Dipak Issue 9 (February 2011)

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105

उत्‍साह (Enthusiasm)

“बहुत वर्षो तक जीवित रहने से कोई बूढा नही होता है। व्‍यक्ति अपने आदर्शो को छोड देने से बूढा होता है। बहुत वर्षो तक जीवित रहने से त्‍वचा में झुर्रियां पडती है, लेकिन यदि उत्‍साह नही तो आत्‍मा में झुर्रियां पड जाती है।” ये पंक्तिया जनरल डगलस मैकआरथर की मेज पर रखी पट्टिका से ली गयी है। किसी अन्‍य व्‍यक्ति ने कहा है कि यदि उत्‍साह नही तो आत्‍मा भी नही।

इन्थ्‍यूजिऐजम (उत्‍साह) शब्‍द की उत्‍पत्ति की खोज करना बहुत रूचिकर है इन्‍थ्‍यूजिऐजम शब्‍द की उत्‍पत्ति यूनानी भाषा में परमेश्‍वर के लिए प्रयोग होने वाले शब्‍द, ‘थि‍ओस’ (theos) से हुयी। इसका शब्दिक अर्थ एन थि‍ओस (en theos) अर्थात परमेश्‍वर को अपने अन्‍दर रखना है इसलिए यह कहना बिल्‍कुल सही है कि जिन लोगों में उत्‍साह (enthusiasm) नही अर्थात जो अपने भीतर परमेश्‍वर को नही रखते, वे आत्‍मा रहित है।

इस बात पर विचार करें कि हमें किस बात के लिए उत्‍साहित रहना है। हम सच्‍चाई को जानते है। परमेश्‍वर ने हमें अपनी ऊँची और पवित्र बुलाहट से बुलाया है। हम परमेश्‍वर के शाही परिवार के सदस्‍य हो गये है, यीशु मसीह अब हमारे बडे भाई है, हमारा सम्‍बन्‍ध अब्राहम से हो गया है और हम उन सभी प्रतिज्ञाओं के वारिस हो गये है जो परमेश्‍वर ने अब्राहम से की थी। इस संसार में कोई भी हमसे अधिक अच्‍छा नही है। और अब भी हम यदि उत्‍साहित (enthusiastic) नही है तो यह बडे शर्म की बात है। हमारे समान दूसरे लोगों के पास प्रसन्‍न रहने की ऐसी वजह नही है। यदि किसी व्‍यक्ति को एक करोड रूपया मिल जाये तो निश्‍चय ही वह उत्‍साहित होगा लेकिन हमारे पास उत्‍साहित होने का इससे कही बडा कारण है, क्‍योंकि इस रूपये को वह मृत्‍यु के समय अपने साथ नही ले जा सकता और कुछ सालों बाद इसे किसी दूसरे के लिए छोड कर चला जायेगा। इस संसार की धन सम्‍पत्ति हमारे हाथ में होने पर भी एक दिन चली जाती है लेकिन परमेश्‍वर की प्रतिज्ञायें ऐसी नही है। परमेश्‍वर ने हमसे “घरों और भाइयों और बहिनों और माताओं और लडके-बालों और खेतों को पर उपद्रव के साथ और परलोक में अनन्‍त जीवन” देने की प्रतिज्ञायें की है।

दाऊद एक उत्‍साहित व्‍यक्ति था। परमेश्‍वर के सन्‍दूक के सामने मग्‍न होकर नाचने के द्वारा, हम उसके उत्‍साह की कल्‍पना कर सकते है। इसमें कोई आश्‍चर्य नही कि दाऊद को, सम्‍पूर्ण मन से परमेश्‍वर के पीछे चलने वाला व्‍यक्ति कहा गया है। परमेश्‍वर निश्‍चय ही हमें उत्‍साहित रखेगा। परमेश्‍वर कहता है, “इसलिए जो मैं उत्‍पन्‍न करने पर हूँ, उसके कारण तुम हर्षित हो, और सदा सर्वदा मगन रहे; क्‍योंकि देखो, मैं यरूशलेम को मगन और उसकी प्रजा को आनन्दित बनाऊंगा।”

जब हमारे आसपास कोई उत्‍साहित व्‍यक्ति होता है तो हम आनन्दित होते है। परमेश्‍वर अय्‍यूब को सृष्टि का वर्णन करते हुए कहता है कि, “जब कि भोर के तारे एक संग आनन्‍द से गाते थे और परमेश्‍वर के सब पुत्र जय जयकार करते थे?” जब परमेश्‍वर का पुत्र पैदा हुआ तो स्‍वर्गदूतों ने उत्‍साहपूर्वक चरवाहों को यह घोषणा की कि, “देखो मै तुम्‍हें बडे आनन्‍द का सुसमाचार सुनाता हूँ।”

परमेश्‍वर ने जो हमें अपनी पवित्र पुस्‍तक के द्वारा बडे आनन्‍द का सुसमाचार दिया है, उसके प्रति हमारी क्‍या प्रतिक्रिया है? क्‍या इस सुसमाचार के द्वारा हम उत्‍साहित है? क्‍या हम अपनी ऊँची और पवित्र बुलाहट से उत्‍तेजित है? दाऊद ने भी कहा कि, “फिर क्‍या तुम्‍हारी दृष्टि में राजा का दामाद होना छोटी बात है?” एक राजा के भाई और बहन होने पर हम उत्‍साहित न हो ऐसा असम्‍भव है।

ऐसा कहा गया है कि यदि सभी नियन्‍त्रण खो दे और आप अपने पर नियन्‍त्रण रख सके तो ऐसी परिस्थिति में आपके लिए समझ पाना कठिन होता है कि क्‍या हो रहा है। जिस ऊँची बुलाहट से हमें बुलाया गया है यदि हम उसके विषय में शान्‍त और अभावुक रहते है तो शायद हम इस ऊँची बुलाहट के अर्थ को नही समझते है।

“हे धर्मियों यहोवा के कारण आनन्दित और मगन हो, और हे सब सीधे मन वालों आनन्‍द से जयजयकार करो।” उत्‍साहित (enthusiastic) रहने से हम जवान रहते है और जो लोग परमेश्‍वर को अपने अन्‍दर (en theos) रखते है वे सदा सर्वदा के लिए जवान रहेंगे क्‍योंकि “उनकी चमक आकाशमण्‍डल की सी होगी और वे सर्वदा तारों की नाई प्रकाशमान रहेंगे।”

‘उत्‍साह’ (Enthusiasm) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd

प्रेम का नियम (The Law of Love)

“प्रेम धीरजवन्‍त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नही करता; प्रेम अपनी बडाई नही करता, और फूलता नही। वह अनरीति नही चलता, वह अपनी भलाई नही चाहता, झुंझलाता नही, बुरा नही मानता, कुकर्म से आनन्दित नही होता, परन्‍तु सत्‍य से आनन्दित होता है। वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नहीं।” (1 कुरिन्थियों 13:4-8)

मुख्‍य पद: लैव्‍यव्‍यवस्‍था 19:1-18

प्रेम का नियम सुसमाचार के सन्‍देश और एक विश्‍वासी के जीवन का आधार है। बिना प्रेम के आशा नही। वास्‍तव में, परमेश्‍वर के प्रेम का सन्‍देश ही दया का सन्‍देश है। यदि हम बाईबल से क्षमा, धैर्य, दया, उदारता और कृपा के उदाहरणों को निकाल दे तो बाईबल में अधिकांश कोरे पन्‍ने होगें। कभी-कभी परमेश्‍वर के प्रेम को स्‍वीकार करना सरल नही होता और न ही स्‍वंय उस प्रेम को दर्शाना सरल है। लेकिन यदि हम उद्धार पाने के लिए उत्‍सुक है तो हमें परमेश्‍वर से और अपने पडोसी से, अपने सम्‍पूर्ण मन से प्रेम करना चाहिए।

  1. (a) ये पद आपको क्‍या स्‍मरण दिलाते है?
    (b) इन नियमों का सारांश आप कैसे देंगे?
  2. क्‍या आज भी आपको इन नियमों का पालन करना चाहिये? पद 13 पर विचार कीजिए।
  3. व्‍यवस्‍थाविवरण 5:6-21 को पढिए। इन पदों में मुख्‍य अन्‍तर क्‍या है?
  4. मत्ति 22:36-40 और यूहन्‍ना 13:34 को पढिये। प्रभु यीशु मसीह ने ऐसा क्‍यो कहा कि यह एक नयी आज्ञा है?
  5. किस परिस्थिति में, अपने पडोसी से प्रेम करना आपके लिए मुश्किल होता है? कुछ उदाहरण दीजिए।

सबसे बडी आज्ञा

“तू परमेश्‍वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बडी और मुख्‍य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पडोसी से अपने समान प्रेम रख।” (मत्ति 22:37-39)

कल्‍पना कीजिए यदि इन पदों को निम्‍न प्रकार पढा जाये:

“तू परमेश्‍वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्वि के साथ घृणा रख। यद्यपि तेरे सृष्टिकृता ने तूझे बनाया है और तूझको सब कुछ दिया है यहां तक कि अपना बेटा भी दे दिया, लेकिन तू स्‍वार्थी हो जा, उसको अयोग्‍य जान, उसको त्‍याग दे, उसकी अनदेखी कर, पाप कर, दूसरे झूठे देवताओं के पीछे चल। बडी और मुख्‍य आज्ञा यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पडोसी से घृणा कर और अपने आप से प्रेम रख, क्‍योंकि यदि तू ऐसा नही करेगा तो तेरा पडोसी तूझ से लाभ उठाएगा और जब तू कमजोर होगा तो तूझे कष्‍ट होगा। हो सकता है कि सबसे ताकतवर जीते।”

यह शर्मनाक है। लेकिन क्‍या ऐसा ही होता है?

बडे दुख की बात है कि बहुत से लोग प्रेम के इस नियम की अनदेखी कर रहे है, जो प्रेम करने वाले परमेश्‍वर के प्रति सम्‍पूर्ण समर्पण है। अविश्‍वासी लोग इसे हंसी में उडाते है। और वे सोचते है कि केवल कमजोर लोग ही इस प्रेम के नियम का अनुसरण करते है।

सर्वप्रथम परमेश्‍वर से प्रेम

यदि हम परमेश्‍वर की असीम दया और प्रेम को ग्रहण करते है तो ही हम स्‍वाभाविक रूप से दूसरो के प्रति दया और प्रेम प्रकट कर सकते है। अन्‍यथा हमारा धर्म झूठा है।

“हे प्रियो, हम आपस में प्रेम रखें; क्‍योंकि प्रेम परमेश्‍वर से है: और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्‍वर से जन्‍मा है; और परमेश्‍वर को जानता है। जो प्रेम नही रखता, वह परमेश्‍वर को नही जानता, क्‍योंकि परमेश्‍वर प्रेम है। जो प्रेम परमेश्‍वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्‍वर ने अपने इकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पायें। प्रेम इसमें नही, कि हमने परमेश्‍वर से प्रेम किया, पर इसमें है कि उसने हम से प्रेम किया; और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा। हे प्रियो, जब परमेश्‍वर ने हमसे ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए।” (1 यूहन्‍ना 4:7-11)

परमेश्‍वर ने हम पर अपना प्रेम उडेल दिया यद्यपि हम उसके प्रेम के योग्‍य नही है। ठीक वैसे ही हमें भी दूसरों पर अपना प्रेम उडेलना चाहिए चाहे वे उसके योग्‍य हो या नही। पौलुस ने मसीह के प्रेम से नम्र होकर कहा कि, “मसीह यीशु में न खतना, न खतनारहित कुछ काम का है, परन्‍तु केवल विश्‍वास जो प्रेम के द्वारा प्रभाव करता है।” (गलतियों 5:6)

याद रखें:

  • प्रेम विकल्‍पीय नही है- यह मसीह जीवन के लिए एक आवश्‍यक और सच्‍ची आज्ञा है। (यूहन्‍ना 13:34)
  • प्रेम एक अनियन्त्रित भावना नही है- यह एक चुनाव है। (1 कुरिन्थियों 14:1)
  • प्रेम केवल एक एहसास नही है- यह हमारी क्रिया के द्वारा प्रकट होता है। (1 यूहन्‍ना 3:18)

जैसे पौलुस ने कहा:

“और प्रभु ऐसा करे, कि जैसा हम तुम से प्रेम रखते है; वैसा ही तुम्‍हारा प्रेम भी आपस में, और सब मनुष्‍यों के साथ बढे, और उन्‍नति करता जाए।” (1 थिस्‍सलुनीकियों 3:12)

सारांश

प्रभु यीशु मसीह हमारे लिए इस जगत में आये और हमारे ही लिए मरे क्‍योंकि उन्‍होने हमसे सच्‍चा प्रेम किया। यदि हम अपने पाप को और क्षमा की आवश्‍यकता को समझ जाते है तो हम प्रभु यीशु मसीह को अपना आदर्श मान लेंगे और दूसरो के प्रेम के लिए अपना जीवन दे देंगे।

प्रेम के शब्‍द

यूनानी भाषा में प्रेम के लिए कम से कम चार शब्‍द है।

इरोस (Eros): यह शब्‍द मुख्‍य रूप से पुरूष और स्‍त्री के बीच के प्रेम के लिए प्रयोग होता है। यह लैंगिक प्रेम है। नये नियम में इस शब्‍द का प्रयोग नही किया गया है।

स्‍टोर्ज (Storgé): यह शब्‍द पारिवारिक स्‍नेह के लिए प्रयोग होता है। जैसे माता पिता का बच्‍चों के प्रति और बच्‍चों का माता पिता के प्रति प्रेम। यद्यपि नये नियम में यह शब्‍द नही है, रोमियों 12:10 में इससे सम्‍बन्धित शब्‍द है “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर मया रखो” यह पद बताता है कि मसीह के पीछे चलने वालो को एक दूसरे से परिवार के सदस्‍यों के समान व्‍यवहार करना चाहिए।

फिलिया (Philia): इसका अर्थ है कि किसी को स्‍नेहपूवर्क देखना। यह मित्रता का प्रेम है। उदाहरण के लिए देखें तो यह लाजर के लिए प्रभु यीशु मसीह की प्रीति के लिए प्रयोग हुआ। (यूहन्‍ना 11:3,36) हमें दूसरे विश्‍वासियों के साथ इसी प्रकार की प्रीति रखनी चाहिए (रोमियों 12:10, इब्रानियों 13:1; 2 पतरस 1:7)

अगापे (Agapé): हमें दूसरो के साथ कैसा प्रेम रखना चाहिए इसके लिए नये नियम में अधिकाशत: यही शब्‍द प्रयोग हुआ है। इसमें फिलिया की गर्मजोशी नही है और इसमें महसूस होने वाली भावनाओ के बजाय एक चुनाव है। अगापे वो प्रेम है जो क्रिया के द्वारा होता है। इस प्रेम में दूसरो के प्रति दयालुता होती है और यह नही देखा जाता कि उनका हमारे प्रति कैसा व्‍यवहार है। यह दूसरो को प्राथमिकता देने वाला एकतरफा प्रेम है। हमें इसी प्रकार का प्रेम रखने के लिए कहा गया है (1 पतरस 1:22; 1 यूहन्‍ना 3:11)। हमें अपने शत्रुओं से भी इसी प्रकार प्रेम करना चाहिए (मत्ति 5:44)। अगापे प्रेम एक सच्‍चे विश्‍वासी की पहचान है (यूहन्‍ना 13:34-35)।

कुछ सम्‍बन्धित पद

परमेश्‍वर का हमसे प्रेम: निर्गमन 34:6; गिनती 14:18; व्‍यवस्‍थाविवरण 7:8-12; भजन 23:6, 103:8-13, 107, 136; होशे 1:6-7; यूहन्‍ना 3:16, 16:27; रोमियों 5:5-8, 8:39; इफिसियो 3:17-19; 1 यूहन्‍ना 3:1,16।

परमेश्‍वर से प्रेम रखो: व्‍यवस्‍थाविवरण 6:5, 10:12, 11:1,13,22, 13:3, 30:16,20; यहोशू 22:5, 23:11; होशे 12:6; मत्ति 22:37-38; मरकुस 12:30; 1 कुरिन्थियों 8:3; 1 यूहन्‍ना 5:3।

दूसरो से प्रेम रखो: लैव्‍य 19:18,34; मत्ति 22:39; मरकुस 12:31; यूहन्‍ना 13:34-35, 15:12; 1 कुरिन्थियों 13; गलतियों 5:22; इफिसियों 5:2; 1 थिस्‍सलुनीकियों 3:12, 4:9-10; 1 तीमुथियुस 1:5; इब्रानियों 13:1; 1 पतरस 1:22, 4:8; 2 पतरस 1:7; 1 यूहन्‍ना 3:14–18,23, 4:7–5:3; 2 यूहन्‍ना 5-6।

शत्रुओं से प्रेम रखो: निर्गमन 23:4-5; नीतिवचन 25:21-22; मत्ति 5:38-48; लूका 6:27-35; रोमियों 12:14-21; 1 पतरस 3:9।

विचारणीय पद

  1. क्‍या हम हमेशा स्‍वेच्‍छा से प्रेम करते है, या हम किसी से इसलिए प्रेम करते है कि हमें ऐसा करने की आज्ञा दी गयी है? क्‍या यह सम्‍भव है कि हम जिसे पसन्‍द नही करते उससे प्रेम करे?
  2. क्‍या परमेश्‍वर से प्रेम करना आपके लिए कठिन है? व्‍याख्‍या कीजिए।
    1. क्‍या आपके जीवन में कभी ऐसा समय आया कि आप परमेश्‍वर पर क्रोधित हुए? क्‍या ऐसा करना गलत है? योना और अय्‍यूब के अनुभवों पर विचार कीजिए।
    2. क्‍या आपने कभी परमेश्‍वर के प्रेम को अस्‍वीकार किया है?
    3. क्‍या आपने कभी अपने आप को परमेश्‍वर के द्वारा त्‍यागा हुआ महसूस किया है? यह गलत क्‍यों है?
    4. क्‍या आपने कभी अपने को परमेश्‍वर के प्रेम के अयोग्‍य महसूस किया है?
    5. इन अनुभवो से आपने अपने और परमेश्‍वर के विषय में क्‍या सीखा?
  3. प्रेम को विभिन्‍न प्रकार से प्रकट किया जाता है। निम्‍न क्रियाओं पर विचार कीजिए। इन क्रियाओं के द्वारा प्रेम किस प्रकार प्रकट होता है। इनमें से कौन सा कार्य करना आपके लिए कठिन है?
    • क्षमा मत्ति 6:14-15
    • सुधारना/दण्‍ड देना लूका 17:3-6
    • प्रार्थना इफिसियों 6:18-19
    • पहुनाई रोमियों 12:13
    • माता पिता का आदर व्‍यवस्‍थाविवरण 5:16
    • शिक्षा देना कुलुस्सियों 3:16
    • मेल कराना मत्ति 5:9
    • त्‍याग मत्ति 19:29
  4. दुष्‍ट दास के दृष्‍टान्‍त को पढिए (मत्ति 18:21-35)
    1. यहां प्रभु यीशु मसीह क्‍या शिक्षा दे रहे है?
    2. पहला दास राजा का दस हजार तोडे का ॠणी था। वास्‍तव में, क्‍या यह दास कभी ॠण चुकाने की स्थिति में था?
    3. यह कहानी परमेश्‍वर के साथ हमारे सम्‍बन्‍ध को किस प्रकार दर्शाती है?
    4. क्‍या दया दिखाना विकल्‍पीय है?

‘प्रेम का नियम’ (The Law of Love) is from ‘The Way of Life’ by Rob J. Hyndman

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