14. न्याय का सिंहासन

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14. The judgement seat

साप्ताहिक पाठ – उत्पत्ति, अध्याय 45-47; फिलिप्पियों, अध्याय 3-4

प्रश्‍नोत्‍तर के लिये पाठ – मत्ती, अध्याय 25

जिस रात यहुदा इस्करियोती ने धोखा देकर प्रभु यीशु को पकड़वाया, प्रभु यीशु ने उसे अन्तिम चेतावनी दी:

‘उस मनुष्य पर हाय जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है यदि उस मनुष्‍य का जन्‍म ही न होता, तो उसके लिये भला होता।’ (मरकुस 14:21)

अपने स्वामी के साथ विश्वासघात कर, यहूदा इस्करियोती जान बूझकर प्रभु यीशु के विरुद्ध हो गया था और उसने दुष्टता अर्थात पाप के मार्ग को चुन लिया था। हर पीढी में लोग हुए हैं जिन्होंने स्वेच्छा से प्रभु से अलग हो कर दुष्टता (पाप) के मार्ग को चुन लिया। ज्योति को न चाहकर कर वरन अन्धकार को प्यार करने की जवाब देही उनकी अपनी है। वे कडे न्याय के भागी है। इसलिए यीशु ने यहूदा इस्करियोती के लिये कहा ‘यदि उस मनुष्य का जन्म ही न होता, तो उसके लिये भला होता।’

न्याय का होना जरुरी है

यदि हम इसके बारे में सोचें तो पुर्नरुत्थान के बाद न्याय की आवश्यकता को हम देखेंगे। परमेश्वर प्रेमी है परन्तु वह न्यायी और धर्मी भी है। वह उन लोगों को अनन्त जीवन नहीं दे सकता था जिन्होंने उसके प्रेम का तिरस्कार कर दिया था (उसके प्रेम को तुच्छ समझा था और ठुकरा दिया था) और यह जानते हुए भी कि यीशु उनके लिये मरा उन्होंने उसकी सेवा करने और आज्ञा मानने की कोई कोशिश नही की।

इसलिए पौलुस रोमियों में हमे बताता है

‘हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के सामने खड़े होंगे।’ (रोमियों 14:10)

फिर से 2 कुरिन्थियों में कहता है,

‘अवश्य है कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के सामने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने अपने भले बुरे कामों का बदला जो उसने देह के द्वारा किए हों पाए।’ (2 कुरिन्थियों 5:10)

एक धार्मिक न्यायी

जब यीशु फिर आयेंगे तो वे मरे हुओं (मृतकों) को जी उठायेंगे और उस समय उसके वे अनुयायी जो जीवित होंगे उन्हें वह इकट्ठा करेंगे। वह न्याय का समय होगा। न्याय के बाद जो ग्रहण कर लिये जायेंगे उन्हें अनन्त जीवन दिया जाएगा और जैसा हम मत्ती 25 में पढ़ते है; यीशु उनसे कहेंगे,

‘“हे मेरे पिता के धन्य लोगो, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया गया है।”’ (मत्ती 25:34)

यीशु स्वंय न्यायधीश होंगे। यूहन्ना रचित सुसमाचार जहाँ यीशु पुर्नरुत्थान के बारे में कह रहे है। हम पढ़ते है,

‘वह समय आता है कि जितने कब्रों में हैं वे उसका शब्‍द सुनकर निकल आएँगे। जिन्‍होंने भलाई की है वे जीवन के पुर्नरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्‍होंने बुराई की है वे दण्ड के पुर्नरुत्थान के लिये जी उठेंगे। मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूँ, वैसा न्याय करता हूँ; और मेरा न्याय सच्‍चा है; क्‍योंकि मैं अपनी इच्‍छा नहीं परन्‍तु अपने भेजनेवाले की इच्‍छा चाहता हूँ।’ (यूहन्ना 5:28-30)

यीशु अपने उस ज्ञान से न्‍याय करेंगे जो परमेश्वर ने उन्‍हें दिया है। हम यशायाह 11 में पढ़ते है

‘वह मुँह देखा न्याय न करेगा और न अपने कानों के सुनने के अनुसार निर्णय करेगा; परन्तु वह कंगालों का न्याय धर्म से, और पृथ्वी के नम्र लोगों का न्‍याय खराई से करेगा।’ (यशायाह 11:3-4)

मनुष्य केवल जो देखते है और जो सुनते हैं उसी के अनुसार ही निर्णय कर सकते है; परन्तु प्रभु यीशु सभी के हृदयों को जानेंगे और वह अपने न्‍याय में कोई गलतियां नहीं करेंगे।

न्याय सिंहासन के सम्मुख कौन होंगे?

वे जिन्होंने परमेश्वर के द्वारा दिये जाने वाले जीवन की कृपा को ग्रहण कर लिया है, और प्रभु यीशु में बपतिस्मा ले लिया है; वे प्रभु यीशु के न्याय सिंहासन के सम्मुख इकठ्ठे किये जाऐंगे। परन्तु सिर्फ वे ही नही होंगे। पुराने नियम के समय के विश्वासी लोग भी वहां होंगे। और वास्‍तव में कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो विश्वासी नहीं रहे। इब्रानियों 10 में हम पढ़ते है,

‘क्‍योंकि सच्‍चाई की पहिचान प्राप्‍त करने के बाद यदि हम जान बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। हाँ, दण्‍ड का एक भयानक बाट जोहना और आग का ज्वलन बाकी है जो विरोधियों को भस्म कर देगा।’ (इब्रानियों 10:26-27)

वे जिन्होंने सच्चे परमेश्वर और उसके पुत्र यीशु मसीह के बारे में कभी नहीं जाना, वे न्याय के लिये नहीं बुलाए जाएगें। आपको भजन संहिता 49 के वे पद याद होंगे जो ऐसे व्यक्ति के बारे में कहते हैं

‘वह अपने पुरखाओं के समाज में मिलाया जाएगा, जो कभी उजियाला न देखेंगे। मनुष्य चाहे प्रतिष्ठित भी हों, परन्तु यदि वे समझ नहीं रखते, तो वे पशुओं के समान हैं जो मर मिटते हैं।’ (भजन संहिता 49:19-20)

(यदि आप यशायाह 26:13-14 को पढ़े तो ये पद भी यही बात सिखाते है।)

उनका क्या होगा जो अस्वीकार किये जायेंगे?

हमने देखा कि जो प्रभु यीशु के न्याय सिंहासन के सम्मुख आएगें वे दो वर्गो में बाटें जाएंगे। मसीह कुछ को ग्रहण करेंगे और कुछ दूसरों को अस्वीकार करेंगे। जिन्हें वह ग्रहण करेंगे उन्हें वे अनन्त जीवन देंगे। परन्तु उनका क्या होगा जिन्‍हें वे अस्वीकार करेंगे? उनकी सजा क्‍या होगी?

हम उनकी सजा को विस्तार पूर्वक नही जानते है। परन्तु कुछ बातों पूरी तरह से नश्चित है। पहिले उनको यह दिखाया जायेंगा कि वे कितना मूर्ख रहे और वे इस बात को जानेंगे कि उन्‍होंने क्‍या खोया; और यह जानकर उन्हें मानसिक पीड़ा होगी। यीशु ने ऐसे लोगों के लिये कहा:

‘वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा; जब तुम अब्राहम और इसहाक और याकूब और सब भविष्यद्वक्ताओं को परमेश्वर के राज्य में बैठे, और अपने आप को बाहर निकाले हुए देखोगे।’ (लूका 13:28)

अन्त में वे पूरी रीति से नाश कर दिये जाएगे। यीशु ने न्याय की तुलना फसल काटने के समय से की जब खलयान में अच्छे अनाज को जंगली दोनों से अलग किया जाता है। अनाज को संभाल कर रखा जाता है परन्तु जंगली दोनों को किसान जला देता है (मत्ती 13:36-43)।

यही बात पौलुस ने स्पष्ट रीति से सिखाई:

‘प्रभु यीशु अपने सामर्थी दूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्‍वर्ग से प्रगट होगा, और जो परमेश्वर को नहीं पहचानते और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते उनसे पलटा लेगा। वे प्रभु के सामने से, और उसकी शक्ति के तेज से दूर होकर अनन्‍त विनाश का दण्‍ड पाएँगे।’ (2 थिस्सलुनीकियों 1:7-9)

प्रेम या भय

बाइबिल में कुछ पद हैं जो हमें चेतावनी देते है प्रतीत होते है कि न्याय के समय हम अपने ऊपर अत्याधिक विश्वास न रखें कि हमारा सब ठीक है; और कुछ ऐसे भी पद हैं जो हमें दृढ़ विश्वास से भरे रहने के लिये उत्तेजित करते हैं। इन पदों में परस्‍पर कोई विरोध नहीं है। हमें अपने ही में कोई विश्वास नहीं होना चाहिये। हमें परमेश्वर की बचाने की सामर्थ में विश्वास होना चाहिये।

यद्यपि हो सकता है कि शुरु में हम परमेश्वर से डरते हो, लेकिन हम धीरे-धीरे उससे प्रेम करना और उस पर सम्‍पूर्ण भरोसा करना सीख लेंगे। इसलिये यूहन्ना कहता है;

‘इसी से प्रेम हम में सिद्ध हुआ कि हमें न्याय के दिन हियाव हो; ... प्रेम में भय नहीं होता, वरन्‍सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है।’ (1 युहन्ना 4:17-18)

सारांश

  1. एक दिन न्‍याय होगा।
  2. यह पुर्नरुत्थान के बाद होगा।
  3. जिन्‍होंने परमेश्वर की सच्‍चाई को जान लिया है उनका न्याय किया जाएगा।
  4. जो प्रभु यीशु के न्याय सिंहासन सम्मुख स्वीकार किये जायेंगे उन्हें अनन्त जीवन दिया जायेगा।
  5. जो न्याय सिंहासन के सम्मुख अस्वीकार किये जायेंगे वे मानसिक पीड़ा से ग्रसिक होंगे और फिर वे नाश कर दिये जाएंगे।