Dipak Issue 27 (May 2016)

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105

जूते की कंकड़ (A Pebble In Your Shoe)

एक जगह एक बात लिखी थी कि, “मेरे सामने का पहाड़ मुझे नही रोक रहा है, लेकिन मेरे जूते में एक ककंड़ है जो मुझे चढते समय चोट पहुंचा रही है” यह बात सच है कि कभी-कभी बहुत बड़ी ऊचाँईयों को हम पार कर सकते है लेकिन तो भी हमारे जूते में कंकड़ जैसी किसी छोटी सी चीज से हार जाते है।

प्रभु के लिये हम जिस ऊँचाई को पाना चाहते है उसको पाने से कौन सी चीज हमको रोक रही है? पौलुस ने समझया कि, “न मृत्‍यु, न जीवन, न स्‍वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्‍य, न सामर्थ, न ऊचांई, न गहिराई, और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्‍वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।”

तो यदि पौलुस ने परमेश्‍वर के राज्‍य के मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को पार किया, तो क्‍या हम एक कंकड़ को अपने और प्रभु के बीच में आने दे रहे है। परमेश्‍वर के राज्‍य की ओर चलते हुए हमारे जूते में कंकड़ क्‍या प्रदर्शित करती है? क्‍या उदासीनता और उपेक्षा हमारे लिए जूते की वह कंकड़ है? या फिर वह कंकड़ आलस्‍य और निरसता है?

हाल ही में हमने पढा़ कि अमेरिका और कनाडा में आधे से ज्‍यादा लोग नीरसता के शिकार है। और कहा गया कि 65 वर्ष से अधिक आयु के 75 प्रतिशत लोग नीरस है। आज नवयुवकों के लिए भी यह बात सच लगती है, क्‍योंकि वे प्राय: नीरस दिखते है और वे जीवन को नीरसता से जीते है।

यीशु मसीह से प्‍यार करने वाला कोई व्‍यक्ति कैसे नीरस हो सकता है? हम यीशु मसीह के पुन: इस पृथ्‍वी पर आने से ठीक पहले के उत्‍तेजक समय में जी रहे है, जब वह आकर सभी गलत चीजों को ठीक करेगा। हमारा जीवन आनन्‍द, उत्‍तेजना और प्रत्‍याशा से भरा होना चाहिए। नीरस होने वाले लोगों में समपर्ण की कमी होती है। यहां तक कि जो लोग सांसारिक लक्ष्‍य प्राप्‍त करने के प्रति समर्पित होते हैं वे उन लोगों से कम नीरस होते है जिनके पास कोई भी समपर्ण नही होता है। भजनकार बताता है कि, “अपने मार्ग की चिन्‍ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा” (भजन संहिता 37:5) इसलिए यदि हम परमेश्‍वर के प्रति सम्‍पूर्ण रूप से समर्पित है तो वह हमारे जूते की कंकड़ (जीवन के कष्‍ट) को इतना छोटा करेगा कि जब हम पहाड़ की चढ़ाई (परमेश्‍वर की राज्‍य की ओर चलना) चढेंगे तो हमारे पैर को कम चोट (परमेश्‍वर के राज्‍य की ओर जाने वाले मार्ग में आने वाली बाधा) लगेगी।

इसका अर्थ यह है कि यदि हम अपने आप को सम्‍पूर्ण रूप से परमेश्‍वर के प्रति समर्पित कर देते है तो वह उसके राज्‍य की ओर चलने में आने वाली बाधाओं को कम कर देता है।

नीरस, उदासीन और आलसी मनुष्‍य कुछ नही करते बल्कि वे केवल उस ककंड़ के विषय में सोचते रहते है। जीवन ककंड़ों से भरा हुआ है लेकिन हमें पहाड़ को चढ़ना है। “आज वह दिन है जो यहोवा ने बनाया है; हम इसमें मगन ओर आनन्दित हों” (भजन संहिता 118:24) तो अब हमें क्‍या करना चाहिए? क्‍या हम जूते में कंकड़ होने के कारण चारों और उदासी दिखाये? अपने दुख और दर्द के विषय में सोचें, नीरस महसूस करें या फिर वापस बिस्‍तर में जाकर सो जाये? सुलैमान एक आलसी मनुष्‍य के विषय में बताता है, वह कहता है कि, “कुछ और सो लेना, थोड़ी सी नींद, एक और झपकी, थोड़ा और छाती पर हाथ रखे लेटे रहना” (नीतिवचन 6:10)

एक आलसी और नीरस मनुष्‍य अपने बिस्‍तर में लैटा रहता है या फिर वह केवल अपने कंकड़ के विषय में और दूसरे दुख और दर्द के विषय में शिकायत करने के लिए उठता है, जबकि परमेश्‍वर के प्रति सम्‍पूर्ण रूप से समर्पित एक मनुष्‍य आनन्‍द के साथ उछलता हैं। इसलिए यदि कोई उछलते हुए हवा में रहता है तो जूते का कंकड़ उसको कोई नुकसान नही पहुचाँता है ओर यीशु ने हमें “आनन्‍द में उछलने” के लिए कहा। क्‍या यीशु के ये शब्‍द अर्थपूर्ण थे या हमारे उद्धारकर्ता ने केवल बोलने के लिए ये शब्‍द कहे? उसने हमसे कहा कि, “आनन्दित होकर उछलना।”

हमारा जीवन क्‍या ही रोमांचक होना चाहिए! हमारा परमेश्‍वर एक कितना महान परमेश्‍वर है! हमारी आशा क्‍या ही आश्‍चर्यजनक आशा है! सच है कि, “आज वह दिन है जो यहोवा ने बनाया है; हम इसमें मगन और आनन्‍दत हों” “हम मसीह में सब कुछ कर सकते है जो हमें सामर्थ्‍य देता है” (फिल्लिपियों 4:13) हमने अपने मार्गो को परमेश्‍वर के हाथों में सौंप दिया है इसलिए वही हमारा मार्गदर्शन करेगा। परमेश्‍वर के प्रेम से कोई भी चीज हमें अलग नही करेगी। क्‍या एक ककंड़ हमारी गति को धीमी करेगी? कभी नही! क्‍या हम परमेश्‍वर के प्रति समर्पित है? क्‍या हम भी ऐसा ही समझते है जैसा पौलुस समझता था जब वह कहता है कि, “न ऊचाँई, न गहराई, और न कोई और सृष्टि हमें परमेश्‍वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु मसीह में है अलग कर सकेगी।” (रोमियों 8:39)

‘जूते की कंकड़’ (A Pebble In Your Shoe) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd

अभिषिक्‍त के रूप में यीशु (Jesus as Messiah)

“अभिषिक्‍त” (Messiah) और “मसीह” (Christ) इब्रानी और यूनानी भाषा के शब्‍द है जिनका अर्थ है “अभिषिक्‍त”। ये दोनों शीर्षक यीशु के लिए है क्‍योंकि यीशु परमेश्‍वर की उस योजना का केन्‍द्र बिन्‍दु थे जो योजना परमेश्‍वर ने मानवजाति के उद्धार के लिये बनायी थी। तो भी यीशु के समय के यहूदी लोगों ने, जब यीशु आया तो, उसको नही पहचाना और वे अपने लिये अभिषिक्‍त की प्रतिक्षा कर रहे थे। हम यहां इसी विषय में अध्‍ययन करेंगें कि ऐसा क्यों हुआ।

मुख्‍य पद: लूका 24:13-32

जब यीशु को गैरकानूनी रूप से बन्‍दी बनाया गया और उनको मारने के लिए उन पर बड़े ही अपमानित तरीके से दोष लगाये गये तो उनके चेलें पूरी तरह से उजड़ गये और उनकी दुनिया में खलबली मच गयी। हालांकी बहुत बार यीशु ने अपने चेलों को इस सच्‍चाई के विषय में बताया था कि वह मारे जायेंगे लेकिन तौभी इस सच्‍चाई को उन्‍होंने स्‍वीकार नही किया कि उनके गुरू के साथ उनका सम्‍बन्‍ध इस भयानक तरीके से समाप्‍त होगा। कुछ दिनों के बाद उसके दो चेले इम्‍माऊस गांव को जाते हुए रास्‍ते में ये बात कर रहे थे कि, “परन्‍तु हमें आशा थी, कि यही इस्राएल को छुटकारा देगा” (पद 21) पुर्नरूत्‍थान के बाद भी यीशु ने इस बात को समझाने के लिए चेलों को बताया।

  1. क्‍या इन दोनों चेलों को विश्‍वास था कि जिस यीशु को वे जानते थे और जो उनके अनुसार मर चुका था, वही “अभिषक्‍त” अर्थात “मसीह” था? क्‍या उनकी सोच बदल गयी थी?
  2. यीशु से बातें करने से पहले ये चेलें मसीह की भूमिका को समझने में क्‍यों असफल रहें, जबकि इम्‍माऊस को जाते हुए मार्ग में यीशु ने बहुत ही स्‍पष्‍ट रूप से व्‍याख्‍या की?
  3. “मूसा और सब भविष्‍यद्वक्‍ताओं” (पद 27) के विषय में वे पद क्‍या है, जिनका प्रयोग यीशु ने यह बताने के लिए किया कि किस प्रकार मसीह को दुख उठाना होगा? क्‍या उनको यह पहले से पता था?

क्‍यों यीशु के चेलें और उस समय का प्रत्‍येक यहूदी इस बात से अन्‍जान था कि अभिषिक्‍त अर्थात मसीह को क्‍या कार्य करना था? इस प्रश्‍न का उत्‍तर मसीह के कार्य के दो विभिन्‍न पहलूओं में निहित है: ये दोनों ही पहलू परमेश्‍वर की योजना के लिए आवश्‍यक थे; इनमें से केवल एक को ही यहूदियों ने पहचाना।

अभिषिक्‍त की लोकप्रिय धारणा: मुक्तिदाता राजा

इस अभिषिक्‍त के लिए बाईबल के पुराने नियम में सीधे तौर कुछ ही पद है, लेकिन बहुत से पद है जो इस आने वाले अगुवे के विषय में बताते है। दानिय्‍येल भविष्‍यद्वक्‍ता ने “अभिषिक्‍त प्रधान” के विषय में बताया (दानिय्‍येल 9:25) बहुत से भजनों में राजा दाऊद ने भी प्रभु के द्वारा अभिषिक्‍त के विषय में बताया, जैसे भजन 2:2 । तेल से अभिषेक करना एक राजा के सिहांसन पर बैठने को प्रदर्शित करता था, या जब एक याजक या भविष्‍यद्वक्‍ता परमेश्‍वर के कार्य के लिए नियुक्‍त किया जाता था तो उसका अभिषेक तेल से किया जाता था।

ऐसे भी बहुत से पद है जो एक ऐसे राजा के विषय में बताते है जो एक बड़े राज्‍य पर बुद्धिमानी और न्‍याय से राज्‍य करेगा। यीशु के समय के यहूदियों के लिए, अभिषिक्‍त को एक ऐसे विजयी राजा के रूप में आना था जो रोमियों को हराकर इस्राएल के प्राचीन महिमामय राज्‍य को फिर से पुर्नगठित करता। वह राजा दाऊद के सिंहासन पर बैठेगा और सुख समृद्धि और धार्मिकता का समय लेकर आयेगा। इस धारणा ने आम आदमी को एक बड़ी आशा प्रदान की।

राजा के रूप में अभिषिक्‍त की यह छवी बिल्‍कुल सही है - परमेश्‍वर का राज्‍य स्‍थापित होगा जिसमें यीशु राजा होंगे और वह पूरे विश्‍व पर शान्ति के साथ येरूशलेम से राज्‍य करेंगे। लोगों में भ्रम इसलिए पैदा हुआ क्‍योंकि कोई भी यह नही समझ पाया कि राजा को मुकुट से पहले क्रूस मिलना था।

अभिषिक्‍त की भूलायी गयी धारणा: दुखी सेवक

यशायाह भविष्‍यद्वक्‍ता ने अभिषिक्‍त के कामों का विस्‍तृत चित्रण किया। उनका चित्रण एक वध होने वाली भेड़ और एक ऐसे व्‍यक्ति के रूप में किया जो परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करने के लिए स्‍वंय दुख उठा रहा था। (यशायाह 53:3-5)

यीशु के समय के यहूदियों और धार्मिक अगुओं के लिये यह धारणा विदेशी थी। यीशु के सबसे चर्चित शिष्‍य, पतरस, ने इस बात को जोरदार तरीके से नकारा। (मत्‍ती 16:21-23) जब यीशु ने लोगों से रोमी अत्‍याचारियो को हराने के बजाय अपने दुख उठाने और स्‍वंय का इंकार करने की बातें कही तो उसके पीछे चलने वाले बहुत से लोगों ने यीशु में कोई रूचि नही रखी।

कुछ सम्‍बन्धित पद

पुराने नियम में अभिषिक्‍त के विषय में भजन संहिता 2:2; 45:7; 89:20; यशायाह 61:1-3; दानिय्‍येल 9:24-26
अभिषिक्‍त का कष्‍ट सहना भजन संहिता 22:1-21; यशायाह 53; दानिय्‍येल 9:26; जकर्याह 12:10
आने वाला राजा 2 शेमूएल 7:12-16; भजन संहिता 72; यिमर्याह 23:5-6; 30:8-9; यहेजकेल 37:24-25; मीका 5:2-4; जकर्याह 9:9-10; मत्‍ती 2:2
नये नियम में मसीह मत्‍ती 2:4; 22:41-45; मरकुस 15:32; लूका 2:11; यूहन्‍ना 1:41; 4:25-26; 7:26-31; प्रेरितों के काम 2:29-36; 9:20-22; 26:22-23
परमेश्‍वर का मेमना यूहन्‍ना 1:29,36; प्रेरितों के काम 8:32-35; 1 पतरस 1:18-21; प्रकाशितवाक्‍य 5:5-12

दोनों धारणाओं में समन्‍वय: परमेश्‍वर की श्रेष्‍ठ योजना

अभिषिक्‍त को पुराने नियम की बहुत सी बातों को पूरा करना था। परमेश्‍वर की योजना के अनुसार एक ऐसे मनुष्‍य की आवश्‍यकता थी जो अपनी इच्‍छा से मानवजाति के पापों के लिए एक सिद्ध बलिदान हो सके और वह यीशु मसीह थे। और मसीह पर विश्‍वास करने के द्वारा, परमेश्‍वर तक पहुँचने का मार्ग और क्षमा मिलती हैं। जो लोग यह विश्‍वास करते है कि यीशु हमारे पापों की क्षमा के लिए मारे गये, वे धर्मी गिने जाते है और उन्‍हें अनन्‍त जीवन दिया जायेगा।

“और इसी कारण वह नई वाचा का मध्‍यस्‍थ है, ताकि उस मृत्‍यु के द्वारा जो पहिली वाचा के समय के अपराधों से छुटकारा पाने के लिए हुई है, बुलाए हुए लोग प्रतिज्ञा के अनुसार अनन्‍त मीरास को प्राप्‍त करें।” (इब्रानियों 9:15)
मूसा की व्‍यवस्‍था में जो बलिदान और अराधना के प्रयोजन थे वे दृष्‍टान्‍त या नमूना थे जो मसीह के कार्यो की ओर संकेत करते थे। मसीह अब उन लोगों के लिए, जो उनकी उद्धार की कृपा को स्‍वीकार करते है, महायाजक के रूप में परमेश्‍वर और हमारे बीच में मध्‍यस्‍थ है और हमारी सहायता के लिए परमेश्‍वर के साथ है जिससे कि हम अपने आप को उनकी समानता में बदलते जाये। जब यीशु मसीह पृथ्‍वी पर आयेंगे तो वे जीवतों और मरें हुओं का न्‍याय करेंगे। वे परमेश्‍वर के राज्‍य की स्‍थापना करेंगे और येरूशलेम से उन लोगों के साथ शासन करेंगे जिनको उन्‍होंने पाप और मृत्‍यु से बचाया है। इस प्रकार अभिषिक्‍त/मसीह/राज्‍य/भविष्‍यद्वक्‍ता/सेवक/मेमने के विषय में सभी भविष्‍यवाणियां पूरी होंगी।
“वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ और जो लोग उस की बाट जोहते हैं, उन के उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप के दिखाई देगा।” (इब्रानियों 9:28)
यीशु की मृत्‍यु और पुर्नरूत्‍थान होने तक उसके अनुयायी भी इन बातों को पूरी तरह से नही समझ पाये थे। लूका 24:13-35 में ऐसा प्रतित होता है कि इम्‍माऊस को जाते हुए क्लियुपास और उसका साथी पहले व्‍यक्ति थे जो यीशु की मसीह की भूमिका को समझे थे। उसके बाद प्रेरितों ने यहूदियों और फिर अन्‍यजातियों को प्रचार करते हुए यह सुनिश्चित किया कि सब लोग इस बात को समझे कि परमेश्‍वर का अपने पुत्र को लेकर क्‍या उद्देश्‍य है।
“और पौलुस अपनी रीति के अनुसार उन के पास गया, और तीन सब्‍त के दिन पवित्र शास्‍त्रों से उन के साथ विवाद किया। और उन का अर्थ खोल खोलकर समझाता था, कि मसीह को दुख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्‍य था; और यही यीशु जिस की मैं तुम्‍हें कथा सुनाता हूं, मसीह है।” (प्रेरितों के काम 17:5)
आज सम्‍पूर्ण बाईबल हमारे पास है तो हम पुराने नियम की भविष्‍यवाणियों को पढ़ सकते है और नये नियम के सुसमाचार से यीशु, जो कि अभिषिक्‍त है, उनके जीवन और उनके कार्यो के विषय में पढ़ सकते है और यह भी देख सकते है कि किस प्रकार प्रेरितों ने इन दोनों बातों को आपस में जोड़ते हुए टिप्‍पणीयां की है। हमें इसके लिए परमेश्‍वर का धन्‍यवाद देना चाहिये कि हमें ये बातें समझने के लिए बाईबल हमारे पास है। तो आईये हम इसका सम्‍पूर्ण लाभ उठाये और यीशु के द्वारा दिये गये उद्धार के मार्ग को समझे और स्‍वीकार करें।

सारांश

  • “मसीह” और “ख्रीष्ट” इन दोनों का अर्थ “अभिषिक्‍त” है और ये प्रतिज्ञा किये हुए एक धर्मी राजा को दिये गये शीर्षक है। वह राजा मसीह है।
  • एक राजा के रूप में अपनी भूमिका से पहले मसीह को दुख उठाना था और इस दुनिया के पापों के लिए मरना था और फिर मृतकों में से जी उठकर एक बिचवई के रूप में उन लोगों को अनुग्रह देना था जो उस पर विश्‍वास करते है। बहुत से लोगों ने अभिषिक्‍त (मसीह) की दुख उठाने और मरने की जरूरत को तब तक नही समझा जब तक यीशु मर कर नही जी उठे।

अन्‍य खोज

  1. लूका के 24 अध्‍याय में यीशु ने यह बात बताने के लिये कि इससे पहले मसीह को महिमा मिले उसको दुख उठाना आवश्‍यक है, उन्‍होंने “मूसा और सब भविष्‍यद्वक्‍ताओं” के विषय में बताया। बाईबिल की कौन सी पहली पाँच पुस्‍तकों (मूसा की पुस्‍तकों) से उन्‍होंने ये बात बतायी? भविष्‍यद्वक्‍ताओं के कौन से पदों के विषय में उन्‍होंने बताया?
  2. मसीह के दुख उठाने की भविष्‍यवाणियों के विषय में आज यहूदि क्‍या सोचते है? एक ऐसे यहूदी को जो मसीह/राजा के पहले आगमन की प्रतिक्षा में है, आप ये बात कैसे समझायेंगे कि वास्‍तव में वे यीशु के द्वितीय आगमन की प्रतिक्षा कर रहे है?

‘अभिषिक्‍त के रूप में यीशु’ (Jesus as Messiah) is from ‘The Way of Life’, edited by R.J. Hyndman

‘यहोवा का दूत छावनी किये रहता है’ (भाग 1)
‘The Angel of the LORD encampeth’ (Part 1)

भजन संहिता 34 में उन लोगों के लिए बहुत ही सुन्‍दर पद है जो लोग परमेश्‍वर से डरते है और उस पर भरोसा रखते है। लेकिन उन लोगों के लिए, जो यहोवा से घृणा करते है और उसके मार्गो से घृणा करते है, कुछ पद बहुत ही भयानक भी है – जैसे पद 21 – “दुष्‍ट अपनी बुराई के द्वारा मारा जायेगा; और धर्मी के बैरी दोषी ठहरेंग।” (भजन 34:21)

और इसलिए, जैसा कि बाईबल भी बहुत सी जगहों पर बताती है कि, धर्मियों को बचाना और दुष्‍टों को मारना परमेश्‍वर का कार्य है। “इसलिए परमेश्‍वर की कृपा और कड़ाई को देख” (रोमियों 11:22), उन पर जो उसके मार्गो को खोजते है – उन पर भलाई, और उन पर जो उसके मार्गो को छोड़ देते है - उसके न्‍याय की कड़ाई।

अब किस प्रकार परमेश्‍वर अपने लोगों को उद्धार देने के लिए कार्य करता है, और किस प्रकार उन लोगों का नाश करता है जो उसके मार्गो से घृणा करते है और दुष्‍ट है।

परमेश्‍वर का कार्य करने का एक माध्‍यम जो हमें पता है वह स्‍वर्गदूत है। इब्रानियों का पहला अध्‍याय स्‍वर्गदूतों के कार्य करने के उद्देश्‍य को परिभाषित करता है।

“क्‍या वे सब सेवा टहल करने वाली आत्‍माँए नही, जो उद्धार पाने वालों के लिए सेवा करने को भेजी जाती है?” (इब्रानियों 1:14)
स्‍वर्गदूत परमेश्‍वर के सेवकों के रूप में दिये गये है जो उन लोगों के लिए कार्य कर रहे है जो परमेश्‍वर के उद्धार के वारिस है। अब प्रश्‍न यह है कि स्‍वर्गदूत किस प्रकार यह कार्य करते है? किस प्रकार स्‍वर्गदूत परमेश्‍वर के लोगों के लिए कार्य करते है? हमने इब्रानियों के पहले अध्‍याय में पढ़ा कि,
“और स्‍वर्गदूतों के विषय में यह कहता है, “वह अपने दूतों को पवन, और अपने सेवकों को धधकती आग बनाता है।” (इब्रानियों 1:7)
इसका क्‍या अर्थ है? भजन संहिता के अध्‍याय 104 के पद 4 में भी ऐसा ही लिखा है। इन पदों में आये “पवन” शब्‍द के लिए मूल भाषा (इब्रानी) में “रूहाक” शब्‍द आया है जो श्‍वांस या हवा से सम्‍बन्धित है यही शब्‍द उत्‍पत्ति के अध्‍याय 2 और पद 7 में और उत्‍पत्ति के अध्‍याय 7 और पद 22 में भी मनुष्‍य को और पशुओं को जीवन देने के लिए भी प्रयोग हुआ है। जब हम स्‍वर्गदूतों को पवन बनाने के विषय में पढते है, तो इसका यह अर्थ नही है कि वे आत्मिक शरीर के साथ आत्मिक जाति है बल्कि वे परमेश्‍वर के लोगों को जीवन देने के लिए कार्य करने वाली जाति है - वे परमेश्‍वर के लोगों को जीवन के मार्ग पर लाने के लिए कार्य करते है – वे उनके उद्धार के लिए कार्य करते है जिससे हम जीवन पा सकें। और इसलिये वे आत्‍मा या पवन बनाये गये है जो परमेश्‍वर से मिलने वाले जीवन को उसके लोगों को देते है। अब हम “धधकती आग” के विषय में देखेंगे, यह शब्‍द बाईबिल में “नष्‍ट” करने अर्थात जीवन लेने के लिए लगातार प्रयोग हुआ है।
“और तुम्‍हें, जो क्‍लेश पाते हो, हमारे साथ चैन दें; उस समय जब कि प्रभु यीशु अपने सामर्थी दूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्‍वर्ग से प्रगट होगा, और जो परमेश्‍वर को नही पहचानते और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नही मानते उनसे पलटा लेगा।” (2 थिस्‍सलुनिकियो 1:7-8)
यह धधकती आग मूल भाषा (यूनानी) में वही शब्‍द है जो इब्रानियों के 1 अध्‍याय के 7वें पद में आया हैं। स्‍वर्गदूत परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों के लिए दोहरी भूमिका में कार्य करते है – पहले तो परमेश्‍वर के लोगों का जीवन के मार्ग पर मार्गदर्शन करने के लिए कार्य करते है – और दूसरे, परमेश्‍वर और उसके लोगों के विरोधीयों को नाश करने के लिए कार्य करते है। जीवन देने वाली पवन या आत्‍मा और जीवन लेने वाली धधकती आग के इन संकेतों को यूहन्‍ना बपतिस्‍मादाता ने भी प्रयोग किया।
“अब कुल्‍हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिए जो-जो पेड़ अच्‍छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है।... वह (यीशु) तुम्‍हें पवित्र आत्‍मा और आग से बपतिस्‍मा देगा। उसका सूप उस के हाथ में है, और वह अपना खलिहान अच्‍छी रीति से साफ करेगा, और अपने गेहूँ को तो खत्‍ते में इकट्ठा करेगा, परन्‍तु भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नही।” (मत्‍ती 3:10-12)
जो अच्‍छे गेहूँ है, जो उसकी महिमा के लिए इकट्ठा होंगे, वे परमेश्‍वर की पवित्र आत्‍मा के दिव्‍य स्‍वभाव के भागी होंगे और आत्‍मा से भरे जायेंगे। जो त्‍यागे गये होंगे वे आग में डूबाकर नष्‍ट किये जायेंगे ताकि परमेश्‍वर की महिमा सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी पर भर जाये।

इसलिए हमें फिर से स्‍वर्गदूतों के दोहरे कार्य को याद दिलाया गया है; और यह दोहरा कार्य है कि वे परमेश्‍वर के लोगों को जीवन का मार्ग दिखाने में सहायता और मार्गदर्शन करने के लिए उनके चारों और छावनी किये रहते है – और परमेश्‍वर और उसके लोगों के विरोध में जो भी है उनके विरोध में कार्य करने के लिए है।

हम इस बात को फिर से प्रेरितों के काम के 12वें अध्‍याय में स्‍पष्‍टतया देख सकते है। परमेश्‍वर के स्‍वर्गदूत जीवन देने के लिए कार्य करते है;

“तो देखों, प्रभु का एक स्‍वर्गदूत आ खड़ा हुआ और उस कोठरी में ज्‍योति चमकी, और उसने पतरस की पसली पर हाथ मार के उसे जगाया और कहा, ‘उठ, जल्‍दी कर’ और उसके हाथों से जंजीरें खुलकर गिर पड़ीं।” (प्रेरितों के काम 12:4)
परमेश्‍वर के स्‍वर्गदूत जीवन लेने के लिए भी कार्य करते है;
“उसी क्षण प्रभु के एक स्‍वर्गदूत ने तुरन्‍त उसे मारा, क्‍योंकि उसने परमेश्‍वर को महिमा न दी; और वह कीड़े पड़के मर गय।” (प्रेरितों के काम 12:23)
इन दोनों पदों से स्‍पष्‍ट है कि हेरोदेस की योजना थी कि पतरस मरना चाहिये। लेकिन स्‍वर्गदूत ने पतरस को मृत्‍यु से निकालकर जीवन दिया। और फिर हेरोदेस को जो उस समय परमेश्‍वर के लोगों का विरोधी था, उसको स्‍वर्गदूत जीवन से मृत्‍यु तक ले गया।

इसलिए हम जो परमेश्‍वर के लोग होने के लिए चुने गये है, हम भी चाहते है कि परमेश्‍वर हमारे जीवनों में इस प्रकार कार्य करें कि हम भी उद्धार के वारिस हो सके - हम भी आत्‍मा में डूब सकें – हमारे प्रभु के आने पर दिव्‍य स्‍वभाव के भागी हो सकें। हम इस सत्‍य के सम्‍पूर्ण होने की प्रतिक्षा कर रहे है कि जब, “यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता ह।”

यह पद कहता है कि यहोवा का दूत “उनको बचाता है”, तो इसका अर्थ यह नही है कि हमारे लिए जो भी असुविधाजनक है वह उस सब से हमें बचाता है या जिन चीजों को हम सोचते है कि वे हमारे लिए कष्‍टदायक है उन सबसे हमें बचाता है। ये भी हो सकता है कि उन बातों को परमेश्‍वर इसलिये प्रयोग कर रहा हो ताकि वह हमें अपने राज्‍य की ओर बढ़ा सकें और यह सब वह हमें अनन्‍त मृत्‍यु से बचाने के लिए प्रयोग कर रहा हो।

इस अनन्‍त मृत्‍यु से हमारा बचाव आज हमारी मृत्‍यु भी हो सकता है ताकि हम सदा सर्वदा के लिए उसके आने वाले राज्‍य में जीवन पा सकें, जैसा कि हम प्रेरितों के 12 अध्‍याय में याकूब को देखते है। क्‍या जब हेरोदेस ने याकूब को तलवार से मरवा डाला तो उस समय यहोवा का स्‍वर्गदूत याकूब के चारों ओर छावनी किये हुए नही था? (प्रेरितों के काम 12:1) निश्‍चय ही स्‍वर्गदूत याकूब के साथ छावनी किये था लेकिन यह परमेश्‍वर की इच्‍छा थी कि उस समय याकूब मारा जाये और पतरस नही। लेकिन याकूब का सम्‍पूर्ण नाश नही हुआ, प्रभु उसको कब्र के बन्‍धनों से छुड़ाकर अनन्‍त जीवन देगा।

यही विचार हम यीशु के अनुभव में भी देखते है।

“यीशु ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊँचे शब्‍द से पुकार-पुकारकर और आँसू बहा-बहाकर उससे जो उसको मृत्‍यु से बचा सकता था, प्रार्थनाऐं और विनती की, और भक्ति के कारण उसकी सुनी ग।” (इब्रानियों 5:7)
मृत्‍यु से बचाने की यीशु की प्रार्थना सुनी गयी।

तो अब आप के मन में यह प्रश्‍न आयेगा कि यीशु तो मर गये थे फिर किस प्रकार उनकी मृत्‍यु से बचाने की प्रार्थना सुनी गयी? जी हाँ, लेकिन जिस मृत्‍यु से बचने के लिए वे प्रार्थना कर रहे थे वह अनन्‍त मृत्‍यु से बचने के लिए थी। उन्‍होंने परमेश्‍वर से निवेदन किये कि वह उनको सब बातों में परमेश्‍वर का आज्ञाकारी रहने की सामर्थ्‍य दें और यहां तक कि वह मृत्‍यु तक आज्ञाकरी रह सकें। यीशु पाप करते तो वे सदा के लिए मर जाते, लेकिन उन्‍होंने निवेदन किया, और उन्‍हें मृत्‍यु तक आज्ञाकारी रहने की सामर्थ्‍य प्राप्‍त हुयी ताकि वे जीवन पा सकें। यीशु की प्रार्थना सुनी गयी और उनको अपने पिता का इन्‍कार किये बिना क्रूस तक जाने की सामर्थ्‍य दी गयी - इसलिए वे मृत्‍यु के बाद जिलाये गये कि वह फिर कभी न मरें। उनको बचाया गया - उनकी प्रार्थना सुनी गयी।

उनको बचाने के लिए कैसे सामर्थ्‍य दी गयी?

“तब स्‍वर्ग से एक दूत उसको दिखाई दिया जो उसे सामर्थ्‍य देता था।” (लूका 22:43)
इसलिए हमसे असुविधाओं और कष्‍टों से बचाने का वायदा नही किया गया है, और यहाँ तक कि ‘क्रूस पर एक भयानक मृत्‍यु’ से बचाने के लिए भी नही – बल्कि अनन्‍त मृत्‍यु से बचाने के लिए - यदि हम ‘परमेश्‍वर से डरे और उसके दूत को अपने पास छावनी करने दें तो वह हमें अनन्‍त मृत्‍यु से बचायेगा।

उत्‍पत्ति के 19 वें अध्‍याय में एक कहानी है जहाँ हम देखते है कि कैसे प्रेम और देखभाल पिता परमेश्‍वर अपने लोगों के लिए रखता है, और हमारी सुरक्षा और देखभाल के लिए किस प्रकार वह स्‍वर्गदूतों को प्रयोग करता है। यह लूत की कहानी है; और हमें याद होगा कि लूत आरम्‍भ में स्‍वंय अपनी मूर्खता के कारण इस परिस्थिति में पड़ा। लूत ने सदोम की ओर सुन्‍दर भूमि देखी और उसने अपना तम्‍बू वही पर लगाया - वह उस शहर में गया और वहाँ एक पुरनिया बन गया। इसलिए वह स्‍वंय अपने आप को ऐसी परिस्थिति में लेकर आया और अपने परिवार को ऐसी भयानक जगह पर लेकर आया, क्‍योंकि वह अपने परिवार के लिए आराम चाहता था और लोग जीवन में आराम चाहते है। लेकिन वह एक धर्मी व्‍यक्ति था और परमेश्‍वर से डरता था। नया नियम हमें बताता है (2पतरस 2:8), कि परमेश्‍वर ने उसको, स्‍वर्गदूतों के द्वारा सम्‍भाला और परेशानियों से बचाया।

“जब पह फटने लगी, तब दूतों ने लूत से फुर्ती कराई और कहा, कि उठ, अपनी पत्‍नी और दोनों बेटियों को जो यहां हैं ले जा; नही तो तू भी इस नगर के अधर्म में भस्‍म हो जायेगा। पर वह विलम्‍ब करता रहा, इस से उन पुरूषों ने उसका और पत्‍नी, और दोनों बेटियों का हाथ पकड़ लिया; क्‍योंकि यहोवा की दया उस पर थी; और उसको निकालकर नगर के बाहर कर दिया।” (उत्‍पत्ति 19:15-16)
लूत देरी कर रहा था, इसलिए स्‍वर्गदूतों ने उससे जल्‍दी करने को कहा। लेकिन तो भी लूत हिचक रहा था, इसलिए उन्‍होंने उसे – ‘दया दिखाते हुए’ – हाथ से पकड़ कर बाहर खीचां!

हम प्राय: अपने आप को मूर्खतापूर्ण ऐसी परेशानियों में डाल देते है, जिनसे बाहर निकलने का मार्ग हमारे पास नही होता है परमेश्‍वर ऐसी परिस्थितियों में हमें अपनी इच्‍छा से इन परेशानियों से बाहर निकालेगा। जब हमें पता चलता है कि यह हमारी गलती है, तो हो सकता है कि हमें परमेश्‍वर से सहायता मांगने में बहुत ही शर्म महसूस हो। इसका अर्थ है कि हम स्‍वीकार करते है कि इन परेशानियों में हम अपनी ही गलतियों के कारण पड़े है। लेकिन ऐसी परिस्थितियों में परमेश्‍वर नही कहता है कि, “बहुत बुरा, यह तुम्‍हारी परेशानी है, तुम ही इससे बाहर निकलों” परमेश्‍वर ऐसा नही कहता है। परमेश्‍वर ने लूत से भी ऐसा नही कहा। परमेश्‍वर ने आदम के भटके हुए वंशों से भी ऐसा नही कहा कि, “तुम अपने आप इस परेशानी में पड़े हो तो अपने आप ही इससे बाहर निकलो” जब हम असहाय होते है तो वह कार्य करता है; वह हमें मृत्‍यु के मार्ग से निकालकर जीवन के मार्ग पर लाता है।

इसलिए हमें कृतज्ञ होकर आनन्दित होना चाहिए कि परमेश्‍वर अपने लोगों के लिए ऐसा है। परमेश्‍वर अपनी इच्‍छा से, स्‍वर्गदूतों के द्वारा, हमें बचाता है – फिर चाहे वह परेशानी हमारी मूर्खता के कारण ही क्‍यों न आयी हो।

उत्‍पत्ति के 21 वें अध्‍याय में एक और बहुत अच्‍छा उदाहरण हम देखते है जहां परमेश्‍वर के स्‍वर्गदूत; परमेश्‍वर के लोगों; की सहायता करने के लिए कार्य करते है। परमेश्‍वर ने पहले ही हाजिरा के जीवन में कार्य किया और हाजिरा उसे “देखनेहारे परमेश्‍वर” (उत्‍पत्ति 16:13) के रूप में जानती थी। अब हाजिरा को पता चला, जैसा कि हम भजन संहिता के 34 वें अध्‍याय और 6 वें पद में पढ़ते है, कि वह केवल देखनेहारा परमेश्‍वर नही है, बल्कि सुनने वाला परमेश्‍वर भी है। हाजिरा को अब्राहम के घर से दूर कर दिया गया और उसका बेटा मरने वाला है। वह असहाय है- वह अपने बेटे को मरते हुए देखने के अलावा कुछ नही कर सकती थी। लेकिन परमेश्‍वर ने उस पर दया दिखायी और अब्राहम पर दया दिखायी क्‍योंकि अब्राहम उसका मित्र था। जी हाँ, अब्राहम परमेश्‍वर का मित्र था – और यहाँ हम देखते है कि परमेश्‍वर के मित्र का पुत्र रो रहा था। इसलिए परमेश्‍वर ने सुना –

“परमेश्‍वर ने उस लड़के की सुनी; और उसके दूत ने स्‍वर्ग से हाजिरा को पुकार के कहा, ‘हे हाजिरा, तुझे क्‍या हुआ? मत डर; क्‍योंकि जहाँ तेरा लड़का है वहाँ से उसकी आवाज परमेश्‍वर को सुन पड़ी ह।’” (उत्‍पत्ति 21:17)
लिखा है कि “जहाँ वह है” और वह असहाय और प्‍यासी अवस्‍था में थी। उसकी उस अवस्‍था से परमेश्‍वर ने सुना, और स्‍वर्गदूत ने एक पानी का कुआं दिया जिससे कि वह और उसका बेटा पानी पी सकें।

भाईयों और बहनों; हम भी पूरी तरह असहाय है और मर रहे है और परमेश्‍वर ने हमारे लिए उद्धार के कुएं को खोला है। परमेश्‍वर ने हमें अपना वचन दिया है और इस वचन के द्वारा; अपने स्‍वर्गदूतों के द्वारा और अपने बेटे के द्वारा हमें उद्धार का मार्ग दिया है।

याकूब के जीवन के अनुभव में हमें इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण देखने को मिलता है कि किस प्रकार स्‍वर्गदूत परमेश्‍वर के लोगों के लिए कार्य करते है। जब याकूब, एसाव के पास से अपने सम्‍बन्धियों के पास भाग गया - उत्‍पत्ति अध्‍याय 28, अपनी इस यात्रा में उसने रास्‍तें में विश्राम किया और उसको एक स्‍वप्‍न दिया गया।

“तब उसने स्‍वप्‍न में क्‍या देखा, कि एक सीढ़ी पृथ्‍वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्‍वर्ग तक पहुचाँ है; और परमेश्‍वर के दूत उस पर से चढते ओर उतरते है।” (उत्‍पत्ति 28:12)
एक सीढ़ी जो स्‍वर्ग तक जाती है! और इसलिए याकूब को पता चला कि स्‍वर्ग के परमेश्‍वर तक पहुचाँ जा सकता है। आगे स्‍वर्गदूत “चढ़ते और उतरते” है – वे जहाँ याकूब है वहाँ से शुरू करते है - यह क्रम बहुत ही महत्‍वपूर्ण है। वे याकूब के आस पास थे - अपने धोखा देने और झूठ बोलने के कारण भागने के बावजूद भी वे उसके आस पास थे - क्‍योंकि वह परमेश्‍वर से डरता था। इसलिए यहोवा के दूत हमेशा उसके आस पास रहते थे, और परमेश्‍वर की इच्‍छा को उस तक पहुचाँते थे, जैसा कि हम उसको दिये गये सन्‍देश में पाते है। ऐसा ही प्रभु यीशु मसीह के द्वारा स्‍वंय अपने विषय में भी कहा गया:
“फिर उस (यीशु) ने कहा, ‘मैं तुम (नतनएल) से सच सच कहता हूँ कि तुम स्‍वर्ग को खुला हुआ, और परमेश्‍वर के स्‍वर्गदूतों को मनुष्‍य के पुत्र के ऊपर उतरते और ऊपर जाते देखोगे।’” (यूहन्‍ना 1:51)
चेले इस बात के गवाह थे कि किस प्रकार परमेश्‍वर ने स्‍वर्गदूतीय सेवा के द्वारा अपने बेटे की सुरक्षा और देखभाल की थी। वे इस बात के गवाह थे कि पिता और पुत्र के बीच हमेशा बातचीत होती थी, और इस बात के भी कि उसके जन्‍म से लेकर पुर्नरूत्‍थान तक और फिर स्‍वर्गारोहण से वापिसी की घोषणा के लिए स्‍वर्गदूतों को प्रयोग किया गया। बेटे के साथ पिता के कार्य के लिए लगातार स्‍वर्गदूतों को प्रयोग किया गया और यहां तक कि उसके द्वितीय आगमन के समय - प्रधान दूत का शब्‍द सुनाई देगा। क्‍योंकि पुत्र “डरता” (इब्रानियों 5:7) था इसलिए वह परमेश्‍वर के दूतों से घिरा रहता था। वर्षो बाद याकूब यह कहने के योग्‍य हुआ;
“परमेश्‍वर जिसके सम्‍मुख मेरे बापदादें, अब्राहम और इसहाक चले, वही परमेश्‍वर मेरे जन्‍म से लेकर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है; और वही दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है, वही अब इन लड़कों को आशिष दें।” (उत्‍पत्ति 48:15-16)
अपने जीवन के अन्तिम समय में याकूब इस बात को समझ गया था कि उसके सम्‍पूर्ण जीवन में स्‍वर्गदूत उसकी सुरक्षा और देखभाल के लिए हमेशा उसके साथ थे ओर उनके बिना वह जीवित नहीं रह सकता था। याकूब के जीवन में स्‍वर्गदूतों का कार्य एक बहुत ही अच्‍छा अध्‍ययन है। जब वह लाबान के पास से वापस आता है, जब वह बेतेल वापिस आने की अपनी, परमेश्‍वर से की गयी, प्रतिज्ञा को याद करता है, और वह अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार बेतेल आने के लिए चलता है - जैसे ही वह लाबान से अलग होता है - परमेश्‍वर का स्‍वर्गदूत उसे मिलता है।

वह समझ जाता है कि वे उसके साथ है और वह अकेला नही है। और इसलिए वह यह बात कह सका कि, “दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है” लेकिन इससे याकूब जीवन में घटने वाली कुछ बुरी घटनाओं से नही बच पाया। क्‍या वह ऐसी घटनाओं से बच पाया?

यहाँ याकूब ने एक शब्‍द का प्रयोग किया कि, “यहोवा ने सारे दिनों में मुझे चराया” यह बहुत ही अच्‍छा शब्‍द है जो चरवाहों के लिए प्रयोग होता है - और जहाँ भी कही यह प्रयोग हुआ है वहाँ भेड़ो को चराने के लिए प्रयोग हुआ है। हम जानते है कि याकूब एक चरवाहा था और इसलिए वह कहता है कि यहोवा उसका चरवाहा रहा है। चरवाही बाईबिल में दिया गया हमें एक बहुत ही उत्‍तम संकेत है जो हमारे लिए परमेश्‍वर के द्वारा किये गये दिव्‍य प्रबन्‍ध को दर्शाता है। परमेश्‍वर चरवाहा है और हम उसकी भेड़े है।

‘यहोवा का दूत छावनी किये रहता है (भाग 1)’ (The Angel of the LORD encampeth, Part 1) is from ‘Caution! God at work’, by Tim Galbraith

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