Dipak Issue 24 (August 2015)

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105

सही समय (The Right Time)

यदि आप किसी कार्य को करने के लिए सही समय का इन्‍तजार करते रहेंगे, तो हो सकता है कि आप उस कार्य को शुरू ही ना कर सके। इसलिए जो आप करना चाहते है वह काम अभी शुरू करें। आप के पास जो कुछ भी है और आप जहाँ कही भी है उसी स्थिति में आप अभी शुरूआत करें। बहुत से लोग है जो केवल इसलिए असफल हो गये है क्‍योंकि वे हमेशा किसी ऐसे चमत्‍कारिक समय का इन्‍तजार करते रहे जब वे किसी कार्य को शुरू करेंगे।

सुलैमान हमें बताता है कि, “जो वायु को ताकता रहेगा वह बीज बोने न पाएगा, और जो बादलों को देखता रहेगा वह लवने न पाएगा।” (सभोपदेशक 11:4)

बहुत से लोग किसी ऐसे समय की प्रतिक्षा करते रहते है जो कभी आयेगा ही नही। यह बिल्‍कुल उसी तरह है जैसे कि कोई अपने किसी काम की शुरूआत करने के लिए उस पानी के जहाज के आने की प्रतिक्षा करता रहे जो जहाज कभी गया ही नही था। यदि हम नही बोते है तो हम नही काटते है, और यदि हमने कोई जहाज भेजा ही नही है तो वापिस आने के लिए कोई जहाज नही होगा जिसकी हम प्रतिक्षा करें।

इसी अध्‍याय में सुलैमान हमसे कहता है कि मौसम के कारण अपनी बुआई में विलम्‍ब न कर, और वह बताता है कि, “अपनी रोटी जल के ऊपर डाल दें, क्‍योंकि बहुत दिन के बाद तू उसे फिर पायेंगा।” (सभोपदेशक 11:1) इसलिए कोई रोटी यदि नही डाली गयी तो रोटी वापिस भी नही आयेगी।

पौलुस बताता है कि, “वचन का प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह” (2 तिमुथियुस 4:2) इसका मतलब है कि हमारी जो उद्धार की आशा है उसके विषय में दूसरों को बताने के लिए सब समय सही है। बहुत बार हमने दूसरों को अपनी आशा के विषय में बताने के अवसर खो दिये है। बहुत बार हमने दूसरों को, आने वाले परमेश्‍वर के राज्‍य का सुसमाचार बताने के अवसर, खो दिये है। जब पीछे देखते है तो हमें पता चलता है कि दूसरों को अपनी आशा बताने का सुनहरा अवसर निकल चुका है।

फिर से पौलुस निर्देश देता है कि, “देखों अभी वह प्रसन्‍नता का समय है, देखो अभी वह उद्धार का दिन है” (2 कुरिन्थियों 6:2) हम जहाँ कही भी जाते है और जिससे भी मिलते है हमें अपनी आशा के विषय में बताने की इच्‍छा होनी चाहिए। क्‍या वे सब जिन्‍हें आप जानते है, वे आपके विश्‍वास के विषय में जानते है? यदि नही तो क्‍यों नही? क्‍योंकि हम अपने प्रभु के विषय में लज्जित है। आशा है कि ऐसा ना हो, क्‍योंकि यदि हम अब प्रभु से लज्जित है तो वह हमें बताता है कि आने के बाद वह हमसे लज्जित होगा।

हम लोगों को इस बात के लिए मजबूर नही कर सकते है कि वे हमें सुनें, लेकिन यदि हमारे अन्‍दर परमेश्‍वर के वचन को बताने की एक आग है तो हम अपनी आशा को उनको बताने से अपने आप को नही रोक सकते है। एक बार यिर्मयाह ने चुप रहने के विषय में सोचा। वह अपनी भावनाओं को कुछ इस तरह से व्‍यक्‍त करता है, “यदि मैं कहूँ, मैं उसकी चर्चा न करूंगा न उसके नाम से बोलूँगा” तो मेरे हद्वय की ऐसी दशा होगी मानो मेरी हड्डियों में धधकती हुयी आग हो, और मैं अपने को रोकते रोकते थक गया पर मुझ से रहा नहीं जाता।” (यिर्मयाह 20:9)

परमेश्‍वर के वचन की ठीक ऐसी ही आग हमारे अन्‍दर होनी चाहिये। यहेजकेल हमें बताता है कि, “यदि हम दूसरों को चेतावनी देते है और वे नही सुनते तो यह उनकी समस्‍या है, लेकिन यदि हम उनको नही चेताते तो यह हमारी समस्‍या है।” (यहेजकेल 33:9)

हमें शीघ्र आने वाले परमेश्‍वर के राज्‍य का सुसमाचार प्रत्‍येक व्‍यक्ति को बताने की जरूरत है। कभी-कभी कम रूचि रखने वाला व्‍यक्ति सुनेगा और आप इन्‍तजार करेंगे कि वह कब रूचि दिखायेगा। लेकिन कोई बात नही, समय और असमय प्रचार करते रहो। वह समय आ रहा है जब यीशु मसीह के आने का प्रचार करने में बहुत देर हो जायेगी।

मसीह के स्‍वर्गारोहण के बाद स्‍वर्गदूतों ने प्रेरितों को बताया कि, “जाओं और ... इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओ।” (प्रेरितों के काम 5:20) पतरस ने आज्ञा का पालन किया और बंदी बनाया गया। जब उसको धमकाया गया, “क्‍या हमने तुम्‍हें चिताकर आज्ञा न दी थी कि तुम इस नाम से उपदेश ना करना?” तब उसका उत्‍तर था कि, “मनुष्‍यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्तव्‍य है।” (प्रेरितों के काम 5:28,29)

आज भी मनुष्‍यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा मानना हमारा कर्तव्‍य है और जहाँ भी हम जाते है हमें अपनी आशा के बारे में लोगों को बताना चाहिए। उचित समय की प्रतिक्षा ना करें। एक भजन प्राय: गाया जाता है, उसके बोल कुछ इस तरह से है कि, “ये जीवन प्रभु की सेवा करने, उसकी इच्‍छा पूरी करना और उसके वचन को सीखने के लिए है, दिन बहुत जल्‍दी से जा रहे है, मसीह आयेगा और अपने सन्‍तों के साथ विजय घोष करेगा।” दूसरों के साथ बाटनें के विषय में, “मनुष्‍य कितना कमजोर है वह मरता है और उसकी सभी आशाऐं और डर व्‍यर्थ है” प्रोत्‍साहन के गीत गाये और इन शब्‍दों के साथ जीये कि, “मैं जीवन की मिट जाने वाली बातों को त्‍यागता हूं, और मेरी आशा केवल तूझी में है।”

‘सही समय’ (The Right Time) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd

अनुग्रह (Grace)

हमारा समाज इस बात पर जोर देता है कि हमें अपना पारिश्रमिक कमाना चाहिए। हम खेल में उपलब्धियां प्राप्‍त करने के लिए प्रशिक्षण लेते है, वेतन पाने के लिए काम करते है, शिक्षित होने के लिए अध्‍ययन करते है। इसी तुलना में बाईबल बताती है कि हम उद्धार को नही कमा सकते है, फिर चाहे हमने कितने ही अच्‍छे काम क्‍यों न किये हो। इसके लिए हम सम्‍पूर्ण रूप से ईश्‍वर के अनुग्रह पर निर्भर है।

मुख्‍य पद: लूका 15:11-32

खोये हुए पुत्र का दृष्‍टान्‍त हमें ईश्‍वर के अनुग्रह और करूणा के विषय में सिखाता है। इस दृष्‍टान्‍त में हम देखते है कि अपने पुत्र के गलत कार्यो के बावजूद भी, पिता ने उस पर करूणा दिखायी। ठीक इसी प्रकार यदि हम अपने हद्वय को परिवर्तित कर लेते है तो ईश्‍वर हम पर करूणा करता है, और हम अपने पापों के कारण जैसे व्‍यवहार के योग्‍य है हमसे वैसा व्‍यवहार नही करता है।

  1. यह खोया हुआ पुत्र किस तरह के व्‍यवहार के योग्‍य था?
  2. पिता ने उस पुत्र को करूणा क्‍यों दिखायी?
  3. जब छोटे पुत्र के साथ करूणा का व्‍यवहार किया गया तो बडे बेटे को कैसा महसूस हुआ?

अनुग्रह का अर्थ है एक ऐसा समर्थन जिस के योग्‍य हम नही है। ईश्‍वर हमारे पापों को क्षमा करने के द्वारा, हमें अपने बच्‍चों के रूप में ग्रहण करने के द्वारा और जिस व्‍यवहार के योग्‍य हम है हमसे वैसा व्‍यवहार न करने के द्वारा अपनी करूणा प्रकट करता है। जैसे कि दाऊद भी लिखता है कि,

“उसने हमारे पापों के अनुसार हम से व्‍यवहार नहीं किया, और न हमारे अधर्म के कामों के अनुसार हम को बदला दिया है। जैसे आकाश पृथ्‍वी के ऊपर ऊंचा है, वैसे ही उसकी करूणा उसके डरवैयों के ऊपर प्रबल है।” (भजन संहिता 103:10-11)

हमें ईश्‍वर के अनुग्रह की आवश्‍यकता है

ईश्‍वर के अनुग्रह को समझने के लिए हमें सबसे पहले इस बात को समझना जरूरी है कि हमारे पाप हमें ईश्‍वर से अलग करते है। यशायाह लिखता है कि,

“सुनो यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके, न वह ऐसा बहिरा हो गया है कि सुन न सके; परन्‍तु तुम्‍हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्‍हारे परमेश्‍वर से अलग कर दिया है, और तुम्‍हारे पापों के कारण उसका मुंह तुम से ऐसा छिपा है कि वह नही सुनता।” (यशायाह 59:1-2)

हमें इस बात को अच्‍छी तरह से समझना बहुत ही महत्‍वूपर्ण है कि ईश्‍वर पाप से कितनी घृणा करता है, और हमारे पापों का उसके साथ हमारे सम्‍बन्‍ध पर कितना गम्‍भीर प्रभाव पड़ता है। यद्यपि हम अच्‍छे कार्य करने का प्रयास करते है लेकिन तो भी यह बात हम पर लागू होती है, क्‍योंकि इसके बावजूद भी कुछ गलतियों के कारण हम दोषी है। दाऊद ने कहा कि,

“क्‍योंकि तू ऐसा ईश्‍वर नहीं जो दुष्‍टता से प्रसन्‍न हो; बुराई तेरे साथ नही रह सकती। घमंडी तेरे सम्‍मुख खड़े होने न पाएंगे; तुझे सब अनर्थकारियों से घृणा है।” (भजन संहिता 5:4-5)

यद्यपि हम पापी होने के कारण ईश्‍वर से अलग है लेकिन तो भी एक तरीका है जिसके द्वारा हम ईश्‍वर से मिलाप कर सकते है। हमारे पापों को ढापने के लिए या धोने के लिए ईश्‍वर ने एक तरीका दिया है ताकि हम उससे फिर से मिल सके। ऐसा कोई तरीका नही है जिसके द्वारा हम अपने आप अपने पापों को ढाप सके। ईश्‍वर ने यह निर्धारित किया कि पापों की क्षमा केवल बलिदान और मनफिराव के द्वारा हो सकती है। पुराने नियम के समय में पशुओं का बलिदान किया जाता था, लेकिन वह भी पर्याप्‍त नही था। जब प्रभु यीशु मसीह आये तो उन्‍होंने अपना जीवन ईश्‍वर की सम्‍पूर्ण आज्ञाकारिता में जिया और क्रूस की मृत्‍यु को सहा। प्रभु यीशु मसीह हमारे पापों के लिए चढाये गये एक सिद्ध बलिदान थे।

यह ईश्‍वर का अनुग्रह है कि उसने हमें हमारे पापों से बचाने के लिए एक मार्ग दिया। प्रभु यीशु मसीह के बलिदान के द्वारा हमें अपने पापों को ढापने का एक तरीका मिला ताकि हम ईश्‍वर के सम्‍मुख पापरहित हो सके। यद्यपि हम अपने पापों के द्वारा गन्‍दे है लेकिन तो भी ईश्‍वर के अनुग्रह के द्वारा हमारे पाप क्षमा हो सकते है और साफ हो सकते है। ईश्‍वर कहता है कि, “तुम्‍हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम की नाई उजले हो जाएंगे”, क्‍या तुलना है!

उसके अनुग्रह के द्वारा धर्मी ठहरना

जिनके पाप यीशु मसीह के बलिदान के द्वारा ढापे जाते है फिर ईश्‍वर उनके पापों के अनुसार उनको बदला नही देता बल्कि वे धर्मी गिने जाते है। रोमियों में पौलुस बताता है कि,

“इब्राहिम ने परमेश्‍वर पर विश्‍वास किया, और यह उसके लिए धार्मिकता गिना गया।” (रोमियों 4:3)

इब्राहिम अपने अच्‍छे कामों के द्वारा नही बल्कि अपने विश्‍वास के द्वारा ईश्‍वर की दृष्टि में धर्मी गिना गया। ठीक इसी प्रकार हम भी अपने अच्‍छे कामों के द्वारा नही बल्कि विश्‍वास के द्वारा ईश्‍वर की दृष्टि में धर्मी गिने जाते है।

“परन्‍तु जो काम नही करता वरन भक्तिहीन के धर्मी ठहराने वाले पर विश्‍वास करता है, उसका विश्‍वास उसके लिए धार्मिकता गिना जाता है।” (रोमियों 4:5)
अत: हम केवल ईश्‍वर के अनुग्रह के द्वारा ही धर्मी ठहर सकते है।
“परमेश्‍वर की वह धार्मिकता, जो यीशु मसीह पर विश्‍वास करने से, सब विश्‍वास करने वालो के लिये है; क्‍योंकि कुछ भेद नही। इसलिए कि सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित है परन्‍तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराये जाते है।” (रोमियों 3:22-24)

तो चाहे हमारे पाप कितने ही भयंकर क्‍यों न हो, वे ईश्‍वर के अनुग्रह के द्वारा क्षमा किया जाते है और ढक दिये जाते है, लेकिन ऐसा तभी होगा यदि हम सम्‍पूर्ण सच्‍चाई से अपना मन फिराते है। जब हम ईश्‍वर के अनुग्रह को स्‍वीकार करते है तो हमें क्षमा मिलती है ताकि हम अपने पापों को पीछे छोड़ सके। फिर हम अपने पापों के बोझ को महसूस नही करते है क्‍योंकि ईश्‍वर के द्वारा हमारे पाप क्षमा हो जाते है।

कुछ सम्‍बन्धित पद

अनुग्रह के द्वारा उद्धार: प्रेरितों के काम 15:11; रोमियों 3:22-24; 4:1-5; 5:1-2, 15-21; 11: 5-6; इफिसियों 1:7; 2:5-9; तीतुस 2:11; 3:7
ईश्‍वर का भरपूर अनुग्रह: भजन संहिता 103:10-11; 2 कुरिन्थियों 9:8, 14; 1 तिमुथियुस 1:14; इब्रानियों 4:16
हमारे जीवन में उसका अनुग्रह: मत्‍ती 18:21-35; इफिसियों 4:29; कु‍लुस्सियों 4:6; इब्रानियों 13:9; याकूब 4:6; 2 पतरस 3:18

कामों पर नही बल्कि अनुग्रह पर निर्भर

हमें हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए कि हमारे अच्‍छे काम या हमारा आत्मिक ज्ञान हमें नही बचायेगा। ऐसा भी नही है कि हम अपने जीवन में अच्‍छे काम करके अपने आप को ईश्‍वर के राज्‍य में स्‍थान प्राप्‍त करने के योग्‍य बना सकते है। ऐसा भी नही है कि हम अपने बुरे कामों की क्षतिपूर्ति अच्‍छे कामों को करके कर सकते है।

ईश्‍वर चाहता है कि हम अपने पापों को अंगीकार करके उसके अनुग्रह को प्राप्‍त करें। अपने कार्यो के द्वारा उद्धार प्राप्‍त करने का प्रयास करने के बजाय हमारे कार्य ईश्‍वर की ओर से मिलने वाले अनुग्रह की कृतज्ञता से प्रेरित होने चाहिए।

जब हम ये जान लेते है कि हमारे अच्‍छे काम हमें नही बचा सकते है तो हो सकता कि हम ऐसे प्रलोभन में पड़ जाये कि हम अच्‍छे काम करना छोड़ दे और जो भी हमें पसन्‍द है वही करने लगे। अधिक अनुग्रह प्राप्‍त करने के लिए अधिक पाप करने के इस प्रलोभन के विषय में प्रेरित पौलुस ने प्रथम श‍ताब्‍दी के विश्‍वासियों को चेतावनी दी। उसने पूछा,

“सो हम क्‍या कहे? क्‍या हम पाप करते रहें, कि अनुग्रह बहुत हो? कदापि नहीं!” (रोमियों 6:1-2)

ईश्‍वर अपना अनुग्रह हमें ऐसे ही नही देगा।

उसके अनुग्रह के लिए कृतज्ञता

कम से कम तीन बातों के द्वारा हम ईश्‍वर के अनुग्रह के बदले कृतज्ञता प्रकट कर सकते है:

  1. ईश्‍वर ने जो हमें उद्वार का एक उपहार दिया है उसके लिए हमें प्रार्थना में उसको धन्‍यवाद देना चाहिए। (कुलुस्सियों 1:10-12)
  2. हमें अपने मन में अनुग्रह के साथ ईश्‍वर के लिए भजन और स्‍तुतिगान और आत्मिक गीत गाने चाहिए। (कुलुस्सियों 3:16)
  3. हमें दूसरों के प्रति अनुग्रह प्रकट करना चाहिए। “निर्दयी सेवक” के दृष्‍टान्‍त में हम उन लोगों के विषय में ईश्‍वर के व्‍यवहार को देखते है जिन पर अनुग्रह हुआ परन्‍तु उन्‍होंने आपस में अनुग्रह नही दिखाया। (मत्‍ती 18:23-35)

हमें ईश्‍वर का अनुकरण करने के निर्देश दिये गये है। इसलिए हमें दूसरे के प्रति अनुग्रह दिखाने और अनुग्रह में बढने की आवश्‍यकता है। (इफिसियों 5:1) यह हम अपनी बात चीत में, अपने चरित्र में, दूसरों को क्षमा करने में और अपने जीवन के दूसरे अन्‍य कार्यो में प्रकट कर सकते है।

सांराश

ईश्‍वर का अनुग्रह हमें नि:शुल्‍क दिया गया है। हममें से प्रत्‍येक को यह निर्णय लेना चाहिये कि हम इस उपहार को स्‍वीकार करना चाहते है या अस्‍वीकार करना चाहते है। ईश्‍वर के उपहार को स्‍वीकार करने में निम्‍न बातें निहित है:

  1. विश्‍वास करना कि ईश्‍वर विद्यमान है।
  2. यह मानना कि हम पापी है।
  3. अपने पापों से फिरना।
  4. यह विश्वास करना कि हम यीशु मसीह के द्वारा बच सकते है।
  5. बपतिस्‍मा लेना।
  6. अपने पापों के लिए क्षमा प्राप्‍त करना।
  7. ईश्‍वर पर केन्द्रित एक नया जीवन जीना।

क्‍योंकि विश्‍वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्‍हारा उद्धार हुआ है; और यह तुम्‍हारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्‍वर का दान है। (इफिसियों 2:8)

विचारणीय पद

  1. 2 पतरस 3:18 को पढ़ें – हम अनुग्रह में कैसे बढ़ सकते है?
  2. इब्रानियों 4:15-16 को पढ़े – हम आत्‍मविश्‍वास के साथ अनुग्रह के सिंहासन तक कैसे पहुंच सकते है?
  3. इब्रानियों 10:26-31 – जानबूझकर किया गया पाप क्‍या है जिससे अनुग्रह की आत्‍मा का अपमान होता है?

अन्‍य खोज

  1. रोमियों 12:6-8 को पढ़े – ईश्‍वर के अनुग्रह का एक भाग यह है कि उसमें हमें विभिन्‍न योग्‍यतायें दी है। ईश्‍वर ने आपको क्‍या उपहार दिया है?
  2. यूहन्‍ना 1:14 को पढ़े – यीशु के अनुग्रह और सच्‍चाई से भरे होने के विषय में वर्णन है।
    1. इसका अर्थ क्‍या है?
    2. क्‍या ऐसा कोई उदाहरण है जो यह दिखाता है कि वह अनुग्रह से पूर्ण था?
    3. अनुग्रह, सच्‍चाई से किस प्रकार सम्बिन्धित है?
    4. अन्‍य किस को अनुग्रह से पूर्ण बताया गया है? क्‍यों?

पुराने नियम से कुछ ऐसे उदाहरणों को लिखिये जो ईश्‍वर के भरपूर अनुग्रह और करूणा को दिखाते है।

‘अनुग्रह’ (Grace) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman

ईश्‍वर कार्य कर रहा है! (God at Work! – Part 2)

ईश्‍वर के कार्य सिद्ध है, घटिया या कोई कमजोर ढांचा जोड़ने वाले नही है। यदि ईश्‍वर हमारे लिये नया है, हमारे विचारों में नया है – हमारे कार्यो में नया है, हमारे अनुभवों के लिए नया है, तो वह हमें सिद्धता की ओर ले जायेगा।

रोमियों 14:20 में पौलुस बताता है कि, मसीह में भाई बहन “ईश्‍वर के कार्य” है। वास्‍तव में हम ईश्‍वर के कार्य है। हम ऐसे पुरूष या स्‍त्री नही है जो स्‍वंय बन गये। हम उसके हाथों की कारीगरी है। (इफिसियों 2:10) तो क्‍या हम इसके लिए तैयार है? तो यदि हम उन बदलावों की सहमति ईश्‍वर को देते है तो हम इन नाटकीय बदलावों के लिए तैयार है।

पौलुस लिखता है कि, “परमेश्‍वर के सुसमाचार का वचन तुम्‍हारे पास पहुँचा, तो तुम ने उसे मनुष्‍यों का नही परन्‍तु परमेश्‍वर का वचन समझकर (और सचमुच यह ऐसा ही है) ग्रहण किया; और वह तुम विश्‍वासियों में जो विश्‍वास रखते हो, प्रभावशाली है।” (1 थिस्सलुनीकियों 2:13)

यदि आप विश्‍वास करते है – यदि आप ईश्‍वर के वचन में विश्‍वास करते है तो यह प्रभावी कार्य करेगा – यह हम में उन बदलावों को करने के लिए प्रभावी होगा जो हमें जीवित ईश्‍वर के लोग बनने के लिए आवश्‍यक है। लेकिन हमें इसे बेरोक कार्य करने की सहमति देनी होगी। जैसा थिस्‍लुनिकियों ने किया:

“अन्‍त में, हे भाईयों, हमारे लिये प्रार्थना किया करो कि प्रभु का वचन ऐसा शीघ्र फैले और महिमा पाये, जैसा तुम में हुआ।” (2 थिस्सलुनीकियों 3:1)
इसका मतलब यह नही कि ईश्‍वर का वचन उनके बीच बेरोक प्रचार हुआ – ऐसा नही था – उन पर हुए अत्‍याचारों से यह बात निश्चित होती है – लेकिन इसका अर्थ है कि परमेश्‍वर के वचन ने उनके जीवनों में बेरोक कार्य किया। क्‍योंकि उन्‍होंने अपनी इच्‍छा से ईश्‍वर के वचन को उनके जीवनों में बेरोक कार्य करने की सहमति दी। पाप के लिए कोई रोक नही थी – पाप जो हमें हमेशा घेरे रहता है उसको उन्‍होंने आसानी से निकाल फेंका, वे पाप में गिर सकते थे लेकिन उन्‍होंने ईश्‍वर के वचन को अपने में कार्य करने दिया और उसने प्रभावी रूप से कार्य किया।

फिलिप्‍पयों 2:13 में लिखी बात उनके लिए पूरी हुयी:

“क्‍योंकि परमेश्‍वर ही है जिसने अपनी सुइच्‍छा निमित्‍त तुम्‍हारे मन में इच्‍छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है।” (फिलिप्पियों 2:13)
‘करने की इच्‍छा और करना’ – ईश्‍वर केवल करने की इच्‍छा नही करता बल्कि वह करता है। यह हम पर है कि क्‍या हम ऐसा होने देने की अनुमति देते है। यदि ईश्‍वर हम में कार्य करता है तो यह आश्‍चर्यजनक है, जैसे कि यह छुटकारे का गीत कहता है कि, “हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्‍वर तेरे कार्य, महान् और अदभुत है।” (प्रकाशितवाक्‍य 15:3)

जो परिवर्तन ईश्‍वर हममें करता है उसका वर्णन बाईबल में ऐसे किया गया है जैसे एक तितली का इल्‍ली से परिवर्तन होता है। (रोमियों 12:1-2 में इस परिवर्तन का अनुवाद दिया गया है।) जैसा कि हम सब तितली के परिवर्तन के विषय में जानते है कि इल्‍ली से उसका सम्‍पूर्ण परिवर्तन होता है वह इल्‍ली पूरी तरह से खत्‍म होकर तितली के एक नये जीवन को जन्‍म देती है। इसी अदभुत रीति से हमारा परिर्वतन होता है जैसे ही हम मृत्‍यु के द्वारा, अपना ध्‍यान नीचे की चीजों से हटाकर ऊपर की चीजों पर केन्द्रित करते है।

यह हमारे जीवन के प्रत्‍येक क्षेत्र में एक सम्‍पूर्ण बदलाव है। इफिसियों के 4 अध्‍याय में पौलुस इस बदलाव की आवश्‍यकता के विषय में बतात है कि,

“और अपने मन के आत्मिक स्‍वभाव में नये बनते जाओ, और नये मनुष्‍यत्‍व को पहन लो जो परमेश्‍वर के अनुरूप सत्‍य की धार्मिकता और पवित्रता में सृजा गया है। इस कारण झूठ बोलना छोड़कर हर एक अपने पड़ोसी से सच बोले क्‍योंकि हम आपस में एक दूसरे के अंग है।” (इफिसियों 4:23-25)
हमारी भावनाऐं जैसे कि गुस्‍सा (पद 26) बदल जाता है। उनको रोका जाता है और उनका फिर हम पर नियन्‍त्रण नही रहता या हमारा उन पर नियन्‍त्रण हो जाता है। हमारी सोच (पद 27) बदल जाती है, इसलिए “शरीर की अभिलाषा, आखों की अभिलाषा, जीविका के घमण्‍ड” का कोई स्‍थान नही रहता है (1 यूहन्‍ना 2:16)। हमारा व्‍यवहार बदल जाता है, इ‍सलिए हमारा जीने का तरीका पूरी तरह से बदल जाता है (पद 28)। हमारी बातें बदल जाती है (पद 29), और इ‍सलिए जो कुछ हम बोलते है वे बातें प्रात्‍साहित करती है हतोत्‍साहित नही। हमें इस बात को जानना चाहिए कि ईश्‍वर कार्य कर रहा है और हमें निश्चित करना चाहिए कि जो कुछ ईश्‍वर करता है उसकी उपेक्षा न करें (पद 30)।

इसका मतलब है कि हम कभी नाजायज और तीखा नही बोलेंगे (पद 31-32)। हम किसी बात के लिए बार-बार कोलाहल नही करेंगे। हम एक दूसरे की बुराई नही करेंगे; बल्कि हम एक दूसरे के प्रति दयालु, नम्र और एक दूसरे को क्षमा करेंगे।

भाईयों और बहनों हम ये बातें पढ़ते है लेकिन क्‍या हम इन बातों के विषय में चिन्‍तन करते है कि चलो ठीक है आज के बाद मैं ईश्‍वर को मेरे अन्‍दर कार्य करने दूंगा और मैं कभी भी झूठ नही बोलूंगा। यह कि मेरा क्रोध सूर्य अस्‍त होने तक न रहेगा अर्थात मैं अपने गुस्‍से को अगले दिन तक नही रखूंगा। और यह कि मैं कभी किसी की बुराई नही करूंगा?

यह सब स्‍वाभाविक नही है जिसका मतलब है कि एक परिवर्तन होना है। क्‍या हम एक दूसरे के प्रति हमेशा दया दिखा सकते है? लेकिन ईश्‍वर के कार्य के साथ हम ऐसा कर सकते है। क्‍या हम हमेशा दूसरों को क्षमा कर सकते है और नम्र बन सकते है, क्‍योंकि ईश्‍वर ने हमें क्षमा किया है? हां बिल्‍कुल, ईश्‍वर के कार्य के साथ हम ऐसा कर सकते है।

यह हमारे लिए एक बहुत बड़ा बुलावा है और हमारे मन में यह बात आ सकती है कि, “मैं ऐसा नही नही बन सकता हूँ” और यह बिल्‍कुल सही बात है कि आप ये सब बातें नही कर सकते है, लेकिन ईश्‍वर के लिए कुछ भी असम्‍भव नही है। ईश्‍वर ये सब कार्य मसीह के द्वारा हममें कर सकता है। ईश्‍वर की सामर्थ से हम ऐसे बन सकते है, क्‍योंकि ईश्‍वर के लिए सब बातें सम्‍भव है।

लेकिन जैसा हमने पहले कहा, प्रश्‍न यह है कि क्‍या हमारी ऐसी इच्‍छा है? क्‍या हम वास्‍तव में ऐसा बनना चाहते है और ईश्‍वर के द्वारा लाये जाने वाला यह परिवर्तन अपने में चाहते है? क्‍या हम अपने परिचित और आरामदायक पुराने जीवन से इस संसार से अपनी मित्रता को पीछे छोड़ना चाहते है?

ईश्‍वर सब कार्य करने में समर्थ है, जैसा कि अब्राहम का भी विश्‍वास था – रोमियों 4:20-21, ईश्‍वर वे सब कार्य करने में पूरी तरह से समर्थ है जिनका उसने वायदा किया है; उसके लिए कुछ भी कठिन नही है। उत्‍पत्ति 41:14 में देखें तो हम भी युसूफ के समान ही है। पाप और मृत्‍यु की कैद में थे – मसीह में हम उस कैद से बाहर लाये गये है – स्‍वंय राजा ने हमें बुलाया है। राजा के सामने जाने के लिए कुछ बदलाव होने अवश्‍यक है – जैसे हमें जेल की कालकोठरी से बाहर आना है, बाल काटकर अपने कपड़े बदलने है। युसूफ जेल के कपड़ो में राजा के सामने नही गया – उसने बदलाव किये। हम अपनी पुरानी विचारधाराओं और तरीको, पुरानी आदतों और पुराने गन्‍दे कपड़ो के साथ मसीह के पास नही आ सकते है – बल्कि हमें उस धार्मिकता को धारण करना चाहिए जो ईश्‍वर ने अपने इकलौते पुत्र के द्वारा हमें दी है, ताकि हम राजा से मिलने के लिए और उसकी सेवा करने के लिए तैयार हो सके, जैसे युसूफ ने फिरोन की सेवा की।

कुलुसियों 3:8-9 में बदलाव के लिए बुलावा है। यह उतारने और पहनने के लिए बुलावा है। ईश्‍वर अब आपको प्रसन्‍नता के वस्‍त्र पहना रहा है जो राजा के सामने जाने के लिए उपयुक्‍त है। कुलुसियों 3:12 – ईश्‍वर ऐसा करेगा और आपको आत्‍मा के फलों के कपड़े आपको पहनायेगा ताकि ईश्‍वर की एक असीम शान्ति आपको मिले। ईश्‍वर ऐसा करेगा और इसके लिए हमें अपने आप को तैयार रखना चाहिए।

उत्‍पत्ति 35:2 में याकूब को बेतेल में बुलाया गया।

“तब याकूब ने अपने घराने से, और उन सब से भी जो उसके संग थे कहा, ‘तुम्‍हारे बीच में जो पराये देवता है, उन्‍हें निकाल फेंको, और अपने अपने को शुद्ध करों, और अपने वस्‍त्र बदल डालों; और आओ, हम यहां से निकलकर बेतेल को जायें।’” (उत्‍पत्ति 35:2-3)
उनके लिए यह आवश्‍यक था कि वे ईश्‍वर की अराधना के लिए जाये और इस बात को पहचाने कि वे ईश्‍वर के लोग है। उनको उन सब बातों को बदलना था जो उनकी भावनाओं में मूल्‍यवान थी। यह उसका एक दृश्‍य है जब हम मसीह के पास आते है तो हम अपनी पुरानी विचारधारा को उतारते है, अपने को धोकर साफ करते है, ईश्‍वर के विचारों को पहनते है ताकि हम आकर उसकी अराधना करें, और उसके द्वारा दी गयी वेदी पर बलिदान करें।

भाइयों और बहनों इसका अर्थ हो सकता है कि हम ईश्‍वर को अपने में इस बदलाव की अनुमति देते है तो वह न केवल हमें हमारे सारे पापों से छुटकारा दें बल्कि कुछ ऐसी बातों को भी हमें छोड़ना पड़े जिनको हम मूल्‍यवान समझकर पकड़े रहते है। हम जिन चीजों के बारे में बात कर रहे है उन्‍ही में से एक है समाज में आदर। यह एक ऐसी चीज है जिससे हमें समस्‍या होती है – एक क्रिस्‍टडेलफियन होने के नाते हम चाहते है कि हमारा आदर किया जाये – एक अच्‍छे नागरिक के रूप में हमारा आदर किया जाये। तो अब हो सकता कि ईश्‍वर के वचन के कारण हमें इस संसार में अपना यह आदर खोना पड़े। ऐसा बहुत से प्रेरितों और पुराने लोगों के साथ हुआ – इसलिए हो सकता है कि समाज के दृष्टिकोण से हम आदरणीय न रहे।

इसका मतलब यह है कि हो सकता है कि हमें अपने कुछ ऐसे शौक छोड़ने पड़े जिनमें बहुत समय देने की जरूरत होती है। ईश्‍वर का एक सेवक, जिसने अपने आप को ईश्‍वर के प्रति समर्पित कर दिया हो, वह ईश्‍वर के कार्यो में इतना व्‍यस्‍त रहता है कि इस दुनिया के शौको पर वह अपना समय खर्च नही करता है। इसके लिए हमें धन की हानि भी हो सकती है क्‍यों‍कि हो सकता है कि हमारी पदोन्‍नति होने वाली हो – क्‍योंकि हम ऐसा सोचते है कि हमें अपनी जीविका चलाने के लिए बहुत समय की आवश्‍यकता होगी और हम ईश्‍वर की बातों से दूर हो जायेंगे। हो सकता है कि हमें बहुत सी चीजें छोड़नी पड़े। प्रेरित पौलुस ने इस संसार को पलट दिया – उसको अपने आप का इन्‍कार करने के लिए तैयार किया गया ताकि वह मसीह में पाया जाये और मसीह के द्वारा जाना जाये।

जैसे कि हम भी ईश्‍वर के वचन के द्वारा तिल तिल करके बदले गये – तो ईश्‍वर के पास हमेशा करने के लिए काम होता है। जब तक हम मसीह में सो न जाये या परमेश्‍वर का राज्‍य न आ जाये तब तक ईश्‍वर का कार्य हममें निरन्‍तर चलता रहेगा।

यूहन्‍ना 15:2 हमें बताता है कि दाखलता की कोई भी ऐसी शाखा नही है जिसके साथ ईश्‍वर कार्य न करें। इसलिए यदि हमारे जीवन का कोई भाग या कोई तरीका ऐसा है जो फल ना लाने वाली शाखा के समान है तो क्‍या हम ईश्‍वर को यह अनुमति देने के लिए तैयार है कि वह इसे काट कर अलग कर दे? ईश्‍वर जब हमारे अपने जीवन की इन शाखाओं के विषय में बात करता है तो वह कहता है कि, “वह हर एक शाखा जो फल लाती है” वह उसे ऐसे ही नही छोड़ता है, “वह उसको छाटँता है ताकि उस पर और अधिक फल लगें” इसलिए वह उसको काटंता है, छाटँता है और आकार देता है ताकि वह उसके उद्देश्‍य के लिए तैयार हो सकें।

ठीक इसी तरह हम मन्दिर के पत्‍थरों के विषय में पढ़ते है जिनको येरूशलेम में ईश्‍वर का मन्दिर बनाने के लिए लाने से पहले काटं छाटंकर तैयार किया गया। (1 राजा 6:7) इसलिए ठीक ऐसे ही हमारे जीवन में बदलाव होना चाहिए । इसलिए ईश्‍वर कभी भी आपके जीवन में कार्य करना बंद नही करता है।

पिता (ईश्‍वर) एक किसान है – वह हमेशा दिन-रात फसल की निगरानी करता है और वह हर सम्‍भव प्रयास करता है जिससे अच्‍छी और अधिकतम पैदावार हो। दिन-रात, चौबीसो घण्‍टे वह कार्य करता रहता है वह अपने डिजाईन के अनुसार और अपनी आवश्‍यकता के अनुसार छटाँई करता है और आकार देता है ताकि वह हमको प्रयोग कर सकें।

हमें भी तैयार रहना चाहिए कि हम ईश्‍वर को उसकी समय सारणी के अनुसार कार्य करने की अनुमति दे। अधिकांशतया आत्मिक और स्‍वाभाविक चीजों के लिए हमारी अपनी योजनायें और समय सारणी होती है।

भजन संहिता 31:15 पद हमें बताता है कि, “मेरा समय तेरे हाथों में है” और यह भजनकार के लिए और हमारे लिए सच है। हममें से जो लोग ईश्‍वर से सम्‍बन्धित है उनके जीवन का हर समय ईश्‍वर का है।

सभोपदेशक का अध्‍याय 3 “समय” का अध्‍याय है - “पैदा होने का एक समय है, मरने का एक समय है ... बोने का एक समय है, काटनें का एक समय है।” यह आत्मिक और स्‍वाभाविक दोनों बातों के लिए सच है।

बोने के लिए एक समय है - जब भी हम ईश्‍वर के लोगों से वचन को सुनते है और ग्रहण करते है तो हम एक बीज बोते है। हम अपने दिमाग में ईश्‍वर के वचन का एक अच्‍छा बीज बोते है। इस संसार का जो बीज हमारे दिमाग में दिन प्रतिदिन बोया जाता है उसको काटने या हटाने का एक समय है।

लेकिन यह मुख्‍यत: ईश्‍वर के समय के विषय में है। ईश्‍वर यह निर्धा‍रित करेगा कि हमारे लिए खुशी मनाने का समय कब है, रोने का समय कब है, नाचने का समय कब है या दुखी होने का समय कब है। ईश्‍वर यह निर्धारित करेगा कि हमें कब किस चीज की आवश्‍यकता है। पद 11 हमें बताता है कि; “ईश्‍वर हर बात उचित और उपयुक्‍त समय पर करता है” इसलिए ईश्‍वर का कार्य करने का समय न केवल उचित है बल्कि उपयुक्‍त और उचित है।

“परमेश्‍वर धर्मी और दुष्‍ट दोनों का न्‍याय करेगा, क्‍योंकि उसके यहाँ एक-एक विषय और एक एक काम का समय है।” (सभोपदेशक 3:17)
ईश्‍वर के उद्देश्‍य और कार्य के अनुसार हर एक समय निर्धारित है।
“सिय्‍योन पर अनुग्रह करने का ठहराया हुआ समय आ पहुँचा है।” (भजन संहिता 102:13)
हर एक कार्य के लिए समय निर्धारित है जो र्इश्‍वर ने अपने ही हाथों में रखे है। (प्रेरितों के काम 1:7) और केवल अपने महान उद्देश्‍यों के लिए नही बल्कि आपके जीवन के लिए भी। “मेरे सब समय तेरे हाथों में है।”

हमें इस विषय में सावधान रहना चाहिए कि हमारे जीवन की बहुत सी चीजों का समय ईश्‍वर के पास निर्धारित है।

“सुख के दिन सुख मान, और दुख के दिन सोच; क्‍योंकि परमेश्‍वर ने दोनों को एक ही संग रखा है।” (सभोपदेशक 7:14)
ईश्‍वर ने सही आत्मिक विकास के लिए बहुत सी जरूरतों को निर्धारित किया है।
“जो आज्ञा को मानता है, वह जोखिम से बचेगा, और बुद्धिमान का मन समय और न्‍याय के भेद को जानता है। क्‍योंकि हर एक विषय का समय और नियम होता है, यद्यपि मनुष्‍य का दुख उसके लिए बहुत भारी होता है।” (सभोपदेश्‍क 8:5-6)

क्‍योंकि वे ईश्‍वर के समय को नही पहचानते, वे इस बात को स्‍वीकार नही करते कि ईश्‍वर कार्य कर रहा है, वे तनाव और चिन्तित रहते है। हम इस बात को नही समझ सकते कि ईश्‍वर कार्य कर रहा है – वह किस प्रकार कार्य करता है – लेकिन हम उसको कार्य करने की सहमति दे सकते है और उसकी इच्‍छा का विरोध न करें और उन्‍नति और गरीबी के लिए जो समय उसने चुना है उसी समय यह सब लाने की उसको सहमति दें ताकि हमारी सुरक्षा की भावना विचलित न हो।

यदि हमारा मस्तिष्‍क शारीरिक बातों से अव्‍यवस्थित है तो ईश्‍वर कार्य नही कर सकता। हमें ईश्‍वर के वचन से अपने मस्तिष्‍क को भरना है ताकि यह उन सब लोगों के जीवन में, जो विश्‍वास करते है, प्रभावी रूप से कार्य करें। इस पर विश्‍वास करने के लिए आपको इसे सुनना होगा।आपको इसे पढ़ना होगा। तब विश्‍वास होने के बाद यह आपके जीवन में प्रभावी रूप से कार्य करेगा ताकि ईश्‍वर की महिमा हो।

सभोपदेशक 11:5 बताता है कि हम परमेश्‍वर के काम नही जानते, “जो सब कुछ करता है।” लेकिन हम यह अवश्‍य ही जानते है कि जो भी काम ईश्‍वर करता है वे श्रेष्‍ठ है और यदि हम ईश्‍वर के वचन पर विश्‍वास करते है और उस पर चलने का प्रयास करते है तो ईश्‍वर हमारे जीवन में कार्य करता है। वह पाप और उससे पैदा होने वाली बातों के बन्‍धनों से छूटने में हमारी सहायता करेगा, ताकि हम बड़े होकर पाप के आदि न रहे।

ईश्‍वर हमारी सहायता करेगा कि हमारे हद्वय में केवल आत्मिक बातों का शासन रहें।

‘ईश्‍वर कार्य कर रहा है!’ (God at Work! – Part 2) is from ‘Caution! God at work’, by Tim Galbraith

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