6. How the children of Israel fit into God’s plan – Part 1
साप्ताहिक पाठ – उत्पत्ति, अध्याय 18-20; लूका, अध्याय 19-21
प्रश्नोत्तर के लिये पाठ – उत्पत्ति, अध्याय 37; यशायाह, अध्याय 46
कहानी का आरम्भ
इस्राएलियों की कहानी वास्तव में उस विश्वासी पुरुष से आरम्भ होती है जिसका नाम अब्राहम था। जिसे वृद्धावस्था में एक पुत्र हुआ जिसका नाम इसहाक था और इसहाक के एक पुत्र का नाम याकूब था जिसको बाद में इस्राएल कहा गया और जो कि बाद में इस्राएल के बारह गोत्रों का पिता हुआ।
इन पुत्रों में सबसें छोटे पुत्र का नाम युसुफ था। उसके जीवन की कहानी जो बाइबिल में हे उसे पढ़ने से हम कभी थकते नही हैं। लेकिन यह एक अच्छी कहानी से कही अधिक है। यह हमें इतिहास में बाइबिल के लोगों, इस्राएलियों, के साथ घटी महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में बताती है। यह इस बात का एक अदभुत उदाहरण है कि किस प्रकार परमेश्वर ने अपने लोगों की देखभाल की और उनकी रक्षा की।
हम सब को वह कहानी याद है कि कैसें युसुफ के ईष्यालु भाइयों ने उसे गुलाम बनाकर बेच दिया। और किस प्रकार कई परीक्षाओं के बाद वह मिस्र का राज्यपाल बन गया। और फिर अकाल के समय युसुफ का पिता और उसके भाई मिस्र में युसूफ का और परमेश्वर का धन्यवाद देने के लिए आये क्योंकि मिस्र में उस अकास के समय अनाज उपलब्ध था।
कुछ समय के लिए यहूदी जो कि आरम्भ में इस्राएली कहलाते थे मिस्र में काफी खुश थे। परन्तु युसुफ की मृत्यु के बाद जैसे जैसे यहूदियों की संख्या मिस्र में बढ़ती गई, मिस्रियों ने उन्हें सताना शुरु कर दिया और उनके साथ गुलामों जैसा व्यवहार करने लगे।
गुलामों के लिये स्वतन्त्रता
शायद आप उस कहानी को जानते हैं कि किस तरह से मूसा की अगुआई में परमेश्वर ने इन यहूदी गुलामों को मिस्र से निकाला और एक बंजर और मरुभूमि में से होते हुए उन्हें इस्राएल देश के छोर पर पहुँचा दिया। इस लम्बी और खतरनाक यात्रा में परमेश्वर ने उन्हें भोजन दिया और उनकी देखभाल की। नहेम्याह के नौवें अध्याय और उसके 20 और 21 पद में हम पढ़ते हैं,
‘वरन्तू ने उन्हें समझाने के लिये अपने आत्मा को जो भला है दिया, और अपना मन्ना उन्हें खिलाना न छोड़ा, और उनकी प्यास बुझाने को पानी देता रहा। चालीस वर्ष तक तू जंगल में उनका ऐसा पालन पोषण करता रहा, कि उनको कुछ घटी न हुई; न तो उनके वस्त्र पुराने हुए और न उनके पाँव में सूजन हुई।’ (नहेम्याह 9:20-21)
परमेश्वर ने दुष्ट जातियों को जो इस्राएल देश में रहती थी, बाहर निकाल दिया और यह देश यहूदियों को दिया। उसने उन्हें व्यवस्था दी और न्याय करने के लिए उनके लिये न्यायियों को चुना। उसने उनसे कहा “यदि तुम आज्ञाकारी न रहोगे तो तुम्हें दण्ड मिलेगा”। व्यवस्थाविवरण के 28 वें अध्याय में हम उन आशीषों के बारे में पढ़ते हैं जो परमेश्वर उन्हें आज्ञाकारी रहने पर देगा और उन श्रापो के विषय में भी पढ़ते है जो ईश्वर उन्हें आज्ञा पालन न करने पर देगा।
यहुदियों की एक राजा के लिए माँग
लगभग 400 वर्ष गुजर गए। इन वर्षों में परमेश्वर ने इस्राएल के बारह गोत्रों पर न्याय करने के लिए न्यायियों को नियुक्त किया था। याकूब के वंशज बारह कुटुम्बों में जो गोत्र कहलाते थे विभाजित हो चुके थे। परन्तु यहूदी असन्तुष्ट हो गए और उनके चारो ओर दूसरी जातियों के समान ही वे भी एक राजा चाहते थे। एक राजा की माँग करने का अर्थ था कि वे परमेश्वर को अपना राजा मानना स्वाकार नहीं कर रहे थे। जब उनके न्यायी शमूएल ने ईश्वर से कहा किस प्रकार वे एक राजा की मांग कर रहे है तो यहोवा ने शमूएल से कहा,
‘उन्होंने तुझ को नहीं परन्तु मुझी को निकम्मा जाना है कि मैं उनका राजा न रहूँ।’ (1 शमूएल 8:7)
परमेश्वर (यहोवा) ने उनकी विनती को पूरा किया और उन्हें एक राजा दिया जैसा कि वे चाहते थे। आप इस्राएलियों के पहले राजा, शाऊल, के अभिषेक की इस रोचक कहानी को पढ़ना चाहेंगे। इस कहानी को आप शमूएल की पहली पुस्तक के आठवें और नौवें अध्याय में पाएँगे।
एक विभाजित राज्य
शाऊल के बाद महान राजा दाऊद आया जिसके बारे में आगे के पाठों में विस्तार से दिया गया है। चालीस वर्ष के लम्बे राजकाल के बाद दाऊद की मृत्यु हो गई और उसका पुत्र सुलैमान राजा बना। सुलैमान बहुत धनवान था। वह अपनी प्रजा पर खूब कर लगाता था। इससे लोग असन्तुष्ट हो गए और जब सुलैमान मर गया, वे उसके पुत्र रहूबियाम के पास आए और उससे उनके कर के बोझ को हलका करने के लिए कहा।
राजाओं का वृतान्त के पहिले भाग और उसके बारवें अध्याय में आप पढ़ेंगे कि कैसे रहूबियाम ने बुद्धिमान वृद्ध पुरुषों, जो उसके पिता के सलाहकार थे, उनकी सलाह न लेकर अपने युवा मित्रों की सलाह को सुना। तब लोग रहूबियाम राजा के पास पूछने आए कि क्या वह उनकी प्रार्थना से सहमत है, तो उसने बहुत बुद्धिहीनता से उत्तर दिया। ‘हम राजाओं का वृनान्त’ के पहिले भाग के बारवें अध्याय और उसके तेरवें और चौदवें पद में पढ़ते हैं कि राजा ने लोगों (प्रजा) को कठोरता से उत्तर दिया और कहा,
‘मेरे पिता ने तो तुम्हारा जुआ भारी कर दिया, परन्तु मैं उसे और भी भारी कर दूँगा; मेरे पिता ने तो कोडों से तुम को ताड़ना दी, परन्तु मैं तुम को बिच्छुओं से ताड़ना दूँगा।’ (1 राजाओं 12:14)
कोई आश्चर्य नही की प्रजा ने ऐसे राजा के विरुद्ध राजद्रोह किया। इस्राएल के दस गोत्र देश छोड़कर चले गर और यारोबाम नामक व्यक्ति की अधीनता में उन्होने अपने एक राज्य का गठन किया। केवल यहूदा वह गोत्र जिसमें से रहूबियाम था और बिन्यामीन का छोटा गोत्र रहूबियाम के राजभक्त बने रहे। इस समय से बाइबिल में दो इतिहासों का वर्णन साथ-साथ पढ़ते है। दस गोत्रों का इतिहास जो बहुधा ‘इस्राएल’ या उत्तरी राज्य (क्योंकि वे भूमि के उत्तरी भाग में रहते थे)कहलाता है और दो गोत्रों का इतिहास जो ‘यहूदा’ या दक्षिणी राज्य कहलाता है।
यहूदियों द्वारा निरन्तर ईश्वर की आज्ञाओं का उल्लंधन
राजाओं की पहिली और दूसरी पुस्तकों में हम उस दुखद कहानी को पढ़ते हैं कि किस तरह से लोगों ने निरन्तर परमेश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन किया और वे ईश्वर को भूल गए और उसके मार्गों का त्याग कर दिया।
अन्त में दशा इतनी खराब हो गई कि परमेश्वर (यहोवा) ने कहा वह लोगों को दण्ड देगा जिसकी चेतावनी उसने उन्हें निरन्तर दी थी – और उनको उनके देश से गुलाम बनाकर बाहर कर दिया।
इतिहास के दूसरे भाग के 36 वें अध्याय और उसके 15 और 16 पद को पढ़ने से आपको मालूम होगा कि परमेश्वर (यहोवा) ने अपने लोगों को, जो उसकी विधियों को छोड़कर भटक गए थे, उनको वापिस उसके मार्गों पर लाने के लिए वह सब किया जो वह कर सकता था।
‘उनके पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने बड़ा यत्न करके अपने दूतों से उनके पास कहला भेजा, क्योंकि वह अपनी प्रजा और अपने धाम पर तरस खाता था; परन्तु वे परमेश्वर के दूतों को ठट्ठों में उड़ाते, उसके वचनों को तुच्छ जानते, और उसके नबियों की हँसी करते थे। अतः यहोवा अपनी प्रजा पर ऐसा झुँझला उठा कि बचने का कोई उपाय न रहा।’ (2 इतिहास 36:15-16)
अन्त में दण्ड
पहले इस्राएल, उत्तरी राज्य, बन्धुवाई में ले लिया गया। अश्शूर का राजा आया और इस्राएलियों को अश्शूर ले गया और फिर से कभी वे एक जाति होकर अपने देश को न लौट सके। इसके बारें में आप 2 राजा के 17 वें अध्याय और उसके 6 से 18 पद पढ़ सकते हैं। 23 वें पद में लेखक कहता है
‘अन्त में यहोवा ने इस्राएल को अपने सामने से दूर कर दिया, जैसा कि उसने अपने सब दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा था। इस प्रकार इस्राएल अपने देश से निकालकर अश्शूर को पहुँचाया गया, जहाँ वह आज के दिन तक रहता है।’ (2 राजा 17:23)
बाद में यहूदा का राज्य भी बाबुल के राजा द्वारा बन्धुवाई में ले लिया गया। परन्तु यहूदा राज्य के लोगों की दशा ऐसी खराब नहीं थी जैसी कि इस्राएल के लोगों की। परमेश्वर (यहोवा) ने प्रतिज्ञा की कि सत्तर वर्ष पश्चात वे उनके देश को वापिस लाए जायेंगे और जो मन्दिर बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर द्वारा नष्ट कर दिया गया था वह फिर से बनाया जायेंगा।
अपने देश में फिर वे वापिस
कुछ यहूदी बाबुल में इतने सुखी और धनी हो गए थे कि वे वापिस अपने देश को नही जाना चाहते थे। लेकिन एक विश्वासी समूह को यहोवा द्वारा तैयार किया गया कि अपने देश में जाने के लिए इन लोगों की अगुवाई करें और मंदिर को बनाने और एक नये जीवन की शुरूआत करें।
उन्हें बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा परन्तु उन्हें प्रोत्साहन देने, उन्हें सुधारने के लिए यहोवा ने नबी भेजे। पुराने नियम की अन्तिम तीन पुस्तके हाग्गै, जकर्याह और मलाकी इन भविष्यद्वक्ताओं द्वारा लिखी गई पुस्तकें हैं।
मीका नबी द्वारा (मीका 3 अध्याय और उसके 6 पद में) यहोवा ने उस समय के बारें में बताया कि जब ‘भविष्यद्वक्ताओं के लिये सूर्य अस्त होगा’। और मलाकी के समय से लेकर यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के समय (जिसके बारे में हम नए नियम में पढ़ते हैं) तक यहोवा की ओर से लोगों के लिए कोई वचन नहीं था केवल वह जो पहिले ही लिखा जा चुका था।
लेकिन तो भी यहूदी ईश्वर के लोग थे और आज भी है। अगले पाठ में हम उनके पिछले जीवन के इतिहास लेकर उनके वर्तमान जीवन के विषय में पढ़ेंगे।
सारांश
- हजारों वर्ष पूर्व, परमेश्वर (यहोवा) ने इस्राएलियों को अपनी विशेष प्रजा होने के लिए और उनको आज्ञाओं का पालन करने के लिए चुन लिया।
- वह उन्हें इस्राएल देश में लाया और बाद में उन्हें एक राजा दिया।
- वे दो भिन्न राज्यों में विभाजित हो गए, एक इस्राएलियों का राज्य और दूसरा यहूदा का राज्य।
- इस्राएल और यहूदा दोनों राज्यों के लोग विदेशों में बन्धुवाई में ले जाए गए।
- 70 वर्ष बाद यहूदा के लोग अपने देश को लौटे और जैसा हम आगे के पाठ में देखेंगे वे वहाँ पर थे जिस समय उसके बीच में यीशु का जन्म हुआ।