19. बाइबिल में वर्णित शैतान

strict warning: Only variables should be passed by reference in /var/www/christadelphians.in/modules/book/book.module on line 559.

19. The devil of the Bible

साप्ताहिक पाठ – निर्गमन, अध्याय 21-26; नीतिवचन, अध्याय 3

प्रश्‍नोत्‍तर के लिये पाठ – इब्रानियों, अध्याय 2

मैंनें इसे नहीं किया!

एक बच्चे ने खेलते खेलते कागज़ के फटे टुकडे फर्श पर तितर बितर कर छोड़ दिये। जब उसकी माता ने देखा तो उसने गुस्‍से से उससे पूछा, “यह किसने किया?” तुरन्त ही छोटे बालक ने उत्तर दिया, “पापा ने”।

हम सब भी कुछ उस छोटे बालक के समान हैं। जब हम कोई गलती करते हैं तो साधारणतः हम अपनी गलती को मानना नहीं चाहते हैं। हम किसी दूसरे को दोषी ठहराना चाहते हैं। परन्तु याकूब प्रेरित हमें बताता है,

‘प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर और फँसकर परीक्षा में पड़ता है।’ (याकूब 1:14)

यदि हम सच्चे हैं तो हमें मानना ही पड़ेगा कि हमारे मन के बुरे विचार ही हमसे बुरे काम कराते और बुरी बातें कहलवाते हैं। अपने पापों के लिये हम किसी दूसरे पर दोष नहीं डाल सकते हैं।

तब शैतान कौन है?

यह सच है कि बाइबिल एक शैतान के बारे में बताती है। यदि वह कोई दिव्‍य प्राणी नहीं है जो मनुष्यों को बुराई करने के लिये प्रलोभन देता है, तो हमें अवश्य यह प्रश्‍न पूछना चाहिये कि, “वह कौन है?”

आइये देखें कि क्‍या इस प्रश्‍न का उत्‍तर हम बाइबिल में पाते है। सबसे पहले 1 यूहन्ना 3:8 को देखें। यह पद हमें बताता हैं कि यीशु मसीह को क्यों भेजा गया।

‘परमेश्वर का पुत्र इसलिये प्रगट हुआ कि शैतान के कामों का नाश करे।’ (1 यूहन्ना 3:8)

यही विचार इब्रानियों में कुछ और आगे बढ़ाया जाता हैं जहां हम पढ़ते हैं,

‘इसलिये जब कि लड़के मांस और लहू के भागी हैं, तो वह आप भी उनके समान उनका सहभागी हो गया, ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात्‍शैतान को निकम्मा कर दे।’ (इब्रानियों 2:14)

यह दूसरा पद हमें बताता है कि यीशु शैतान को नाश करने के लिये आया और समझाता है कि किस तरह उसने (यीशु ने) उसे (शैतान को) नाश किया। वह एक कमजोर मनुष्य के रूप में आया और शैतान को नाश करने के लिये मरा।

कितनी विचित्र बात है! यदि शैतान एक बहुत ही शक्तिशाली और धोखेबाज राक्षस (दानव, पिशाच) होता; तो उसे इस तरह नाश करना असम्भव होता। जी नहीं; ऐसा नही है, क्‍योंकि बाइबिल में वर्णित शैतान जिसे यीशु ने क्रूस पर अपनी जान देकर नाश किया वह शैतान पाप था।

‘अब युग के अन्‍त में वह एक ही बार प्रगट हुआ है, ताकि अपने ही बलिदान के द्वारा पाप को दूर कर दे।’ (इब्रानियों 9:26)

पहले एक अध्‍याय (क्रूस) में हमने इस पर अध्‍ययन किया कि यीशु की प्रकृति हमारे समान थी। यह प्रकृति ऐसी थी कि जो पाप के द्वारा प्रलोभित हो सकती थी।यीशु ने अपने जीवन भर पाप से लडाई की और अन्त में उस प्रकृति को ही नाश कर डाला जो परीक्षा में डाली जा सकती थी और ऐसा करके पाप को पूरी तरह से नाश कर दिया। यही कारण था कि परमेश्वर ने यीशु को मृतकों में से जी उठाया और उन्‍हें एक तेजस्वी शरीर दिया जो पाप से मुक्त और अमर है।

शैतान और पाप

यह बताने के लिये, कि पाप और शैतान दोनों एक ही है, एक सरल तरीका हैं। जो कुछ भी बाइबिल शैतान के बारे कहती है वही पाप के बारे कहती है।

  • शैतान परमेश्वर का शत्रु है – वैसे ही पाप है।
  • शैतान मनुष्य को परीक्षा में डालनेवाला है – वैसे ही पाप है।
  • शैतान कपटी है – वैसे ही पाप है।
  • शैतान मृत्यु का कारण है (इब्रानियों 2:14) – पाप भी है।
  • यीशु की मृत्यु के द्वारा शैतान नाश कर दिया गया – पाप का भी नाश हो गया।

इन तुलनाओं से हम जान सकते हैं कि शैतान और पाप निसन्देह एक ही चीज हैं।

वास्‍तव में "शैतान" शब्‍द का क्‍या अर्थ है?

“शैतान” शब्‍द का वास्‍तविक अर्थ है झूठा दोष लगाने वाला या निन्‍दक। 1 तिमुथियुस में हम पढ़ते है कि,

‘इसी प्रकार से स्त्रियों को भी गम्‍भीर होना चाहिए; दोष लगानेवाली न हों।’ (1 तीमुथियुस 3:11)

यहां जिस शब्‍द का अनुवाद “दोष लगाने वाली” है बिल्‍कुल इसी शब्‍द का अनुवाद दूसरी जगहों पर “शैतान” है।

नये नियम में भी “शैतान” शब्‍द का प्रयोग हुआ है।

“शैतान” एक विरोधी है – वो जो विरोध करता है। इसलिए जब पतरस ने जब यीशु को यह समझाने का प्रयास किया कि उसको उस मार्ग पर नही चलना चाहिए जिस पर चलने के लिए परमेश्‍वर ने यीशु को कहा अर्थात क्रूस का मार्ग, तो ऐसा करके पतरस एक विरोधी हो गया और तब यीशु ने पतरस को कहा कि,

‘हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो!’ (मत्‍ती 16:23)

पुराने नियम का एक और पद है जिसे हमें अब देखना चाहिए क्‍योंकि कुछ लोग ऐसा सोचते है कि य‍ह पद बताता है कि शैतान एक गिराया गया स्‍वर्गदूत है। यह पद यशायाह 14:12 है:

‘हे भोर के चमकने वाले तारे, तू कैसे आकाश से गिर पड़ा!’ (यशायाह 14:12)

लेकिन यदि हम पूरे अध्‍याय को ध्‍यानपूर्वक पढ़े तो हम पाते है कि यह “भोर का चमकने वाला तारा” बाबुल का राजा है और भविष्‍यद्वक्‍ता उसके पतन की भविष्‍यवाणी कर रहा है। 15वें पद में यशायाह इस राजा की मृत्‍यु के विषय में बताता है और पद 16 में बताता है कि,

‘क्‍या यह वही पुरुष है जो पृथ्‍वी को चैन से रहने न देता था?’ (यशायाह 14:16)

दुष्ट – आत्माओं का निकालना

नए नियम के लेखक जब हमें यीशु द्वारा किये गए चगाई के आश्चर्य कर्मों को बताते हैं तो वे बहुधा “उसने दुष्ट आत्माओं को निकाला” वाक्यशैली का प्रयोग करते हैं। हम इसे किस तरह समझें?

यीशु के दिनों में सधारणताः यह सोचा जाता था कि कुछ रोग और विपत्ति भी जैसे कि बहिरापन और अन्धापन दुष्ट आत्माओं के कार्य थे जो एक आदमी को अपने वशीभूत कर लेते थे। जब कोई चंगा हो जाता था तो यह कहना स्वाभाविक था कि “शैतान उसमें से निकल गया है।” सुसमाचार के लेखक इस वाक्यशैली को प्रयोग में लाते थे क्योंकि यह वाक्यशैली उन दिनों में प्रचलित थी। हम नहीं सोचते हैं कि चूंकि उन्होंने इस तरह लिखा जैसा कि वे यथार्थ में विश्वास करते थे कि दुष्ट आत्माए आदमियों में रहती थी।

एक महान सृजनहार

यह विश्‍वास नया नही है कि एक दुष्ट दिव्‍य प्राणी है जो परमेश्वर का प्रतिद्वन्ती है। यशायाह भविष्यद्वक्ता के दिनों में फारसी दो महान शक्तियों में विश्वास करते थे – परमेश्वर और शैतान। यह माना जाता था कि पहला प्रकाश और अच्‍छाई का सृजनहार था और दूसरा अधंकार और सब दुष्टता का सृजनहार था।

लोगों का जो यह गलत विश्‍वास था उसको उत्‍तर देने के लिए परमेश्‍वर ने परमेश्वर ने यशायाह भविष्यद्वक्ता द्वारा एक संदेश भेजा। हम इसे यशायाह में पढ़ सकते है,

‘मैं यहोवा हूँ और दूसरा कोई नहीं, मुझे छोड़ कोई परमेश्वर नहीं; यद्यपि तू मुझे नहीं जानता, तौभी मैं तेरी कमर कसूँगा, जिससे उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक लोग जान लें कि मुझ बिना कोई है ही नहीं; मैं यहोवा हूँ और दूसरा कोई नहीं है। मैं उजियाले का बनानेवाला और अन्धियारे का सृजनहार हूँ, मैं शान्ति का दाता और विपत्ति को रचता हूँ, मैं यहोवा ही इन सभों का कर्त्ता हूँ।’ (यशायाह 45:5-7)

यहां विपत्ति शब्द का अर्थ है विपत्ति जो परमेश्वर पापियों पर लाता है।

ऊपर लिखित अंश यह सिद्ध करता है कि सम्पूर्ण जगत में एक महान शक्ति है जिसने सब वस्तुओं का निर्माण किया – एक महान सृजनहार सर्वशक्ति-शाली परमेश्वर। ऐसा कोई प्राणी नही है जो उसकी शक्ति (सामर्थ्य) को चुनौती दे सकें।और शैतान नामक कोई शक्तिशाली और कपटी दैत्‍य नहीं है जो उसका विरोध करने का साहस कर सके।

एक आखिरी प्रश्‍न जो हो सकता है कि आप पूछना चाहे कि तो फिर क्‍यों बाइबिल पाप ना कहकर "शैतान" शब्‍द प्रयोग करती है। और क्‍यों यह इस शैतान का वर्णन ऐसे करती है कि मानो यह कोई सामर्थशाली और धोखादेने वाला व्‍यक्तित्‍व है? निश्‍चय ही ऐसा इसलिए है जिससे कि हम समझ सके कि पाप कितना सामर्थशाली और धोखा देने वाला है। इससे पहले कि हम इस बात को समझे कि हमें पाप से बचने कि कितनी अधिक आवश्‍यकता है हम पाप के विषय में ये बात समझना जरूरी है।

हमनें क्या सीखा है

  1. शैतान एक बड़ी दुष्ट आत्मा नही है।
  2. जिसे हम मनुष्य की “प्रकृति” कहते है, उसके लिये बाइबिल में शैतान नाम दिया गया है।
  3. हमारी पापमय मानवीय प्रकृति के द्वारा ही हम परीक्षा में पडते है।
  4. वे व्यक्ति जो परीक्षा में गिर कर दुष्ट आचरण करते है उनको भी शैतान कहा गया है।