Dipak Issue 32 (February 2018)

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105

परमेश्‍वर की समय सारणी
(God’s Timetable)

हमिंग बर्ड (गुंजन पक्षी) के खाने के लिए हमने जो एक बर्तन रखा था उस पर इस चिडि़या ने आना बंद कर दिया। हम घर से बाहर चले गये थे और उस दौरान चिडि़या के खाने के बर्तन खाली रहा और अब चिडिया इसे अनदेखा कर रही है यद्यपि यह स्‍वादिष्‍ट खाने से फिर भरा रहता है।

मनुष्‍य भी प्राय इस छोटी सी हमिंग बर्ड (चिडिया) के समान ही व्‍यवहार करते है। कितनी बार हम किसी को प्रार्थना करते हुए देखते है और क्‍योंकि परमेश्‍वर ने तुरन्‍त और हमारे अनुसार उत्‍तर नही दिया तो उन्‍होंने प्रार्थना करना छोड़ दिया। निश्‍चय ही परमेश्‍वर प्रार्थना सुनता है लेकिन परमेश्‍वर अपने अनुसार और अपने समय पर चीजों को करता है। यदि हम अब्राहम को देखे तो उसने प्रतिज्ञा किये गये पुत्र के पैदा होने के लिए कितने लम्‍बे समय तक प्रतिक्षा की। इसमें कोई सन्‍देह नही है कि अब्राहम ने इसके लिए प्रतिदिन प्रार्थना की। क्‍या हुआ होता अगर वह परमेश्‍वर पर छोड़ देता जैसा कि चिडिया ने हमारे साथ किया है? ऐसा होता है कि कभी कभी हम शब्‍दों को मरोड़ देते है जैसा कि नवयुवक शेमूएल ने कहा कि, “कह, क्‍योंकि तेरा दास सुन रहा है।“ (1 शमूएल 3:10) हमें ऐसा कहने के बजाय कहना चाहिये कि, “सुन, प्रभु क्‍योकि तेरा दास कह रहा है” ऐसा प्रतीत होता है कि हम ऐसा सोचते है कि हम जो चीज चाहते है और जिस समय चाहते है वह परमेश्‍वर को हमें उसी समय देनी चाहिये और यदि परमेश्‍वर ऐसा नही करता है तो हम प्रार्थना करना बंद कर देते है और ऐसा मान लेते है कि वह हमारी प्रार्थनाओं का सम्‍मान नही करता है।

मनुष्‍य जल्‍दी में है। परमेश्‍वर जल्‍दी में नही है। “बुरे काम के दंड की आज्ञा फुर्ती से नही दी जाती, इस कारण मनुष्‍यों का मन बुरा काम करने की इच्‍छा से भरा रहता है” (सभोपदेशक 8:11) परमेश्‍वर अपने कार्यो को जल्‍दी में नही करता: क्‍योंकि वह नही चाहता कि बहुत से लोग ऐसा सोचे कि वह मरा हुआ है। परमेश्‍वर ने अब्राहम से कहा कि, “क्‍योंकि अब तक एमोरियों का अधर्म पूरा नही हुआ”, जब यह पूरा हुआ तो इसमें सैकड़ो और सैकड़ो वर्ष लगे, परमेश्‍वर ने यहोशू के नेतृत्‍व में अपने लोगों को प्रतिज्ञा की हुयी भूमि में भेजा। निसन्‍देंह अन्‍य जातियों का अधर्म अभी पूरा नही हुआ है, लेकिन जब यह होगा तो, परमेश्‍वर, यीशु के नेतृत्‍व में अपने लोगों को प्रतिज्ञा की हुयी भूमि में लेकर आयेगा। और तब तक के लिए वे लोगों को जो बुद्धिमान नही है सोचते है कि परमेश्‍वर मरा हुआ है या उसको हमारी परवाह नही है।

पतरस ने पहले से ही बता दिया था कि लोग ऐसा कहेंगे कि, “उसके आने की प्रतिज्ञा कहा गई? क्‍योंकि जब से बाप-दादे सो गये है, सब कुछ वैसा ही है, जैसा सृष्टि के आरम्‍भ से था।” (2 पतरस 3:4) क्‍योंकि मनुष्‍य के सोचने के अनुसार परमेश्‍वर प्रतिउत्‍तर नही देता इसलिए जब कभी भी परमेश्‍वर प्रतिउत्‍तर देगा तो उसे बहुत सन्‍देह होना चाहिये, लेकिन “प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नही करता, जैसी देर कितने लोग समझते है, पर तुम्‍हारे विषय में धीरज धरता है, और नही चाहता, कि कोई नाश हो, वरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (2 पतरस 3:9)

हबक्‍कूक हमें बताता है कि, “क्‍योंकि इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होने वाली है, वरन इसके पूरा होने के समय वेग से आता है, इसमें धोखा न होगा। चाहे इसमें विलम्‍ब भी हो, तौभी उसकी बांट जोहते रहना, क्‍योंकि वह निश्‍चय पूरी होगी और उसमें देर न होगी।” (हबक्‍कूक 2:3) इब्रानियों को लेखक हमें बताता है, “क्‍योंकि अब बहुत ही थोड़ा समय रह गया है, जब कि आने वाला आयेगा, और देर न करेगा।” (इब्रानियों 10:37)

परमेश्‍वर की अपनी स्‍वंय की समय सारणी है और वह हमारी भलाई के लिए कार्य कर रहा है। हमें एक महत्‍वपूर्ण बात याद रखनी चाहिये कि हम निरन्‍तर प्रार्थना करते रहे फिर चाहे ऐसा क्‍यों न प्रतीत हो कि हमारी प्रार्थनाओं का उत्‍तर नही मिल रहा है लेकिन फिर भी हम प्रार्थना में लगे रहे। हमारी चिडि़या के समान यह मूर्खतापूर्ण है कि अब वह, हमारे द्वारा रखें गये, अपनी पसन्‍द के स्‍वादिष्‍ट खाने से दूर है लेकिन वह कही दूसरी जगह खाना ढूंढ लेगी। लेकिन यदि हम जीवन का जल देने वाले कुंए से दूर चले जायेंगे तो हम कहां जायेंगे? कोई दूसरा जीवन का जल नही है जहां हम जा सके, बस केवल पाप और मृत्‍यु है। जब मसीह के कुछ चेले उनको छोड़ कर चले गये तो यीशु ने दुखी आखों से अपने चुने हुए बाहर चेलों की ओर देखा और पूछा, “क्‍या तुम भी चले जाना चाहते हो?” पतरस ने जो उत्‍तर दिया हम सब उसको याद रखना चाहते है, “हे प्रभु हम किस के पास जाये? अनन्‍त जीवन की बातें तो तेरे ही पास है।” (यूहन्ना 6:67-68)

हालांकि हमें ऐसा लगता है कि परमेश्‍वर हमारी प्रार्थनाओं को नजरअंदाज कर रहा है लेकिन हम जानते है कि वह सुन रहा है और जो कुछ भी हो रहा है वह भले के लिए हो रहा है, क्‍योंकि, “हम जानते है कि जो लोग परमेश्‍वर से प्रेम रखते है, उन के लिए सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्‍पन्‍न करती है, अर्थात उन्‍हीं के लिए जो उसकी इच्‍छा के अनुसार बुलाये गये है।” (रोमियों 8:28)

‘परमेश्‍वर की समय सारणी’ (God’s timetable) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J Lloyd

दाखरस, ड्रग और धुम्रपान
(Alcohol, drugs and smoking)

“मादक द्रव्‍यों का सेवन”, आज समाज की एक गम्‍भीर समस्‍या है। मसीह के एक चेले का इन सब चीजों के प्रति कैसा व्‍यवहार होना चाहिए? यहां हम इसी विषय में बात करेंगे कि एक विश्‍वासी को इन सब चीजों के प्रति कैसा व्‍यवहार होना चाहिये।

मुख्‍य पद: इफिसियों 5:15-21

पौलुस इफिसुस के विश्‍वासियों को कुछ अच्‍छी सामान्‍य सलाह दे रहे है कि उनका अपना जीवन किस दिशा में होना चाहिये। उन्‍होंने बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट निर्देश दिया कि दाखरस का सेवन नही करना चाहिये। और दाखरस का सेवन न करना मूर्खता नही बल्कि बुद्धिमानी है। (पद 15) दाखरस से प्रभावित होकर अपने विचारों को उसके नियन्‍त्रण में करने के बजाय हमें अपने आप को “परमेश्‍वर की आत्‍मा” से परिपूर्ण करना चाहिये। यदि दूसरे शब्‍दों में कहें तो, ईश्‍वरीय विचार और कार्य हमारे मस्तिष्‍क में होने चाहिये जिनके द्वारा हमारा जीवन निर्देशित होना चाहिये।

परमेश्‍वर के वचन के द्वारा उसकी आत्‍मा से प्रभावित होकर हमें सकारात्‍मक और रचनात्‍मक होना चाहिये, ना कि दाखरस या दूसरे रसायनों से प्रभावित होकर उद्देश्‍यहीन जीवन जीये।

  1. क्‍या पौलुस कहता है कि हमें दाखरस नही पीना चाहिये?
  2. पौलुस ऐसा क्‍यों कहता है कि हमें दाखरस नही पीना चाहिये?
  3. अन्‍य किस तरीके से कोई व्‍यक्ति मसीह जीवन में, दाखरस से समझौता करेगा?
  4. हम किस प्रकार “आत्‍मा से भर” सकते है?

क्‍या दाखरस पीना गलत है?

कुछ लोग ऐसा मानते है कि दाखरस पीना पाप है। यह बाईबल की शिक्षा नही है। पीयक्‍कड होने और संयम के साथ उपयुक्‍त कारण से दाखरस का सेवन करने में अन्‍तर करना जरूरी है।

निम्‍न बातों पर विचार कीजिये:

  1. दूसरी खाने और पीने की चीजों के समान ही दाखरस भी परमेश्‍वर से मिला एक उपहार है।
    योएल 3:18: क्‍या परमेश्‍वर के राज्‍य में दाखरस होगा?
    व्‍यवस्‍थाविवरण 7:13: क्‍या परमेश्‍वर ने दाखरस को आशीष कहा?
  2. उत्‍सवों और विशेष अवसरों पर दाखरस का प्रयोग होता है।
    यूहन्‍ना 2:1-11: क्‍या यीशु ने शादी के अवसर पर दाखरस पीने को उचित ठहराया?
  3. अन्तिम भोज के समय यीशु ने अपने लहू को प्रदर्शित करने के लिए दाखरस का प्रयोग किया।
    लूका 22:17-20: तो यदि दाखरस बाईबल के अनुसार वर्जित है तो क्‍या यीशु ने अपने बलिदान को स्‍मरण करने के लिए किसी वर्जित या बुरे पदार्थ का प्रयोग किया होगा।

फिर भी यीशु की मृत्‍यु और पुर्नरूत्‍थान को स्‍मरण करने के अलावा हमें दाखरस पीने की आज्ञा नही है। हमसे विवेक से काम लेने की अपेक्षा की जाती है, क्‍योंकि ऐसे अवसर हो सकते है जब दाखरस पीना उपयुक्‍त नही होता। क्‍या आज के समय आप कुछ ऐसी परिस्थितीयों को सोच सकते है जब दाखरस पीना, “बुद्धिमानी से चलना” नही होगा? जैसे: दानिय्येल 1:8, यिर्मयाह 35:5-8।

बाईबल में अधिक शराब पीने की सख्‍त से मनाही है। यह मूर्खता है, यह आपको आगे पाप करने की ओर ले जाती है, यह आत्‍म-संयम को खो देना है, और एक विश्‍वासी के लिए संयम खोना वर्जित है। नीतिवचन 20:1, 1 कुरिन्थियों 5:11, 6:9-10।

आप क्‍या करेंगे?

नीचे दी गयी परिस्थितियों पर विचार कीजिये और विचार कीजिये कि इन परिस्थितियों में आप के लिए क्‍या करना उचित रहेगा।

  1. यदि आप किसी मित्र की शादी में आमंत्रित किये जाते है और आप जानते है कि वहां पर दाखरस का सेवन होगा और आपको सन्‍देह है कि कुछ लोग अधिक दाखरस का सेवन करेंगे। तो क्‍या आप इस निमंत्रण को स्‍वीकार करेंगे? क्‍या यीशु ने यूहन्‍ना 2:1-11 में कोई उदाहरण प्रस्‍तुत किया है?
  2. आप किसी ऐसे व्‍यक्ति के साथ रात्री भोज ले रहे है जो पहले दाखरस का सेवन करता था। तो क्‍या आप उसको दाखरस देंगे? क्‍या आप भी उसके साथ दाखरस लेंगे? क्‍या 1 कुरिन्थियों 8:13 इससे सम्‍बन्धित है?
  3. आपने कोई नयी नौकरी शुरू की है और आपके सहकर्मी आपको बताते है कि वे प्रत्‍येक शुक्रवार छुट्टी होने के बाद दाखरस पीने जाते है। क्‍या आप उनके साथ जायेंगे? क्‍या ये पद इस बात से सम्‍बन्धित है: लूका 5:29, 7:34

अधिक दाखरस पीने से आपका स्‍वास्‍थ्‍य खराब होता है। यह परिहद-धमनी और लीवर से सम्‍बन्धित बीमारियों और अन्‍य दूसरी समस्‍याओं को पैद करती है। हमें अपने शरीर को पवित्र रखना चाहिये और इसका सम्‍मान करना चाहिये ना कि इसको अपमानित करना चाहिये।

परमेश्‍वर ने हमें अपने देश की व्‍यवस्‍था का पालन करने की आज्ञा दी है। (तीतुस 3:1) इसलिए दाखरस पीना और उपद्रवी व्‍यवहार करना, जैसे कि कम उम्र में दाखरस का सेवन करना, नशे में बाहन चलाना, और दूसरी गैरकानूनी गतिविधियों का एक विश्‍वासी के जीवन में कोई स्‍थान नहीं होना चाहिये।

धुम्रपान और दूसरे मादक पदार्थे के विषय में बाईबल क्‍या बताती है?

बाईबल में धुम्रपान और दूसरे मादक पदार्थो का विशेष वर्णन नही है। “मादक पदार्थ” का अर्थ है मन-मस्तिष्‍क को चेतन करने वाला पदार्थ। यह (चिकित्‍सीय निर्देशों के अतिरिक्‍त) “मन-बहलाने” या “निर्भरता” के लिए प्रयोग होता है।

चार बहुत ही महत्‍पूर्ण सिद्धान्‍त है जो यहां लागू होते है और ये सिद्धान्‍त निम्‍न लिखित है:

  1. अपने स्‍वभाव को नियन्त्रित करने के लिए या अपने जीवन को निर्देशित करने के लिए हमें मादक पदार्थो पर निर्भर रहने के बजाये परमेश्‍वर के वचन के द्वारा उसकी आत्‍मा से अपने जीवन को चलाना चाहिये। (इफिसियों 5:15-21)
    यह सिद्धान्‍त दाखरस और मादक पदार्थो दोनों का सेवन करने के लिए बराबर रूप से लागू होता है। दाखरस के लिए कह सकते है कि कुछ परिस्थितियो में पीना स्‍वीकार्य है लेकिन दूसरे मादक पदार्थो का सेवन करने से कोई लाभ नही है। चाहे किसी व्‍यक्ति को इन मादक पदार्थो की लत हो या चाहे वह कभी-कभी इनका सेवन करता हो, दोनों ही अवस्‍थाओं में यह परमेश्‍वर की सामर्थ का इन्‍कार करना है और आत्‍म-संयम को खोना है। मादक पदार्थो के सेवन के परिणामस्‍वरूप जो बुराईयां (अपराध, परिवारों का टूटना, दुर्घटनायें) होती है वह भी हमारे समाज में स्‍पष्‍टरूप से देखी जा सकती है।
  2. एक विश्‍वासी के शरीर को परमेश्‍वर का मन्दिर बताया गया है। (1 कुरिन्थियों 3:16-17; 6:19-20)
    इसलिए अपने शरीर को नजरअन्‍दाज नही करना चाहिये या इसको नही पहुचानी चाहिये। ऐसा करना उस परमेश्‍वर का अपमान करना है जिसने हमें बनाया है।
    जो शरीर अधिक दाखरस पीने या धूम्रपान और मादक पदार्थो के सेवन से बिमारी का घर बन जाता है उसमें पवित्र आत्‍मा निवास नही कर सकती है। पौलुस बताता है कि हमें मौल देकर (यीशु की मृत्‍यु के द्वारा) खरीदा गया है इसलिए हम अपने शरीर को नाश करने या अपने मस्तिष्‍क को दूषित करने के लिए स्‍वतन्‍त्र नही है।
  3. मसीह के विश्‍वासी और परमेश्‍वर के अराधक होने के कारण हमें पवित्र कहा गया है।
    पुराने नियम की परमेश्‍वर की व्‍यवस्‍था में, परमेश्‍वर के सम्‍मुख आने के लिए बाहरी स्‍वच्‍छता और निरोगी होना शुद्धता का प्रतीक था। नये नियम में यीशु ने बताया कि अशुद्धता व्‍यक्ति के अन्‍दर से, उसके बुरे विचारों और अपवित्र व्‍यवहार के कारण आती है। यह कल्‍पना करना कठिन है कि किस प्रकार कोई व्‍यक्ति जानबूझकर अपने शरीर को दूषित करके उस पवित्रता में सहभागी हो सकता है जिसकी परमेश्‍वर को आवश्‍यकता है। धूम्रपान और मादक पदार्थो का सेवन करना पवित्र जीवन शैली नही है बल्कि यह पापमय जीवनशैली है।
  4. अपने आप को बदलने के लिए कभी देर नही होती है।
    यदि आपने इस सब चीजों का सेवन करके पाप किया है तो आपको अपने आप को बदलना होगा और परमेश्‍वर से क्षमा मांगनी होगी। यदि आपको इन चीजों की लत है तो आपको इससे बाहर निकलने में मुश्किल होगी, लेकिन परमेश्‍वर इसमें भी आपकी सहायता कर सकता है।
    “अब जो (परमेश्‍वर) ऐसा सामर्थी है, कि हमारी बिनती और समझ से कही अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हम में कार्य करता है।” (इफिसियों 3:20)

सारांश

  1. संयम और उचित कारण से एक विश्‍वासी दाखरस का सेवन कर सकता है। जबकि पियक्‍कड होना पाप है। यदि एक विश्‍वासी दाखरस के सेवन पर नियन्‍त्रण नही कर सकता हो तो उसको दाखरस से पूरी तरह से बचना चाहिये।
  2. एक विश्‍वासी को रोमांच के लिए या तनाव दूर करने के लिए दाखरस, धूम्रपान और अन्‍य मादक पदार्थो पर निर्भर नही रहना चाहिये। बल्कि एक विश्‍वासी को बाईबल के आत्मिक मार्गदर्शन से भरा होना चाहिये और प्रार्थना के द्वारा परमेश्‍वर से संगति रखनी चाहिये।
  3. हम हानिकारक पदार्थो के द्वारा अपने शरीर को दूषित करने के लिए स्‍वतन्‍त्र नही है।

विचारणीय पद

  • दाखरस हमारे संकोच को समाप्‍त कर देता है और इसके प्रभाव में व्‍यक्ति वह सब बातें कह और कर सकता है जो हमें पाप की ओर ले जाती है। क्‍या बाईबल में कुछ ऐसे उदाहरण है जिनमें पियक्‍कडपन के परिणामस्‍वरूप पाप हुआ हो?
  • 2 कुरिन्थियों 6:17-18 को पढियें।
  • 1 कुरिन्थियों 3:16-17 के ये पद हमें बताते है कि हमारा शरीर परमेश्‍वर का मन्दिर है इसलिए हमें अपने शरीर को अपवित्र नही करना चाहिये। धुम्रपान से हमारे शरीर को हानि पहुचती है। धूम्रपान के अलावा और ऐसी कौन सी चीजें है जिनसे हमारे शरीर को हानि पहुचंती है? क्‍या ये चीजें भी पाप है?
  • क्‍या आप धूम्रपान, शराब या मादक पदार्थो के सेवन की आदत से परेशान है?

    अपनी समस्‍या के विषय में परमेश्‍वर को बताये। इस बात को स्‍वीकार करें कि यह एक पाप है और परमेश्‍वर सहायता मांगे। यदि हो सके तो किसी विश्‍वासी चिकित्‍सक या सलाहकार से इसका इलाज कराये।

    अन्‍य खोज

    1. 1 कुरिन्थियों अध्‍याय 8 को पढें। प्रेरित पौलुस के समय में यह एक बहुत बड़ी समस्‍या थी कि झूठे देवताओं को बलि किया गया मांस सार्वजनिक रूप से खाया जाता था। कुछ विश्‍वासियों को इससे कोई समस्‍या नही थी क्‍योंकि वे जानते थे कि मूर्तियों का कोई अर्थ है ही नही इसलिए उनको चढाया गया चढावा भी कुछ नही है। जबकि कुछ दूसरे लोग इसको गलत मानते थे और इसलिए ऐसे खाने से दूर रहते थे। वह वास्‍तविक समस्‍या क्‍या थी जिसके विषय में पौलुस ने बातें की है क्‍या यह, दाखरस पीने वाले किसी विश्‍वासी के प्रति हमारे व्‍यवहार पर कुछ असर डालता है?
    2. कुछ लोगों के लिए धुम्रपान और दाखरस को छोड़ना एक वास्‍तविक समस्‍या है। निश्‍चय ही दूसरे मादक पदार्थो, जैसे हेरोइन, के सेवन की आदत को छोड़ पाना भी बहुत कठिन है। सबसे अच्‍छा यही है कि हम ऐसी चीजों में सहभागी ही न हो। बाईबल से कुछ ऐसे उदाहरण दीजिये जिनमें लोगों ने पाप के प्रलोभन का सामना किया। (यहां कुछ उदाहरण है जिनसे आप आरम्‍भ कर सकते है - उत्‍पत्ति 39:7-12, मत्‍ती 4:3-4, मत्‍ती 26:41)

    ‘शराब, ड्रग और धुम्रपान’ (Alcohol, drugs and smoking) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman

    “एक बात जरूरी है”
    (One Thing is Needful)

    किसी भी स्थिति में यह कह सकते है - “एक बात आवश्‍यक है” - परमेश्‍वर पर भरोसा रख। कम महत्‍वपूर्ण बातें भी व्‍यवस्थित हो जायेगी। और याद रखें कि आत्मिक बातों के अतिरिक्‍त सभी अन्‍य बातें कम महत्‍वपूर्ण है।

    फिलिप्पियों 3:13-14 में पौलुस कहता है कि, “केवल यह एक काम करता हूं... निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह ईनाम पाऊ, जिस के लिए परमेश्‍वर ने मुझे मसीह यीशु में बुलाया है” आत्मिक स्‍वास्‍थ्‍य पौलुस के जीवन का सबसे पहला उद्देश्‍य था। ऐसा नही कि, वास्‍तव में, उन्‍होंने कुछ ओर कभी नही किया। उन्‍होंने यात्रा की, उन्‍होंने पत्र लिखें, उन्‍हें तम्‍बू बनाने का समय भी मिला, और इसके अलावा ओर भी बहुत से कार्य किये। लेकिन दूसरे जो भी कार्य उन्‍होंने किये उन सब का उनके जीवन में द्वितीय स्‍थान था। दूसरे सब कामों से ऊपर जो एक काम उन्‍होंने किया वह था अपने आत्मिक जीवन पर ध्‍यान देना।

    इसलिए हम कहते है कि एक विश्‍वासी पुरूष या स्‍त्री का आत्मिक जीवन सबसे अधिक सन्‍तोषप्रद और सम्‍पूर्ण जीवन होना चाहिये। परमेश्‍वर, जिसने हमें बनाया है और निरन्‍तर हमें सम्‍भालता है, हमें अपने वचन से सिखाता है कि हम सर्वोत्‍तम जीवन कैसे जीये।

    लाल और हरी बत्‍तीयां

    बाईबल एक ऐसी पुस्‍तक है जो बताती है कि लाल और हरी सिंगनल लाईटो के महत्‍व को हम अपने जीवन में किस प्रकार अपना सकते है। क्‍योंकि अधिकांश चीजों को करने के दो तरीके होते है एक सही तरीका और एक गलत तरीका, एक सुरक्षित तरीका और एक खतरनाक तरीका।

    जब आप कार चलाते है तो उसके लिए यातायात के कुछ नियम है जिनका अनुसरण करना होता है (आशा है कि आप अनुसरण करते होंगे) यदि आप इन नियमों का पालन नही करते है और ऐसा सोचते है कि: “मैं लाल बत्‍ती पर क्‍यों रूकू?” – “मुझे इन नियमों की परवाह नही है। मुझे रूकने की जरूरत नही है! मुझे कोई नही बता सकता कि मुझे क्‍या करना है।”

    धड़ाम! आप रूक जाते है। आप किसी दूसरी कार को टक्‍कर मार चुके है।

    बाईबल में बहुत सारी लाल बत्तियां है। ये सब बताती है कि आप ऐसा करो और वैसा ना करो। ये हमारी सुरक्षा और बचाव के लिए है। लेकिन इनके कारण बहुत से लोग परमेश्‍वर के वचन को पसन्‍द नही करते है। “इसमें बहुत सारे प्रतिबन्‍ध है।”

    बहुत कम लोग यातायात के नियमों के विषय में एक जैसा व्‍यवहार क्‍यों करते है? क्‍या आप नही सुनते लोग कहते है, “मैं इन नियमों को नही मान सकता, यह प्रतिबन्‍धों से भरा हुआ है: लाल बत्‍ती को पार मत करो, बिना देखें आगे न बढे़, चौराहे पर गाड़ी खड़ी न करें” हम जानते है यह सब प्रतिबन्‍ध हमारी और दूसरों की सुरक्षा के लिए है। और इसीलिए बाईबल में दिये गये सब प्रतिबन्‍ध है। आप घमण्‍ड में भरे हुए बाईबल की सभी लाल बत्‍तीयों (प्रतिबन्‍धों) को पार करते हुए सीधे जा सकते है। आप शायद कुछ समय के लिए भाग्‍यशाली हो सकते है कि आप सुरक्षित इनको पार कर जाये। यह भी हो सकता है कि आप दुर्घटना के नजदीक से होकर निकल जाये और आप सोचे कि यह तो काफी रोमांचकारी था। लेकिन यह निश्चित है कि आप हमेशा भाग्‍यशाली नही रहेंगे और एक दिन, धडांम! – और आप अपने आप को एक गम्‍भीर समस्‍या में पायेंगे।

    बाईबल में जो प्रतिबन्‍ध है वह लाल बत्‍ती के समान ही हमारी सुरक्षा के लिए दिये गये है। लेकिन इसके साथ ही बाईबल में बहुत सी हरी बत्‍तीयां (अनुमति) भी है। वास्‍तव में आत्‍मा के फलों के सभी पहलू हरी बत्‍तीयां ही है। गलातियों 5:23 हमें ऐसा ही बताता है जहां आत्‍मा के फलों का वर्णन इस तरह से किया गया है कि “ऐसे कामों के विरोध में कोई व्‍यवस्‍था नहीं।” मेल, आनन्‍द, विश्‍वास और अन्‍य दूसरें आत्‍मा के फलों के विरोध में कोई व्‍यवस्‍था नही है। ये सब हरी बत्‍तीयां है। इनको करो। इस मार्ग पर चलने के लिए ये आपके लिए सुरक्षित है।

    वह जिसने इस नियम की पुस्‍तक को लिखा है वह सब जानता है। वह जिसने हमें रचा है वह जानता है कि हमारे लिए सर्वोत्‍तम मार्ग क्‍या है। वह अपने शब्‍दों में हमें बताता है कि जो जीवन उसने हमें दिया उसको जीना कितना उत्‍तम है। हम उसके वचन को सीखने और उसके अनुसार जीवन जीने के द्वारा इस बात को सिद्ध कर सकते है। हमें हताशा और अज्ञानता से भरा हुआ जीवन नही दिया गया है। बल्कि जीवन का अर्थ उससे कही अधिक बेहतर है।

    यदि आप आत्‍मा के मार्ग पर चलते है तो आप वह सब कुछ पा सकते है जो एक सन्‍तुष्‍ट जीवन जीने के लिए आवश्‍यक है।

    तो क्‍या इसमें कोई समस्‍या छिपी है?

    लेकिन इसमें एक समस्‍या छिपी है - या फिर ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें कुछ छिपी हुयी समस्‍या है। वास्‍तव में यह एक शर्त है। जब हम कहते है कि सत्‍य में जीवन जीना सबसे अधिक सन्‍तोषप्रद जीवन होना चाहिये, तो यहां हमें शब्‍द “होना चाहिए” पर ध्‍यान देना चाहिये। क्‍योंकि प्राय: साथी विश्‍वासियों से बात करते हुए, किसी की एक विशेष धारणा बन जाती है कि वे अधिकांशतया अपने सत्‍य में जीने वाले जीवन से बहुत अधिक प्रसन्‍न नही है। कभी कभी वे स्‍पष्‍टतया कहते है कि जीवन उन्‍हें बहुत कठिन समय दे रहा है। तो क्‍या गलत हुआ है? और क्‍यों अधिकांश विश्‍वासी अपनी आत्मिक क्षमता से नीचा जीवन जीते हुए प्रतीत होते है? इसके पीछे दो कारण लगते है जो मैनें ईमानदारी से अनुभव किये है और वह है एक तो परीक्षा में पड़ने की समस्‍या और दूसरा आध्‍यात्मिक विकास के बारे में अस्‍पष्‍टता की समस्‍या।

    परीक्षायें

    जैसा कि मैंने पहले कहा, परीक्षायें एक छिपी हुयी समस्‍या या एक शर्त है। जबकि यह सच है कि परमेश्‍वर ने कहा है कि वह उन लोगों की हर प्रकार से सहायता करेगा जो गम्‍भीरता से अपने जीवन में आत्मिकता के मार्ग पर चलते है और शर्त यह है कि वह उन सब की परीक्षा करेगा जो उस मार्ग पर चलते है। “क्‍योंकि प्रभु जिससे प्रेम करता है, उसकी ताड़ना भी करता है; और जिसे पुत्र बना लेता है, उसको कोड़े भी लगाता है। तुम दुख को ताड़ना समझकर सह लो, परमेश्‍वर तुम्‍हें पुत्र जानकर तुम्‍हारे साथ बर्ताव करता है, वह कौन सा पुत्र है, जिसकी ताड़ना पिता नही करता?” (इब्रानियों 12:6-7)

    ताड़ना से हम खुश नही होते है, क्‍या हम होते है? जब हम बच्‍चे थे और हमारे माता-पिता हमें ऐसा कहकर कि, “तुम्‍हारे भले के लिए”, ताड़ना देते थे तो हमें बिल्‍कुल भी अच्‍छा नही लगता था, और ठीक उसी प्रकार जब हम परमेश्‍वर के बच्‍चे हो जाते है तो हम स्‍वभाविक रूप से स्‍वर्गीय पिता की ताड़ना का विरोध करते है। जब हमारे माता-पिता ऐसा करते थे तो हमें सन्‍देह होता था कि क्‍या यह वास्‍तव में हमारे भले के लिए है, और हमें कभी कभी ऐसा लगता है कि वे ऐसा अपने भले के लिए कर रहे थे। यदि उन्‍होंने हमारी ताड़ना की तो उनका जीवन शान्‍त था क्‍योंकि हमको उचित मार्ग पर रखा गया था। इब्रानियों का लेखक इस विषय में लिखता है: “वे (माता-पिता) तो अपनी अपनी समझ के अनुसार थोड़े दिनों के लिए हमारी ताड़ना करते थे, पर यह (परमेश्‍वर) तो हमारे लाभ के लिए करता है, कि हम भी उसकी पवित्रता के भागी हो जायें।” (इब्रानियों 12:10)

    समस्‍याओं और कठिनाईयों के द्वारा हमारी परीक्षा की जायेगी। और ये परीक्षायें हमेशा, जीवन को सन्‍तोषप्रद बनाने वाली दस बातों में से किसी एक या अधिक को प्रभावित करेगी। और शायद इससे भी कही अधिक ये परीक्षायें हमें ऐसी जगह प्रभावित करें जहां हमें सबसे अधिक पीड़ा होगी। परमेश्‍वर विश्‍वासियों की उन विभिन्‍न चीजों से परीक्षा करता है जिनसे वे अधिक प्रभावित होते है: शायद पर्याप्‍त धन, या स्‍वास्‍थ्‍य, या आत्‍म-सम्‍मान। नये नियम में (लूका 18:18-23) एक घटना है जहां यह सिद्धान्‍त प्रकाश में आता है। एक व्‍यक्ति, जो धनी शासक था, मसीह के पास गया और पूछा कि अनन्‍त जीवन पाने के लिए उसे क्‍या करना चाहिये।

    आपको क्‍या कमी है?

    इस धनी शासक ने दावा किया कि वह सभी आज्ञाओं को मानता था लेकिन तोभी उसे लगता था कि उसको कुछ कमी है। या शायद वह जानना चाहता था कि मूसा की व्‍यवस्‍था से भी बड़ी ऐसी कौन सी नई शिक्षा यीशु दे रहे थे जो उसके लिए अवश्‍यक थी। क्‍या वह व्‍यवस्‍था पर्याप्‍त नही थी? क्‍या यीशु कह रहे थे कि उसको उस व्‍यवस्‍था से भी अधिक की आवश्‍यकता थी? नवयुवक ने कहा कि वह व्‍यवस्‍था की सभी आज्ञाओं का पालन पहले से ही करता है। तो फिर उसको क्‍या कमी थी? जैसी कि आशा थी, यीशु तुरन्‍त ही मामले की गहराई तक पहुंच गये। “तुझ में अब भी एक बात की घटी है, अपना सब कुछ बेचकर कंगालों को बांट दें; और तुझे स्‍वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले। वह यह सुनकर बहुत उदास हुआ, क्‍योंकि वह बड़ा धनी था।” (लूका 18:22-23)

    यह व्‍यक्ति पहले से ही आत्मिकता के मार्ग पर था। वह व्‍यवस्‍था को जानने वाला था, और हम कह सकते है कि वह एक वास्‍तविक शंका के साथ यीशु के पास आया था, लेकिन तोभी उसके जीवन में एक ऐसा क्षेत्र था जिसमें वह कमजोर था। उसमें एक बात की कमी थी, जो एक आवश्‍यक चीज थी: वह चीज थी, आत्मिकता के मार्ग पर एक सत्‍यपूर्ण प्रतिबद्वता।

    अब तक इस कड़वे सत्‍य से उसका सामना नही हुआ था, कि उसकी धनसम्‍पत्ति उसकी आत्मिकता से अधिक महत्‍वपूर्ण थी। यह सब करते हुए उसे जो कुछ चाहिये था वह सब उसके पास था, वह अपने धर्म में सुरक्षित महसूस करता था। लेकिन यदि उसका धर्म उससे कुछ मांगता तो वह उसकी धनसम्‍पत्ति के लिए घातक होता, या फिर वह अपनी धनसम्‍पत्ति के साथ रह सकता था। उसको विश्‍वास हो गया कि अपनी धन सम्‍पत्ति को खो देना उसके सहने से बाहर था। वास्‍तव में ऐसा नही था, क्‍योंकि यदि यह उसके सहने से बाहर होता तो उसके प्रसन्‍न के उत्‍तर में प्रभु यीशु उसको कभी भी ऐसी सलाह नही देते। हम नही जानते कि कहानी किस प्रकार समाप्‍त हुयी। अन्‍त में हम देखते है कि वह व्‍यक्ति उदास होकर यीशु के पास से चला गया। मैं सोचता हूं कि अच्‍छा होता कि परमेश्‍वर फिर से उसकी धनसम्‍पत्ति के लिए उसकी परीक्षा की हो और उसको यह बात सिद्ध की हो कि वह धन की हानि को सह सकता था। क्‍योंकि उसको स्‍वर्ग में धन मिलेगा और उसको बेसहारा ना छोड़ा जायेगा, जिसका उसको डर था।

    मुझे गलत मत समझिये। ऐसा नही है कि हमें आत्मिकता के मार्ग पर चलने के लिए अपना सबकुछ गरीबों को दे देना चाहिये। बल्कि महत्‍वपूर्ण बिन्‍दु यह है कि जो चीज, आत्मिक पथ पर प्र‍गति में, बाधा उत्‍पन्‍न करती है उसका हमें त्‍याग करना चाहिये। इस व्‍यक्ति का अपनी धन सम्‍पत्ति से लगाव एक समस्‍या थी, ना कि उसकी धन सम्‍पत्ति कोई समस्‍या थी। इसलिए यदि आपके पास धन सम्‍पत्ति है तो हो सकता है कि यह कोई समस्‍या ना हो। आपको किसी दूसरे क्षेत्र में परीक्षण करने की आवश्‍यकता हो सकती है।

    निश्‍चय ही परमेश्‍वर विश्‍वासियों की परीक्षा करता है, और यही एक कारण है कि बहुत से विश्‍वासी, सत्‍यपूर्ण जीवन से कम सन्‍तुष्‍ट होते है। इसलिए प्राय: जो शिक्षा हमारे पास आती है उसको ग्रहण करने में हम असफल रहते है। इसलिए प्राय: सच्‍चाई के मार्ग पर जो बाधाऐं आती है उनको हम परमेश्‍वर की ओर से मिलने वाली परीक्षाओं के रूप में नही लेते है, बल्कि हम सोचते है कि यह हमारे जीवन में एक कठिन समस्‍या आ गयी है जिससे हमें पीडित होना है और यही सोच हमें परमेश्‍वर की दृष्टि में नीचे कर देती है। इसलिए हम इससे ऊपर नही उठ पाते है। शायद हम अपने बारे में इसके अलावा कुछ नही सिखते है कि हम सच्‍चाई में जीवन जीने में असफल है, जबकि परमेश्‍वर हमें ऐसा दिखाने का प्रयास नही कर रहा है। परिणामस्‍वरूप कुछ भी आत्मिक विकास नही होता, कोई आत्‍मा का फल नही होता और केवल शिकायत और असन्‍तोष होता है।

    ‘“एक बात जरूरी है”’ (One Thing is Needful) is from ‘The fruit of the Spirit’, by Colin Attridge

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