18. The cross
साप्ताहिक पाठ – निर्गमन, अध्याय 15-20; मलाकी, अध्याय 3-4
पाठ अन्वेषण के लिये पाठ – भजन संहिता 22; यशायाह, अध्याय 53
प्रभु यीशु मसीह के दुख और सताव की भविष्यद्वाणी
हम प्रभु यीशु के दुख और सताव के विषय में नए नियम के पहली चार पुस्तकों में पढ़ सकते है। परन्तु यदि हम पुराने नियम की कुछ भविष्यद्वाणियों को पढ़ें तो हमें उसके दुख व कलैश की पूरी तस्वीर मिल जाती है।
भजन संहिता 22 को पढ़िये। यह भजन हमें इस बात को समझने में सहायता करता है कि यीशु ने उस समय कैसा महसूस किया होगा जब उनहें क्रूस पर चढाया गया।
‘परन्तु मैं तो कीड़ा हूँ, मनुष्य नहीं; मनुष्यों में मेरी नामधराई है, और लोगों में मेरा अपमान होता है। वे सब जो मुझे देखते हैं मेरा ठट्ठा करते हैं, और ओंठ बिचकाते और यह कहते हुए सिर हिलाते हैं, “अपने को यहोवा के वश में कर दे वही उसको छुड़ाए, वह उसको उबारे क्योंकि वह उस से प्रसन्न है।"’ (भजन संहिता 22:6-8)
यीशु को न केवल शारीरिक पीड़ा हुयी बल्कि क्रूस पर चढ़ाए जाने के अपमान का भारी बोझ भी उन पर था। इस भजन को ध्यान से पढ़िये। शायद बाइबिल के किसी अन्य शब्द की अपेक्षा ये शब्द हमें यह जानने और मानने में सहायता देते हैं कि यीशु ने हमारे लिये क्या कुछ नहीं सहा। 15-16 पदों को फिर पढ़िये,
‘मेरा बल टूट गया, मैं ठीकरा हो गया; और मेरी जीभ मेरे तालू से चिपक गई; और तू मुझे मारकर मिट्टी में मिला देता है। क्योंकि कुत्तों ने मुझे घेर लिया है; कुकर्मियों की मण्डली मेरे चरों ओर मुझे घेरे हुए है; वह मेरे हाथ और मेरे पैर छेदते हैं।’ (भजन संहिता 22:15-16)
यीशु को क्यों इतनी पीड़ा सहनी पड़ी?
जब हम क्रूस पर टंगे यीशु के बारे में सोचते हैं और याद करते हैं कि उसने कभी पाप नही किया था परन्तु उन्होंने हमेशा वही किया जिनसे परमेश्वर प्रसन्न था, तो ऐसे में हम स्वंय से यह प्रश्न पूछते है कि; “यीशु के साथ ऐसा क्यों हुआ?”
एक बात निश्चित हैं कि केवल यह ही एक तरीका था जिसके द्वारा मनुष्यों को पाप से बचाया जा सकता था। यीशु ने तीन बार अपने पिता से प्रार्थना की, ‘यदि हो सके तो यह कटोरा मुझ से टल जाए;’ परन्तु उसने ध्यानपूर्वक ये शब्द और जोड़ दिये, ‘तौभी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।’ (मत्ती 26:39)
यदि यह सम्भव होता तो अवश्य ही परमेश्वर अपने पुत्र पर इस यातना और अति शारीरिक पीड़ा को नहीं आने देता। परन्तु केवल यही एक तरीका था।
पाप के विरुद्ध लड़ाई
परन्तु फिर भी हम अपने आप से पूछते हैं कि क्रूस ही की पीड़ा और अपमान क्यों ? एक उत्तर है कि जब हम यीशु को क्रूस पर टंगे देखते हैं, हम मानव प्रकृति के असली रुप को देखते हैं।
आईये इसे समझने का प्रयास करें। यीशु हमारे ही समान एक मनुष्य थे और हमारे ही समान वे बार बार गलत काम करने और गलत बातें बोलने के लिए परखे गये। हम पढ़ते हैं कि वह,
‘सब बातों में हमारे समान परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला।’ (इब्रानियों 4:15)
हमारे समान वे परखे गये, परन्तु हमारे समान वे परीक्षा में गिरे नही। उन्होंने कभी अपनी इच्छा से नही परन्तु जैसा परमेश्वर चाहता था वैसा ही किया।
लेकिन तो भी उनकी प्रकृति हमारे ही समान थी – एक ऐसी प्रकृति जो उनको पाप में ले जा सकती थी यदि वह लगातार इस प्रकृति के विरूद्ध न लडते। आदम को मृत्यु के दण्ड के द्वारा, परमेश्वर ने दिखा दिया कि
‘पाप की मजदूरी तो मृत्यु है।’ (रोमियों 6:23)
यीशु को, जो आदम की एक पापरहित सन्तान थी, उनके क्रूस पर चढाये जाने के द्वारा परमेश्वर ने यह प्रदर्शित किया कि मानवीय प्रकृति अपनी उत्तम दशा में भी अपमान और क्रूस पर चढाये जाने के योग्य है।
तौभी यीशु का चरित्र दोष रहित था।उन्होंनं कभी पाप का विचार या कार्य नही किया। इसलिए परमेश्वर ने यह नियम तोड़े बिना कि "पाप की मजदूरी मृतयु है" उन्हें मुर्दो में से जिन्दा किया।
और इस प्रकार परमेश्वर ने यीशु को एक नयी प्रकृति दी – एक ऐसी प्रकृति जो कभी पाप के लिए नही परखी जा सकती और जो कभी मरती नही।
क्रूस की शिक्षायें
यीशु की क्रूस पर मृत्यु द्वारा परमेश्वर ने हमें दिखा दिया कि वास्तव में हमारी प्रकृति कितनी बुरी है। और इससे पहले कि हम अपना जीवन इस प्रकार जीना प्रारम्भ करें जिससे परमेश्वर प्रसन्न होता है हमें इस बात को जानना अति आवश्यक है।
लेकिन दूसरी प्रभावी शिक्षाऐं भी है। हमें अवश्य ही इस सच्चाई पर भी मनन करना चाहिए कि यीशु मसीह एक स्वीकार्य बलिदान थे। वे एक दोष रहित मेमने थे और परमेश्वर की इच्छा इस र्निदोष बलिदान को ग्रहण करने की थीइस सच्चाई पर गहरा सोच विचार अच्छा है कि प्रभु यीशु परमेश्वर को स्वीकार योग्य बलिदान था। वह एक निर्दोंष “मेम्ने” के समान था और परमेश्वर इस निर्दोंष बलिदान के अर्पण को ग्रहण करने के लिए तैयार था।
‘यह परमेश्वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है।’ (यूहन्ना 1:29)
एक और महत्त्वपुर्ण शिक्षा यह है: मसीह का क्रूस प्रदर्शित करता है कि हमारे लिये परमेश्वर का प्रेम किस हद तक जा सकता है। पौलुस इसे इन शब्दों में प्रस्तुत करता है;
‘जिसने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा?’ (रोमियों 8:32)
क्रूस हमारे जीवन का मार्ग है जैसा कि पौलुस 1 कुरिन्थियों में कहता है,
‘क्योंकि क्रूस की कथा नाश होनेवालों के लिये मूर्खता है, परन्तु हम उद्धार पानेवालों के लिये परमेश्वर की सामर्थ्य है।’ (1 कुरिन्थियों 1:18)
एक नया जीवन
हम आदम की सन्तान है और आदम के समान हम परमेश्वर के मार्गों की अपेक्षा अपने मार्गों को चुनना चाहते हैं। परन्तु यीशु मसीह ने अपने आप को पाप के लिए बलिदान करके हमारे लिए यह सम्भव कर दिया कि हम परेश्वर की सन्तान बन सकते है। यीशु ने कहा
‘यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले।’ (लूका 9:23)
हमें भी यीशु के साथ क्रूस पर चढ़ना है
हमें अपने पापी व्यक्तित्व को क्रूस पर चढ़ाना हैं हमें अपने ही अधर्म के मार्गों पर चलने के बजाय हमें अवश्य ही पाप के लिए मरना चाहिये, और मसीह के साथ एक नये जीवन की सी चाल चलनी चाहिए और अपने मार्गो को चुनने के बजाय ईश्वर के मार्गो को प्राथमिकता देनी चाहिये। पौलुस प्रेरित हमें बताता है;
‘जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उसकी लालसाओं और अभिलाषों समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है। यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी।’ (गलातियों 5:24-25)
सारांश
- दृष्टों ने यीशु को एक तड़पने वाली मृत्यु दी जिसे "क्रूस पर चढ़ाना कहते थे" और उनके शरीर में कील ठोकर क्रूस पर लटकाकर मरने के लिए छोड़ दिया।
- परमेश्वर ने यह होंने दिया क्योंकि हमें अपने पापों से बचाने के लिये केवल यही एक तरीका था।
- हमें इस बात का ज्ञान कराने का यही एक तरीका था कि हम पापी है और मृत्यु के योग्य है।
- बाइबिल हमें यीशु के साथ क्रूस पर चढ़ने के लिये कहती है। इसका अर्थ है कि हमारी खुद की पापी लालसाएँ और अभिलाषाएँ अवश्य ही नाश होनी चाहिए।
- यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना हमें यह भी सिखाता है कि यीशु के समान हमें भी हमेशा परमेश्वर की आज्ञा मानने की कोशिश करना चाहिये चाहे हमें कितना भी कष्ट क्यों न हो।