Dipak Issue 28 (August 2016)

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105

बड़े या छोटे दानव? (Big or Little Giants?)

जिमी कार्टर को यह कहने का श्रेय दिया जाता है कि, “कोई भी व्‍यक्ति जो 60 वर्ष की आयु में यह कहता है कि वह वो सब काम कर सकता है जो वह 20 वर्ष की उम्र में कर सकता था, क्‍या वह 20 की उम्र में ज्‍यादा नही कर रहा था।”

शरीर घटने लगता है; शारीरिक सामर्थ्‍य कम हो जाती है। लेकिन यह बदलाव इतना धीमा होता है कि एक वर्ष के समय में यह नजर नही आता है, लेकिन चार दशकों के बाद इन बदलावों को नजरअन्‍दाज करना मूर्खता है।

हमें बताया गया है कि हर एक अवस्‍था की क्षतिपूर्ति होती है। हालांकि एक 60 साल का व्‍यक्ति वह सब कुछ नही कर सकता है जो वह 20 साल की आयु में कर सकता था, लेकिन इसके बावजूद भी बहुत कुछ है जो किया जा सकता है। एक बूढा व्‍यक्ति वास्‍तव में, यदि परिश्रम नही कर सकता, पर वह काम को अधिक चतुराई से कर सकता है। प्राय: नौजवान बहुत अधिक निरर्थक प्रयास करते है, लेकिन एक वरिष्‍ठ व्‍यक्ति केवल आवश्‍यक कार्य करने का प्रयास करते है।

कालेब उस समय 85 वर्ष का था जब उसने यह बात कही कि उसमें अभी भी उतनी ही ताकत है जितनी 40 वर्ष की आयु में थी। उसने यहोशू से कहा, “आज मैं 85 वर्ष का हूं लेकिन तो भी जितना बल मूसा के भेजने के दिन मुझ में था उतना बल अभी तक मुझ में है, युद्ध करने; वा भीतर बाहर आने जाने के लिए जितनी उस समय मुझ में सामर्थ्य थी उतनी ही अब भी मुझ में सामथर्य है इसलिए अब वह पहाड़ी मुझे दें।” (यहोशू 14:10-11)

कालेब की उम्र के लोगों के लिए कालेब एक प्रेरणा है। केवल इसलिए साहस नही छोड़ना चाहिये कि हम बूढे हो गये है। हमें याद रखना चाहिये कि कालेब उन दो वफादार गुप्‍तचरों में से एक था जो एक अच्‍छी जानकारी लेकर आये थे जबकि दूसरे दस गुप्‍तचर बुरी जानकारी लेकर आये थे। “पर कालेब ने मूसा के सामने प्रजा के लोगों को चुप कराने की मनसा से कहा, हम अभी चढ़ के उस देश को अपना कर लें; क्‍योंकि नि:सन्देह हम में ऐसा करने की शक्ति है। पर जो पुरुष उसके संग गए थे उन्‍होंने कहा, उन लोगों पर चढने की शक्ति हम में नही है; क्‍योंकि वे हम से बलवान है।” (गिनती 13:30) अच्‍छी या बुरी रिपोर्ट लाने से उम्र का कोई सम्‍बन्‍ध नही है। यह कालेब का विश्‍वास और दूसरे 10 लोगों के विश्‍वास की कमी थी जिससे यह अन्‍तर आया।

विश्‍वास से हमारे जीवनों में भी अन्‍तर आ सकता है फिर चाहे हम किसी भी आयु में क्‍यों न हो। यदि हमारा विश्‍वास और भरोसा परमेश्‍वर में है तो हम विजयी हो सकते है। यदि हम उन दानवों के आकार को देखते तो हो सकता है कि हम भी अविश्‍वासी गुप्‍तचरों के समान विजयी होने की आशा छोड़ देते। क्‍या हम कालेब के समान ‘बडे़ परमेश्‍वर’ और ‘छोटे दानवो’ में विश्‍वास करते है या फिर ‘बडे़ दानवों’ और एक ‘छोटे परमेश्‍वर’ में विश्‍वास करते है?

हम यहोशू से सीखते है कि कालेब अपने अटूट विश्‍वास के कारण, उस पहाड़ी को लेने में सफल रहा जिससे दूसरे लोग डर रहे थे, और उसका वारिस हुआ। “इस कारण हेब्रोन कनजी यपुन्‍ने के पुत्र कालेब का भाग आज तक बना है, क्‍योंकि वह इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा का पूरी रीति से अनुगामी था।” (यहोशू 14:14)

कालेब ने बल और बुद्धि दोनों को प्रयोग किया, क्‍योकि भूमि जीतने में उसकी सहायता के लिए उसका जवान भतीजा ओत्‍नीएल उसके साथ था। तो क्‍या हम भी दूसरों को आकर परमेश्‍वर का कार्य करने के लिए प्रेरणा दे सकते है?

जब हम ऐसी अवस्‍था में आ जायेंगे कि हम जवानी के समान शारीरिक काम करने के योग्‍य न रहेंगे तो आईये हम ऐसी स्थिति में भी परमेश्‍वर का कार्य उसी उत्‍साह और ऊर्जा से करने का प्रयास करते रहे जब तक हमारे शरीर की सामर्थ्‍य हमारा साथ दें। हम दूसरों की भी अगुवाई कर सकते है कि वे आकर, प्रभु का अनुसरण करने के हमारे उद्देश्‍य में सम्मिलित हो।

“जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्ति भर करना, क्‍योंकि अधोलोक में जहां तू जाने वाला है, न काम न युक्ति न ज्ञान और न बुद्धि है।” (सभोपदेशक 9:10)

‘बड़े या छोटे दानव?’ (Big or little giants?) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd

विवाह (Marriage)

सृष्टि निर्माण के समय परमेश्‍वर ने विवाह की स्‍थापना की; यह कोई मनुष्‍य के द्वारा बनाया गया सम्‍मेलन नही है। जब हम बाईबल से विवाह के विषय में पढ़ते है तो हम स्‍वंय रचियता के द्वारा दिये गये निर्देशों को पढ़ते है।

मुख्‍य पद: उत्‍पत्ति 2:18-24

सृष्टि निर्माण के छठवें दिन परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को बनाया। उसने देखा कि आदमी का अकेला रहना अच्‍छा नही है, इसलिए उसने आदमी के लिए एक उचित साथी के रुप औरत को बनाया। यही सबसे पहला विवाह था। (मत्‍ती 19:4-6) प्रारम्‍भ से ही परमेश्‍वर ने विवाह को, आदमी और उसकी प‍त्‍नी के बीच, एक अद्वितीय साझे के रुप में ठहराया है।

  1. औरत को कैसे बनाया गया?
  2. परमेश्‍वर ने औरत को इस रीति से क्‍यों बनाया?
  3. आदमी ने अपने लिए एक नया साथी पाकर कैसा व्‍यवहार किया?
  4. भविष्‍य में होने वाले विवाहों के लिए क्‍या नमूना स्‍थापित किया गया?

पिता और माता को छोड़ना

परमेश्‍वर के विवाह की रचना में, माता पिता को छोड़कर एक अलग नया परिवार शुरु करना, पहला चरण है। नया विवाहित जोड़ा अपने निर्णयों के लिए स्‍वंय जिम्‍मेदार होता है। जबकि माता पिता नये जोड़े को अपनी नयी भूमिका में ढलने के लिए अपनी महत्‍वपूर्ण सलाह और प्रोत्‍साहन प्रदान कर सकते है।

  • क्‍या विवाह से पहले घर छोड़ना गलत है?
  • क्‍या नये विवाहित जोड़े का माता पिता के साथ रहना गलत है?

एकजुट होना

यीशु ने बताया कि विवाह, परमेश्‍वर के सम्‍मुख की गयी जीवन भर की प्रतिबद्धता है। ­

“... दोनों एक तन होंगे। इसलिए वे अब दो नही पर एक तन हैं। इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है उसे मनुष्‍य अलग न करें।” (मरकुस 10:8-9)
परमेश्‍वर की रचना में विवाह एक अनुबंध है – यह एक प्रतिबद्धता है जिसे बिना सोचे समझे नही करना चाहिये और जो कभी टूट नही सकता है।

  • क्‍या एक वास्‍तविक सम्‍बन्‍ध परमेश्‍वर के सम्‍मुख स्‍वीकार्य है?

एक तन होना

परमेश्‍वर की विवाह की रचना में साथियों का “एक तन” होना सम्मिलित है। साथियों की अपनी अलग व्‍यक्तिगत पहचान और व्‍यक्तित्‍व होता है लेकिन तो भी एक नयी जुड़ी हुयी पहचान बनती है।

परमेश्‍वर की रचना में दोनों साथी आत्मिक रुप से एक होते है: वे एक दूसरे को विश्‍वास में बढ़ने के लिए और परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए प्रोत्‍साहित करते है। पतरस पति और पत्नियों को याद दिलाता है कि वे “जीवन के वरदान” के एकसाथ “वारिस” है। (1 पतरस 3:7)

परमेश्‍वर की रचना में दोनों साथी भावात्‍मक रुप से एक होते है: क्‍योंकि वे एक दूसरे पर सम्‍पूर्ण विश्‍वास रखते है। वे अपने मन की बातों को एक दूसरे के साथ बांटते है। वे एक दूसरे के घनिष्‍ठ मित्र होते है।

परमेश्‍वर की रचना में यह भी है कि पति और पत्नि को शारीरिक रुप से एक होना चाहिये। पौलुस लिखता है कि,

“अपने शरीर पर पत्‍नी का कोई अधिकार नही है बल्कि उसके पति का है। और इसी प्रकार पति का भी उसके अपने शरीर पर कोई अधिकार नही है, बल्कि उसकी प‍त्‍नी का है।” (1 कुरिन्थियों 7:4)
परमेश्‍वर ने यौन संसर्ग की रचना की जिससे कि पति और पत्‍नी एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम को शारीरिक घनिष्‍टता के द्वारा प्रगट कर सकें। इस स्‍तर की शारीरिक घनिष्‍टता केवल तभी उचित है जब पहले दोनों साथी परमेश्‍वर के सम्‍मुख एक दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध हो, और आत्मिक और भावात्‍मक रुप से एक हो।

एक दूसरे के प्रति समर्पित

एक सुखी विवाहिक जीवन के लिए परमेश्‍वर का सूत्र यह है कि पति और पत्‍नी एक दूसरे के प्रति समर्पित हो। पौलुस लिखता है कि,

“मसीह के प्रति सम्‍मान के कारण एक दूसरे को समर्पित हो जाओं।” (इफिसियों 5:21)
समर्पण का अर्थ है कि हर एक साथी, दूसरे साथी की आवश्‍यकताओं के लिए अपनी आवश्‍यकता का बलिदान करें। दोनों साथी एक दूसरे के आत्मिक कल्‍याण के लिए सोचें। जब वे किसी बात पर विचारविर्मश करें तो इस बात पर ध्‍यान केन्द्रित करें कि साझेदारी के लिए सबसे अच्‍छा निष्‍कर्ष क्‍या है। आज सामान्‍यत: बड़ी ही विषम स्थिति देखने को मिलती है, जिसमें पति और पत्‍नी प्राय: अपने विपरीत विचारों में एक दूसरे को खीचनें का प्रयास करते रहते है।

पति की भूमिका

उद्धार के विषय में, पुरुष और स्‍त्री की स्थिति, परमेश्‍वर के सम्‍मुख बराबर है। पौलुस लिखता है कि,

“न कोई यहूदी रहा न यूनानी, न दास न स्‍वतंत्र, न पुरुष न स्‍त्री, क्‍योंकि मसीह यीशु में तुम सब एक हो।” (गलातियों 3:28)
हालांकि परमेश्‍वर की रचना में पति और पत्‍नी की भूमिका अलग-अलग है ताकि वे एक दूसरे के सम्‍पूरक हो और एकसाथ मिलकर अच्‍छे से कार्य कर सकें। पति की भूमिका एक अगुवे के रुप में है।
“क्‍योंकि अपनी पत्‍नी के ऊपर उसका पति ही प्रमुख है। वैसे ही जैसे हमारी कलिसिया का सिर मसीह है। वह स्‍वंय ही इस देह का उद्धारकर्ता है ... हे पतियों, अपनी पत्‍नी से प्रेम रखो। वैसे ही जैसे मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया और अपने आप को उसके लिए बलि दे दिया।” (इफिसियों 5:23,25)
प्रमुख होने के नाते परिवार के सभी निर्णयों के लिए पति ही जिम्‍मेदार होता है (यद्यपि बहुत से क्षेत्रों में निर्णय लेने का अधिकार वह पत्‍नी को दे सकता है) परिवार के आत्‍मिक दिशा में विकास के लिए वह जिम्‍मेदार होता है। पतियों को एक प्रेमी और आत्‍मबलिदानी अगुवे के रुप में मसीह की शैली का अनुसरण करना चाहिये।

पतियों को अपनी पत्‍नी का ध्‍यान रखना चाहिये, उनका आदर करना चाहिये और उनके साथ कठोरता का व्‍यवहार नही करना चाहिये। (1 पतरस 3:7, कुलुसियों 3:19)

पत्‍नी की भूमिका

आरम्‍भ में परमेश्‍वर ने एक “उचित सहायक” के रुप में स्‍त्री को बनाया। उत्‍पत्ति 2:18 पत्‍नी सामर्थ, सहारा और सहयोग देती है। मलाकी 2:14 उनका वर्णन आत्‍मिक “साथी” के रुप में किया गया है और जो “जीवन का वरदान” पाने के एकसाथ वारिस है। 1 पतरस 3:7 इससे पता चलता है कि विवाह में, एक पति और पत्‍नी को आत्‍मिकता की सहायक गतिविधियों में एक साथ कार्य करना है।

पत्‍नी की भूमिका में यह भी सम्मिलित है कि वह अपने पति की प्रमुख की भूमिका को पहचाने।

“हे पत्नियों, अपने अपने पतियों के प्रति ऐसे समर्पित रहो, जैसे तुम प्रभु को समर्पित होती हो।” (इफिसियों 5:22)
“... और पत्नि को अपने पति का आदर करना चाहिये।” (इफिसियों 5:33)

अभिभावकता

परमेश्‍वर चाहता है कि पुरुष और स्‍त्री “फले और फूले और बढ़ते जाये” उत्‍पत्ति 1:28 पति और पत्‍नी दोनों को इसके लिए प्रतिबद्ध होना चाहिये कि वे परमेश्‍वर की सेवा करें और उनके बच्‍चे ईश्‍वर भक्‍त हो। क्‍या सदैव परमेश्‍वर यह चाहता है कि विवाहित जोड़े के बच्‍चें हो? क्‍या एक विवाहित जोड़े को बच्‍चे ना पैदा करने का निर्णय लेना चाहिये? मलाकी पति और पत्‍नी के माता-पिता बनने की भूमिका के विषय में लिखता है:

“परमेश्‍वर चाहता है कि पति और पत्‍नी एक शरीर और एक आत्‍मा हो जाये। और एक क्‍यों? जिससे उनके पवित्र सन्‍तान हो।” (मलाकी 2:15)
सम्‍पूर्ण पवित्र शास्‍त्र में माता-पिता से अनुरोध है कि वे अपने बच्‍चों को परमेश्‍वर के मार्ग सिखाये। परमेश्‍वर ने इस्राएलियों से भी कहा था कि वे उसकी आज्ञाओं को अपने हद्वय में और अपने मस्तिष्‍क में रखें और फिर उन आज्ञाओं को अपने बच्‍चों को सिखाये।
“तुम घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते-उठते इनकी चर्चा करके अपने लड़केबालों को सिखाया करना।” (व्‍यवस्‍थाविवरण 11:19)
नीतिवचन माता पिता के मार्गदर्शन और दिशा निर्देशन के महत्‍व को बताता है।
“क्‍या इस बात की गारण्‍टी है कि एक अच्‍छा शिक्षित बच्‍चा परमेश्‍वर की सेवा करेगा? लड़कें को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये, और वह बुढ़ापें में भी उससे न हटेगा।” (नीतिवचन 22:6)
प्रेरित पौलुस भी, उन सब से जो पिता है, अनुरोध करता है कि वे अपने बच्‍चों को परमेश्‍वर के मार्ग सिखाने की जिम्‍मेदारी लें।
“हे बच्‍चेवालों अपने बच्‍चों को रिस न दिलाओ परन्‍तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन पोषण करों।” (इफिसियों 6:4)

एक अविश्‍वासी से विवाह

पुराने नियम में इस्राएलियों को यह अनुमति नही थी कि वे अपने पड़ोसी राज्‍य से विवाह के लिए साथी को चुनें।

“और न उनसे ब्‍याह शादी करना, न तो उनकी बेटी को अपने बेटे के लिए ब्‍याह लेना। क्‍योंकि वे तेरे बेटे को मेरे पीछे चलने से बहकाएंगी, और दूसरे देवताओं की उपासना करवांएगी; और इस कारण यहोवा का कोप तुम पर भड़के उठेगा, और वह तुझ को शीघ्र सत्‍यानाश कर डालेगा।” (व्‍यवस्‍थाविवरण 7:3-4)
परमेश्‍वर ने चेतावनी दी कि दूसरे आस पास के राज्‍यों के लोगों के साथ विवाह करने से, इस्राएल राष्‍ट्र परमेश्‍वर से दूर हो जायेगा। विवाह के विषय में नये नियम की शिक्षा भी यही है कि परमेश्‍वर चाहता है कि एक विश्‍वासी को एक विश्‍वासी से ही विवाह करना चाहिये। एक विश्‍वासी से विवाह करने का अर्थ है कि विवाह के लिए एक ऐसे साथी को चुनना जिसका विश्‍वास आपके जैसा हो और जिसने बपतिस्‍में के द्वारा अपना जीवन परमेश्‍वर के प्रति समर्पित कर दिया हो। (1 कुरिन्थियों 7:39, 2 कुरिन्थियों 6:14-17)

विवाहविच्‍छेद या तलाक

परमेश्‍वर विवाहविच्‍छेद (तलाक) से घृणा करता है। (मलाकी 2:16) यीशु ने भी कहा कि (मरकुस 10:9), इसलिए एक विश्वासी को विवाह विच्‍छेद के विषय में कभी नही सोचना चाहिये। यीशु ने कहा कि विवाहविच्‍छेद के बाद पुन: विवाह एक व्‍यभिचार है।

“जो कोई अपनी पत्‍नी को त्‍यागकर दूसरी से ब्‍याह करें तो वह उस पहिली के विरोध में व्‍यभिचार करता है। और यदि पत्‍नी अपनी पति को छोड़कर दूसरे से ब्‍याह करें, तो वह व्‍यभिचार करती है।” (मरकुस 10:11-12)

कुछ सम्‍बन्धित पद

विवाह के लिए परमेश्‍वर का दृष्टिकोण उत्‍पत्ति 2:18-24; नीतिवचन 2:17; मलाकी 2:14-15
विवाह के लिए निर्देश व्‍यवस्‍थाविवरण 24:5; नीतिवचन 5:15-19; सभोपदेशक 9:9; 1 कुरिन्थयों 7:3-5; इफिसियों 5:21-33; 1 पतरस 3:5-7
अविश्‍वासी से विवाह व्‍यवस्‍थविवरण 7:3-6; एज्रा 10: 7-17,44; 1 कुरिन्थियों 7:39; 2 कुरिन्थियों 6:14-17
अभिभावकता व्‍यवस्‍थाविवरण 11:19; नीतिवचन 22:6; मलाकी 2:15; इफिसियों 6:4
विवाहविच्‍छेद या तलाक व्‍यवस्‍थाविवरण 24:1-4; यिर्मयाह 3:1,8; मलाकी 2:16; मत्‍ती 1:18-19; 5:31-32; 19:3-9; मरकुस 10:2-12; लूका 16:18; रोमियों 7:1-3; 1 कुरिन्थियों 7:-15, 39

क्‍या आप विवाह के विषय में चिन्‍तन कर रहे है?

अपने आप से ये प्रश्‍न पूछिये:

  • क्‍या हमारा जीवन परमेश्‍वर के प्रति समर्पित है और क्‍या हमारा विश्‍वास समान?
  • क्‍या हम विवाह की परमेश्‍वर की रचना और पति‍/पत्‍नी की भूमिका को समझते है?
  • क्‍या हम एक दूसरे के महत्‍व को जानते है?
  • क्‍या हम एक दूसरे की अपेक्षाओं को जानते है?
  • क्‍या हमारा ज्ञान अविरोध है?
  • क्‍या हम एक दूसरे के प्रति शारीरिक रुप से आकर्षित है?
  • क्‍या मेरा अकेला रहना अच्‍छा होता?

सारांश

परमेश्‍वर की रचना में विवाह के लिए पति और पत्‍नी:

  1. एक ही विश्‍वास के हो;
  2. एक नया परिवार बनाने के लिए अपने माता पिता से अलग हो;
  3. जीवनभर के लिए एक दूसरे के लिए प्रतिबद्ध हो;
  4. आपस में ऐसे सम्मिलित हो जैसे एक हो;
  5. एक दूसरे के प्रति समर्पित हो;
  6. अलग-अलग भूमिकायें हो;
  7. बच्‍चों को परमेश्‍वर के मार्ग सिखायें।

विचारणीय पद

  1. परमेश्‍वर द्वारा निर्धारित विवाह को पालन करने वाले से विवाह करके क्‍या लाभ होगा?
  2. आज परमेश्‍वर ऐसा क्‍यों चाहता है कि पत्नियों को पति के अधीन रहना चाहिये?
  3. यदि कोई अविश्‍वासी से विवाह करता है तो क्‍या समस्‍याऐं होंगी?

अन्‍य खोज

  1. पुराने नियम में बहुविवाह की घटना को खोजिये। परमेश्‍वर ने इसकी अनुमती क्यों दी थी?
  2. परमेश्‍वर के राज्‍य में विवाह के विषय में बाईबल क्‍या बताती है?
  3. मत्‍ती 19:3-9 को पढिये। क्‍या कुछ परिस्थितियों में यीशु ने विवाहविच्‍छेद और पुन:विवाह को अनुमति दी है?

‘विवाह’ (Marriage) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman

‘यहोवा का दूत छावनी किये रहता है’ (भाग 2) (The Angel of the LORD encampeth, Part 2)

बहुत सी ऐसी बातें है जो परमेश्‍वर हमारे जीवन में अपने प्रबन्‍ध के अन्‍तर्गत करता है ओर जिन्‍हें हम कभी नही समझ पाते है। यदि आप दाऊद और याकूब के समान एक चरवाहे है तो ऐसा हो सकता है कि आप के निकट कोई बहुत ही अच्‍छी चराई हो, लेकिन तौभी आप अपनी भेड़ों को वहाँ नही ले जाओगे, क्‍योंकि यह खतरनाक हो सकता है। यह हो सकता है कि यह किसी खड़ी चट्टान या शेर की मांद के निकट हो। हो सकता है कि आप अपने जीवन में कुछ कार्य करना चाहते हो, या कोई रास्‍ता आप चुनना चाहते हो, जो अपने आप में बहुत ही अच्‍छा हो, लेकिन तो भी परमेश्‍वर आपको रोकता है तो इसका कारण यह हो सकता है कि उसके आगे खड़ी चट्टान हो जिसे पार करने की सामर्थ्‍य आप में ना हो। यह हो सकता है कि जो मार्ग आप लेना चाहते है वह किसी आदमखोर जानवर के निकट हो, जो आप नही जानते हो। इसका यह मतलब भी नही है कि हम हमेशा गलत निर्णय लेते है - या जो चीजें गलत है उन्‍ही की इच्‍छा करते है। लेकिन ऐसा हो सकता है कि हम अनजाने में कोई जहरीली चराई खाना चाहते हो और परमेश्‍वर हमें उस जहर से बचाना चाहता हो - यह जहर सांसारिक बातें है जो हमारे मस्तिष्‍क में भर जाती है। ऐसा हो सकता है कि हम दूषित पानी पीना चाहते हो और परमेश्‍वर हमें रोक रहा हो। ये बातें बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट है। लेकिन यह भी हो सकता है कि जो चीजें हम चाहते है वह स्‍वंय दूषित या जहरीली ना हो लेकिन वे किसी खड़ी चट्टान या जंगली आदमखोर जानवर के निकट हो अर्थात उन चीजों का परिणाम खतरनाक हो जिसे हम नही जानते है और इसलिए परमेश्‍वर हमारी उस इच्‍छा को पूरा नही करता है।

भाईयों और बहनों, हमें भरोसा रखना चाहिए कि हमारा परमेश्‍वर जानता है कि वह क्‍या कर रहा है।

“यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी।” (भजन संहिता 23:1)
“यहोवा के खोजियों को किसी भली वस्‍तु की घटी न होगी।” (भजन संहिता 34:10)
वह “भली वस्‍तु” जो परमेश्‍वर के दृष्टिकोण से भली है।

आप को आपके जीवन में किसी भली वस्‍तु की घटी नही होगी। यदिआप चाहते है तो ऐसी कोई भली वस्‍तु नहीं जो परमेश्‍वर आप को नही देगा। वह आपको हर एक भली वस्‍तु देगा क्‍योंकि हमें बचाने के लिए उसकी ऐसी इच्‍छा है, उसको हममें रूचि है, वह उत्‍साहित है, और हमें आत्‍मा के फलों को प्रकट करना चाहिये।

आत्‍मा के फल भली वस्‍तुऐं है। अन्‍य सभी वस्‍तुऐं इन भली वस्तुओं के लिए एक साधन मात्र है। यहाँ तक कि भोजन और वस्‍त्र – ये हमारे चाहने के लिए भली वस्‍तुऐं नही है – ये केवल हमें जीवित रखने और शरीर ढकने के साधन है ताकि हम परमेश्‍वर के मार्गो को सीख सकें ओर भली वस्‍तुओं को प्राप्‍त कर सकें। तो आईये हम इन भली वस्‍तुओं को अच्‍छी तरह से जानें ताकि जब हम परमेश्‍वर को खोजते है तो हमें इन वस्‍तुओं की घटी ना हो।

गिनती की पुस्‍तक में एक घटना है जहाँ स्‍वर्गदूत ने मार्ग को रोका - गिनती 22:22 - बिलाम का मार्ग रोका गया। बालाक ने बिलाम से कहा कि आकर इस्राएल को शाप दें, जबकि परमेश्‍वर ने कहा, “तू इनके साथ मत जा” तू इन लोगों को शाप ना देना तू बालाक के लोगों के साथ मत जाना। यह परमेश्‍वर का बिल्‍कुल स्पष्‍ट सन्‍देश था कि, “मत जाना” लेकिन बालाक के दूत फिर से आये और उन्‍होंने इस बार कहा कि, “मैं निश्‍चय तेरी बड़ी प्रतिष्‍ठा करँगा” तो अब बिलाम को उन्‍हें ऐसा कहना चाहिए था कि, “नही - परमेश्‍वर ने ऐसा कहा है - लेकिन फिर से वह परमेश्‍वर से पूछने चला गया। वह जाना चाहता था - वह हाँ कहना चाहता था- वह इस संसार द्वारा दिये जाने वाला धन और सम्‍मान चाहता था। यद्यपि परमेश्‍वर ने “नही” कहा था तौ भी उसने अपने मन में जाने का निश्‍चय कर लिया था। ऐसा हम भी कर सकते है। परमेश्‍वर दृढ़ता से द्वार को बन्‍द कर सकता है, लेकिन हम फिर भी जाकर कहते है कि - लेकिन मैं जाना चाहता हूँ। जो हम करना चाहते है उसको तर्कसंगत बनाने के लिए हम कठिन परिश्रम करते है। बहुत सी चीजों के विषय में बाईबिल बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट बताती है – उदाहरण के लिए यदि हम विवाह के विषय में देखें - हम किसी विशेष व्‍यक्ति से विवाह करना चाहते है यह जानते हुए भी कि वह अविश्‍वासी है और आखिरकार हम ऐसा ही करते है। कई दूसरी छोटी-छोटी बातों में भी हम ऐसा ही करते हैं।

बिलाम ने जाने का निश्‍चय कर लिया था और वह जाना चाहता था इसलिए परमेश्‍वर ने कहा, “ठीक है - यदि तुम ऐसा ही चाहते हो तो ऐसा ही करों । मैं तुम्‍हें अपना बालक बनने के लिए तुम पर दबाव नही डालूंगा । मैं तुम से स्‍पष्‍ट कह चुका हूँ कि संसार के अनुसार मत चलो, लेकिन यदि तुमने निश्‍चय कर लिया है तो करो - मुझ से क्‍यों पूछना!” ठीक उसी तरह जैसे यिर्मयाह के समय में यहूदियों ने किया था - उन्‍होंने मिस्र जाने का निश्‍चय किया, लेकिन तो भी उन्‍होंने परमेश्‍वर से पूछा कि हो सकता है परमेश्‍वर का निर्णय उनके निर्णय से मेल खा जाये। और परमेश्‍वर ने ऐसा बार-बार किया जैसा कि रोमियों की पुस्‍तक के 1 अध्‍याय और 18-32 पदों में प्रगट है।

वह हम है! इसलिए यह बहुत ही महत्‍वपूर्ण है कि हम अपनी इच्छाओं को परमेश्‍वर को समर्पित कर दें। यदि हम परमेश्‍वर की इच्‍छा का विरोध करने का निश्‍चय करते है ओर अपनी इच्‍छा के अनुसार चलते है - तो वह कहेगा कि – ठीक है - यह तुम्‍हारा चुनाव है। तुम्‍हें मेरे हाथ से कोई नही छीन सकता लेकिन यदि तुम अपने आप मेरे हाथ से बाहर जाने की मूर्खता करना चाहते हो तो यह तुम्‍हारी मर्जी है। परमेश्‍वर किसी की इच्‍छा का विरोध नही करता और किसी की इच्‍छा के विरूद्ध अपना उन्‍हें अपने बच्‍चें बनने के लिए दबाव नही डालता। लेकिन परमेश्‍वर वही करता है जो उसने लूत के साथ किया - जब हम उसके बच्‍चे होना चाहते है लेकिन उसमें कुछ बाधाऐं है तो - वह जानता है कि हमें क्‍या मार्ग लेना चाहिए और हमें लेकन उस मार्ग पर चलने के लिए हमारा मार्गदर्शन करेगा।

आईये वापिस बिलाम की घटना पर आये - उसने अपनी गदही पर काठी बांधी और चल पड़ा - लेकिन परमेश्‍वर क्रोधित है क्‍योंकि उसको नही जाना चाहिए था। पद 22 “यहोवा का दूत उसका विरोध करने के लिए मार्ग रोककर खड़ा हो गया” अब लेकिन बिलाम उसको नही देख सका। यह हो सकता है कि बहुत सी जगहों पर स्‍वर्गदूत हो लेकिन हम उन्‍हें नही देख सकते हो। लेकिन गदही ने देखा – और रूक गयी। बिलाम परमेश्‍वर के मार्ग को नही देख सकता था। यहां तक कि जब गदही गिर गयी, तब भी बिलाम अपने पागलपन में (2 पतरस 2:16) उसको पीटता रहा। अन्‍त में उसकी आखें खुली और उसने देखा कि परमेश्‍वर का दूत उसका विरोध कर रहा है।

क्‍योंकि परमेश्‍वर हमसे प्रेम करता है इसलिए वह हमारे मार्ग को बन्‍द करता है, फिर चाहे हम अपनी मूर्खता के कारण ही उस मार्ग पर क्‍यों न चल रहे हो। यदि हमारे जीवन का समपूर्ण उद्देश्‍य परमेश्‍वर के मार्गदर्शन को खोजना है तो वह हमारे जीवन में कार्य करेगा और कोई भी चीज हमें उसके मार्गो से नही हटा सकेगी।

यह बात हमें व्‍यवहारिकता की ओर ले जाती है। यह हो सकता है कि हमारी कोई फाईल किसी सरकारी दफ्तर में विचाराधीन हो - हमारे पेशंन के कागजात, हमारे जमीन के कागजात, या कुछ अन्‍य कागजात। ते अब यह हो सकता है कि परमेश्‍वर अपने किसी दूत को रात में भेजकर हमारी फाईल को छिपवा दें क्‍योंकि वह हमारे लिए उस काम में देर करना चाहता है। अब यह नापसन्‍द होगा पर ऐसा हो सकता है। और ऐसी स्थिति में यदि हम अधिकारी के पास जाकर कहते है कि यह उपहार ले लीजिये या कुछ रिश्‍वत ले लीजिये – तो हम परमेश्‍वर के विरूद्ध गैरकानूनी तरह से लड़ रहे है जिससे हमें कुछ भी प्राप्‍त नही होगा। यह कार्य संसार के लिए ठीक है – वे यह कार्य कर सकते है क्‍योंकि उनके पास परमेश्‍वर नही है। हमारे पास परमेश्‍वर के दूत है जो हमारे लिए कार्य कर रहे है। जहाँ कही भी परमेश्‍वर के लोग रहते है स्‍वर्गदूत वही होते है – यहां तक कि किसी सरकारी दफ्तर में भी यदि वहाँ कोई ऐसा है जो परमेश्‍वर से डरता है।

बाईबिल की बहुत सी स्थितियों से हम यह जान सकते है कि परमेश्‍वर के स्‍वर्गदूत हमारे चारों ओर कार्य कर रहे है – जैसे - येरूशलेम में रोमियों की जेल में पतरस के साथ, रोमियों की जेल में पौलुस के साथ। हमारे चारों ओर परमेश्‍वर के स्‍वर्गदूत कार्य कर रहे है तो हमें इस संसार के ऐसे मित्र बनाने की आवश्‍यकता नही है जो अधार्मिकता को ईश्‍वर मानते है। यदि हम ऐसा करते है तो हम भी उनके अनन्‍त निवास स्‍थान, जो कि कब्र है, में सहभागी होंगे। बल्कि अपने आप को सच्‍चे एक मात्र परमेश्‍वर का मित्र बनाओ, और निश्‍चय ही हम देखेंगें कि उसके दूत हमें जीवन के मार्ग पर लाने के लिए कार्य करते है।

इस्राएल के अनुभव में हमें शायद सबसे अधिक इस बात का सम्‍पूर्ण दृश्‍य देखने को मिलता है कि किस प्रकार परमेश्‍वर स्‍वर्गदूतों के द्वारा प्रबन्‍ध करता है।

“तब परमेश्‍वर का दूत जो इस्राएली सेना के आगे आगे चला करता था जाकर उनके पीछे हो गया; और बादल का खम्‍भा उनके आगे से हटकर उनके पीछे जा ठहरा। इस प्रकार वह मिस्रियों की सेना और इस्राएलियों की सेना के बीच में आ गया; और बादल और अन्‍धकार तो था, तौ भी रात को उन्‍हें प्रकाश मिलता रहा; ओर वे रात भर एक दूसरे के पास न आए।” (निगर्मन 14:19-20)
उनके लिए अन्‍धेरे का बादल, लेकिन इस्राएलियों के लिए रोशनी देने वाला। क्‍या यह आश्‍चर्यजनक नही है? एक स्‍वर्गदूत मिस्रियों और इस्राएलियों के बीच में खड़ा है – एक स्‍वर्गदूत जो रोशनी और अन्‍धकार दोनों दे रहा है पर देखना यह है कि आप किसके साथ है। परमेश्‍वर का दूत परमेश्‍वर के लोगों को जीवन और रोशनी देता है और जो परमेश्‍वर के विरोध में है उनको विनाश और अन्‍धेरा देता है। इस समय से आगे हम उनकी सम्‍पूर्ण यात्रा में देखते है कि परमेश्‍वर के दूत उनके साथ कार्य कर रहे थे। स्‍वर्गदूतों के द्वारा ही मूसा को व्‍यवस्‍था दी गयी। (प्रेरितों के काम 7, इब्रानियों 2:30—31)
“सुन, मैं एक दूत तेरे आगे आगे भेजता हूँ जो मार्ग में तेरी रक्षा करेगा, ओर जिस स्‍थान को मैं ने तैयार किया है उसमें तुझे पहुँचाएगा।” (निगर्मन 23:20)
स्‍वर्गदूत उनका मार्गदर्शन करता था। और परमेश्‍वर का दूत हमारे चारों ओर भी है, भाईयों और बहनों, हमें मार्ग में बनाये रखने के लिए जो भी आवश्‍यक है वह करता हैं। यही उद्देश्‍य है कि वह हमें मार्ग में बनाये रखें ताकि हम सिय्‍योन तक की अपनी यात्रा को पूरी कर सकें। और यदि हमारी ऐसी ही इच्‍छा है तो वह हमें मार्ग में बनाये रखे ताकि वह हमें उस स्‍थान तक ला सके जो उसने हमारे लिये तैयार किया है – वह स्‍थान परमेश्‍वर का राज्‍य है।

नये नियम की भाषा में अनुवाद करें तो हमारे पास यीशु है जो “मार्ग” है। स्‍वर्गदूत हमें मसीह में रखे और हमें राज्‍य तक ला सकें।

निगर्मन 23:20 में स्‍वर्गदूत इस्राएलियों के लिए जीवन की आत्‍मा है; लेकिन पद 23 में एमोरीयों का नाश करने वाला है। इसलिए भविष्‍यद्वक्‍ता लिखता है:

“उनके सारे संकट में उस ने भी कष्‍ट उठाया, ओर उसके सम्‍मुख रहने वाले दूत ने उनका उद्धार किया; प्रेम ओर कोमलता से उसने आप ही उनको छुड़ाया; उसने उन्‍हें उठाया और प्राचीनकाल से सदा उन्‍हें लिए फिरा।” (यशायाह 63:9)
परमेश्‍वर स्‍वर्गदूत के द्वारा अपनी उपस्थिति रखकर अपने लोगों को लिए फिरा। भाईयों और बहनों, जीवन के मार्ग पर चलने की सामर्थ्‍य हममें स्‍वंय नही है। एक समय होता है जब हम चल भी नही पाते है, और खड़ें भी नही हो सकेंगे लेकिन उस समय परमेश्‍वर का दूत हमें लेकर चलेगा। परमेश्‍वर हमें उठायेगा और हमें राज्‍य में लेकर जायेगा यदि हम ऐसी इच्‍छा करते है। हमें ऐसी इच्‍छा करनी है। हमें बचाने के लिए और यदि हम चाहते है तो राज्‍य में ले जाने के लिए परमेश्‍वर के स्‍वर्गदूत है – यीशु बताता है कि स्‍वर्गदूतों की बारह पलटन (72,000 या 144,000 – हो सकता है सांकेतिक संख्‍या में प्रत्‍येक छुड़ाये हुए के लिए एक) है। परमेश्‍वर के लिए यह एक साधारण सी बात है लेकिन तभी यदि हम उसे कार्य करने की अनुमति दें। (याद रखें 185,000 अश्शूरियों के नाश करने के लिए एक ही दूत पर्याप्‍त था।)

परमेश्‍वर के लोगों के जीवन भर यह सुरक्षा उनके साथ रहती है, दोतान में एलीशा को याद करें – 2 राजा 6:13-17, सेना ने शहर को चारों ओर से घेर लिया था, लेकिन परमेश्‍वर के रक्षक ‘एलिशा के चारों ओर’ थे (पद 17), केवल परमेश्‍वर से डरने वाले एक व्‍यक्ति के लिए। हिजकिय्‍याह भी जान गया था कि परमेश्‍वर के दूत कार्य करते है, क्‍योंकि एक दूत ने सम्‍पूर्ण अश्‍शूर सेना को मारा।

परमेश्‍वर जो सुरक्षा देता है उसे भजन संहिता के 91 अध्‍याय में बड़े ही सुन्‍दर ढ़ंग से वर्णित किया गया है- उसकी छाया में रहने की सुरक्षा।

“जो परमप्रधान के छाए हुए स्‍थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा। मैं यहोवा के विषय कहूँगा, ‘वह मेरा शरणस्‍थान और गढ़ है; वह मेरा परमेश्‍वर है, मैं उस पर भरोसा रखूँगा।’ वह तुझे बहेलिये के जाल से, और महामारी से बचाएगा; वह तुझे अपने पंखों की आड़ में ले लेगा, और तू उसके पैरों के नीचे शरण पाएगा, उसकी सच्‍चाई तेरे लिये ढाल ओर झिलम ठहरेगी।” (भजन संहिता 91:1-4)
ये पद उस सुरक्षा का बहुत ही सुन्‍दर दृश्‍य प्रस्‍तुत करते है, जो परमेश्‍वर अपने लोगों के लिए प्रदान करता है। ये सब प्‍यारी बातें होती है;
“क्‍योंकि वह अपने दूतों को तेरे निमित्‍त आज्ञा देगा, कि जहाँ कहीं तू जाए वे तेरी रक्षा करें।” (भजन संहिता 91: 11)
दानिय्‍येल और उसके मित्रों के जीवन में भी स्‍वर्गदूतों ने बड़े नाटकीय रूप से कार्य किया। हमें सण्‍डे स्‍कूल में भी शद्रक, मेशक और अबेदनगो की कहानी बहुत पढ़ाई जाती है। उनके समान ही हम भी परमेश्‍वर की इच्‍छा को नही जानते है, लेकिन अपनी भूमिका को जानते है। यह हो सकता है कि हमें किसी भयानक कष्‍ट से छुड़ाना परमेश्‍वर की इच्‍छा न हो – जैसे कि हमारे बहुत से भाई बहन पुराने दिनों में कष्‍टों से गुजरें – अपने विश्‍वास के कारण जलाये गये। इब्रानियों का 11 अध्‍याय बताता है कि परमेश्‍वर के लोगों के लिए यह एक सामान्‍य अनुभव है। शद्रक, मेशक और अबेदनगों के लिए परमेश्‍वर का दूत दण्‍ड दी जाने वाली भट्टी की आग में उनके साथ था और उन्‍हें बचाया। वास्‍तव में, परमेश्‍वर के पुत्र के समान एक जन उनको बचाने के लिए उनके साथ था।

दानिय्‍येल के लिए शेर की मांद में परमेश्‍वर ने उसको बचाने के लिए अपना दूत भेजा और उसने शेर का मुंहँ बंद कर दिया। यीशु के लिए, जब वह परीक्षा की भट्टी में था, और मानवीय इच्‍छाओं के जंगली जानवरों से घिरा था तो स्‍वर्गदूत आये और उसकी सेवा की। (मरकुस 1:13)

यह संसार जो देता है, इस दुनिया के राज्‍य, पत्‍थरों से रोटी या मनुष्‍यों की पूजा, हमें उसकी आवश्‍यकता नही है। हमें केवल अपने चारों ओर सेवा के लिए स्‍वर्गदूतों की आवश्‍यकता है। और गतशमने में यीशु के समान ही हमें भी अपने अधिकतम तनाव के समय में, अपना मुहँ परमेश्‍वर की ओर करने की आवश्‍यकता है, फिर हमें स्‍वर्गदूतों से सामर्थ्‍य मिलेगी जैसे वे यीशु के साथ प्रगट हुए थे।

भाईयों और बहनों, परमेश्‍वर की वही सामर्थ्‍य हमारे लिए भी है जो वह अपने स्‍वर्गदूतों के द्वारा हमें मार्ग में बनाये रखने के लिए देता है। पौलुस के समान हम भी कहेंगे कि हमारे पास प्रेरितों के विषय में बताने का समय नही रहा कि किस प्रकार स्‍वर्गदूतों ने कुरनेलियुस, पौलुस और प्रेरित यूहन्‍ना के जीवन में कार्य किया। वास्‍तव में भाईयों और बहनों, हमारे पास, हमारे द्वारा नही बल्कि परमेश्‍वर के द्वारा बनायी गयी एक महिमामय और प्रतापी स्थिति है – जैसा हमें बताया गया है कि परमेश्‍वर के दूत, दस हजार के दस हजार गुणा, हमारी सेवा के लिए है जो परमेश्‍वर की इच्‍छा के अनुसार हमारी सेवा करते है। परमेश्‍वर के दूत हमारी इच्‍छा के अनुसार या हमारी आज्ञा से नही बल्कि भाग्‍यवश पमेश्‍वर की इच्‍छा से हमारी (जो उद्धार के वारिस होने के लिए बुलाये गये है) सेवा करते है।

वास्‍तव में यहोवा के दूत उन छोटे से छोटो के आस पास छावनी किये रहते है जिनकी आखें परमेश्‍वर की ओर लगी रहती है। जैसा कि यीशु मसीह ने भी मत्‍ती 18:10 में बताया। और भाईयों और बहनों वह हम में से प्रत्‍येक के चारों ओर छावनी किये रहता है। हमें यह विश्‍वास करना चाहिये। हमारे जीवन में स्‍वर्गदूतों की उपस्थिति एक वास्‍तविकता है। एक वास्‍तविक वास्‍तविकता – ये चीजें जिन्‍हें हम अपनी भौतिक ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा छूते है या देखते है, ये वास्‍तविक वास्‍तविकता नही है। जो देखा जा सकता है वह जाता रहेगा – लेकिन जो देखा नही जा सकता वह सदैव हमारे साथ रहेगा और कभी समाप्‍त नही होगा, जैसे हमारी आवश्‍यकता के लिए परमेश्‍वर के दूतों के द्वारा किये जाने वाला कार्य और देखभाल का परमेश्‍वर का अनन्‍त प्रबन्‍ध।

‘यहोवा का दूत छावनी किये रहता है (भाग 2)’ (The Angel of the LORD encampeth) is from ‘Caution! God at work’, by Tim Galbraith

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