Dipak Issue 26 (February 2016)

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105

अपने ज्ञान को कार्यान्वित करना (Apply what you know)

कॉलेज के एक प्रोफेसर के विषय में एक कहानी है, जिसने एक क्रान्तिकारी सूत्र का अविष्‍कार किया और उसके इस अविष्‍कार के विषय में जानने के लिए विभिन्‍न कॉलेज उसको निमत्रिंत किया करते थे और वह एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज में जाकर अपने अविष्‍कार के विषय में भाषण दिया करता था। यात्रा के लिए प्रोफेसर को एक शाही कार और एक ड्राईवर दिया गया था और यह ड्राईवर प्रोफेसर के साथ रहता था और जहाँ कही भी प्रोफेसर अपनी खोज के विषय में भाषण देता था ड्राईवर उस एक ही भाषण को प्रतिदिन सुनता था। जब एक दिन प्रोफेसर अपना भाषण देने के लिए कही जा रहा था तो रास्‍ते में उसकी तबीयत खराब हो गयी और उसने ड्राईवर को उस दिन का भाषण देने के लिए कहा क्‍योंकि जहाँ वे जा रहे थे वहाँ पर कोई भी प्रोफेसर को पहचानता नही था। ड्राईवर इस बात के लिए तैयार हो गया क्‍योंकि उसने प्रोफेसर के भाषण को इतनी बार सुना था कि यह उसको याद हो गया था और प्रोफेसर ड्राईवर बनकर गाड़ी चलाने लगा और ड्राईवर प्रोफेसर की मुद्रा में पीछे बैठ गया। भाषण समाप्‍त होने तक सब कुछ ठीक रहा लेकिन समस्‍या तब हो गयी जब अध्‍यक्ष महोदय ने यह घोषणा कर दी कि श्रोतागण प्रोफेसर साहब से प्रश्‍न पूछेंगे और प्रोफेसर साहब उनका उत्‍तर देंगे। पहला प्रश्‍न बहुत ही लम्‍बा और उलझाने वाला था इसलिए ड्राईवर अपनी कुर्सी से उठा और मुस्‍कराते हुए प्रश्‍न पूछने वाले श्रोता का धन्‍यवाद किया और कहा कि यह प्रश्‍न बहुत ही आसान है इसलिए मेरा ड्राईवर भी इसका उत्‍तर दे सकता है। ड्राईवर ने भाषण तो याद कर लिया था लेकिन वह नही जानता था कि इस खोज का प्रयोग कैसे करना था।

तो क्‍या हम इस ड्राईवर के समान है? क्‍या हम जानते है कि हमें क्‍या विश्‍वास करना चाहिये परन्‍तु हम किसी प्रश्‍न का उत्‍तर देने में असमर्थ है या जो आशा हममें है यदि उसके विषय में हमसे पूछा जाता है तो हम उसको बताने में असमर्थ है?

क्‍या सब बातें हमारी रटी रटायी है और उन बातों का हम अपने दैनिक व्‍यवहारिक जीवन में प्रयोग नही करते है? दुर्भाग्‍यवश इस दुनिया में ऐसे बहुत से लोग है जिनको बहुत ज्ञान है लेकिन वे अपने इस सच्‍चाई के ज्ञान का लाभकारी रूप से प्रयोग करने में असमर्थ है।

इस कहानी में कॉलेज का प्रोफेसर ना केवल अपने खोजे गये सूत्र के विषय में सम्‍पूर्ण रीति से जानता था बल्कि यह भी जानता था कि उसका प्रयोग लाभकारी रूप से कैसे करना है। लेकन ड्राईवर केवल उस खोजे गये सूत्र के भाषण को जानता था और उसको इस बात का जरा भी ज्ञान नही था कि इसको कैसे उपयोग में लाना है। क्‍या हम सच्‍चाई के आधारभूत सिद्धान्‍तों को जानते है लेकिन उनको अपने दैनिक जीवन में अभ्‍यास में लाने में असमर्थ है और नही जानते कि इनके अनुसार जीवन कैसे जीये? यह महत्‍वपूर्ण है कि हम सच्‍चाई को जानें। लेकिन इस सच्‍चाई के अनुसार जीवन जीना भी उतना ही महत्‍वपूर्ण है। तो फिर जब हम यह जानते है कि जितनी दया हम दूसरों पर करेंगे उतनी ही दया हमें परमेश्‍वर की ओर से प्राप्‍त होगी तो फिर क्‍यों हम दूसरों के साथ ऐसे व्‍यवहार करते है जैसा हम चाहते है? कैसे हम दूसरों के सामने अपनी मांगे रख सकते है, और अपने स्‍वंय के साथ नम्र रहते है? जैसे ड्राईवर प्रोफेसर के भाषण को अच्‍छी तरह से जान सकता है और अच्‍छी तरह से उसकी व्‍याख्‍या कर सकता है, वैसे ही हो सकता है कि हम सच्‍चाई को पूरी रीति से जानते हो परन्‍तु यदि हम अपने इस ज्ञान का उपयोग नही करते है तो इसका क्‍या लाभ है?

वास्‍तविकता तो यह है कि जानते हुए भी उसके अनुसार कार्य ना करना इससे कही अधिक बुरा है कि आप ना जानते हो। पतरस हमें बताता है कि, “क्‍योंकि धर्म के मार्ग का न जानना ही उनके लिये इससे भला होता कि उसे जानकर, उस पवित्र आज्ञा से फिर जाते जो उन्‍हें सौंपी गयी थी।” (2 पतरस 2:21)

तो क्‍या जो हम जानते है उसको हम उचित रूप से कार्यान्वित कर रहे है? सच्‍चाई से किस प्रकार हमारा जीवन परिवर्तित हुआ, केवल उसको जानने के द्वारा नही बल्कि उसके अनुसार कार्य करने के द्वारा, हमारी बातों के द्वारा नही, बल्कि हमारे कार्यो के द्वारा? ड्राइवर एक अच्‍छा भाषण दे सकता था लेकिन वह एक प्रश्‍न का उत्‍तर भी नही दे सकता था या जो ज्ञान उसने सुनकर पाया था उसको कार्यान्वित नही कर सकता था।

सच्‍चाई का हमारे जीवन पर एक गहरा असर होना चाहिए। यह ऐसी चीज नही है जिसको केवल जानना ही पर्याप्‍त हो, या केवल विश्‍वास करना ही पर्याप्‍त हो, यद्यपि सबसे महत्‍वपूर्ण है कि यह हमारे कार्यो के द्वारा प्रदर्शित हो, यह हमारे जीवन को जीने का एक तरीका हो।

आईये हम सब अपने आप से ये प्रश्‍न पूछें। जो कुछ मैं जानता हूँ उससे मेरा जीवन किस प्रकार दूसरों से भिन्‍न है? परमेश्‍वर से प्रेम करने के कारण किस प्रकार मेरा जीवन अधिक ईश्‍वरीय है? क्‍योंकि मैं यीशु से प्रेम करता हूँ तो क्‍या इसलिए दूसरों के साथ मेरा व्‍यवहार अलग है? यीशु ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाईयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया” (मत्‍ती 25:40) “जो कोई इन छोटो में से एक को मेरा चेला जानकर केवल एक कटोरा ठंडा पानी पिलाए, मैं तुम से सच कहता हूँ, वह किसी रीति से अपना प्रतिफल न खोएगा” (मत्‍ती 10:42)

हममें से कुछ लोग मसीह होने के बाद भी दूसरों के साथ ऐसा व्‍यवहार करते है कि जिसके द्वारा यीशु मसीह दुखी होते है। ऐसा इसलिए नही है कि हम सच्‍चाई को नही जानते बल्कि ऐसा इसलिए है क्‍योंकि हम वह प्रेम अपने स्‍वभाव के द्वारा नही दिखाते जिसको दिखाने की प्रभु यीशु मसीह ने अपने अनुसरण करने वालो से मांग की थी। और यह सब हम उसके नाम में करते है?

जब यहूदा इस्‍करियोती यीशु को पकडवाने के लिए सहमत हो गया था तो उसके बाद भी यीशु मसीह ने अपने घुटनों पर बैठकर यहूदा इस्‍करियोती के पैरों को धोया। क्‍या हम ऐसा कर पायेंगे?

परमेश्‍वर यशायाह के द्वारा बताता है कि हम धार्मिक होकर किस प्रकार अपने भाई को अलग कर सकते है, “यहोवा की महिमा बढ़ें” आगे परमेश्‍वर हमसे कहता है कि “वह तुम्‍हारा आनन्‍द देखने पाये” (उसका जिसको अलग किया गया है) परन्‍तु उन्‍हीं को लज्जित होना पडेगा। (उनको जिन्‍होंने अपने भाई को अलग किया है) तो आओ हम उस ड्राईवर के समान न बनें जो सही शब्‍दों को तो जानता था पर उनको प्रयोग नही कर सकता था। एक भक्ति गीत में कुछ इस तरह की लाईन है कि, “हे परमेश्‍वर हमें आज और प्रतिदिन अपनी निकटता में जीने दे जैसी की हम प्रार्थना करते है” हमें परमेश्‍वर से सहायता मागँनी चाहिये कि हम उसकी अधिक निकटता में जीवन बिता सके और हमें ऐसी ही प्रार्थना करनी चाहिये।

‘अपने ज्ञान को कार्यान्वित करना’ (Apply what you know) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd

एक दूसरे को क्षमा करना (Forgiving one another)

जो कोई आपको नुकसान पहुँचाता है ऐसे किसी व्‍यक्ति को क्षमा करना मुश्किल काम है। इस्राएल ने लगातार बार-बार मूर्तिपूजा की ओर मुड़कर, परमेश्‍वर को दुखी किया लेकिन फिर भी परमेश्‍वर ने उनको क्षमा किया। जैसे परमेश्‍वर ने पापियों को क्षमा किया वैसे ही हमें परमेश्‍वर का अनुसरण करते हुए दूसरों को क्षमा करना चाहिये, चाहे वे भले ही इस क्षमा के योग्‍य न हो।

मुख्‍य पद: मत्‍ती 6:9-15

प्रभु की प्रार्थना बाईबल के सबसे अधिक पढ़ें जाने वाले पद है लेकिन तो भी इन पदों में क्षमा का जो सन्‍देश है वह नजरअन्‍दाज किया जाता है। प्रभु की प्रार्थना का यह नमूना हमारी अयोग्‍यता और क्षमा की आवश्‍यकता का एक स्‍मरण है। क्‍योंकि हम क्षमा किये गये पापी है तो इसलिए हमें दूसरों की गलतियों के प्रति दया और समझदारी दिखानी चाहिये।

  1. जो लोग परमेश्‍वर में विश्‍वास करते है उनसे परमेश्‍वर यह चाहता है कि वे परमेश्‍वर के उदाहरण का अनुसरण करें और स्‍वेच्‍छा से दूसरों को क्षमा करें। क्‍या यह कठिन कार्य है?
  2. मत्‍ती अध्‍याय 6 के 14 और 15 पद को पुन: पढियें। परमेश्‍वर की क्षमा में शर्त क्‍यों है? व्‍याख्‍या किजिये।
  3. आपका एक मित्र आपसे झूठ बोलता है और आपको यह पता चल जाता है:
    1. क्‍या आप उसको क्षमा करने से पहले इस बात का इन्‍तजार करेंगे कि वह आकर आपसे क्षमा मांगे?
    2. यदि वह अपना मन नही फिराते तो आप क्‍या करेंगे?
    3. जिस तरह परमेश्‍वर पापियों को क्षमा करता है क्‍या यह तरीका उससे भिन्‍न है?
    4. यदि यह मित्र एक विश्‍वासी था तो क्‍या आप उसके साथ अलग व्‍यवहार करेंगे?

एक क्षमा करने वाली आत्‍मा

मसीह में स्‍वतन्‍त्रता! वास्‍तव में इसका अर्थ क्‍या है? यीशु मसीह के माध्‍यम से क्षमा द्वारा विश्‍वासी लोगों को “पाप के दासत्‍व” से स्‍वतन्‍त्र किया गया। परमेश्‍वर से क्षमा मिलने पर दूसरों के पापों को देखने का हमारा दृष्टिकोण बहुत ही अधिक प्रभावित होना चाहिये और हमें क्षमा करने वाली आत्‍मा से परिपूर्ण होना चाहिये। मानवता के नाते, हमें इस बात को पहचानते हुए कि हममें से कोई भी परमेश्‍वर की दया के योग्‍य नही है, हमें दूसरों को अपने हद्वय से क्षमा करना चाहिये। यदि हम दूसरों को क्षमा नही करते तो परमेश्‍वर हमें क्‍यों क्षमा करेगा? यीशु ने बताया कि, “धन्‍य है वह जो दयावन्‍त है, क्‍योंकि उन पर दया की जायेगी” (मत्‍ती 5:7) और दूसरी ओर उन्‍होंने कहा, “क्‍योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, तुम पर भी दोष लगाया जायेगा;” (मत्‍ती 7:2) जैसा हम दूसरों के साथ करते है वैसा ही परमेश्‍वर हमारे साथ करेगा। जैसा कि याकूब ने भी लिखा:

“तुम उन लोगों के समान वचन बोलो और काम भी करो, जिनका न्‍याय स्‍वतंत्रता की व्‍यवस्‍था के अनुसार होगा। क्‍योंकि जिसने दया नहीं की, उसका न्‍याय बिना दया के होगा: दया न्‍याय पर जयवन्‍त होती है।” (याकूब 2:12-13)

दूसरों को क्षमा करने का गुण स्‍वाभाविक नही है; बल्कि बदला लेने से अच्‍छा महसूस होता है। क्‍या दूसरों को क्षमा करना आपके लिए मुश्किल है? परमेश्‍वर से प्रार्थना कीजिये कि वह आपको क्षमा करने की सामर्थ प्रदान करें। मन फिराने और दोषों को दूर करने के प्रभाव से हमारा स्‍वभाव बदलना चाहिये, लेकिन क्षमा करना सीखना एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया हो सकती है। जैसे-जैसे एक परमेश्‍वर में विश्‍वास करने वाला व्‍यक्ति, परमेश्‍वर के निकट आता जाता है, उसमें क्षमा करने का गुण और अधिक स्‍वाभाविक होता जाता है, और उसका पुराना पापमय स्‍वभाव, परमेश्‍वरीय स्‍वभाव में बदलता जाता है। पौलुस इस बदलाव को समझ गया था और इसलिए उसने लिखा:

“प्रभु तो आत्‍मा है: और जहाँ कहीं प्रभु का आत्‍मा है वहाँ स्‍वतंत्रता है। परन्‍तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्‍मा है, हम उसी तेजस्‍वी रूप में अंश अंश करके बदलते जाते हैं।” (2 कुरिन्थियों 3:17-18)

कार्य शब्‍दों से ऊँचा बोलते है

यह कहना कि, “मैनें तुम्‍हें क्षमा किया” किसी भी टूटे हुए रिश्‍तें को सुधारने की एक अच्‍छी शुरूआत है। जब कोई आपको चोट पहुँचाता है या दुख देता है तो उससे मिलने वाले दर्द या उसकी याद को भूलने में समय लगता है, ऐसा नही होता कि आप उसको एक दिन में भूल जाये। यदि हम यह कहने के साथ कि, “मैनें तुम्‍हें क्षमा किया”, इन शब्‍दो के अनुसार कार्य भी करें तो यह हमारी क्षमा को और भी अधिक अर्थपूर्ण बना देता है।

यदि गलत कार्य करने वाला अविश्‍वासी है और पश्‍चाताप नही करता है तो उसके लिए क्षमा और दया विशेष महत्‍वपूर्ण है। लेकिन प्रश्‍न यह है कि यह उसके लिये इतनी महत्‍वपूर्ण क्‍यों है? निम्‍न उदाहरणों को आप किस तरह से लागू करते है?

“यदि तेरे शत्रु का बैल या गदहा भटकता हुआ तूझे मिले, तो उसे उसके पास अवश्‍य फेर ले आना। फिर यदि तू अपने बैरी के गदहे को बोझ के मारे दबा हुआ देखें, तो चाहे उसको उसके स्‍वामी के लिये छुडाने को तेरा मन न चाहे, तौभी अवश्‍य स्‍वामी को साथ देकर उसे छुड़ा लेना।” (निर्गमन 23:4-5)
“यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसको रोटी खिलाना, और यदि वह प्‍यासा हो तो उसे पानी पिलाना; क्‍योंकि इस रीति तू उसके सिर पर अंगारे डालेगा, और यहोवा तुझे इसका फल देगा।” (नीतिवचन 25:21-22)
उपरोक्‍त दोनों पदों पर ध्‍यान दीजिये इनमें परमेश्‍वर बैरी और उसकी सम्‍पत्ति की देखभाल करने के लिए बता रहा है। अपने बैरी को दया और प्रेम दिखाकर आप मसीह का अनुसरण करते है और इससे आपका शत्रु परमेश्‍वर की ओर मुड़ सकता है। इस प्रकार कार्यो की आवाज शब्‍दों से ऊँची होती है।

बदला ना लेना

परेश्‍वर ने हमें बदला लेने की आज्ञा नही दी बल्कि दया दिखाने के लिए कहा है। बदला लेना परमेश्‍वर का कार्य है क्‍योंकि वह धर्म से न्‍याय करता है इसलिए बदला लेना हमें ईश्‍वर के हाथों में छोड़ देना चाहिये और हमें सिर्फ करूणा करनी चाहिये।

“बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उनकी चिंता किया करो। जहाँ तक हो सकें, तुम भरसक सब मनुष्‍यों के साथ मेल मिलाप रखो। हे प्रियों, बदला न लेना, परन्‍तु परमेश्‍वर के क्रोध को अवसर दो, क्‍योंकि लिखा है, ‘बदला लेना मेरा काम है, प्रभू कहता है मैं ही बदला दूँगा’ ... बुराई से न हारो, परन्‍तु भलाई से बुराई को जीत लो।” (रोमियों 12:17-19,21)

कुछ सम्‍बन्धित पद

दूसरों को क्षमा करने के लिए आज्ञाऐं इफिसियों 4:32; कुलिस्सियों 3:13
भाईयों को क्षमा मत्‍ती 18:15-35; लूका 17:3-4; 2‍ कुरिन्थियों 2:7-10
परमेश्‍वर से मिलने वाली क्षमा शर्तीय है मरकुस 11:25
बदला ना लेना रोमियों 12:19; 1 पतरस 3:9
क्षमा के उदाहरण उत्‍पत्ति 50:17-21; गिनती 12:1-13, 14:19-20; प्रेरितों के काम 7:60

सारांश

परमेश्‍वर अपने लोगों से चाहता है कि वे गलत काम करने वाले लोगों के साथ दया और क्षमा दिखाये। एक सच्‍चे मन फिराने वाले विश्‍वासी के हद्वय से यह भावना आनी चाहिये। यदि हम दया नही दिखाते तो परमेश्‍वर कहता है कि वह भी हम पर दया नही करेगा।

विचारणीय पद

  1. नीतिवचन 17:9 कहता है कि जब हम किसी को क्षमा करते है तो हमें क्षमा करके भूल जाना चाहिए। यह बहुत ही प्रलोभित करने वाला होता है कि जब हम किसी से नाराज होते है तो उसको हानि पहुचांने के लिए उसके पुराने पापों को याद करते है। क्‍या आप इस प्रलोभन से बचने का कोई तरीका जानते है?
    1. मत्‍ती 18:21-22 को पढ़ें। क्‍या यीशु मसीह ये कह रहे है कि जब कोई हमारे साथ 78व़ीं बार पाप करें तो हमें उसे क्षमा नही करना चाहिये?
      बाईबल का नया इण्‍टरनेशनल वर्जन कहता है कि हमें 77 बार क्षमा करना चाहिये। कुछ दूसरे वर्जन 70 x 7 = 490 बार क्षमा करने के लिए कहते है।
    2. इस एक घटना पर विचार किजिये: आपका एक मित्र आपके साथ कुछ गलत करता है और आप उसको क्षमा कर देते है। इसके बाद वह फिर से ऐसा करता है। इस बार उसको क्षमा करना आपके लिये थोड़ा मुश्किल होगा लेकिन फिर भी आप उसको क्षमा कर देते है। एक महिने के बाद वह फिर ऐसा करता है और आप ना चाहते हुए भी उसको क्षमा कर देते है। यदि वह चौथी बार ऐसा करता है ... या दसवीं बार ऐसा करता है, तो क्‍या आपको उसको क्षमा करना चाहिये? क्‍या इस बात से कोई फर्क पड़ता है यदि वह सिर्फ अपनी गलती के लिये माफी मांगे या वास्‍तव में बदल जाये?
    3. मत्‍ती 5:23-24 को पढ़िये। परमेश्‍वर के साथ हमारे सम्‍बन्‍ध के विषय में ये पद क्‍या बताते है?
    4. मत्‍ती 18:23-25 को पढ़िये। क्षमा न करने वाले सेवक का यह दृष्‍टान्‍त परमेश्‍वर की क्षमा के विषय में हमें क्‍या शिक्षा देता है?

अन्‍य खोज

  1. क्‍या आप किसी ऐसी घटना के विषय में सोच सकते है जब आपने किसी को क्षमा किया हो लेकिन ये क्षमा करना आपके लिये बहुत ही मुश्किल रहा हो? क्‍या क्षमा करने से आपसी सम्‍बन्‍ध पर कोई सकारात्‍मक प्रभाव पड़ा? क्षमा करने का निर्णय लेने में आपको किससे सहायता मिली?
  2. यदि कोई हमारे साथ गलत करता है तो परमेश्‍वर हमें उसे आशीष देने के लिए बताता है (मत्‍ती 5:43-48; रोमियों 12:17-19; 1 पतरस 3:9) विस्‍तृत वर्णन कीजिये कि हमें अपने शत्रुओं से प्रेम क्‍यों करना चाहिये? इससे हमें क्‍या लाभ हो सकता है?

‘एक दूसरे को क्षमा करना’ (Forgiving one another) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman

आप क्‍या चाहते है या आपके लिए क्‍या आवश्‍यक है? (2)

What you need or what you want? (Part 2)

यहां तक कि हमारे ही कारण पृथ्‍वी श्राप को सह रही है, “भूमि तेरे कारण शापित है” (उत्‍पत्ति 3:17) यह सब हमारे ही कारण है ताकि हम बचाये जा सकें।

पौलुस ने भी यह बात सीखी कि जिस चीज को हम यह सोचते है कि हमें इसकी आवश्‍यकता है वास्‍तव में ईश्‍वर वह हमें नही देता है। पौलुस, जो कि एक साहसी यात्री था उसने अवश्‍य ही यह महसूस किया होगा कि परमेश्‍वर के कार्य को करते हुए जब वह मूसा के समान बूढ़ा हो जायेगा तो उसकी आंखें धुधंली नही होंगी, उसकी ताकत नही घटेगी, लेकिन नही ऐसा नही हुआ। 2 कुरिन्थियों 12:7 में, वह कमजोर किया गया। उसको एक मुफ्त उपहार दिया गया अर्थात ‘शरीर में एक काँटा’। उसने ऐसा नही सोचा था। ईश्‍वर की ओर से मिलने वाले इस ‘अनुग्रह’ से मुक्ति पाने के लिए उसने तीन बार ईश्‍वर से विनती की।

“मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्‍योंकि मेरी सामर्थ्‍य निर्बलता में सिद्ध होती है।” (2 कुरिन्थियों 12:9) ईश्‍वर ने कहा, ‘नहीं, यह मेरी इच्‍छा नही है कि तुम्‍हें मूसा के समान स्‍वस्‍थ रखूं – तुम्‍हारा रास्‍ता भिन्‍न है। मूसा को जिस चीज की आवश्‍यकता थी वह अलग थी; और पौलुस, तुम्‍हें जिस चीज की आवश्‍यकता है वह दूसरी है।’

हमें अपनी देखभाल के लिए ईश्‍वर से आग्रह (‘तीन बार’) करना चाहिये और फिर उसके ऊपर छोड़ देना चाहिये। ईश्‍वर की स्‍मरण शक्ति कमजोर नही है। हमें उसको परेशान करने की जरूरत नही है। इसहाक, जकर्याह, और बहुत से अन्‍य विश्‍वासी लोगों ने ईश्‍वर से प्रार्थना की और ईश्‍वर ने वर्षो बाद उनकी प्रार्थना का उत्‍तर दिया।

अपनी सब बातों को उसके हाथों में छोड़ दो और उसके कार्य में लगे रहो, उसकी बातों के लिए प्रार्थना में लगे रहो – वे सब बातें जिनको हम जानते है कि वे ईश्‍वर की इच्‍छा है; और वह हमको हमारी आवश्‍यकता के अनुसार देगा। हम देखते है कि यीशु मसीह ने भी तीन बार गतसमनी में प्रार्थना की जो उनकी व्‍यक्तिगत प्रार्थना थी, और स्‍वर्गदूत के द्वारा उनको सामर्थ दी गयी।

अन्‍त में एक चीज महत्‍वपूर्ण है और वह है ईश्‍वर के राज्‍य में हमें ले जाने के लिए उसके अनुग्रह की अवश्‍यकता। वह केवल यीशु मसीह में मिल सकती है। जो शब्‍द प्रभु ने मारथा से कहे वे वास्‍तव में हमारे लिए भी सच है: “मारथा”, भाईयों, बहनों, “तुम बहुत बातों के लिए चिन्‍ता करते हो”, बहुत सी बातें जो तुम्‍हारे दिमाग में है और बहुत से काम जो तुमको करने है, “परन्‍तु एक बात आवश्‍यक है,” और यह कि मेरे पैरों पर बैठो और मेरी बातों को सुनो। “उस उत्‍तम भाग को मरियम ने चुन लिया है...” – वह उत्‍तम भाग – मसीह के पैरों पर बैठकर उसकी बातों को सुनना था। यह वास्‍तविक आवश्‍यकता है - “एक बात जो आवश्‍यक है” जैसा पौलुस ने कहा, “यह एक काम करता हूँ” (फिलिप्पियों 3:13)। हमें मसीह के पैरों पर लाने के लिए जो भी आवश्‍यक है ईश्‍वर वही हमारे लिये करेगा ताकि हम उसकी बातों को सुन सकें। इसके लिए हो सकता है कि ईश्‍वर हमें डांटे भी जैसे कि यीशु ने मारथा को डांटा, जिससे हम सही रास्‍ते पर चल सकें।

ऐसा भी हो सकता है कि इसके लिए ईश्‍वर को हमारे जीवन में कुछ नाटकीय कार्य करने की आवश्‍यकता हो, जैसे कि हम लूका के अध्‍याय 8 में देखते है, जहां एक व्‍यक्ति है जो पाप की शर्मनाक स्थिति में रहता है। वह नंगा है – जैसे आदम और हव्‍वा नंगे थे; वह कब्रों में रहता है – जो कि मृत्‍यु से सम्‍बन्धित है – लेकिन यीशु मसीह से एक नाटकीय मुलाकात के बाद उसने कपड़े पहन लिये और वह सही मानसिक स्थिति में आ गया और यीशु के पैरों पर बैठ गया। (लूका 8:35)

यदि हम अपनी सही मानसिक स्थिति में है तो हम भी यीशु के पैरों पर बैठ जायेंगे – अपने आप को उससे ऊपर नही दिखायेंगे, या मसीह में जो हमारे भाई और बहन है उनके सामने ऐसा नही दिखायेंगे कि हम मसीह के बराबर है – “क्‍योंकि तुम्‍हारा एक ही गुरू है, और तुम सब भाई हो” (मत्‍ती 23:8) इसीलिए हम ‘क्रिस्‍टडेलफियन्‍स’ है अर्थात ‘मसीह में भाई और बहन’ क्‍योंकि हम सब एक साथ मसीह अर्थात हमारे गुरू के पैरों पर बैठे है, ताकि वह हमें पिता के मार्गो को सिखा सकें।

और इसलिए परमेश्वर की भोजना हमें यीशु के पैरों तक लाने के लिए कार्य करेगी, और जरूरत हुयी तो रोते हुए जैसे कि हम लूका 7:38 में पाते है “और उसके पाँवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई उसके पाँवों को आँसुओं से भिगोने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी” यहां वह स्‍त्री है जिसको रोते हुए यीशु मसीह के पैरों पर लाया गया। यदि हमें मसीह के पैरों पर लाने के लिए आँसुओं की आवश्‍यकता है तो ईश्‍वर हमें आँसु देगा, यह निश्‍चय है, जैसे कि हमने सभोपदेशक 7 में भी देखा “हँसी से खेद उत्‍तम है” – ईश्‍वरीय दु:ख मूर्खो की हँसी से उत्‍तम है।

क्‍योंकि हमने अपने आप को ईश्‍वर के प्रति समर्पित कर दिया है - जब आप या मैं किसी विशेष समय पर कोई कार्य करना चाहते हो तो ईश्‍वर आपके जीवन में, मेरे जीवन में, प्रतिकूल बातों को करेगा। भविष्‍यद्वक्‍ताओं के जीवन में भी ऐसा ही हुआ – विशेष रूप से उस समय में जब उनकी ईश्‍वर का कार्य करने की रूची नही थी। हम देखते है कि यहेजकेल को ईश्‍वर के लिए बोलने वाला बनाया गया- उसने अपना मुँह खोला और ईश्‍वर ने उसे अपने वचन की पुस्‍तक खिला दी। लेकिन जब वास्‍तव में यहेजकेल के लिए ईश्‍वर के कार्य को करने का समय आया तो वह घबरा गया। जब ईश्‍वर ने उसे इस तरह प्रयोग करना चाहा जैसा कि यहेजकेल नही चाहता था तो वह बहुत ही क्रोधित हुआ।

यहेजकेल 3:14 “तब आत्‍मा मुझे उठाकर ले गई ... और मन में जलता हुआ चला गया।” हम उसका बुड़बुडाना सुनते है; ‘मैं ईश्‍वर के प्रति समर्पित होना चाहता हूँ, लेकिन मैं यह नही चाहता कि वह मेरे जीवन की योजनाओं को इतना अधिक असुविधाजनक बनाये – यह मेरी योजना नही थी कि मैं उस समय वहाँ जाऊ और इस्राएल के रईसों के सामने मूर्ख बंनू’।

हमारी अपनी बुड़बुडाहट भी कुछ इस तरह ही है कि, ‘मैं अपने आप को ईश्‍वर का पुत्र होने के लिए समर्पित करता हूं, लेकिन एक सीमा तक’। नहीं – इसकी कोई सीमा नही है।जब हम अपने आप को ईश्‍वर के प्रति समर्पित कर देते है तो उस समर्पण की कोई सीमा नही होती - हम ईश्‍वर के हाथों में है, इसलिए जैसी उसकी इच्‍छा है वह ऐसा ही कर सकता है और करेगा। हमारे इस समपर्ण के कारण जब हमारे साथ कुछ ऐसा होता है जिसकी हमें आशा नही होती तो हमारा बुड़बुड़ाना अच्‍छा नहीं है। भाईयों और बहनों यह एक प्रार्थना है जिसका उत्‍तर दिया गया है, यह ईश्‍वर है जो कार्य कर रहा है! यह एक सम्‍पूर्ण समर्पण है। हमने अपने आप को उसके प्रति समर्पित कर दिया है इसलिए वह जो कुछ हमारे लिए ठहराता है हमें उसे स्‍वीकार करना है।

योना के विषय में विचार कीजिये! किसी अन्‍य कारण से योना हमें कुछ सिखाता है। योना ने सोचा कि, ‘नीनवे के लोग इस्राएल के शत्रु है, यदि मैं र्इश्‍वर के लोगों के शत्रुओं को जाकर प्रचार करूं, और वे बदल जायें, तो ईश्‍वर हमारे शत्रुओं को दण्‍ड नही देगा’। उसने ईश्‍वर की योजना को अपने अनुसार करने का प्रयास किया। उसने ईश्‍वर को यह बताने का प्रयास किया कि उसको किस प्रकार कार्य करना चाहिये – इसलिए वह भाग गया। लेकिन ईश्‍वर जानता था कि वह क्‍या कर रहा था, और योना को एक नाटकीय तरीके से आज्ञा मानने के लिए बाधित किया गया। योना एक मछली के द्वारा निगल लिया गया, और किनारे पर उगल दिया गया, और उसने फिर सुना ‘नीनवे को जा’ और उसको जाना पड़ा। ईश्‍वर ने योना को उसकी योजना में असफल किया। वह इस परिणाम से खुश नही था - लेकिन तो भी यह ईश्‍वर की इच्‍छा थी।

क्‍या ये लोग हमारे ही समान नही है? एलिय्‍याह के विषय में विचार कीजिये! एलिय्‍याह को पूरा विश्‍वास था कि एक बार कर्मेल पर्वत पर ईश्‍वर की शक्ति और सामर्थ लोगों के दिखाने के बाद सब लोग ईश्‍वर की ओर मुड़ जायेंगे। उसने यह चिल्‍लाने की आवाज सुनी, “यहोवा परमेश्‍वर है; यहोवा परमेश्‍वर है!” (1 राजा 18:39) इन आवाजों में कुछ ऐसा था जो उसके अपने नाम से सम्‍बन्धित था- यह आभास होता था कि वे ‘एलिय्‍याह’ बोल रहे थे - क्‍योंकि एलिय्‍याह नाम का अर्थ है ‘यहोवा परमेश्‍वर है’ और इसलिए जब उसके नाम की यह आवाज कि ‘यहोवा ही एकमात्र सर्वशक्तिमान है’, गूंज रही थी तो एलिय्‍याह ने सोचा कि आखिर यह राष्‍ट्र इसके लोग और अगुवे सब अब उसके ईश्‍वर में विश्‍वास करेंगे।

लेकिन क्‍या हुआ? ईजे़बेल उसको मारने के लिए उसकी खोज में लग गया और एलिय्‍याह अपने प्राण बचाने के लिए होरेब को भागा और वहाँ एक गुफा में छिप गया। उसने ईश्‍वर से कहा, ‘मैं अकेला हूँ, केवल मैं अकेला ही विश्‍वासी हूँ’। फिर ईश्‍वर ने भूकम्‍प, आंधी और आग भेजी लेकिन ईश्‍वर इनमें नही था – वह दबी हुयी धीमी आवाज में था। उस आवाज ने उससे कहा, ‘एलिय्‍याह – हां, मैंने तुम्‍हारे साथ नाटकीय तरीके से कार्य किया – लेकिन इस्राएल में सात हजार विश्‍वासी लोग है जिन्‍होंने पवित्र शास्‍त्र की बातों को सुना और विश्‍वास किया है। मैं भूकम्‍प नही भेज रहा हूँ और न ही जीवन लेने के लिए आग की आंधी भेज रहा हूँ, क्‍योंकि मैं तुम्‍हारे साथ एक तरीके से काम करता हूँ और उनके साथ दूसरे तरीके से काम करता हूँ। मैं जानता हूँ कि मैं क्‍या कर रहा हूँ।’ जी हाँ, ईश्‍वर जानता है कि वह क्‍या कर रहा है। हममे से हर एक को जिस चीज की आवश्‍यकता है वह वही देता है।

आईये नये नियम की एक पत्री के कुछ पदों को देखें।

“क्‍योंकि परमेश्‍वर की यह इच्‍छा है कि तुम पवित्र बनो।” (1 थिस्‍सलुनीकियों 4:3)

परमेश्‍वर की इच्‍छा है कि हम पवित्र बनें और वह हमें विशेष लोग बनाकर अलग करे। क्‍या यह वही नही है जो हम चाहते है? सच तो यही है कि हम भी ऐसा ही चाहते है। हम नही जानते कि जो हम चाहते है उसको प्राप्‍त करने के लिए हमें क्‍या करने की आवश्‍यकता है - लेकिन परमेश्‍वर जानता है कि हम क्‍या चाहते है और हमारी पवित्र बनने की इस चाहत के लिए जो कुछ भी आवश्‍यक है वह उसको हमें देगा और हमारी इस चाहत को पूरी करेगा।

अपनी इस इच्‍छा को पूरा करने के लिए जो हमारी भूमिका है वह यह है कि हम परमेश्‍वर पर विश्‍वास करें और उस पर भरोसा रखें - हम भरोसा रखें कि प्रत्‍येक कार्य, प्रत्‍येक विपत्ति और प्रत्‍येक खुशी उसकी इच्‍छा है, इसलिए “हर बात में धन्‍यवाद करो।” (1 थिस्‍सलुनीकियों 5:18) हमारे लिये परमेश्‍वर की इच्‍छा यह है कि हमें उसकी इच्‍छा को अपने जीवन में स्‍वीकार करना चाहिये और इसके लिए उसका धन्‍यवाद करना चाहिये, क्‍योंकि सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्‍पन्‍न करती है - लेकिन तभी यदि आप उससे प्रेम करें और अपनी हर एक बात के लिए उसका आभार व्‍यक्‍त करें।

हमें अपनी प्रार्थनाओं को परमेश्‍वर तक पहुंचाना है और यदि वे उसकी इच्‍छा के अनुसार है तो वह इनको अवश्‍य सुनेगा।

“हमें उसके सामने जो हियाव होता है, वह यह है; कि यदि हम उसकी इच्‍छा के अनुसार कुछ माँगते है, तो वह हमारी सुनता है।” (1 यूहन्‍ना 5:14)

इसलिए हम अपने जीवन में और परमेश्‍वर के सम्‍पूर्ण उद्देश्‍य में, जितना अधिक परमेश्‍वर की निकटता में आयेंगे, उतने ही अधिक से अधिक हमारी प्रार्थनायें उसकी इच्‍छा के अनुसार होंगी और इसलिए उन प्रार्थनाओं के अधिक से अधिक सकारात्‍मक उत्‍तर हमें मिलेंगे।

उन लोगों पर विश्‍वास न करें जो इस तरह कि बात कहते है कि तुम्‍हारा विश्‍वास पर्याप्‍त दृढ नही है इसलिए तुम्‍हारी प्रार्थनायें नही सुनी जाती और यह कि यदि तुम्‍हारा विश्‍वास दृढ़ होगा तो जो कुछ तुम कहोगे वह हो जायेगा। जो कुछ आप चाहते है वह नही होगा और इसके लिए आपको परमेश्‍वर का धन्‍यवाद देना चाहिये, प्रेरित पौलुस के साथ भी ऐसा ही हुआ जो कुछ उसने मांगा वह नही मिला, गतसमने में यीशु के साथ भी ऐसा ही हुआ।

परमेश्‍वर में आपका सम्‍पूर्ण विश्‍वास यह है कि वह तुम्‍हारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है - यह नही कि आप जो विनती करते है या जितना आप समझते है।

“अब जो ऐसा सामर्थी है कि हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ्‍य के अनुसार जो हम में कार्य करता है।” (इफिसियों 3:20)
“किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्वर की शान्ति, जो सारी समझ से परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी।” (फिलिप्पियों 4:6-7)

परमेश्वर को अपने निवेदन बता दें और उसके बाद उस पर छोड दे, उसे इस बात के लिए धन्यवाद दें, कि आप इस बात से शान्ती पुर्वक निश्चित है। कि वो आपकी आवश्यक्ताओ को जानता है। यह शान्ति चिन्ता, भय व डर से आपकी रक्षा करेगी। भाईयो और बहनो यह शान्ति ऐसा ही करेगी। कलिसिया अथवा बाहर के लोगो कि बातो से परेशान न हो यदि हम दूसरे लोगो के कहने के कारण परेशान हो जाते है। तो हम उन्हे परमेश्वर से अधिक शक्तिशाली मान रहे है। परमेश्वर कि शान्ति एक सामर्थी रक्षक के रूप से इन बातो से आपकी रक्षा करेगी।

“मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है, तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा।” (फिलिप्पियों 4:19)

जो हम चाहते है वह नही – परमेश्वर हमे वह सब देने की प्रतिज्ञा कभी नही करता जो हम जानबूझकर स्वभाविक रुप से अथवा अन्जाने में आत्मिक रुप से प्राप्त करना चाहते है। किन्तु हम जानते है कि हमारी सभी जरुरते परमेश्वर के राज्य में ही पूरी की जाएगी। वह हमारी पाप क्षमा तथा उद्धार प्राप्ती की सारी घटी को अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है पूरी करेगा।

‘आप क्‍या चाहते है या आपके लिए क्‍या आवश्‍यक है?’ (What you need or what you want? Part 2) is from ‘Caution! God at work’, by Tim Galbraith

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