Dipak Issue 13 (November 2012)

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105

व्हेनर्स, नॉट विनर्स (Whenners; not winners)

हममें ऐसे लोग है जो हमेशा बस जीने ही वाले होते है। हम इस प्रतिक्षा में होते है कि जब तक कुछ बदलाव हो, जब हमारे पास अधिक समय हो, जब हम कम थके हो, जब तक हमारी पदोन्निती हो, जब तक वे शान्‍त और स्थिर जीवन न जीये, जब तक, जब तक, जब तक। हमेशा ऐसा लगता है कि इससे पहले कि हम जीना आरम्‍भ करे हमारे जीवन में किसी बडी घटना का होना आवश्‍यक है: जार्ज शीहान।

कुछ लोग ऐसा जीवन जीने वालो को 'व्‍हेनर्स' (whenners) कहते है अर्थात कार्य को टालने वाले लोग। ऐसे लोग विजेता नही होते (not winners) बल्कि 'व्‍हेनर्स' (whenners), कार्य को टालने वाले, होते है। जब मैं बडा हो जाऊंगा, जब मैं स्‍नातक कर लूंगा, जब मुझे नौकरी मिल जाएगी, जब मेरे पास एक कार होगी, जब मेरे पास एक चलती हुयी कार होगी, जब मेरी शादी हो जायेगी, जब हमारे बच्‍चे होंगे, जब बच्‍चे बडे हो जायेंगे, जब मैं सेवा निर्वत्‍त हो जाऊंगा... तब मैं खुश रहूंगा। और बहुत से बूढे व्‍हेनर्स (whenners) क्‍या कहते है? "वो पुराने अच्‍छे दिन याद करो – जब…"

जीने के लिए दिन केवल आज है। हमारे पास समय केवल अब है। आओ अपने इस समय को हम प्रसन्‍नता में बदले, और अपने दिनों को खुशी से जीये। आओ बुद्धिमानी से आज के दिन में निवेश करें, यह एक शानदार लाभ देगा। पौलुस ने कुरिन्थियों से कहा, "देखो, अभी वह उद्धार का दिन है।", प्रभु यीशु मसीह ने भी हमें सलाह दी, "सो कल के लिए चिन्‍ता न करो, क्‍योंकि कल का दिन अपनी चिन्‍ता आप कर लेगा; आज के लिए आज ही का दुख बहुत है।"

अगर आप आज प्रसन्‍नता से नही जीते है तो आप प्रसन्‍नता से जीने में असफल है। जैसे ही वे पल आते है हमें उन्‍हें संजोने की आवश्‍यकता है। फूलों की खुशबू को सूंघे, और छिपते सूरज को एकटक देंखे, या रात में आकाश को देखकर उसके विषय में गंभीरता से सोचे और दाऊद के साथ घोषणा करे, "जब मैं आकाश को जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्‍त किए है, देखता हूं: तो फिर मनुष्‍य क्‍या है कि तू उसका स्‍मरण रखे, और आदमी क्‍या है कि तू उसकी सुधि ले?"

इस सच्‍चाई के बावजूद भी दाऊद आश्‍चर्यचकित था कि क्‍यों परमेश्‍वर हमारा स्‍मरण रखता है जैसा कि हम जानते है कि वह हमें स्‍मरण रखता है। भजनकार कहता है, "हे यहोवा, तू ने मुझे जांच कर जान लिया है। तू मेरा उठना बैठना जानता है। और मेरे विचारो को दूर ही से समझ लेता है। मेरे चलने और लेटने की तू भली-भाति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चाल चलन का भेद जानता है। हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नही जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो।"

क्‍योंकि परमेश्‍वर हमारे विषय में इतना अधिक जानता है, तो हम जो भी सोचे जो भी कहे और जो भी करे बडे ध्‍यानपूर्वक करे। हमारे लिए सही सोचने, सही कहने और सही करने का यही दिन है। अच्‍छा करने की इच्‍छा को कल पर मत डाले। हमें व्‍हेनर्स (whenners) नही बनना है बल्कि कार्य करने वाला अर्थात डूअर्स (doers) बनना है।

बाईबल को पढने का दिन आज है, बीमार से मिलने का दिन आज है, मित्र को फोन करने का दिन आज है और कैदी को प्रसन्‍नता भरा नोट लिखने का दिन आज है। सुलेमान ने कहा, "जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्ति भर करना।" और इसे आज ही करो। पौलुस हम से कहता है, "सो तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिए करो।" इसे आज से लागू करे। यह वापस नही होगा। आज के दिन को प्रभु के लिए जियो। "आज वह दिन है जो यहोवा ने बनाया है; हम इस में मगन और आनन्दित हो।"

‘व्‍हेनर्स, नॉट विनर्स’ (Whenners; not winners) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd

आत्मा का फल
(The Fruit of the Spirit)

जिस प्रकार एक वृक्ष का फल देखकर हम यह समझ जाते है कि यह किस प्रकार का वृक्ष है, वैसे ही हमारे व्‍यवहार के द्वारा यह पता चलता है कि हम किस प्रकार के व्‍यक्ति है। यहां हम उन गुणों को देखेंगे जिनको हमें अपने अन्‍दर विकसित करने की आवश्‍यकता है अर्थात आत्‍मा के फल।

मुख्‍य पद: गलतियों 5:13-26

इन पदों में दो बातों का स्‍पष्‍ट अन्‍तर दिया गया है। पापमय स्‍वभाव में रहने वाले लोगों के कार्यो की एक सूचि है और उन गुणों की सूचि है जो आत्‍मा में चलने के फल है। यदि हम मसीह की सेवा करना चाहते है तो हमें इन फलों को पैदा करना चाहिए।

  1. पदों 19 से 21 में दिये गये पापी स्‍वभाव के कार्यो पर विचार कीजिए। यदि कोई शब्‍द समझने में कठिन है तो उसके अर्थ को खोजिए। क्‍या आप यहां दी गयी बातों से आश्‍चर्यचकित है? क्‍या आप किसी बात को शामिल न किए जाने से आश्‍चर्यचकित है? इन बातों की तुलना 1 कुरिन्थियों 6:9-10 और प्रकाशितवाक्‍य 22:15 से कीजिए। इनमें किन बातों की समानता है?
  2. पदों 22 से 23 में दिये गये आत्‍मा के फल पर विचार कीजिए यदि कोई पद समझने में कठिन है तो उसके अर्थ को खोजिए। इन बातों की तुलना कुलिस्सियों 3:12-15 और 2 पतरस 1:5-7 से कीजिए? इनमें क्‍या समानता है?
  3. इन गुणों को फल क्‍यों कहा गया है?
  4. क्‍या आपको लगता है कि इनमें से कुछ गुण आपमें नही है?
  5. इन गुणों को हम अपने जीवन में किस प्रकार पैदा कर सकते है?

फल (Fruit)

प्रभु यीशु मसीह ने अपने आप को दाखलता और अपने शिष्‍यों को डालियां कहा। जो उन में बना रहता है वह बहुत फल फलता है, क्‍योंकि उन से अलग होकर वे कुछ भी नही कर सकते। यूहन्‍ना बपतिस्‍मा देने वाला अपने सुनने वालों से कहता है कि मन फिराव के योग्‍य फल लाओ ऐसा फल जो उनके मन फिराव को प्रदर्शित करें, ठीक उसी प्रकार जैसे एक फल उस वृक्ष की नस्‍ल और स्थिति को दर्शाता है जिस पर वह लगता है। (यूहन्‍ना 15:5; मत्ति 3:8)

"झूठे भविष्‍यद्वक्‍ताओं से सावधान रहो, ... उन के फलों से तुम उन्‍हें पहचान लोगे।" (मत्ति 7:15-16)

गलतियों की पुस्‍तक के अध्‍याय 5 में दो प्रकार के लोगों का वर्णन है: एक वे है जो पापमय जीवन जीते है और दूसरे वे है जो आत्‍मा के चलाये चलते है। यदि आप परमेश्‍वर को मानने वाले है तो आपमे आत्‍मा के फलो का विकास होना चाहिए। हमें ऐसी आशा नही करनी चाहिए कि कोई चमत्‍कार होगा और बिना किसी प्रयास के हम एक श्रेष्‍ठ व्‍यक्ति बन जायेगें, बल्कि आप अच्‍छा बनने के लिए स्‍वय सघंर्ष करेगें तभी आप सफल होगें। यह परमेश्‍वर की सामर्थ है जिसके द्वारा हम आत्‍मा के फल प्राप्‍त करते है। जब हम आत्‍मा के फलों को पैदा करने के लिए प्रयास करते है तो परमेश्‍वर हमारी सहायता करता है और हमारे प्रयासों को प्रभावी बनाता है। (कुलुस्सियों 1:10-11)

आत्‍मा के फल परमेश्‍वर के चरित्र के गुणों को प्रदर्शित करते है।

"पर आत्‍मा का फल प्रेम, आनन्‍द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम है; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्‍यवस्‍था नहीं।" (गलतियों 5:22-23) हमें अपने अन्‍दर इन गुणों का विकास करने की आवश्‍यकता है। (मत्ति 5:48)

क्‍योंकि यह सूचि बहुत विशेष है तो कुछ विश्‍वासी इन गुणों में से एक पर प्रत्‍येक दिन या प्रत्‍येक सप्‍ताह ध्‍यान केन्द्रित करते है। प्राय: यह अधिक प्रभावी होता है यदि हम साधारण रूप से अच्‍छा बनने की कोशिश करने के बजाय जीवन के एक किसी विशेष क्षेत्र में सुधार करने का लक्ष्‍य बनाये। प्रत्‍येक सुधार को पहले से अच्‍छा करने की इच्‍छा हमारे मन में होनी चाहिए।

प्रेम (Love)

यीशु ने कहा कि प्रेम दो बडी आज्ञाओं का आधार है: परमेश्‍वर से प्रेम करना और अपने पडोसी से अपने समान प्रेम करना।

पौलुस ने बताया कि हम कैसे इसे अभ्‍यास में ले सकते है: "प्रेम धीरजवन्‍त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नही करता; प्रेम अपनी बडाई नहीं करता, और फूलता नहीं। वह अनरीति नही चलता, वह अपनी भलाई नही चाहता, झुंझलाता नही, बुरा नही मानता। कुकर्म से आनन्दित नही होता, परन्‍तु सत्‍य से आनन्दित होता है। वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नही।" (1 कुरिन्थियों 13:4-8)

यह जीवन में पर्याप्‍त कठिन बातों के अभ्‍यास को सिखाता है।

आनन्‍द और खुशी (Joy and Happiness)

जब एक पापी मन फिराता है तो स्‍वर्ग में आनन्‍द होता है। एक मन फिराने वाले व्‍यक्ति को भी बडा आनन्‍द होता है जैसे उसे कोई छिपा खजाना मिल गया हो। एक विश्‍वासी को हर एक परिस्थिति में इस आनन्‍द में बना रहना चाहिए।

"हे मेरे भाईयों जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पडो, तो इस को पूरे आनन्‍द की बात समझो..." (याकूब 1:2)

पौलुस और सीलास ने फिलिप्पियो में अदम्‍य आनन्‍द को प्रदर्शित किया जब उन पर बेते पड रही थी और उनके पांव काठं में ठोंके गये थे तो भी वे आधी रात को प्रार्थना कर रहे थे और परमेश्‍वर के भजन गा रहे थे। यीशु ने भी भविष्‍य में मिलने वाले आनन्‍द के लिए दुख और कष्‍टों को सहा। (इब्रानियों 12:2)

शान्ति (Peace)

नये नियम के अधिकांश पत्रों का आरम्‍भ इस बधाई के साथ होता है कि तुम्‍हें "अनुग्रह और शान्ति" मिलती रहे। पौलुस कहता है कि वह शान्ति हम प्रार्थना के द्वारा पा सकते है:

"किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो; परन्‍तु हर एक बात में तुम्‍हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्‍यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्‍मुख उपस्थित किए जाएं। जब परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिल्‍कुल परे है, तुम्‍हारे हद्धय और तुम्‍हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।" (फिलिप्पियों 4:6-7)

यीशु हमारी शान्ति है: अपनी मृत्‍यु के द्वारा परमेश्‍वर से हमारा मिलाप कराके हमें शान्ति दी है। (इफिसियों 2:14-18) लेकिन शान्ति वही समाप्‍त नही हो जाती है: जहां तक हो सके हम में प्रत्‍येक को दूसरे लोगों के साथ मेल मिलाप से रहना चाहिए। (रोमियों 12:18) हमें शान्ति का चाहने वाला नही बल्कि शान्ति का बनाने वाला होना चाहिए क्‍योंकि हम शान्ति के सुसमाचार को दूसरे लोगों के साथ बाटंने वाले है।

धैर्य और दृढता (Patience and Perseverance)

अय्‍यूब के विषय में हम देखते है कि उसने असहनीय कष्‍टों में भी अविश्‍वसनीय रूप से अपने धैर्य को बनाये रखा। याकूब भी अय्‍यूब के उदाहरण के द्वारा बताता है कि किस प्रकार उसको धैर्य और विश्‍वास में दृढता का पुरस्‍कार मिला। अय्‍यूब ने कभी भी परमेश्‍वर से यह नही कहा, "कि ऐसा मेरे साथ क्‍यों हुआ?" क्‍योंकि हममे से कोई भी कष्‍टों से मुक्‍त जीवन जीने के योग्‍य नही है। परमेश्‍वर हमारे कष्टों को देखता है और कभी कभी इन कष्‍टों के पीछे कुछ अच्‍छी वजह होती है: इससे हमारे मनों मे एक प्रश्‍न उठता है, लेकिन यदि हम अपने विश्‍वास में दृढ है तो हम सीखते है और बढते है।

दूसरे लोगों के साथ सम्‍बन्‍ध रखने पर भी हमारे धैर्य को चुनौती मिल सकती है- वे चिढाने वाले हो सकते है, या जिद्दी, या अभद्र। ऐसे समय में हमें पौलुस की आज्ञा को याद रखना चाहिए: "और हे भाईयों, हम तुम्‍हें समझाते है, कि जो ठीक चाल नही चलते उनको समझाओ, कायरों को ढाढस दो, निर्बलों को संभालो, सब की ओर सहनशीलता दिखाओ।" (1 थिस्‍सलुनीकियों 5:14)

दया (Kindness)

क्‍या यह अच्‍छा नही जब कोई आपसे भलाई करता है? हमें हर समय एक दूसरे के प्रति ऐसा ही व्‍यवहार करना चाहिए। पौलुस कहता है- "... बडी करूणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।" (कुलुस्सियों 3:12)

यीशु ने अपने शिष्‍यों से कहा कि दूसरों के साथ ऐसा व्‍यवहार करो जैसा वे अपने लिए दूसरों से चाहते है। यदि हम दूसरों के दृष्टिकोण से अपने जीवन में चले तो दूसरों के प्रति भला करना आसान हो जाता है। आखिर हम चाहते है कि वे हमारे साथ भलाई करे। जब आप दूसरों की बुराई की इच्‍छा करते है, तो परमेश्‍वर की उस दया के विषय में सोचे जो यीशु मसीह को भेजकर उसने हमारे साथ की। (इफिसियों 2:7) हम परमेश्‍वर से प्रेम करते है क्‍योंकि पहले उसने हमसे प्रेम किया, और वह भलाई हमें दूसरों के साथ करनी चाहिए।

भलाई (Goodness)

जब मूसा परमेश्‍वर की महिमा देखना चा‍हता था तो परमेश्‍वर ने कहा कि मैं तेरे सम्‍मुख होकर चलते हुए तुझे अपनी सारी भलाई दिखाऊंगा और तेरे सम्‍मुख अपने नाम का प्रचार करूंगा (निर्गमन 33:18-19) भलाई परमेश्‍वर के चरित्र का एक महत्‍वपूर्ण गुण है। और यह गुण परमेश्‍वर हममें देखना चाहता है। अपने जीवन में भलाई दिखाने के लिए हमें अपने मस्तिष्‍क से स्‍वार्थ और पापी प्रवृति को निकाल कर उसमें अच्‍छी बातों को लाना होगा।

  • अच्‍छी और सही शिक्षा देने वाली पुस्‍तकों को ही पढें।
  • टी.वी. प्रोग्राम और फिल्‍मों का ध्‍यानपूर्वक चुनाव करें।
  • व्‍यर्थ के विचार विमर्श में न पडे।
  • बाईबल को नियमित रूप से पढे।
  • अपने मस्तिष्‍क में अच्‍छी बातों को रखे।

जैसा पौलुस कहता है- "निदान, हे भाईयों, जो जो बातें सत्‍य है, और जो जो बातें आदरणीय है, और जो जो बातें उचित है, और जो जो बातें पवित्र है, और जो जो बातें सुहावनी है, और जो जो बातें मनभावनी है, निदान जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें है उन्‍हीं पर ध्‍यान लगाया करों" (फिलिप्पियों 4:8)

विश्वास (Faithfulness)

जब हम परमेश्‍वर के मार्गो को चुनते है और बपतिस्‍मा लेते है तो हमें अन्‍त तक विश्‍वासी रहना चाहिए। बाईबल में बहुत से विश्‍वासी अपने विश्‍वास के कारण जाने जाते थे। एक उदाहरण उनेसिमुस है जिसे पौलुस "विश्‍वासयोग्‍य और प्रिय भाई" कहकर सम्‍बोधित करता है। नीतिवचन में हम पढते है कि "सच्‍चे मनुष्‍य पर बहुत आशीर्वाद होते रहते है, परन्‍तु जो धनी होने में उतावली करता है, वह निर्दोष नही ठहरता।" (नीतिवचन 28:20) इसलिए यदि आप आशीष चाहते है (अब और आने वाले समय में) तो परमेश्‍वर पर विश्‍वास करों और विश्‍वासी बने रहो। परमेश्वर अपने पीछे चलने वाले लोगों का हमेशा ध्‍यान रखेगा।

कोमलता (Gentleness)

पौलुस ने थिस्‍सलुनीकियों के विश्‍वासियो को लिखा कि "और यद्यपि हम मसीह के प्रेरित होने के कारण तुम पर बोझ डाल सकते थे परन्‍तु जिस तरह माता अपने बालकों को पालन-पोषण करती है, वैसे ही हमने भी तुम्‍हारे बीच में रहकर कोमलता दिखाई है।" (1 थिस्‍सलुनीकियों 2:6-7)

ठीक इसी प्रकार वह तिमुथियुस को लिखता है, कि आत्मिक अगुवो को कोमल होना चाहिए। (1‍तीमुथियुस 3:3) हमें इन अगुवो का अनुसरण करना चाहिए और दूसरो के प्रति कोमल होना चाहिए। जब हम किसी की कुछ निन्‍दा करना चाहते हो तो हमें पुन: सोचना चाहिए, और कोमल और दयालु तरीके से व्‍यवहार करना चाहिए।

"और प्रभु के दास को झगडालू होना न चाहिए, पर सब के साथ कोमल और शिक्षा में निपुण, और सहनशील हो। और विरोधियों को नम्रता से समझाए, क्‍या जाने परमेश्‍वर उन्‍हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्‍य को पहिचाने।" (2 तीमुथियुस 2:24-25)

आत्‍म नियन्‍त्रण (Self-Control)

जब पौलुस ने तीतुस को लिखा तो उसने आत्‍म-नियन्‍त्रण को महत्‍वपूर्ण बताया। सबसे पहले उसने बताया कि प्राचीनों को आत्‍म नियन्त्रित होना चाहिए। फिर वह तीतुस से कहता है कि बुजुर्गो को आत्‍म नियन्‍त्रण की शिक्षा दे। बुजुर्ग महिलाये युवतियों को आत्‍म नियन्‍त्रण की शिक्षा दे और नौजवानों को आत्‍म नियन्‍त्रण के लिए प्रोत्‍साहित करें। आत्‍म नियन्‍त्रण स्‍वाभाविक रूप से नही आता है इसलिए प्रत्‍येक को इसे सीखने की जरूरत है। विभिन्‍न लोगों के लिए आत्‍म नियन्‍त्रण की आवश्‍यकता भिन्‍न है-

  • हो सकता है कि आपको खाना पसन्‍द है, और आप जरूरत से ज्‍यादा खाना चाहते है।
  • हो सकता है आपको शराब पीना पसन्‍द है, लेकिन आप बहुत अधिक पीना चाहते है।
  • कोई आपको क्रोधित करता है और आप उसे गाली देना या पीटना चाहते है।
  • आप अपनी महिला मित्र या पुरूष मित्र के साथ अकेले है और आपको शारीरिक सम्‍बन्‍ध बनाने का प्रलोभन होता है।

प्रत्‍येक व्‍यक्ति के पास कुछ ऐसे क्षेत्र है, चाहे वे विचार हो या कार्य, जहां आत्‍म नियन्‍त्रण करना उनके लिए कठिन होता है। अत: परमेश्‍वर के राज्‍य में प्रवेश करने के लिए हमें पाप से बचना जरूरी है और पाप से बचने के लिए आत्‍म नियन्‍त्रण सीखना जरूरी है।

"क्‍या तुम नही जानते, कि अन्‍यायी लोग परमेश्‍वर के राज्‍य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्‍यागामी, न मूर्ति पूजक, न गाली देने वाले, न अन्‍धेर करने वाले परमेश्‍वर के राज्‍य के वारिस होगें।" (1 कुरिन्थियों 6:9-10)

कुछ सम्‍बन्धित पद

फल- नीतिवचन 8:19; मत्ति 7:15-20; 12:33; लुका 3:7-9; यूहन्ना 15:1-6; गलतियों 5:22; फिलिप्पियों 1:9-11; याकूब 3:17-18
प्रेम- निर्गमन 34:6-7; 1 इतिहास 16:34; भजन संहिता 136; मत्ति 22:37-39; यूहन्ना 15:9-17; 1 कुरिन्थियों 13; 16:14; इफिसियों 5:25-30; कुलुस्सियों 3:12-14; 1 पतरस 4:8
आनन्द- भजन संहिता 43:4; 47:1; 66:1-4; नीतिवचन 15:20; यशाया‍ह 12; मत्ति 13:44; लुका 15:7; प्रेरितों 13:49-52; 16:34; इब्रानियों 12:2; याकूब 1:2
शान्ति- भजन संहिता 29:11; 34:14; 122:6-8; नीतिवचन 14:30; यशायाह 26:3-4; जकर्याह 9:9-10; मत्ति 5:9; यूहन्ना 14:27; रोमियों 5:1; 12:18; 1 कुरिन्थियों 1:3; इफिसियों 2:14-17; फिलिप्पियो 4:7; कुलुस्सियों 3:15; 1 थिस्सलुनिकियों 5:13
धैर्य- नीतिवचन 14:29; रोमियों 12:12; गलतियों 5:22; इफिसियों 4:2; कुलुस्सियों 1:10-12; 3:12; 1 थिस्सलुनीकियों 5:14; 2 तीमुथियुस 4:2; याकूब 5:7-11
दया- नीतिवचन 11:16-17; 12:25; 14:21; यिर्मयाह 9:23-24; रोमियों 2:4;11:22; 1 कुरिन्थियों 13:4; गलतियों 5:22; इफिसियों 2:7;4:32; कुलुस्सियों 3:12-14; 2 पतरस 1:7
भलाई- निर्गमन 33:19; भजन संहिता 34:8;14; नीतिवचन 3:27,28; मत्ति 25:21-23; लूका 3:9; 18:19; यूहन्ना 10:11-15; रोमियों 2:7; 15:14; 1 कुरिन्थियों 15:33; गलतियों 5:22; इफिसियों 5:9; तितुस 2:3,7,14; 3:1,8,14; याकूब 3:13; 4;17; 2 पतरस 1:5-8
विश्वास- निर्गमन 34:6-7; व्‍यवस्‍थाविवरण 7:9; भजन संहिता 31:23; 145;13; नीतिवचन 28:20; मत्ति 25:21-23; रोमियो 12:1; कुलुस्सियों 4:9; इब्रानियों 3:1-6; प्रकाशितवाक्य 2:10
कोमलता- 1 राजा 19:12; नीतिवचन 15:1; जकर्याह 9:9; मत्ति 11:29; 2 कुरिन्थियों 10:1; गलतियों 5:23; इफिसियों 4:1-2; फिलिप्पियों 4:5; कुलुस्सियों 3:12; 1 थिस्‍सलुनीकियों 2:7; 2 तीमुथियुस 2:24-25; 1 पतरस 3:1-4; 15-16
आत्मा नियन्त्रण- नीतिवचन 25:28; 1 कुरिन्थियों 5:9-10; गलतियों 5:23; 1 तीमुथियुस 3:2; तितुस 1:8; 2:1-8; 2 पतरस 1:6

सारांश

आत्‍मा का फल परमेश्‍वर का चरित्र है जो उन लोगों के जीवन में बढता है जो परमेश्‍वर की सहायता से कार्य करते है। यह फल विकसित करने और दिखाने के लिए हमें प्रेम, आनन्‍द, शान्ति, धैर्य, दया, भलाई, विश्‍वास, कोमलता और आत्‍म नियन्‍त्रण को सीखने की आवश्‍यकता है। यह एक जीवन भर सीखने की प्रक्रिया है क्‍योंकि हमारी लडाई शारीरिक अभिलाषाओं के विरूद्ध है। परमेश्‍वर हर समय हमारे जीवन में कार्य कर रहा है और हमारे प्रयासों में हमारी सहायता कर रहा है।

विचारणीय पद

  1. आपको क्‍या लगता है आत्‍मा का फल आपके जीवन में कितना है? आत्‍मा के फलों के इन गुणों की क्रमबद्ध सूचि बनाना आपके लिए सहायक हो सकता है। यदि आपका कोई ईमानदार मित्र है तो उससे आप यही कार्य अपने लिए करने को कह सकते है। अब इन दोनों सूचियों की तुलना करो और आपस में विचार विमर्श करो।
  2. दाऊद एक विश्‍वासी व्‍यक्ति था। उसके जीवन से हमें ऐसी परिस्थितियों के उदाहरण मिलते है जिनमें उसने आत्‍मा के फलों को दिखाया।
  3. पहला तीमुथियुस अध्‍याय 3 और तीतुस अध्‍याय 1 अगुवों के चुनाव के विषय में हमारा मार्गदर्शन करते है। इन पदों को ध्‍यानपूर्वक पढें और देखे कि आत्मिक अगुवों में किस प्रकार के गुण होने चाहिए। यदि किसी फल की कमी है, तो विचार करें कि यह क्‍यों जरूरी है।

‘आत्मा का फल’ (The Fruit of the Spirit) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman

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