूर्ण पुस्तकों की सूचि चाहिये तो यह आपकी बाइबिल के प्रथम पृष्ठ पर है।