Dipak Issue 22 (February 2015)

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105

अनुभव (Experience)

एक बात कही जाती है जो हम सब ने सुनी है कि हम कोई भी काम करके सीखते है और यह सच भी है। अनुभव बहुत ही अच्‍छा शिक्षक है। फिर भी बुद्धिमान व्‍यक्ति अपने व्‍यक्तिगत अनुभव से सबकुछ सीखने का प्रयास नही करता है। इस तरीके से सबकुछ सीखने के लिए जीवन बहुत ही छोटा है।

एक बुद्धिमान व्‍यक्ति दूसरों की गलतियों और सफलताओं के विषय में पढ़कर और उनका अवलोकन करके उनके अनुभव से लाभ उठाने का प्रयास करता है। इसका एक बहुत ही अच्‍छा उदाहरण है, केसर मोटर कार, जिसको द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद बनाया गया था। तो क्‍या निर्माता ने सबसे पहली मोटर कार के निर्माता के समान ही शुरूआत की, उसकी कार पहली बिना घोड़े वाली बग्‍गी के समान दिखती होगी। इसके बजाय उसने अग्रणी कार निर्माता कम्‍पनियों की कार्य प्रणाली और डिजाईनों का अध्‍ययन किया जिसके परिणामस्‍वरूप उसने उनके अनुभव का लाभ उठाया और उनकी तुलना में कही अधिक अच्‍छी कार का निर्माण किया। ऐसी समझ हम सबमें नही पायी जाती है, क्‍योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्‍येक पीढ़ी बहुत सारी चीजों को, कठिन तरीके से, स्‍वंय सीखने पर जोर देती है। माता पिता के अनुभव की अवहेलना की जाती है और अपने पूर्वजों के जले हाथों के जख्‍मों से न सीखकर स्‍वंय अपनी उंगलियों को स्‍टोव पर जलाने पर जोर देते है।

बहुत सी ऐसी बातें है जिनको व्‍यक्तिगत अनुभव के द्वारा सीखने के लिए हमें एक बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। सड़क पर खेलते हुए दुर्घटनाग्रस्‍त होना हमें एक कभी ना भूलने वाली शिक्षा दे सकता है, लेकिन हो सकता है कि अपने इस अनुभव का लाभ उठाने के लिए हम लम्‍बे समय के लिए जीवित ही ना रहे। माता पिता होने के नाते हम जानते है कि यदि बच्‍चे हमारी बातें सुने और सीखे तो हम उन्‍हें बचा सकते है। इसी कारण हम बहुत से सिद्धान्‍तों को, इस आशा में, बार बार दोहराते है कि एक दिन ये बातें उनके मनों में जगह बना लेगी। पौलुस बताता है कि, "जितनी बातें पहले से लिखी गयी, वे हमारी ही शिक्षा के लिए लिखी गयी है कि हम धीरज और पवित्रशास्‍त्र के प्रोत्‍साहन द्वारा आशा रखें।" (रोमियों 15:4)

हम परमेश्‍वर का ज्ञान और प्रेम इस बात के द्वारा देख सकते है कि उसने हमें अपने पवित्र निर्देशो के द्वारा सीखाने, चेताने, फटकार लगाने के लिए बाईबल दी। एक बुद्धिमान व्‍यक्ति ईश्‍वर के इन शब्‍दों के महत्‍व और दोहराने की आवश्‍यकता को पहिचानता है। हमें पतरस के इन शब्‍दों को याद रखना चाहिये, "मैं तुम्‍हें यह दूसरी पत्री लिखता हूँ, और दोनों में सुधि दिलाकर तुम्‍हारे शुद्ध मन को उभारता हूँ।" (2 पतरस 3:1)

बिरिया के चेलों को आज्ञा दी गयी थी क्‍योंकि वे थिस्‍सलुनिकियों के चेलों से अधिक उदार थे और उन्‍होंने वचन को उदारता से ग्रहण किया और प्रतिदिन पवित्र शास्‍त्र में खोजते थे।

प्रतिदिन के बाईबल पाठ की आवश्‍यकता को पहिचानते हुए आओ हम अपने प्रतिदिन के बाईबल पाठ को "बाईबल कम्‍पेनियन" के साथ करें, इसके साथ बाईबल पाठ करने से आप एक वर्ष में बाईबल का पुराना नियम एक बार और नया नियम दो बार सम्‍पूर्ण कर लेंगे।

प्रतिदिन बाईबल पाठ की अच्‍छी आदत से हमें, परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों की परीक्षाओं और अनुभवों से लाभ उठाने में सहायता मिलेगी और अपनी अज्ञानता के कारण वे जिस पाप में फसें आप उससे बच सकेंगे।

‘अनुभव’ (Experience) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd

अदन की घटनायें (Events in Eden)

ईश्‍वर ने ऐसी दुनिया की सृष्टि की जिसमें पाप नही था और आदम और हव्‍वा को एक बहुत ही सरल नियम दिया कि वे उस नियम का पालन करें। अदन की वाटिका में धोखा, अनाज्ञाकारिता और दण्‍ड की शुरूआत हुयी, जिसका प्रभाव आज तक है। अदन की वाटिका में जो हुआ यहां हम उस घटना पर विचार करेंगे।

मुख्‍य पद : उत्‍पत्ति 2:4 -3:24

अदन की वाटिका में जो कुछ घटा वह 2 और 3 अध्‍याय में वर्णित है। ये अध्‍याय इस बात पर एक सूक्ष्‍मदृष्टि प्रदान करते है कि हमारा संसार आज इस भयानक स्थिति में क्‍यों है, हांलाकि बहुत से विवरण को छोड़ दिया गया है।

  1. क्‍या आप दिये गये वर्णन से पता लगा सकते है कि अदन कहाँ स्थित था?
  2. "अच्‍छे और बुरे के ज्ञान" का क्‍या अर्थ है?
  3. क्‍या "शैतान" और "दुष्‍टात्‍मा" शब्‍द इन अध्‍यायों में आये है?
  4. पहला पाप किस तरह से हुआ? क्‍या हमारे प्रलोभन भी इसी प्रकार से हमें पाप में डालते है?
  5. आप क्‍या सोचते है कि क्‍यों परमेश्‍वर ने आदम को यह नियम दिया? क्‍या आप अपने उत्‍तर से सम्‍बन्धित कोई पद बाईबल से लिख सकते है?
  6. क्‍या केवल एक ही नियम आदम और हव्‍वा को दिया गया था?
  7. क्‍या ईश्‍वर ने आदम और हव्‍वा को क्षमा किया? क्‍या बाईबल का कोई पद हमें ऐसा बताता है?
  8. क्‍या इन घटनाओं के बाद आदम और हव्‍वा की प्रवृति और अधिक पाप करने की हो गयी? कौन से पद आपके उत्‍तर का समर्थन करते है?
  9. ईश्‍वर ने आदम और हव्‍वा से कहा कि जब वे वह फल खायेंगे तो वे मर जायेंगे (2:17)। तो भी वे बहुत वर्षो तक नही मरे। आप इसकी व्‍याख्‍या कैसे करेंगे। क्‍या आप अपनी व्‍याख्‍या के समर्थन में कुछ पदों को लिख सकते है?
  10. आदम के वशंज मरणशील है। क्‍या ईश्‍वर ने कहा कि ऐसा होगा?
  11. सर्प, हव्‍वा और अदम को मिले श्रापों का सारांश लिखिए।
  12. कुछ लोग दावा करते है कि आदम और हव्‍वा को सब्‍त का दिन मानने की आज्ञा दी गयी थी। क्‍या इस दावे का कोई प्रमाण है?

इन अध्‍यायों में दिये गये वर्णन पर आधारित बहुत से जटिल सिद्धान्‍त बनाये गये है, लेकिन यदि हम इनको ध्‍यानपूर्वक पढ़े तो पता चलता है कि इन सिद्धान्‍तों की बुनियाद कितनी कमजोर है। बाईबल की शिक्षाओं में बहक जाने से बचने के लिए केवल एक ही तरीका है कि आप ध्‍यानपूर्वक बाईबल को पढ़ें। जो आप ने बाईबल के विषय में सुना है उसकी स्‍वंय जांच करें और परमेश्‍वर के वचन (बाईबल) के अनुसार ही फैसला लें।

क्‍योंकि अदन की वाटिका से मानवीय इतिहास की शुरूआत हुयी तो स्‍वाभाविक है कि किसी भी बाईबल के सिद्धान्‍त की शुरूआत के लिए हम वहाँ से देखें। लेकिन अधिकांश सिद्धान्‍तों को वहाँ नही दिया गया है। अधिकांशतया सिद्धान्‍तों को शब्‍दों में नही लिखा गया है जब तक कि यह दिखाना अनिवार्य न हो कि परमेश्‍वर ने ऐसा क्‍यों किया।

आदमी, स्‍त्री और विवाह

अदन को नये पेड़ पौधों और जानवरों से भरा गया, लेकिन ऊटंकटारे और कांटे नही थे। परमेश्‍वर ने आदम को अदन की वाटिका में रखा कि वह "इसमें काम करें और इसकी देखभाल करें"। (उत्‍पत्ति 2:15) हमें यह सही सही नही बताया गया है कि उसको वहाँ किस तरह काम और देखभाल करनी थी।

हव्‍वा को आदम के जीवन में एक "उपयुक्‍त सहायक" के रूप में दिया गया (उत्‍पत्ति 2:18,20) यद्यपि परमेश्‍वर ने विभिन्‍न प्रकार के जानवर बनाये लेकिन उसने मनुष्‍यों में केवल एक पुरूष और स्‍त्री ही बनायी। विवाह के विषय में परमेश्‍वर की पहली टिप्‍पणी है कि:

  • परमेश्‍वर ने कहा कि आदम के लिए अकेला रहना अच्‍छा नही (उत्‍पत्ति 2:18)
  • आदम के लिए उपयुक्‍त सहायक के लिए हव्‍वा को बनाया गया क्‍योंकि कोई भी जानवर उसके लिए उपयुक्‍त नही था। (उत्‍पत्ति 2:20-23)
  • पुरूष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नि के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन हो जायेंगे। (उत्‍पत्ति 2:24) यह स्‍पष्‍ट है कि यह बात हमारे ही लाभ के लिए लिखी गयी क्‍योंकि छोड़ने के लिए आदम के माता पिता नही थे। मुख्‍य बिन्‍दु है कि माता-पिता से अलग होना और पत्नि के साथ रहना। (मत्ति 19:5, मरकुस 10:7, इफिसियों 5:31 भी देखें)

परमेश्‍वर के नियम

आदम और हव्‍वा को परमेश्‍वर ने केवल एक नियम दिया।

"और प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍यों से कहा कि,"तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बेखटके खा सकते है पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना, क्‍योंकि जिस दिन तू उसका फल खायेगा उसी दिन अवश्‍य मर जायेगा।" (उत्‍पत्ति 2:16-17)

उत्‍पत्ति 3:3 पद में हव्‍वा ने सर्प को कुछ अधिक बात बतायी, हव्‍वा ने सर्प से कहा कि परमेश्‍वर ने उनको उस फल को छूने तक के लिए मना किया है। सर्प ने हव्‍वा को अपनी चाल में फसा लिया और हव्‍वा ने नियम तोड़ दिया। आदम ने परमेश्‍वर की बात न सुनकर अपनी पत्नि की बात सुनी और उसका अनुसरण किया। तो अब दो पापी थे जो ये जानते थे कि वे पापी थे। जैसा सर्प ने कहा था, उनको भले और बुरे का ज्ञान हो गया था। लेकिन जैसी परमेश्‍वर ने चेतावनी दी थी उनके लिए दण्‍ड आ रहा था, और वे अचानक अपनी नंगाई को छिपाना चाहते थे। पाप करने से पहले उन्‍हें नंगे रहने में कोई शर्म नही थी, लेकिन पाप ने नंगाई को शर्मनाक बना दिया जैसा कि यह आज भी है।

परमेश्‍वर ने उनका सामना किया और उस दुखद घटना के विषय में प्रश्‍न पूछें। तब उसने इस घटना के तीनों भागीदारों से बातें की। उत्‍तर में आदम ने हव्‍वा पर दोष लगाया (और सम्‍भवत: परमेश्‍वर पर क्‍योंकि उसी ने उसको हव्‍वा को दिया), हव्‍वा ने सर्प पर दोष लगाया, और सर्प के पास दोष लगाने के लिए कोई नही था। तीनों को दण्‍ड दिया गया।

दण्‍ड

पाप का परिणाम साफ दिखायी दिया और संसार, जैसा परमेश्‍वर ने बनाया था उससे अचानक, भिन्‍न हो गया। सर्प को कहा गया कि वह अपने पेट के बल चलेगा। हव्‍वा को कहा गया कि वह पीड़ित होकर बालक को जन्‍म देगी और उसकी लालसा उसके पति की ओर होगी। आदम के पाप के कारण भूमि भी कांटे और ऊटकटारे उगाने के लिए श्रापित हुयी। आदम से कहा गया कि वह जीने के लिए मृत्‍यु तक कठिन परिश्रम करेगा और अन्‍त में मिट्टी में मिल जायेगा।

हमें बताया गया कि सर्प को मिला श्राप उसके वंशजों पर भी लागू होगा। हम देख सकते है कि आदम और हव्‍वा को मिलें श्राप भी उनके वंशजों पर लागू हुए।

उद्धार की प्रतिज्ञा

इन श्रापों के बीच में एक आशा है। उत्‍पत्ति 3:15 में, परमेश्‍वर ने हव्‍वा और सर्प से सम्‍बन्धित एक अनोखी प्रतिज्ञा की।

"मैं तेरे (सर्प) और इस स्‍त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्‍पन्‍न करुँगा; वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।" (उत्‍पत्ति 3:15)

मनुष्‍यों और सर्पो के बीच में बैर, यीशु और पाप के बीच के द्वन्‍द का संकेत है। ऐसा लगता है कि यह पद यीशु मसीह के विषय में एक भविष्‍यवाणी है क्‍योंकि यीशु मसीह स्‍त्री (मरियम) का वंश था और उसने पाप (जिसे सर्प दर्शाता है) पर विजय प्राप्‍त की। अपनी मृत्‍यु के द्वारा यीशु ने पाप को कुचल दिया, लेकिन यीशु की मृत्‍यु, "एड़ी को डसने" के समान, अस्‍थायी थी

विचारणीय पद

  1. क्‍या आप बाईबल से यह बात सिद्ध कर सकते है कि परमेश्‍वर ने जो श्राप सर्प, हव्‍वा और आदम को दिये वे उनके वंशजों पर भी लागू होते है?
  2. उत्‍पत्ति 1:29 और उत्‍पत्ति 3:18-19 दोनों यह बताते है कि आदम क्‍या खा सकता था। क्‍या पाप के कारण इसमें कुछ बदलाव हुआ? उत्‍पत्ति 9:3 में लिखा है कि नूह को बाढ़ के बाद क्‍या खाने की अनुमति थी। इनमें क्‍या विभिन्‍नता थी? क्‍या हमें बताया गया है कि क्‍यों?
  3. क्‍या सर्प एक साधारण सांप था? क्‍या यह पाप था?

अन्‍य खोज

  1. सन्‍दर्भ बाईबल से उत्‍पत्ति 2 और 3 अध्‍यायों में दिये गये नये नियम के पदों को खोजिये। क्‍या नये नियम के इन पदों में, उत्‍पत्ति के पदों से कुछ अतिरिक्‍त सूचना दी गयी है?

‘अदन की घटनायें’ (Events in Eden) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman

आप विधान को बदल सकते है – 2 (You Can Change Providence – Part 2)

"उसी को स्‍मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिए सीधा मार्ग निकालेगा।" (नीतिवचन 3:6)

हम जानते है कि हमारे कुछ काम ऐसे है जिनमें हम ईश्‍वर को याद नही रख सकते है। ईश्‍वर को याद रखने का अर्थ यह है कि हम इस तरह से कार्य करें कि उनसे यह दिखाई दें कि हम ईश्‍वर को जानते है। हम जानते है कि जब कोई हमारी संगति में आने में शर्म महसूस करता है तो हम उसके साथ ऐसा व्‍यवहार करते है कि हम उसको नही जानते है। लेकिन ईश्‍वर हमारे लिए कभी भी शर्म की बात नही होनी चाहिए, हमें कभी भी ऐसी परिस्थिति में नही होना चाहिए या ऐसे काम नही करने चाहिए जिनमें हम ईश्‍वर को याद ना रख सकें। हमें अपने जीवन के हर एक कार्य में ईश्‍वर को स्‍वीकार करना चाहिए और उसको याद रखना चाहिए।

वह ऐसा ईश्‍वर नही है कि जिसको हम अपने जीवन के कुछ कार्यो में सम्मिलित रखे और कुछ कार्यो में उसको प्रवेश न करने दें। ईश्‍वर हमारे जीवन के सब कार्यो में सम्मिलित रहता है ऐसा नही कि हमारे हद्वय के किसी एक कोने में बल्कि हमारे सम्‍पूर्ण हद्वय में रहता है। वास्‍तव में, हमारे जीवन के हर एक कार्य उस क्रम में होना चाहिए कि हम अपने हद्वय से ईश्‍वर के मार्गो पर चलने में प्रसन्‍न रहे। लेकिन हमारे मस्तिष्‍क में कुछ बातें बहुत ही भयानक है, ये इस संसार का ऐसा कचरा है जिसको हमने बाहर फेंकने के बजाय अपने मस्तिष्‍क के एक कोने में रख छोड़ा है। यह शर्मनाक है लेकिन तो भी ईश्‍वर हमारे इस मस्तिष्‍क की इच्‍छाओं को पूरा करना चाहता है।

एक बहुत ही लाभदायक अभ्‍यास है, हालांकि यह थोड़ा मुश्किल है, लेकिन तो भी हमें इसे यदाकदा या निर्धारित कुछ महिनों के बाद करना चाहिए, हमें अपने मस्तिष्‍क के हर एक कोने के,अपने जीवन के, विषय में प्रभु यीशु मसीह के साथ बात करनी चाहिए, और उनकी सहायता से अपने मस्तिष्‍क की सारी गंदगी, सारी कडवाहट, वे सारी बातें जो क्षमा के योग्‍य नही है, वे सब बातें जो ईश्‍वर की ओर से नही है, उन सबको साफ करना चाहिए। यह शर्मनाक है लेकिन तो भी एक तजगी देने वाला अनुभव है।

जब हम अपने पापों को ईश्‍वर के सामने अंगीकार कर लेते है और वह हमारे मार्गो का निर्देशन करता है, तो हो सकता है कि वह हमें बहुत ही दुख भरे रास्‍तों से लेकर चले। हम युसूफ के विषय में देखे तो वह याकूब का सबसे अच्‍छा पुत्र था, तो भी उसके साथ क्‍या-क्‍या हुआ, उसको गढ्ढे में फेंका गया, दासत्‍व में बेचा गया और जंजीरों से जकड़ा गया, और एक अमीर घर का प्रिय पुत्र, जंजीरो में जकड़ा हुआ बन्‍धुआई में पहुंच गया। हम जानते है कि यह उसके लिए कितना भयानक था,यद्यपि बाईबल में उसके इस दुखभरे समय के विषय में अधिक नही लिखा है लेकिन तो भी बाद में उत्‍पत्ति के 42 अध्‍याय में लिखा है कि वह बहुत रोया-

"जब उसने हम से गिड़गिडाकर विनती की, तब भी हम ने यह देखकर कि उसका जीवन कैसे संकट में पड़ा है, उसकी न सुनी।" (उत्‍पत्ति 42:21)

यह युसूफ के लिए एक बहुत ही बुरा अनुभव था। लेकिन दासत्‍व में होने के बावजूद भी वह नाराज नही था और न ही हठीला था; यह बहुत ही मुश्किल था, लेकिन ईश्‍वर उसको जिस स्थिति में ले कर आया था उसको उसने स्‍वीकार किया।

उत्‍पत्ति के 39 अध्‍याय में हम पढ़ते है कि मिस्र में जाते हुए वह अकेला नही था, बल्कि ईश्‍वर उसके साथ था, पद 2, जिस स्थिति में ईश्‍वर उसको लेकर आया था उसको स्‍वीकार करते हुए वह कठिन परिश्रम करता है, वह एक वफादार सेवक है, सब कुछ ठीक हो जाता है और वह घर आशीषित होता है। अचानक सबकुछ अन्‍धकारमय हो जाता है। ईश्‍वर और अपने मालिक के प्रति अपनी वफादारी के कारण वह जेल में पहुंच जाता है, क्‍योंकि वह अपने मालिक की पत्नि के साथ सोने से मना कर देता है। उसने अपने मार्गो को ईश्‍वर के प्रति समर्पित करने के लिए पाप के इस आनन्‍द को त्‍याग दिया। इस कार्य में भी उसने ईश्‍वर को याद रखा और इसके लिए उसको जेल में डाल दिया गया। यही विधान है! यदि हम ईश्‍वर के मार्गो को चुन लेते है तो यही वह चीज है जिसके लिए हमें तैयार रहना है।

ईश्‍वर ने युसूफ को मिस्र में बेड़िया और कालकोठरी दी। और यह सब इसलिए हुआ क्‍योंकि उसने ईश्‍वर के मार्गो को चुना। लेकिन मिस्र की जेल की उस कालकोठरी (जो लगता है कि पोतीपर के घर से लगी हुयी थी – तुलना करें उत्‍पत्ति 39:1 और 40:3) के अन्‍धकार में भी ईश्‍वर युसूफ के साथ था (39:2)। ईश्‍वर उस हर एक जगह होता है जहां उसके लोग होते है। इसलिए जहां कही भी हम है, स्‍कूल हो, दुकान हो, फैक्‍ट्री हो, जेल हो, सड़क पर नाराज ड्राईवर की टैक्‍सी में हो, या घर में नाराज पत्नि का सामना कर रहे हो, चाहे हम कही भी हो और चाहे किसी भी परिस्थिति में हो, ईश्‍वर वहां रहता है, भजन संहिता 125:2 बताता है कि, "ईश्‍वर अपने लोगों के चारों ओर रहता है" वह हमारे जीवन के हर एक पहलू में है। यह वास्‍तव में बहुत ही आश्‍चर्यजनक है लेकिन साथ ही हमें एक बहुत ही बड़ी जिम्‍मेदारी भी देता है।

भजन संहिता 31 युसूफ की परिस्थिति का बहुत ही अच्‍छी तरह से वर्णन करता है:

"मैं मृतक के समान लोगों के मन से बिसर गया; मैं टूटे बर्तन के समान हो गया हूँ। मैने बहुतों के मुँह से अपनी निन्‍दा सुनी, चारों और भय ही भय है! जब उन्‍होंने मेरे विरूद्ध आपस में सम्‍मति की तब मेरे प्राण लेने की युक्ति की। परन्‍तु हे यहोवा, मैंने तो तुझी पर भरोसा रखा है, मैंने कहा, 'तू मेरा परमेश्‍वर है। मेरे दिन तेरे हाथ में है; तू मुझे मेरे शत्रुओं और मेरे सताने वालों के हाथ से छुड़ा। अपने दास पर अपने मुँह का प्रकाश चमका; अपनी करूणा से मेरा उद्धार कर।'" (भजन संहिता 31:12-16)

ईश्‍वर की दया युसूफ पर थी, लेकिन युसूफ चाहता था कि ये दुख अति शीघ्र उससे दूर हो जाये – उसने प्रयास किया कि पकानेवाला उसके लिए फिरौन से बात करें – लेकिन मनुष्‍य के द्वारा वह भूला दिया गया – लेकिन ईश्‍वर उसे नही भूला। लेकिन ईश्‍वर इसी तरीके से यह काम करना चाहता था। केवल 2 वर्ष के बाद ही ईश्‍वर ने उस पकाने वाले को युसूफ के विषय में याद दिलाया और युसूफ को जेल से बाहर लाया गया।

ईश्‍वर ने अपने तरीके से उसको जेल से बाहर निकाला। उसकी उस परिस्थिति को देखिये जब अन्‍त में ईश्‍वर ने उसकी उन्‍नति की और उसकी स्थिति को बदला।

"तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा और वह झटपट बन्‍दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर और वस्‍त्र बदलकर फिरौन के सामने आया।" (उत्‍‍पत्ति 41:14)

राजा ने युसूफ को जेल से बाहर बुलाया और उसने अपने बाल काटें और कपड़े बदले ओर फिरौन के पास आया। यह बिल्‍कुल हमारी स्‍थिति समान है कि जैसे राजा ने हमें पाप और मृत्‍यु की जेल से बाहर बुलाया है। हमारे नाशवान गन्‍दे चिथड़े उतार दिये गये और हमें उसकी धार्मिकता के नये कपड़े दिये गये ताकि हम राजा के पास आ सके। विधान के मार्ग का अन्‍त यही है प्रियों कि हम राजा के पास आ सके। ईश्‍वर का प्रबन्‍ध हमारे उद्धार का प्रबन्‍ध है।

जब हम अपने आप को ईश्‍वर के प्रति समर्पित करते है तो हो सकता है कि हमें ऐसी बहुत सी चीजों का इन्‍कार करना पड़ें, जो हमें इस जीवन में महत्‍वपूर्ण लगती है। यदि हम अपने आप को ईश्‍वर के प्रति समर्पित कर देते है और अपने आप को ईश्‍वर की देखभाल में ले जाते है तो ईश्‍वर हमें अपने राज्‍य में लेकर जायेगा। वह विश्‍वास के योग्‍य है और उसने हमसे प्रतिज्ञा की है और वह ऐसा ही करेगा। हम प्राय: निराश हो जाते है और जब ऐसा होता है तो भजन संहिता 73 में भजनकार की जो स्थिति है वही स्थिति हमारी होती है। हम अपने आस पास ऐसे लोगों को देखते है जो ईश्‍वर को नही खोजते है तो भी वे हमारे लाभ की दृष्टि से बहुत ही अच्‍छी उन्‍नति करते है और ऐसा लगता है कि उनको वे समस्‍याऐं नही है जो हमें है।

"मेरे डग तो उखडना चाहते थे, मेरे डग तो फिसलने ही पर थे।" (भजन संहिता 73:2)

यहां भजनकार ईष्‍या के कारण परमेश्‍वर के राज्‍य के मार्ग से लगभग फिसल ही चुका था।

"क्‍योंकि जब मैं दुष्‍टों का कुशल देखता था, तब उन घमण्डियों के विषय डाह करता था ... उनको दूसरे मनुष्‍यों के समान कष्‍ट नहीं होता; और अन्‍य मनुष्‍यों के समान उन पर विपत्ति नही पड़ती।" (भजन संहिता 73:5)

'उन लोगों को कोई समस्‍या नही है लेकिन मैं सही काम करने का प्रयास कर रहा हूँ और मेरे सामने इतनी समस्‍याऐं है। यह तो अच्‍छा परमेश्‍वर नही है!'

लेकिन पद 17 में इन बातों को जब वह ईश्‍वर के लाभ की दृष्टि से देखता है तो वह देखता है कि उन लोगों के पास कोई आशा नही है और वे केवल मिट्टी है – "मनुष्‍य चाहे प्रतिष्ठित भी हों, परन्‍तु यदि वे समझ नहीं रखते तो वे पशुओं के समान हैं, जो मर मिटते हैं।" (भजन 49:20) यही अन्‍त है!

"लेकिन धर्मी लोगों के साथ ऐसा नही होता है" – यही दृष्टिकोण हमें रखना है – हमें हर बात को परमेश्‍वर के दृष्टिकोण से देखने की आवश्‍यकता है- अन्‍यथा हम हतोत्‍साहित हो जायेंगे। हमें निकट दृष्टि दोष वाला नही बनना है कि हमें केवल उन चीजों को ही नही देखना चाहिए जो हमारे निकट है क्‍योंकि निकट की चीजें हमेशा उन चीजों से बड़ी दिखाई देती है जो हमसे दूर है। अपने हाथों से अपनी आखों को बंद करो तो सारी दुनिया अंधेरी हो जाती है। वर्तमान की चिन्‍ताऐं, परेशानी या आने वाली कोई बड़ी घटना, ये सब इतनी बड़ी लगती है कि ये हमारी सम्‍पूर्ण सोच और सारी संवेदनाओं को नियन्त्रित करती है। तो आओ हम एक कदम पीछे हटे और उसी ईश्‍वरीय दृष्टिकोण को ग्रहण करें और आत्मिक बातों में अदूरदर्शी ना बनें।

लेकिन आत्मिक रूप से दूर दृष्टि दोष से ग्रसित होने की भी सम्‍भावना है – कि हम भविष्‍य में आने वाले परमेश्‍वर के राज्‍य पर केवल अपना ध्‍यान केन्द्रित करें और अपने आस पास की चीजों को नजरअन्‍दाज कर दें। हम जीवन में लोगों को, उनकी आवश्‍यकताओं को और अपने परिवार की आवश्‍यकताओं को नजरअन्‍दाज नही कर सकते है। अत: हमें एक ऐसी अच्‍छी आत्मिक नजर की आवश्‍यकता है कि हम दूर उन चीजों को जो हमें मिल सकती है, देखने के साथ साथ अपने आस पास की आवश्‍यकताओं को भी साफ साफ देखने के योग्‍य हो।

यह दृष्टिकोण हमारे प्रार्थना के जीवन के लिए भी महत्‍वपूर्ण है। परमेश्‍वर का उद्देश्‍य हमारी व्‍यक्तिगत इच्‍छाओं से अधिक महत्‍वपूर्ण होना चाहिए। ऐसा भी हो सकता है कि परमेश्‍वर की ऐसी इच्‍छा ना हो कि हम चुस्‍त दुरूस्‍त और स्‍वस्‍थ्‍य रहे – लेकिन तो भी परमेश्‍वर की यह इच्‍छा अवश्‍य है कि वह हमें अपने राज्‍य में प्रवेश दें। पौलुस बीमार था लेकिन तो भी उसने परमेश्‍वर से अपनी बीमारी को ठीक करने की प्रार्थनाओं की अति नही की। केवल तीन बार उसने इस विषय में परमेश्‍वर से प्रार्थना की (2 कुरिन्थियों 12:8) और उसके बाद छोड़ दी। एक बार जब हम कोई बात ईश्‍वर को समर्पित कर देते है तो उसके बाद हम इसे छोड़ सकते है और उसके बाद उसकी योजना पर भरोसा करके उन बातों पर चल सकते है जो उसके उद्देश्‍य के लिए महत्‍वपूर्ण है। ईश्‍वर से प्रार्थना करें और उसके बाद उसकी असीम शान्ति को अपने हद्वय में रखें (फिलिप्पियों 4:8) जब हमारी प्रार्थनाओं को वह जान लेता है तो हम उनको भूल सकते है। यह प्रार्थना उसके काम करने की सूचि में सम्मिलित हो जाती है और उसके बाद हम यीशु के समान "पिता के काम" में लग सकते है।

यह हमारे लिए महत्‍वपूर्ण है कि हम उसके मार्गो के अनुसार ही प्रार्थना करें। तो क्‍या हम चाहते है कि ईश्‍वर हमारे जीवन के मार्गो को चुने?

"मनुष्‍य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है।" (भजन संहिता 37:23)

परमेश्‍वर हमारे लिए मार्ग तैयार करता है – तो क्‍या हम अपने मार्गो को छोड़कर उसके मार्गो पर भरोसा करना चाहते है?

इस्राएल और यहूदा के राजाओं को दो भागों में बाँटा गया है एक तो वे जो ईश्‍वर के मार्गो पर चलें और दूसरे वे जो अपने मार्गो पर चलें। वे जो अपने मार्गो पर चलें उन पर ईश्‍वर का प्रकाश नही था अर्थात ईश्‍वर का संरक्षण उनके साथ नही था। इस विषय में हम 2 इतिहास में और रहूबियाम के जीवन से देख सकते है। 11 अध्‍याय के 16 पद में हम उन लोगों के विषय में पढ़ते है जिन्‍होंने अपना मन येरूशलेम आने के लिए बनाया। उन्‍होंने अपना हद्वय परमेश्‍वर को खोजने और उसके मार्गो पर चलने के लिए तैयार किया। पद 17 में हम पढ़ते है कि इन लोगों ने यहूदा के लोगों को शक्तिशाली बनाया। यहूदा राज्‍य की शक्ति वे लोग थे जिन्‍होंने अपना हद्वय परमेश्‍वर को खोजने के लिए तैयार किया।

लेकिन:

"जब रहूबियाम का राज्‍य दृढ़ हो गया और वह आप स्थिर हो गया, तब उसने और उसके साथ सारे इस्राएल ने यहोवा की व्‍य्‍वस्‍था को त्‍याग दिया।" (2 इतिहास 12:1)

यदि हम ऐसा करते है तो हम परमेश्‍वर की ओर से अपना मुँह मोड़ लेते है और अपने आप को ईश्‍वर के सरंक्षण की परिधि से बाहर कर लेते है। यह हमारा अपना चुनाव है और हमने स्‍वंय अपने आप को बाहर किया है। हम यह निर्णय ले सकते है। रहूबियाम ने ऐसा किया।

"उसने वह कार्य किया जो बुरा है, अर्थात उसने अपने मन को यहोवा की खोज में न लगाया।" (2 इतिहास 12:14)

इस विषय में हमें सावधान रहने की आवश्‍यकता है। यदि हम ईश्‍वर पर भरोसा रखते है तो 13 अध्‍याय के 12 पद की बात हमारे लिए लागू होती है। पद 5 में जिन लोगों से वाचा बांधी गयी उनके समान ही ईश्‍वर हमारे साथ होगा।

"... उन्‍होंने यहोवा की दोहाई दी ... तब परमेश्‍वर ने ... यारोबाम और सारे इस्राएलियों को मारा।" (2 इतिहास 13:14-15)

परमेश्‍वर उनके साथ था, और परमेश्‍वर ने मारा (पद 16), और 'परमेश्‍वर ने बचाया' (पद 18)।

2 इतिहास 15:2 के शब्‍दों में हम इसका सारांश देखते है।

"जब तक तुम यहोवा के संग रहोगे तब तक वह तुम्‍हारे संग रहेगा; और यदि तुम उसकी खोज में लगे रहो, तब तो वह तुम से मिला करेगा, परन्‍तु यदि तुम उसको त्‍याग दोगे तो वह भी तुम को त्‍याग देगा।" (2 इतिहास 15:2)

यह सम्‍पूर्ण रूप से हमारा चुनाव है। ईश्‍वर अपनी भूमिका निभाएगा – वह विश्‍वासयोग्‍य है – ईश्‍वर हमेशा आपके जीवन में अच्‍छा करेगा। रोमियों 8:28 हमें बताता है कि "सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्‍पन्‍न करती हैं।" वास्‍तविक भलाई केवल हमारा उद्धार है। इससे अधिक और कुछ भी महत्‍वपूर्ण नही है। यदि हम ईश्‍वर से प्रेम करते है तो सब बातें मिलकर हमारे उद्धार तक कार्य करेंगी।

"परन्‍तु जब जब वे संकट में पड़कर इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा की ओर फिरे और उसको ढूँढा, तब तब वह उनको मिला।" (2 इतिहास 15:4)

आगे पद 12 में हम पढ़ते है:

"उन्‍होंने वाचा बांधी कि हम अपने पूरे मन और सारे जीव से अपने पूर्वजों के परमेश्‍वर यहोवा की खोज करेंगे।" (2 इतिहास 15:12)

यदि हमने सुसमाचार पर विश्‍वास कर लिया है, अपने पापों को मान लिया है और बपतिस्‍मा ले लिया है, तो हमने पद 15 में वर्णित बातों को कर लिया है। हम आनन्‍द कर सकते है, क्‍योंकि हमने अपने हद्वय से उसको खोजने की वाचा बांध ली है। यह कुछ नहीं या सब कुछ पाने की सम्‍पूर्ण इच्‍छा है और इसलिए हमने उसे पा लिया है, और वह धार्मिकता के मार्ग पर हमारी अगुआई कर रहा है। तो इसलिए हम अपनी इस यात्रा के अन्‍त में वैसे ही कह सकते है जैसे अब्राहम के दास ने कहा, जब ईश्‍वर ने उसकी यात्रा में उसकी अगुवाई की, "धन्‍य है परमेश्‍वर क्‍योंकि उसने मुझे ठीक मार्ग से पहुँचाया" (उत्‍पत्ति 24:48) और जैसे दाऊद ने कहा; "ईश्‍वर की गति खरी है" (2 शमूएल 22:31)।

‘आप विधान को बदल सकते है – 2’ (You Can Change Providence – 2) is from ‘Caution! God at work’, by Tim Galbraith

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