21. कुछ व्यवहारिक समस्‍यायें

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21. Some practical problems

साप्ताहिक पाठ – निर्गमन, अध्याय 37-40; प्रकाशितवाक्य, अध्याय 20

प्रश्‍नोत्‍तर के लिये पाठ – रोमियों, अध्याय 12-13

यीशु ने अपने अनुयायीयों से कहा, ‘यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे’ (यूहन्ना 14:15)

आपको याद होगा किस तरह परमेश्वर ने मूसा द्वारा यहुदियों को व्यवस्था दी जिसे हम मूसा की व्यवस्था, कहते है। मूसा की व्यवस्था में नियम थे जो लोगों को बताते थे कि उन्‍हें क्या करना है और क्या नहीं करना है। ये नियम उनके दैनिक जीवन के प्रत्‍येक कार्य में उनके मार्गदर्शक थे।

यह व्यवस्था लोगों को जीवन नहीं दे सकी क्योंकि जैसा आपको याद होगा वे व्यवस्था को मानने में असमर्थ रहे। इसलिये परमेश्वर ने उन्हें एक “अच्छा मार्ग” दिया। परमेश्‍वर ने हमें दिखाने के लिये कि हम किस तरह से जीवन जीये उसने अपने पुत्र यीशु मसीह को भेजा।यीशु ने अपने अनुचरों को नियमों की कोई पूरी सूची नही दी जो उन्हे बता सके कि जीवन की हर परिस्थिती में उन्हें क्या करना चाहिये।

उन्‍होंने उनसे कहा कि सबसे मुख्य बात परमेश्वर को प्रेम करना और एक दूसरे से प्रेम रखना है। परन्तु यीशु और प्रेरितों दोनो ने ही कुछ आज्ञाऐं दी कि हमें क्‍या करना चाहिये औरक्‍या नही और जिनको समझना और पालन करना अति आवश्यक है।

हमें अपने (अधिकारियों) की आज्ञाओं का पालन करना जरुरी है

रोमियों 13 में हम पढ़ते हैं

‘हर एक व्यक्ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे।’ (रोमियों 13:1)

हमारा कोई भी अधिकारी (हाकिम) क्यों न हो उसे वह पद इसलिये प्राप्त हैं क्योंकि परमेश्वर से उसे उस पद पर होने की अनुमति हैं (1 पतरस 2:13-15)। यह बात उनके लिये भी लागू हैं जो नौकरी में हमारे अधिकारी (अफसर) हैं। इसलिये हमें उनके हुक्मों (आदेशों) को मानना जरुरी है जिनका हमारे पर अधिकार है चाहे वे निर्दयी और तर्कहीन क्यों न हों। इस हेतु पतरस हमसे कहता है,

‘हे सेवको, हर प्रकार के भय के साथ अपने स्‍वामियों के अधीन रहो, न केवल उनके जो भले और नम्र हों पर उनके भी जो कुटिल हों।’ (1 पतरस 2:18)

केवल उस समय यह बात लागू नहीं होती है जब एक हाकिम हमें परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध काम करने को कहता है। एक समय जब यहुदियों ने पतरस और यूहन्ना को यीशु और उसके पुनरुत्थान के विषय में प्रचार करने को मना किया, उन्होंने उत्तर दिया,

‘तुम ही न्याय करो; क्‍या यह परमेश्वर के निकट भला है कि हम परमेश्वर की बात से बढ़कर तुम्हारी बात मानें। क्‍योंकि यह तो हम से हो नहीं सकता कि जो हम ने देखा और सुना है, वह न कहें।’ (प्रेरितों के काम 4:19-20)

यीशु ने स्वंय उनके लिये प्रार्थना की जिन्होंने उनको मारा था। यदि हम उनके उदाहरण को याद रखे तो हमें बुराई के बदले भलाई करने में सहायता मिलेगी। बुरे लोगों को दण्ड देने का काम हमें परमेश्वर के हाथ में छोड देना चाहिये। इस बारे में पौलुस प्रेरित कहता है,

‘हे प्रियो, बदला न लेना; परन्‍तु परमेश्वर के क्रोध को अवसर दो, क्‍योंकि लिखा है, “बदला लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूँगा।”’ (रोमियों 12:19)

शिष्य लड़ाई में भाग नहीं लेता है

हमें सब बातों में हाकिमों के हुक्मों को मानना चाहिये केवल उस समय को छोड़ जब उनके नियम परमेश्वर की आज्ञा का विरोध करते हैं। उदाहरण के लिये आजकल अधिकांश देशों में कानून हैं जिनके अन्तर्गत सब युवको को थल, जल या वायु सेना में कुछ अवधि के लिये काम करना (जरुरी) है परन्तु परमेश्वर ने कहा है कि उसकी सन्तान को लड़ाई में भाग नहीं लेना चाहिये। यीशु ने कहा,

‘...जो तलवार चलाते हैं वे सब तलवार से नष्ट किए जाएँगे।’ (मत्ती 26:52)

उसने अपने अनुयायियों को अपने बैरियों के लिये प्रार्थना करना सिखाया और उनके प्रति प्रेम दिखाने को कहा चाहे उनके काम कितने भी क्रोध क्यों न दिलाए;

‘परन्‍तु मैं तुम से यह कहता हूँ कि बुरे का सामना न करना; परन्‍तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्‍पड़ मारे, उसकी ओर दूसरा भी फेर दे।’ (मत्ती 5:39)

इसलिये चाहे विपत्ति आये और कैद की सजा भी दी जाए। एक मसीह को लड़ाई में भाग लेने और सेना में भरती होने से हमेशा इन्कार करना चाहिये। यह इसलिये नहीं क्योंकि युद्ध हमेशा अनुचीत है; जब परमेश्वर मनुष्यों को लडाई में भाग लेने के लिये आज्ञा देता है, तब भाग लेना ठीक है। परन्तु इस युग में हमारे लिये उसकी आज्ञा है कि हम ‘बुरे का सामना न करे’ यह जानते हुए कि वह दिन आएगा जब परमेश्वर खुद दुष्टों (कुकर्मियों) का न्याय करेगा।

मतदान

सब बीते युगों में परमेश्वर की सन्तान की भांति आज के मसीही भी, ‘पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं।’ (इब्रानियों 11:13)

वे सब परमेश्वर के राज्य के आने की बाट जोह रहे हैं यह प्रार्थना कर रहे है कि उस राज्य में उन्हे भी स्थान मिलें।

वे जानते हैं कि जब वह राज्य आएगा, आजकल की सरकारें जाती रहेंगी, वे इस संसार की राजनीति में कोई भाग नहीं लेते हैं। वे मतदान नहीं करते हैं क्योंकि जीवन के प्रति उनके विचार ऐसे हैं कि कोई भी राजनीतिज्ञ उनका “प्रतिनिधी” नहीं हो सकता है।

‘पर हमारा स्‍वदेश स्‍वर्ग पर है; और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहाँ से आने की बाट जोह रहे हैं।’ (फिलिप्पियों 3:20)

विवाह – मसीह में सहभागीता

संसार में दो तरह के लोग हैं वे जो “आदम में” और वे जो “मसीह में” है। इन दोनों में बड़ा अन्तर है।

जो आदम में है वे स्वार्थी और संसारिक है; जो मसीह में है वे परमेश्वर के सेवक हैं। स्वभाव से जो मसीह में हैं वे एकता की महान भावना को महसूस करेंगे और ईमानदारी से परमेश्वर की सेवा करने में एक दूसरे की सहायता करेंगे। वे संसार के लोगों में नही मिल जाएगें, क्योंकि उनकी अभिलाषायें बिल्कुल भिन्‍न है।

इन सब के अतिरिक्‍त वे दिखायेंगे कि विवाह के लिये उनकी धारण संसार से किस तरह भिन्न हैं। वे अपनी भावी जीवन साथी को परमेश्वर के परिवार से चुनते है इस संसार के परिवार से नही। पौलुस प्रेरित 2 कुरिन्थियों में इस धारणा की भिन्‍नता के महत्व पर जोर डालता है।

‘अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो, क्‍योंकि धार्मिकता और अधर्म का क्‍या मेल-जोल? या ज्योति और अन्‍धकार की क्‍या संगति? और मसीह का बलियाल के साथ क्‍या लगाव? या विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्‍या नाता? और मूर्तियों के साथ परमेश्वर के मन्‍दिर का क्‍या सम्बन्‍ध? क्‍योंकि हम तो जीवते परमेश्वर का मन्‍दिर हैं; जैसा परमेश्वर ने कहा है, “मैं उनमें बसूँगा और उनमें चला फिरा करूँगा; और मैं उनका परमेश्वर हूँगा, और वे मेरे लोग होंगे।”’ (2 कुरिन्थियों 6:14-16)

यदि हम परमेश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करते हैं तो हम कभी भी सचमुच में सुखी नहीं हो सकते है अनुभव यह दिखाते है कि एक अविश्वासों से विवाह करना बहुत बड़ी गलती है।

परमेश्वर जीवन साथी को छोड़ने से घृणा करते है

विवाह जीवन भर का संयोग है। जब यहोवा परमेश्वर ने हव्वा को आदम के लिये सहायक बनाया, तो यह नियम बन गया कि

‘इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे एक तन बनें रहेंगे।’ (उत्पत्ति 2:24)

यीशु मसीह ने भी इस बात को निश्चित किया कि विवाह पूरे जीवनभर का साथ है – इसको प्रभु यीशु ने यह कहकर दृढ कर दिया,

‘अतः वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं। इसलिये जिसे परमेश्वर ने जोड़ा हैं, उसे मनुष्य अलग न करे।’ (मत्ती 19:6)

इसलिये प्रभु यीशु ने तलाक की मनाई की है। यदि दम्पत्ति का वैवाहिक जीवन कुछ समय के लिये शान्ति और सुख से नहीं बीत रहा है, तो ऐसे में एक मसीही को लिये धीरज और प्रेम दिखाना जरुरी है। मलाकी 2 में हम पढ़ते हैं,

‘...इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यह कहता है, “मैं स्त्री-त्याग से घृणा करता हूँ।”’ (मालकी 2:16)

याद रखिये यदि हम परमेश्वर की आज्ञाओं को नही मानते है तो हम कभी सचमुच में सुखी नहीं हो सकते हैं।

परन्तु...

हमने एक विश्वासी से ही विवाह करने के महत्‍व के विषय में बातें की। परन्तु कभी ऐसा भी होता है कि वह पुरुष या स्त्री जो मसीह के चेले बनते है वे पहिले से ही शादी शुदा होते है। ऐसी हालत में दोनों में जो विश्वासी है उसे दूसरे को छोड़ने के लिये नहीं कहा जाता है। हालांकि ऐसी स्थिति में यदि अविश्वासी साथी अलग होना चाहता है तो उसको रोकना कठित होगा। परन्तु विश्‍वासी से यह आशा की जाती है कि वह अपनी और से सच्चाई के साथ वैवाहिक जीवन को सफल बनाने में भरसक प्रयास करें।

बहुत से विश्वासी पति या पत्नी के विश्वासनीय उदाहरण द्वारा कई अविश्वासी पति या पत्नी मसीह के लिये जीते जा चुके हैं जैसा कि पौलुस ने 1 कुरिन्थियों में बताता है।

‘क्‍योंकि हे स्त्री, तू क्‍या जानती है कि तू अपने पति का उद्धार करा लेगी? और हे पुरूष, तू क्‍या जानता है कि तू अपनी पत्‍नी का उद्धार करा लेगा?’ (1 कुरिन्थियों 7:16)

बहुविवाह प्रथा के लिए एक शब्द

कुछ देशों में एक आदमी को एक ही समय में दो या अधिक पत्नीया रखने की अनुमति है। अविश्वासी से शादी करनें और तलाक देने के समान ही यह भी एक बड़ी गलती है। इससे अप्रसन्‍नता पैदा होती है और अविश्‍वास को बढावा मिलता है; और यह मसीहियों के उस महान आर्दश को, जिसमें एक पति और एक पत्नि अटूट प्रेम के बन्‍धन में बंधे होते है, ठुकराती है:

‘इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे एक तन बनें रहेंगे।’ (उत्पत्ति 2:24)

मसीह में सब एक

सब विश्वासी एक दूसरे से जुड़कर एक देह हैं जिसका सिर मसीह हैं। यह उनका कर्तव्‍य है कि वे बाइबिल के द्वारा प्रकट सच्‍चाई को शुद्ध रखे; और इसमें न कुछ जोड़े और न घटाये।उनका यह भी कर्तव्‍य है कि मसीह की वे मसीह की आज्ञाओं को मानने का भरसक प्रयत्न करें।

यदि एक सदस्य जानबूझकर इन आज्ञाओं का उल्लघंन करता हैं तब दूसरे सदस्य जितना उनसे बन सके उसे अपनी गल्ती देखने और सही मार्ग पर वापस आने के लिये उसकी सहायता करें। यदि वह तब भी गलत काम करते ही रहना चाहता है, तो उसके विश्‍वासी भाईयों को उससे अलग होने के अलावा और कोई रास्‍ता नही बचता।

मसीह में संगति

मसीह के चेले संसार भर में फैले हैं परन्तु वे एक ही स्वामी की सेवा करते हैं और उनकी एक ही आशा हैं। वे प्रेम और संगति के बन्धनों में बन्धे है – सुसमाचार प्रचार कार्य में जुड़े हुए हैं।

इसलिये पौलुस हमें आज्ञा देता है,

‘सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के किया करो, ताकि तुम निर्दोष और भोले होकर टेढ़े और हठीले लोगों के बीच परमेश्वर के निष्‍कलंक सन्‍तान बने रहो, जिनके बीच में तुम जीवन का वचन लिए हुए जगत में जलते दीपकों के समान दिखाई देते हो कि मसीह के दिन मुझे घमण्‍ड करने का कारण हो कि न मेरा दौड़ना और न मेरा परिश्रम करना व्यर्थ हुआ।’ (फिलिप्पियों 2:14-16)

सारांश

  1. हमें अपने अधिकारियों के आज्ञाकारी रहना जरुरी है केवल उस समय को छोड़कर जब वे हमें परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध काम करने को कहते हैं।
  2. हमें राजनीती में और युद्ध में तनिक भी भाग नही लेना चाहिये।
  3. एक पुरुष की एक ही पत्नी होनी चाहिये और जीवन भर उसी के साथ रहना चाहिये।
  4. एक अविश्वासी से विवाह करना एक बड़ी गलती है।