Dipak Issue 34 (April 2019)

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105

क्‍या यह इसके योग्‍य है?
Is it worth it?

एक माँ के विषय में एक कहानी है जिसने अपने बेटे से कहा, “अब एक अच्‍छे लड़के बन जाओ और जाकर अपना बिस्‍तर ठीक करो और अपने खिलौने उठाओ” इस पर उस छोटे लड़के ने उत्‍तर दिया, “अगर मैं यह काम करता हूं तो मुझे क्‍या मिलेगा?” माँ को गुस्‍सा आ गया क्‍योंकि उसका बेटा हमेशा कुछ भी करने के बदले में कुछ मांगता था, उसने उत्‍तर दिया, “तुम अपने पिता जैसे क्‍यों नही बनते हो, वह कुछ ना मिलने पर भी अच्‍छे है।”

यह बड़ा ही दुखद सत्‍य है कि इस छोटे बच्‍चे का यह व्‍यवहार बहुत से व्‍यस्‍को के जीवन में चला जाता है। अधिकांश व्‍यस्‍क लोग इतने बहादुर नही होते कि वे यह पूछ सके कि, “तुम मुझे क्‍या दोगे?” लेकिन उनको “हां” कहने से अधिक सुविधाजनक, ज्‍यादा व्‍यस्‍त कहना लगता है जब तक कि हम किसी भी तरह इसको उनके लिए सार्थक न बना दें।

छोटे बच्‍चे को अपना बिस्‍तर ठीक करना चाहिये और अपने खिलौने सही से रखने चाहिये, इसलिए नही कि उसको इसके लिए पैसे मिलेंगे बल्कि इसलिए कि वह परिवार का सदस्‍य है और यह उसका घरेलू कर्तव्‍य है। हमें भी बहुत से काम करने चाहिये क्‍योंकि हम परमेश्‍वर के शाही परिवार के सदस्‍य है।

हमारी एक कलिसिया में एक भाई था जो केवल रविवार के शाम के बाईबल संदेश को देने के लिए ही आता था। स्‍पष्‍ट कहे तो उसको वहां उपस्थित होकर संदेश देने के लिए पैसा मिलता था। कभी-कभी किसी से सहयोग लेना बहुत ही कठिन होता है जब तक कि हम इसको उनके लिए सार्थक नही बना देते है।

एक बहुत ही अच्‍छा प्रयोग हम कर सकते है, हालांकि यह बहुत ही मंहगा होगा, यह देखने के लिए कि क्‍या होगा यदि हम अपनी कलिसिया के हर एक सदस्‍य को रविवार शाम के बाईबल संदेश में उपस्थित होने के लिए 1000 रूपये का भुगतान करें। हम निश्चित रूप से कह सकते है कि अचानक बहुत से ऐसे लोग जो आने में असमर्थ थे वे किसी भी तरह उपस्थित होने का रास्‍ता निकाल लेंगे। क्‍यों? क्‍योंकि हमने इसको उनके लायक बना दिया है। किसी के लिए हो सकता है भुगतान 1500 रूपये या 2000 रूपये करना पड़े, लेकिन हम निश्चित रूप से कह सकते है कि किसी ना किसी कीमत पर जो हमसे कहते है कि वे नही आ सकते है, वे आने का रास्‍ता निकाल लेंगे।

अब हमें अपने आप को जांचने की जरूरत है कि हम जो करते है वह क्‍यों करते है। पौलुस बताता है कि परमेश्‍वर खुशी से देने वालों से प्रेम करता है और यह हमारे पैसे तक ही सीमित नही है बल्कि हमारे समय और हमारे प्रयासों के लिए भी है। क्‍या हम प्रसन्‍नता से प्रभु की सेवा करते है? क्‍या हम अपने क्षेत्र में बाईबल कक्षाओं, सन्‍देशों और परमेश्‍वर की गतिविधियों के लिए गिने जाते है? परमेश्‍वर के काम से अधिक महत्‍वपूर्ण हमारे लिये क्‍या है? वह क्‍या है जो हमें परमेश्‍वर से दूर करता है? यह जो कुछ भी हो, यह हमारे लिये झूठा परमेश्‍वर है जिसकी हम अराधना करते है। इसलिए झूठे परमेश्‍वरों की अराधना समाप्त नही हुयी है बल्कि इसका रूप बदल गया है।

आज हमारे चारों ओर संसार इन झूठे परमेश्‍वरों के सामने झुक गया है, जैसे घण्‍टों-घण्‍टों तक टी.वी. देखना, लेकिन परमेश्‍वर के लिए उनके पास समय नही है क्‍योंकि वे इस मूर्खता के डब्‍बे से चिपके हुए है। यदि हम उनसे कहे कि हमारे साथ बाईबल की कक्षा के लिए चलो तो वे कहते है कि “नही” क्‍योंकि उनका पसन्‍दीदा कार्यक्रम टीवी पर आने का वही समय है। तौभी किसी ना किसी कीमत पर हम उनको लुभा सकते है कि वे हमारे साथ बाईबल कक्षा में आ सके।

हमें अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित करने की आवश्‍यकता है। परमेश्‍वर की सेवा के लिए हम जो कुछ भी कर सकते है वह हमें करना चाहिये क्‍योंकि हम जहां भी है और जो कुछ भी कर रहे है वह सबकुछ जानता है। वह जानता है कि हम सांसारिक भौतिक चीजों को प्राथमिकता दे रहे है और इसलिए उसके लिए कार्य नही कर रहे है।

वास्‍तव में हमारा परमेश्‍वर इस बात को हमारे लिए सार्थक बना रहा है कि हम उसको अपने जीवन में प्राथमिकता दें लेकिन वह पुरस्‍कार हमारे दरवाजें पर नही है बल्कि यह हमारे लिए रखा गया है जिसे, “प्रभु, जो धर्मी, और न्‍यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नही, वरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते है।” (2 तिमुथियुस 4:8)

क्‍या हम पहले परमेश्‍वर के राज्‍य की खोज कर रहे है? इसका कोई लाभ नही है यदि हम इसको दूसरे या तीसरे स्‍थान पर खोज रहे है। यदि हमारे जीवन का प्रथम लक्ष्‍य राज्‍य नही है तो यह कुछ नही है।

यशायाह के समय में परमेश्‍वर ने एक प्रश्‍न पूछा, “मैं किस को भेजू, और हमारी ओर से कौन जायेगा?” (यशायाह 6:8) तब यशायाह ने कहा, “मैं यहां हूं। मुझे भेज” तब परमेश्‍वर ने यशायाह से कहा, “जा”। यदि हम भी यशायाह के समान ही परमेश्‍वर को प्रतिउत्‍तर देते है तो जब प्रभु यीशु आयेंगे तो वह हमसे कहेंगे, “हे मेरे पिता के धन्‍य लोगों, आओ, उस राज्‍य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्‍हारे लिए तैयार किया हुआ है।” (मत्‍ती 25:34)

‘क्‍या यह इसके योग्‍य है?’ (Is it worth it?) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd

व्‍यवसाय और रोजगार
Careers and employment

पैसे के लिए काम करना बहुत से विश्‍वासियों के जीवन का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है। यहां हम देखेंगे कि रोजगार के विषय में बाईबल क्‍या बताती है, और हम इस बात पर विचार करेंगे कि मसीह के अनुयायी होने के नाते हमारा अपने रोजगार के प्रति कैसा व्‍यवहार होना चाहिये।

मुख्‍य पद – 1 पतरस 2:11-25

पतरस का पहला पत्र उन सब विश्‍वासियों को लिखा गया जो उस क्षेत्र में फैले हुए थे जो आज तुर्की कहलाता है। वह विश्‍वासियों के कत्‍वर्य और जीवन के विषय में उनको सलाह देता है, और इसकेसाथ ही शासकों (सरकार) और रोजगार देने वाले स्‍वामियों के प्रति हमारी जिम्‍मेदारियों के विषय में बताता है।

  1. पतरस हमें इस संसार में बाहरी और परदेशी क्‍यों कहता है? (पद 11)
  2. हमें अधिकारियों के अधीन रहने के निर्देश दिये गये है। (पद 13-14) तौभी पतरस और यूहन्‍ना ने ऐसा करने से इन्‍कारकिया, प्रेरितों के काम 4:18-20, क्‍यों? क्‍या कुछ ऐसी परिस्थितियां भी है जिनमें आप व्‍यवस्‍था का पालन करने से इन्‍कार कर सकते है?
  3. हमारी बुराईयों को ढापने के लिए हमारी स्‍वतन्‍त्रता किस प्रकार प्रयोग की जा सकती है? (पद 16)
  4. जो पद दासों का सम्‍बोधित किये गये है क्‍या वे आज कर्मचारियों से भी सम्‍बन्धित है?
  5. श्रमिक संघ (Trade Union) के लिए पद 18 में क्‍या बात निहित है? जब आपको लगता कि आपकी कार्य करने की परिस्थितियां उचित नही है तो क्‍या आपको औद्यौगिक कार्यवाही करनी चाहिये?
  6. यदि आपका मालिक आपसे उचित व्‍यवहार नही करता है तो आपको क्‍या करना चाहिये?

मालिक और कर्मचारी का सम्‍बन्‍ध

पौलुस ने भी सिखाया कि दासों को अपने स्‍वामियों के अधीन रहना चाहिये। बाईबल के समय में दासत्‍व प्रथा सामान्‍य थी और परमेश्‍वर ने दासों के साथ उचित व्‍यवहार करने के निर्देश दिये। बाईबल, दासत्‍व को बढाना या घटाना नही चाहती है, यह दसों को विद्रोह करने के लिए मना करती है। (1 कुरिन्थियों 7:20-24)

“हे सेवकों, जो शरीर के अनुसार तुम्‍हारे स्‍वामी है; सब बातों में उन की आज्ञा का पालन करों, मनुष्‍यों को प्रसन्‍न करने वालों की नाई दिखाने के लिए नही, परन्‍तु मन की सीधाई और परमेश्‍वर के भय से। और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्‍यों के लिए नही परन्‍तु प्रभु के लिए करते हो।” (कुलुस्सियों 3:22-24)

साफ रीति से यह पद सब कर्मचारियों से सम्‍बन्धित है – उन्‍हें कठिन परिश्रम करना है जैसे कि वे स्‍वंय यीशु के लिए कार्य कर रहे थे। बल्कि सच यह है कि रोजगार, दूसरों के साथ अपने विश्‍वास को बाटनें का एक अवसर है। (1 तिमुथियुस 6:1; तीतुस 2:9-10)

पौलुस ने स्‍वामियों के लिए भी निर्देश दिये है-

“हे स्‍वामियों, अपने अपने दासों के साथ न्‍याय और ठीक ठीक व्‍यवहार करों; यह समझकर कि स्‍वर्ग में तुम्‍हारा भी एक स्‍वामी है।” (कुलुस्सियों 4:1)
“और हे स्‍वामियों, तुम भी धमकियां छोड़कर उन के साथ वैसा ही व्‍सवहार करों, क्‍योंकि जानते हो, कि उन का और तुम्‍हारा दोनों का स्‍वामी स्‍वर्ग में है, और वह किसी का पक्ष नही करता।” (इफिसियों 6:9)

कुछ सम्‍बन्धित पद

स्‍वामी-दास का सम्‍बन्‍ध निर्गमन 21:20-21; 23:12; लैव्‍यव्‍यवस्‍था 25:42-44; व्‍यवस्‍थाविवरण 23:15; यिर्मयाह 34:6-22; 1 कुरिन्थियों 7:21-24; इफिसियों 6:5-9; कुलुस्सियों 3:22-4:1; 1 तिमुथियुस 6:1-2; तीतुस 2:9-10; 1 पतरस 2:18
सन्‍तोष लूका 3:14; फिलिप्पियों 4:11; 1 तिमुथियुस 6:6-10; इब्रानियों 13:5-6
महत्‍वाकांक्षा भजन संहिता 49:10-13; लूका 9:25
धनी होने की लालसा मत्‍ती 6:25; 1 तिमुथियुस 6:10
बिना काम किये रहने के नीतिवचन 13-4; 20:4; 21:25; 24:30-34
विरोध में चेतावनी 1 थिस्‍सलुनीकियों 4:11-12; 2 थिस्‍सलुनीकियों 3:6-15

श्रमिक संघ

श्रमिक संघ का प्राथमिक उद्देश्‍य अपने सदस्‍यों के लिए अच्‍छे रोजगार की परिस्थितियां प्रदान करना है। श्रमिक संघो ने कार्य की परिस्थितियों में सुधार किया है, और आज लगभग सभी कर्मचारी, श्रमिक संघ के कार्यो से लाभान्वित हुए है।

जबकि बाईबल यह सीखाती है कि हमें अपने कार्य की परिस्थितियों में सन्‍तोषपूर्वक रहना चाहिए। पतरस ने दासों को अपने स्‍वामियों के अधीन रहने के निर्देश दिये, यहां तक कि उनको भी जिनके साथ कठोर व्‍यवहार होता है। (1 पतरस 2:18) यूहन्‍ना बपतिस्‍मादाताने कुछ सैनिकों से कहा कि अपने वेतन पर सन्‍तोष करो (लूका 3:14) सभी विश्‍वासियों से कहा गया है कि जो कुछ तुम्‍हारे पास है उस पर सन्‍तोष करो (इब्रानियों 13:5) यहां तक कि जब दूसरे श्रमिकों को अच्‍छा वेतन मिल रहा हो तो भी यीशु ने, जो हमें मिल रहा है उस पर सन्‍तोष करना सिखाया (मत्‍ती 20:1-16)।

क्‍या कोई ऐसी परिस्थिति है जिसमें अपने मालिक के अधीन रहना अनुचित है?

इसलिए एक विश्‍वासी श्रमिक संघ के औद्यौगिक क्रियाकलापों में हिससेदारी नही ले सकता है। क्‍या एक विश्‍वासी के लिए यह गलत है कि वह एक श्रमिक संघ के सदस्‍य तो हो पर किसी गतिविधि में हिस्‍सा ना लें?

यदि हमें हड़ताल करनी पड़े, या धरने में सम्मिलित हो या अपने मालिक पर किसी और तरीके से दबाव बनाये, तो हम उस आज्ञा का पालन नही करते है कि जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि...प्रभु के लिये करते हो। (कुलुस्सियों 3:23)

क्‍या अपनी वेतन वृद्धि के लिए कहना गलत है?

सीढी चढ़ना

महत्‍वाकांक्षा एक सामान्‍य जाल है जिसमें लोग फसते है और वे पदोन्निति के लिए या वित्‍तीय लाभ पाने के लिए बहुत समय खर्च करते है। बाईबल इसके विषय में भी कुछ बताती है देखें भजन संहिता 75:6-7।

“यदि मनुष्‍य सारे जगत को प्राप्‍त करें; और अपना प्राण खो दें, या उसकी हानि उठाये, तो उसे क्‍या लाभ होगा?” (लूका 9:25)
“कोई मनुष्‍य दो स्‍वामियों की सेवा नही कर सकता, क्‍योंकि वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा, वा एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्‍छ जानेगा; तुम परमेश्‍वर और धन दोनों की सेवा नही कर सकते।” (मत्‍ती 6:24)

कभी कभी ऐसा होता है कि एक कर्मचारी से कार्य पर ओवर टाईम की आशा की जाती है, और एक व्‍यक्ति को परमेश्‍वर की सेवा का भी समय नही मिलता क्‍योंकि उसको बहुत अधिक समय अपनी नौकरी पर देना पड़ता है। तो इन स्थितियों में अच्‍छा यही है कि आप किसी दूसरी नौकरी की तलाश करें ना कि इस तरह की नौकरी से जुडे रहे जो आपको परमेश्‍वर से दूर कर सकती है।

सम्‍भावित समस्‍याऐं

कुछ इस तरह की नौकरी भी है जिनमें कुछ ऐसा कार्य करना पडता है जो एक विश्‍वासी को करना उचित नही है।

  1. निम्‍नलिखित नौकरियों पर विचार कीजिये और सोचिये कि यदि निम्‍न में से कोई ऐसा काम है और आप ऐसी किसी नौकरी में हो तो किस तरह की समस्‍याऐं आपके सामने आ सकती है
    - अपराधिक वकील - विक्रेता - सुरक्षाकर्मी
    - चिकित्‍सक - विद्युतकर्मी - पुलिस अधिकारी
    - अध्‍यापक - जनरलिस्‍ट - रिशेप्‍शनिष्‍ट
    - वकील - जेल अधिकारी - रियल स्‍टेट एजेन्‍ट
    - सैनिक - केमिस्‍ट - नर्स
    - अकाउंटेन्‍ट - राजनेता - दन्‍त चिकित्‍सक
  2. आपके अनुसार कौन सा काम एक विश्‍वासी को नही करना चाहिये?
  3. अपने रोजगार में आपने किस प्रकार की नैतिक समस्‍याओं का अनुभव किया है?

विचारणीय पद

  1. कुछ उद्योगों में, बिना श्रमिक संघ या व्‍यवसायिक संगठन का सदस्‍य बने, काम करना ही असम्‍भव है। ऐसी परिस्थिति में एक विश्‍वासी को क्‍या करना चाहिये? क्‍या याकूब 1:12 इससे सम्‍बन्धित है?
  2. यदि आपका अधिकारी कम्‍पनी की गलती को छुपाने के लिए आपसे अपने ग्राहक से झूठ बोलने के लिए कहे तो ऐसे में आप क्‍या कहेंगे?
  3. पढ़ें 2 थिस्‍सलुनीकियों 3:6-15। यदि किसी को बेरोजगार भत्‍ता मिल रहा हो या उसका परिवार उसकी सहायता कर रहा हो तो क्‍या ऐसे में काम ना करना क्‍या गलत है?
  4. क्‍या श्रमिक संघ का सदस्‍य होने और व्‍यवसायिक संगठन का सदस्‍य होने में कोई अन्‍तर है?

अन्‍य खोज

  1. स्‍वंय नियोजित (self-employed) होने के क्‍या लाभ और क्‍या हानि है?
  2. दो या तीन पुराने विश्‍वासियों से बातचीत करें और पता करें कि अपने रोजगार में उनको किस तरह की नैतिक समस्‍याऐं आयी। उनके अनुभव के विषय में लिखिये।

‘व्‍यवसाय और रोजगार’ (Careers & employment) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman

आत्मा का फल – 4
Fruit of the Spirit – Part 4

अंगूर की बारी में अंजीर के वृक्ष का दृष्‍टान्‍त

“किसीकी अंगूर की बारी में एक अंजीर का पेड़, लगा हुआ था वह उस में फल ढूंढने आया, परन्‍तु न पाया। तब उस ने बारे के रखवाले से कहा, देख तीन वर्ष से मैं इस अंजीर के पेड़ में फल ढूंढने आता हूं परन्‍तु नही पता, इसे काट डाल कि यह भूमि को भी क्‍यों रोके रहे। उस ने उस को उत्‍तर दिया, कि हे स्‍वामी, इसे इस वर्ष तो और हरने दे, कि मैं इस के चारों और खोदकर खाद डालूं। सौ आगे को फले तो भला, नही तो उसे काट डालना।” (लूका 13:6-9)

यह इस्राएल के विषय में एक दृष्‍टान्‍त है। इसके विषय में थोड़ा सन्‍देह है। अंजीर वृक्ष को इस्राएल देश के संकेत के रूप में प्रयोग किया गया है। (मत्‍ती 21:19; 24:32; योएल 1:7; यिर्मयाह 24; भजन संहिता 80:8-17 और अन्‍य) यीशु, दाख की बारी सवांरने वाले के रूप में (जैसे परमेश्‍वर ने यीशु से पहले सब भविष्‍यद्वक्‍ताओं को इस्राएल को बदलने के लिए भेजा), अपनी तीन वर्षो की सेवा में देश पर कुछ आत्मिकता का प्रभाव लाने का प्रयास किया। यीशु को बहुत थोडी सफलता मिली। वहां कोई फल नही था। प्रत्‍येक वर्ष, इस्राएल की दाख की बारी का स्‍वामी, यहोवा परमेश्‍वर, देखता था कि उसके रखवाले को कितनी सफलता मिली है, और वह हर बार निराश हुआ। स्‍वर्गीय विचार के अनुसार इस्राएल को भी काट दिया जाना चाहिये था।

लेकिन इस प्रभाव में प्रभु यीशु मसीह को कहना चाहिये था कि कहा, “नही, मुझे एक ओर अन्तिम प्रयास करने दें, हो सकता है कि जितना समय मेरे पास बचा है उसमें मैं फल पा सकूं।”

दृष्‍टान्‍त में फल वास्‍तव में आत्मिक फल है जिनके लिए मसीह इस्राएल को उत्‍साहित करने की आशा कर रहे थे।

यदि स्‍वभाविक रूप से बात करें तो फल किसी भी वृक्ष के अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य का दिखने वाला प्रमाण है। जो वृक्ष फल लाता है वह वो काम कर चुका होता है जिसके लिए वह बना है। परमेश्‍वर ने उसको जिस काम के लिए रचा है वह वो काम कर चुका होता है। उसने सम्‍पूर्णता से अपना कार्य किया है। इस प्रकार हम कह सकते है कि आत्मिक फलों को समझना कितना उत्‍तम है। आत्मिक फल एक विश्‍वासी के अच्‍छे आत्मिक स्‍वास्‍थ्‍य का प्रमाण है। इसी प्रकार जो विश्‍वासी अच्‍छे आत्मिक फल लाते है वे जिसके लिए है वह काम कर चुके होते है - जिसके लिए परमेश्‍वर ने उसको बनाया है।

दाख की बारी का दृष्‍टान्‍त हमें बताता है कि मसीह इस्राएल देश में हद्वय परिवर्तन को तलाश रहे थे। वह उनके शरीर के कामों को आत्‍मा के फलों में बदलने का प्रयास कर रहे थे। वह उनको मूसा की व्‍यवस्‍था के दासत्‍व से छुडाने का कठिन प्रयास कर रहे थे, यह व्‍यवस्‍था एक बोझ बन गयी थी, मसीह उनको व्‍यवस्‍था से प्रगट होने वाले स्‍वस्‍थ प्रेम की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे थे, और यह उनके लिए एक आनन्‍द था।

इस नये प्रकाश के द्वारा लोग को अपने आप को व्‍यवस्‍था से कृपा की ओर होने वाले स्‍थानान्‍तरण के लिए अपने आप को तैयार होने में भी सहायता मिलती - मूसा की द्वारा पुरानी वाचा से मसीह में नयी वाचा।

यह लगभग निश्चित है कि उनमें से अधिकांश लोग जिनको यीशु इस प्रकार बदलना चाहते थे वे तीन वर्षो पहले ही यूहन्‍ना के बपतिस्‍में का अनुभव कर चुके थे। और यूहन्‍ना ने इस अवसर पर उनको क्‍या कहा था? – “सो मन फिराव के योग्‍य फल लाओ” – आत्मिक फल। और फिर यूहन्‍ना ने कहा, “और अब कुल्‍हाडा पेडों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिए जो जो पेड़ अच्‍छा फल नही लाता, वह काटा और आग में झोका जाता है।” (मत्‍ती 3:10)

यूहन्‍ना की चेतावनी

यीशु का दृष्‍टान्‍त, यूहन्‍ना के द्वारा कही गयी बात की प्रतिध्‍वनी है। ‘मनफिराव के योग्‍य फल’ अभी तक नही आये थे और रखवाले का हाथ काटने के लिए लम्‍बे समय तक ठहरा रहा था। ‘इसको काट दो’ दाख की बारी के स्‍वामी ने कहा। लेकिन अपने लोगों के यीशु का स्‍नेह, और उनकी ओर से उसकी याचना, ने पिता को रोक रखा है।

हालाकिं दृष्‍टान्‍त को ऐतिहासिक घटनाओं के साथ पूरी तरह से फिट करना थोड़ा कठिन है, क्‍योंकि हम इस्राएल के काटें जाने के विषय में सन 70 ईसवी से पहले नही कहा जा सकता है, जब रोमियों ने अंत में अपना धैर्य खो दिया था और इसको सम्‍पूर्ण विश्‍व में तितर बितर कर दिया था। चालीस वर्षो के बाद, बल्कि अतिरिक्‍त एक वर्ष के बाद दाख की बारी के रखवाले ने, इसके लिए, दण्‍डविराम की याचिका की थी। लेकिन वास्‍तविक समस्‍या यह नही है। हमें इस घटना को परमेश्‍वर की दया के एक उदाहरण के रूप में देखना चाहिये। हमसे कहा गया है कि, “धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है।” (याकूब 5:16) यह बात ध्‍यान में रखते हुए कि इस मामले में धर्मी व्‍यक्ति कौन था, इसमें कोई आश्‍चर्य नही कि इस्राएल का दमन चालीस वर्षो तक चला! यीशु ने कितनी ईमानदारी से अपने लोगों के लिए प्रार्थना की होगी!

प्राकृतिक से व्‍यक्तिगत तक

दाख की बारी के रखवाले के इस दृष्‍टान्‍त में मुख्‍य बात यह है कि यह हमें दिखाता है कि पवित्र शास्‍त्र फल की खेती के द्वारा आत्मिक विकास को चित्रित करता है। फल न आना, आत्मिक विकास की कमी है। इस दृष्‍टान्‍त में यह बात एक राष्ट्र पर लागू हुयी: इस्राएल राष्‍ट्र एक पेड़ था। लेकिन, जैसा कि पवित्र शास्‍त्र बताता है, कि यह संकेत व्‍यक्तिगत रूप से भी लागू होता है।

जो लोग यूहन्‍ना बपतिस्‍मादाता के पास बपतिस्‍मा लेने आ रहे थे, उनको भी उसने पेड़ के संकेत से जोड़ा और कहा कि यदि वे फल नही लायेंगे तो काट दिये जायेंगे। पवित्र शास्‍त्र के अनुसार आपका और मेरा आत्म्कि विकास एक “फल” है। यूहन्‍ना ने इस बात को बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट किया है कि “मन फिराव के योग्‍य फल” लाओ, अन्‍यथा काट दिये जाओंगे। दूसरे शब्‍दों में बपतिस्‍में के द्वारा हमारा आत्मिक विकास होता है और यह हमारे बढतें हुए आत्मिक स्‍वास्‍थ्‍य का प्रगटीकरण है। हमारा चरित्र एक ऐसे चरित्र में परिवर्तित होना चाहिये जिसको मसीह मंजूर करेगा।

लेकिन ये सब एक दिन में नही होगा। हमारे आत्मिक विकास के फलों को उत्‍पन्‍न करने वाली बातों में एक सबसे महत्‍वपूर्ण बात हमें बताती है। फल बढ़ते है और धीरे-धीरे पकते है। दृष्‍टान्‍त में रखवाला शायद ही कह सकता है कि, “चलो एक दो दिन और इंतजार करें और देखें कि क्‍या होता है” और कुछ नही होता है। तर्कसंगत यह है कि वह फल आने का जो चक्र है उस समय तक इंतजार करें। फल नियम मौसम में तैयार होगा कि नही।

लेकिन फल का सुनिश्चित करने के लिए हमें अब सक्रिय होना चाहिये। हमे शुरूआत करने के लिए अगले वर्ष या अगले महिने का इंतजार नही करना है। अपने आत्मिक फलों का विकास करने का समय सदैव अब ही है। हम अपने जीवनों में यह सब तब तक करते रहेंगे जब तक कि मसीह नही आ जाता है। और फिर फसल होगी जैसा कि वह बहुत से दृष्‍टान्‍तों में बताता है: फलों को इकट्ठा करना।

आत्मिक फल भी भौतिक फलों के समान ही है जो फसल के कुछ दिन पहले अचानक से दिखाई नही देते है। ऐसा नही है कि फल ना लाने वृक्ष, फल इकटठा करने वाले के आने से एक या दो दिन पहले, अचानक ही फलो से लद जाते है। यह एक महत्‍वपूर्ण कारण है कि वृक्षों पर फल आने और हमारे आत्मिक विकास में समानता दिखाई जाती है। यह अचानक से तुरन्‍त ही नही हो सकता है। पेड़ कटाई से कुछ दिन पहले ही फल नही ला सकता है और ना ही हम ऐसा कर सकते है। यही संदेश है।

जैसा हमने शुरूआत में कहा था कि फल लाने के लिए वृक्ष का स्‍वस्‍थ्‍य होना जरूरी है। इसलिए हमें भी आत्मिक फल लाने के लिए आत्मिक रूप से स्‍वस्‍थ्‍य होना जरूरी है। एक वृक्ष को स्‍वस्‍थ्‍य रखने के लिए तीन बातें जरूरी होती है: अच्‍छी मिट्टी, पर्याप्‍त सूर्य प्रकाश और सबसे महत्‍वपूर्ण पानी। पानी एक महत्‍वपूर्ण तत्‍व है जो खराब मिट्टी और विरल धूप की कमी को भी पूरा करता है। जैसे कि यह दुनिया एक आत्मिक रेगिस्‍तान है, और जब तक जगत की ज्‍योति (यूहन्‍ना 9:5) नही आती है यह आत्मिक अन्‍धकार का एक स्‍थान है, ऐसे में अच्‍छा जल ही हमारी एकमात्र आशा है! अच्‍छे पानी की आपूर्ति के बिना एक वृक्ष बर्बाद हो जाता है। जैसा कि हम भजनसंहिता के 1 अध्‍याय में देखते है।

एक आत्मिक पुरूष या स्‍त्री: नदी के द्वारा एक वृक्ष।

भजन संहिता 1 में हमारे लिए एक उत्‍तम वृक्ष (जिसका अर्थ है एक सच्‍चा आत्मिक पुरूष या स्‍त्री) का एक दृश्‍य दिया गया है। यहां एक आत्मिक व्‍यक्ति का वर्णन इस प्रकार किया गया है:

“वह उस वृक्ष के समान है जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्‍ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिए जो कुछ वह पुरूष करें वह सफल होता है।” (भजन संहिता 1:3)

यिर्मयाह के द्वारा भी कुछ ऐसा ही दृश्‍य दिया गया है:

“वह उस वृक्ष के समान होगा जो नदी के तीर पर लगा हो और उसकी जड़ जल के पास फैली हो; जब घाम होगा तब उसको न लगेगा, उसके पत्‍ते हरे रहेंगे, और सूखे वर्ष में भी उनके विषय में कुछ चिन्‍ता न होगी, क्‍योंकि वह तब भी फलता रहेगा।” (यिर्मयाह 17:8)

इन पदों मे वृक्षों के स्‍वस्‍थ्‍य होने का मुख्‍य कारण यह है कि इनको अच्‍छी पानी की आपूर्ति मिल रही है। वे नदी तट पर अपनी जड़े फैलाते है, इसलिए सूखे के समय में भी वे नदी-तल के नीचे छिपे जीविका तत्‍वों को पा सकते है। अब, यदि हम भजनसंहिता और यिर्मयाह के इन पदों को देखें तो हम सीख सकते है कि वास्‍तव में वह क्‍या है जो एक वृक्ष को, परमेश्‍वर के एक पुरूष या स्‍त्री को, स्‍वस्‍थ्‍य और फलदायी बना सकता है।

प्रसन्‍नता और ध्‍यान

भजनसंहिता में हमें बताया गया है कि, “परन्‍तु वह तो यहोवा की व्‍यवस्‍था से प्रसन्‍न रहता; और उसकी व्‍यवस्‍था पर रात दिन ध्‍यान करता है।” इसलिए वह एक फलदायी वृक्ष के समान है। और यिर्मयाह में हमें बताया गया है कि, “धन्‍य है वह पुरूष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्‍वर को अपना आधार माना हो। वह उस वृक्ष के समान होगा…” यही है जो उसे फलदायी वृक्ष बनाता है।

  • यहोवा की व्‍यवस्‍था में प्रसन्‍न
  • उसकी व्‍यवस्‍था पर रात दिन ध्‍यान करना
  • यहोवा पर भरोसा रखना
  • परमेश्‍वर को आधार मानना

ये चार बातें है जो एक ईश्‍वरीय व्‍यक्ति को फलदायी वृक्ष के समान बनाते है। ये चार बातें वृक्ष का पोषण करने वाले अच्‍छे जल की आपूर्ति के समान है। हमारे आत्मिक फलों का विकास इन्‍ही बातों पर निर्भर करता है।

आत्‍मा के फलों का विकास तभी होगा यदि प्रसन्‍नता और ध्‍यान का स्‍वस्‍थ्‍य रखने वाले जल की आपूर्ति होगी। अर्थ साफ है कि हमें अपनी जड़ो को जीवन के जल में, जो कि परमेश्‍वर का जीवनदायी वचन है, दृढ़ता से लगाना है। इसमें प्रसन्‍न रहने और मनन करने के द्वारा हम इसकी गहराईयों से पोषण लेते रहे ताकि अपने आप को बीसवी शताब्‍दी के आत्मिक सूखे से बचाये रख सके।

भजन संहिता 1 में जिस प्रकार के ध्‍यान के विषय में बताया गया है उसमें मस्‍तिष्‍क को खाली करना शामिल नही है, जैसा कि पूर्व में ध्‍यान का अर्थ है कि अपने आन्तिरक मन को शान्‍त करना, जैसा कि पूर्व में कहा जाता है कि ध्‍यान के द्वारा हम स्‍वंय अपने अन्‍दर झाकते है।

अपने मन को इस प्रकार आराम देने के अपने कुछ लाभ होते है लेकिन पवित्र शास्‍त्र जिस ध्‍यान के विषय में बताता है उसका यह अर्थ नही है। इब्रानी विचार भी कुछ ज्‍यादा अलग नही हो सकता है। इस शब्‍द का वास्‍तव में अर्थ है गुनगुनाना! भजनकार हमें बताता है कि हमें अपने मस्तिष्‍क को भरना है ना कि खाली करना है! नि:सन्‍देह परमेश्‍वर के वचन से भरना है। आत्मिक विकास के विषय में वचन की अच्‍छी जानकारी का कोई विकल्‍प नही है। “पश्‍चाताप के लिए फल” पैदा करने के लिए इसके अलावा और कोई तरीका नही है। मसीह के द्वारा मंजूर किये जाने वाले चरित्र को विकसित करने का इसके अलावा और कोई तरीका नही है।

लेकिन वचन के अस्थिर जानकारी का परिणाम आत्मिक फल नही हो सकता है। बल्कि जैसा कि भजन कहता है कि यह रात दिन ध्‍यान करने से होता है: यह अपने जीवन को इससे भरने से होता है, यह इसमें प्रसन्‍न रहने से होता है। इसका अर्थ यह नही है कि हम अपने हर एक खाली पल में वचन को पढते रहे या हर समय एक खुली बाईबल को पकड़े रहे! इस प्रकार का अध्‍ययन अव्‍यवहारिक है, और हमें पागल कर देगा- इस विषय पर फेस्‍तुस के वे शब्‍द जो उसने अधिक अध्‍ययन के विषय में पौलुस से कहे हम उनको देख सकते है (प्रेरितों के काम 26:24) लेकिन हम जब भी अध्‍ययन करें तो उसकी गुणवत्‍ता अच्‍छी होनी चाहिये जिससे हम कुछ ऐसा ले जिसको हम मनन करते रहे ताकि इसका एक निरन्‍तर प्रभाव हमारे जीवन में बना रहे। इस प्रकार की गुणवत्‍ता तभी आती है जब हम वास्‍तव में प्रसन्‍नता से वचन को पढ़ते है और इस पर विचार करने का पर्याप्‍त और उचित समय लेते है।

जब हम परमेश्‍वर के वचन का प्रसन्‍नता से ध्‍यान करते है तो आत्‍मा के फल बढ़ते है। इसलिए फल को पौलुस ने “आत्‍मा के” कहा है। यह आत्‍मा शब्‍द से आता है।

This is section 4 from ‘The fruit of the Spirit’, by Colin Attridge

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