Dipak Issue 31 (May 2017)

तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105

मूर्ख डरता है
(Foolish fears)

“मैं एक बूढ़ा व्‍यक्ति हूँ और बहुत सी समस्‍याओं को जानता हूँ, लेकिन उनमें से अधिकांश समस्‍याऐं कभी हुयी ही नही।” – मार्क ट्वैय्न

मार्क ट्वैय्न के समान ही हममें से बहुत से लोग ऐसे है जो कभी न घटने वाली समस्‍याओं के विषय में चिन्तित रहते हैं। कभी न घटने वाली बातों की चिन्‍ता पर समय बर्बाद किया जाता है। बहुत से लोग ऐसे चोरों की कहानी सुनते हुए, बिना सोये रातें गुजार देते है, जिनका अस्तित्‍व ही नही है। कुछ लोग ऐसी भयानक दुर्घटनाओं के विषय में सोचकर पीड़ाओं को सहते रहते है जो कभी घटी ही नही। यह सही है कि दुनिया में बहुत सी वास्‍तविक समस्‍याऐं है जो होती है तो इसका अर्थ यह नही हैं कि हमें उन बातों के विषय में व्‍याकुल नही होना चाहिये जो हो सकती है।

हम निश्‍चय ही विश्‍वास करते है कि, “यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है।” (भजन संहिता 34:7)

जो बातें कभी हुयी ही नही उनके विषय में चिन्‍ता करना, विश्‍वास की कमी को दर्शाता है। सावधान रहने और चिन्‍ता करने के बीच बहुत अन्‍तर है। अनावश्‍यक संभावनाओं को लेना मूर्खता है, लेकिन जो भयानक बातें हो सकती है उनके विषय में अपनी कल्‍पनाओं को बढ़ाना बहुत बड़ी मूर्खता है।

सुलैमान कहता है कि, “परन्‍तु जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेग।” (नीतिवचन 1:33) यशायाह स्‍पष्‍ट करता है कि, “जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए है, उसकी तू पूर्ण शान्ति के साथ रक्षा करता है, क्‍योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है।” (यशायाह 26:3)

अब हम देखते है कि यह विश्‍वास और भरोसे का मामला बन जाता है। परमेश्‍वर अपना कार्य करेगा। यदि हमारा मस्तिष्‍क परमेश्‍वर के विचारों से भरा है तो वह हमें पूर्ण शान्ति के साथ रखेगा। जब सम्‍भावनाओं से परेशान और चिन्तित होते है तो इसका मतलब है कि हम इस बात को नही मान रहे है कि परमेश्‍वर का दूत हमारे आसपास छावनी किये हुए है। इसका अर्थ यह नही है कि हम सभी दुख और कलेशों से मुक्‍त हो जायेंगे, बल्कि इसका अर्थ है कि जो कुछ भी होता है वह हमारे स्‍वर्गीय पिता के विधान से बाहर नही होगा। इसलिए जो समस्‍याऐं हम पर आती है उनके कारण हमारे मस्तिष्‍क की शान्ति भंग नही होगी। यीशु बताते है कि, “मैंने ये बातें तुम से इसलिए कही है कि तुम्‍हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्‍हें कलेश होता है, परन्‍तु ढ़ांढस बांधो, मैंने संसार को जीत लिया है।” (यूहन्‍ना 16:33)

जी हां, हमारा उद्धारकर्ता चाहता है कि हमें जब इस संसार में कष्‍ट होता है तो भी हम शान्ति रखें। वह चाहता है कि समस्‍याओं के बीच में भी हम प्रसन्‍न रहे। निश्‍चय ही यह वही व्‍यवहार है जिसके कारण पौलुस और सीलास जेल में पीटे जाने के बाद भी आधी रात को गीत गा रहे थे। इसलिए इसमें कोई आश्‍चर्य नही जब पौलुस कहता है कि, “जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूँ।” (फिलिप्पियों 4:13) हमें याद रखने की आवश्‍यकता है कि हम यह कर सकते है।

इस बात को जानने से बहुत ही आराम मिलता है कि परमेश्‍वर हमें ऐसी परीक्षा या समस्‍याओं में नही पड़ने देगा जो हमारे सहने से बार हो बल्कि बचने का एक मार्ग प्रदान करेगा ताकि हम उसको सहने में समर्थ हो सके। जब हम अपना जीवन परमेश्‍वर की ओर मोड़ देते है तो हर एक बात में वह हमें निर्देशित करता है ताकि वे सभी भली बातें और सभी परीक्षायें, जो हम पर आती है, वे उसकी ओर से हो और उसके स्‍वर्गदूत यह देखते है कि हमारे साथ सब सही हो। जब हम इस बात को पूरी तरह से पहचान जाते है और विश्‍वास करते है, तो हम वास्‍तव में शान्ति से भर जायेंगे। जैसे दाउद इस बात को कहता है कि, “तेरी व्‍यवस्‍था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती|” (भजन संहिता 119:165)

इस सुखी और सफल जीवन की कुंजी यह है कि हम परमेश्‍वर की व्‍यवस्‍था से प्रेम करें और अपने मस्तिष्‍क को उसके विचारों से परिपूर्ण करें। यह केवल तभी हो सकता है जब आप उसके वचन को नियमित रूप से पढ़ें और प्रार्थना करें। ऐसा करने से परमेश्‍वर हमें पूर्ण शान्ति देगा। जब हमारे साथ ऐसा होगा तो हम पौलुस के समान ही अपने ऊपर आने वाली समस्‍याओं को शान्तिपूर्वक देखने में समर्थ होंगे और उनमें प्रसन्‍न होंगे। पौलुस कहता है कि, “मैं शान्ति से भर गया हूँ; अपने सारे क्‍लेश में मैं आनन्‍द से अति भरपूर रहता हूँ।” (2 कुरिन्थियों 7:4) यही हमारा लक्ष्‍य है जिसको हमें खोजना है।

जब ऐसा होता है तो हम निश्‍चय ही उन समस्‍याओं से परेशान होना बंद कर देंगे जो कभी हुयी ही नही। मार्क टवायन की जो समस्‍या है वह हमारी नही रहेगी। यहां तक कि वास्‍तव में होने वाली समस्‍याओं से भी हमको परेशानी नही होगी क्‍योंकि अब हम परमेश्‍वर के लिए जी रहे है इसलिए हम पौलुस के साथ कहते है कि, “मैं मसीह के लिए निर्बलताओं, और निन्‍दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्‍न हूं; क्‍योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्‍त होता हूँ|” (2 कुरिन्थियों 12:10)

‘मूर्ख डरता है’ (Foolish fears) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd

प्रार्थना
(Prayer)

वास्‍तविकता यह है कि परमेश्‍वर हमारी बातों को सुनना चाहता हैा इसलिए प्रार्थना एक शिष्‍य के जीवन का एक नियमित और महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा होना चाहिए। यहॉं हम इस विषय में बात करेंगे कि प्रार्थना का विषय क्‍या होना चाहिए और हम अपनी प्रार्थनाओं को किस प्रकार प्रभावी और सामर्थशाली बना सकते है।

मुख्‍य पद: 1 राजा 18:36-46

एलिय्याह ईश्‍वर का जन था - उसने ईश्‍वर से प्रार्थना की, उसने ईश्‍वर की अराधना की और उसकी आज्ञाओं को माना। एलिय्याह ने गम्‍भीरता से प्रार्थना की और ईश्‍वर ने स्‍वर्ग से आग भेजकर उसकी प्रार्थना का उत्‍तर दिया। बाद में, जब एलिय्याह ने भूमि पर घुटने टिकाकर और अपना सिर घुटनों के बीच रखकर प्रार्थना की तो ईश्‍वर ने उसकी प्रार्थना को सुना और उस अकाल वाली सूखी भूमि में वर्षा दी।

  1. इन पदों में किस तरह की दो प्रार्थनाओं का वर्णन है
  2. इन दोनों ही प्रार्थनाओं में, एलिय्याह किस तरह की शारीरिक स्थिति में था? क्‍या प्रार्थना में हमारी शारीरिक स्थिति का कोई महत्‍व है?
  3. एलिय्याह को विश्‍वास था कि वर्षा के लिए उसकी प्रार्थना सुनी जायेगी, इसलिए वह अपने सेवक को बार-बार वर्षा देखने के लिए भेजता रहा। तो क्‍या ईश्‍वर में विश्‍वास रखने वाले व्‍यक्ति को अपनी प्रार्थना सुनी जाने से पहले यह आशा रखनी चाहिए कि उसकी प्रार्थना सुनी जायेगी? (मरकुस 11:24)

हमें प्रार्थना करने की आवश्‍यकता है –

यिर्मयाह 33:3, फिलिप्पियों 4:6, इफिसियों 6:18, लूका 18:1

प्रार्थना को जीवन्‍त बनाना

अपनी विचारों और भावनाओं को, शब्‍दों के द्वारा, गीतों के द्वारा, संगीत या ध्‍यानसाधना के द्वारा, ईश्‍वर के सम्‍मुख प्रकट करना ही प्रार्थना हैा यह पिता के साथ आपके सम्‍बन्‍ध का एक हिस्‍सा है। बातें करना किसी भी सम्‍बन्‍ध का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है और इसके लिए प्रयास करने की आवश्‍यकता होती है। इसलिए प्रयास करें और आपकी प्रार्थनायें जीवन्‍त होंगी और ईश्‍वर सुनेगा। यहां कुछ अच्‍छी बातें है जिनको आप अपनी प्रार्थनाओं में शामिल कर सकते है:

  • वही बातें बोले जो काम की है और महत्‍वपूर्ण है;
  • बोलने से पहले सोचे कि आप को क्‍या बोलना है;
  • सच बोले;
  • स्‍वा‍र्थ की बातें ना करें;
  • केवल बोले ही नही पर सुनें भी;
  • बातें करने के बाद उनका पालन करें।

इन छ: बातों पर विचार करें। ये बातें आपकी प्रार्थनाओं में कैसे शामिल हो सकती है? जब आप परमेश्‍वर से बातें करते है तो ऐसी तीन बातों को लिखिये जिनमें सुधार किया जा सकता है।

कुछ सम्‍बन्धित पद

उत्‍तर देने के लिए परमेश्‍वर की प्रतिज्ञा भजन संहिता 34:15; यिर्मयाह 29:12-13; मलाकी 3:16; मत्‍ती 7:7-11; यूहन्‍ना 14:13-14, 15:7, 16; 16:23-24; 1 यूहन्‍ना 5:14-15
नियमित प्रार्थना के लिए समय दानिय्येल 6:10,13; भजन संहिता 5:3; 55:17; 62:8; लूका 18:1; प्रेरितों के काम 10:9,30; इफिसियों 6:18; फिलिप्पियों 4:6-7; कुलुस्सियों 4:2; 1 थिस्‍सलुनिकियों 5:17; 1 तिमुथियुस 2:8
प्रभावी प्रार्थना में बाधाऐं भजन संहिता 66:18; नीतिवचन 15:8,29; 28:9; यिर्मयाह 11:14; मरकुस 11:25-26; 1 पतरस 3:7
प्रार्थना में सहायता रोमियों 8:26-27,34
सामर्थशाली प्रार्थना याकूब 5:13-16
वे चीजें जिनके विषय में प्रार्थना करनी चाहिये भजन संहिता 34:1; 96:2; 145:1-3; मत्‍ती 5:44; लूका 21:36; इफिसियों 5:20; फिलिप्पियों 1:3-11; 1 तिमुथियुस 2:1-6; याकूब 1:5-8
यीशु ने प्रार्थना करना सिखाया मत्‍ती 6:5-15; 18:19; 21:22; मरकुस 11:24-25; लूका 11:1-3; 18:1-4

कब और कहॉं प्रार्थना करें

बाईबल बताती है कि प्रार्थना कही भी, किसी भी समय, और किसी भी चीज के लिए की जाये तो वह स्‍वीकार होती है। यदि आप अच्‍छी भावना से प्रार्थना कर रहें है तो इससे कोई फर्क नही पडता कि आप कहॉं प्रार्थना कर रहे है।

  • एलीशा ने दरवाजा बंद किया और प्रार्थना की - 2 राजा 4:33
  • पतरस ने छत पर प्रार्थना की - प्रेरितों के काम 10:9
  • नहेम्‍याह ने राजा के सामने मन में प्रार्थना की - नहेम्‍याह 2:4
  • दानिय्येल ने येरूशलेम की ओर मुंह करके दिन में तीन बार प्रार्थना की - दानिय्येल 6:10-13
  • कुरनेलियुस ने तीसरे पहर प्रार्थना की - प्रेरितों के काम 10:30

आपको अच्‍छी तरह से प्रार्थना करने के लिए बहुत अधिक समय की आवश्‍यकता नही है। बल्कि परमेश्‍वर को प्रत्‍येक दिन थोडा सा समय देना, उसके साथ सम्‍बन्‍ध बनाये रखने के लिए आवश्‍यक है। प्रत्‍येक दिन ध्‍यानपूर्वक प्रार्थना करने के लिए एक ऐसा समय निकाले जिसमें आपको कोई बाधा ना हो और आप परमेश्‍वर के साथ कुछ समय व्‍यतीत कर सकें।

प्रार्थना के समय किस तरह बैठने की स्थिति अधिक आदरणीय है? एलिय्याह ने अपना सिर अपने घुटनों के बीच में रखा, सुलेमान ने स्‍वर्ग की ओर अपने हाथ फैलाये और दाउद परमेश्‍वर के सामने बैठा। अगली बार जब आप प्रार्थना करें, तो अपनी बैठने की स्थिति पर विचार करें। क्‍या यह और अधिक अच्‍छी हो सकती है?

मित्रों और परिवार के साथ प्रार्थना करना बहुत ही फलदायी हो सकता है। शुरू में, व्‍यक्तिगत बातों के विषय में, दूसरों से बोलना थोडा मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह आसान हो जाता है। क्‍या आप दूसरों के साथ प्रार्थना करते है? अपने विचारों और भावनाओं (अपनी गलतियां भी – याकूब 5:16) को दूसरों के साथ बांटने से आप अपने मित्रों/परिवार के अधिक निकट महसूस करेंगे, इससे आपको सहारा देने और उत्‍साहित करने में दूसरों को सहायता मिलेगी, और इससे आपका ध्‍यान प्रार्थना पर केन्द्रित होगा। यदि आपको ऐसा महसूस होता है कि आपकी प्रार्थनाओं में सुधार की आवश्‍यकता है, तो किसी के साथ प्रार्थना करने का प्रयास करें। पुराने विश्‍वासी लोग प्रार्थना को अपने नये जीवन का एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा मानते थे: उन्‍होंने अपने आप को, शिक्षा और संगति, और रोटी तोडने, और प्रार्थना करने के लिए, प्रेरितों को समर्पित कर दिया। (प्रेरितों के काम 2:42)

मुझे किस बात के लिए प्रार्थना करनी चाहिए?

यीशु ने कहा:

“मांगो, तो तुम्‍हें दिया जाएगा; ढूंढो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्‍हारे लिए खोला जाएगा ... जब तुम बुरे होकर, अपने बच्‍चों को अच्‍छी वस्‍तुऐं देना जानते हो तो तुम्‍हारा स्‍वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को अच्‍छी वस्‍तुऐं क्‍यों न देगा।” (मत्‍ती 7:7-11)
परमेश्‍वर आपका पिता है और उसको आपकी चिन्‍ता है बिल्‍कुल उसी तरह से जैसे एक पिता अपने बच्‍चों की चिन्‍ता करता है। दूसरी जगह यीशु ने कहा,
“यदि तुम मुझ में बने रहो और मेरा वचन तुम में बना रहे, तो जो चाहो मांगो और वह तुम्‍हारे लिये हो जाएगा।” (यूहन्‍ना 15:7)
(यूहन्‍ना 14:13-17; 15:16; 16:23-24; 1 यूहन्‍ना 5:14-15 भी देखें।)

यीशु मसीह यह संदेश वास्‍तव में सब तक पहुंचाना चाहते थे। एक या दो घण्‍टे में यह बात उन्होंने तीन बार बोली। परमेश्‍वर चाहता है कि हम उससे मांगे। परमेश्‍वर को हमारी बातों का उत्‍तर देने में आनन्‍द होता है।

तो परमेश्‍वर को किस प्रकार की प्रार्थना सुनना पसन्‍द है? निम्‍न उदाहरणों पर विचार कीजिये:

  • पौलुस ने दूसरे लोगों की आत्मिक वृद्वि के लिए प्रार्थना की - इफिसियों 3:14-21
  • दानिय्येल ने दिन में तीन बार ईश्‍वर का धन्‍यवाद दिया - दानिय्येल 6:10
  • जब पतरस जेल में था तो विश्‍वासियों ने उसके लिए प्रार्थना की - प्रेरितों के काम 12:5
  • यीशु ने अपने चेलों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की - यूहन्‍ना 17:11,15
  • पतरस ने ''अपने शरीर में चुभे कांटे'' को निकालने के लिए प्रार्थना की - 2 कुरिन्थियों 12:7-8
  • हन्‍ना ने एक बेटे के लिए प्रार्थना की - 1 शमूएल 1:10-11

परमेश्‍वर हमेशा उस तरह से उत्‍तर नही देता जैसे हम चाहते है। उदाहरण के लिए यदि देखें तो, परमेश्‍वर ने पौलुस के “शरीर में चुभा कांटा” नही निकाला। परमेश्‍वर जानता है कि हमारे लिए क्‍या आवश्‍यक है इसलिए कभी-कभी जो हम चाहते है वह हमें नही मिलता है।

यीशु ने अपने चेलों को उदाहरण देकर यह सिखाया कि हमें परमेश्‍वर से किस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये (मत्‍ती 6:6-15) यह छोटी, साधारण और विशेष है, और इसमें प्रसन्‍नसा, प्रार्थना अंगीकार और क्षमायाचना सम्मिलित है। हम भी धन्‍यवाद को अपनी प्रार्थना में एक विशेष भाग के रूप में जोड सकते है।

यीशु ने ऐसा क्‍यों कहा कि हमें अपनी दैनिक आवश्‍यकताओं के लिए प्रार्थना करनी चाहिये जबकि परमेश्‍वर पहले से हमारी दैनिक आवश्‍यकताओं को जानता है?

जब परमेश्वर प्रार्थना के अनुसार नही देता

जब आप परमेश्‍वर ने किसी चीज के लिए प्रार्थना करते है और वह आपको नही मिलती तो अपना दिल छोटा ना करें या इस बात पर सन्‍देह ना करें कि परमेश्‍वर ने आपकी प्रार्थना को नही सुना है। बल्कि आप अपने आप से निम्‍न प्रश्‍न पूछे:
  1. क्‍या में कोई गलत चीज मांग रहा हूँ?
    परमेश्‍वर ने प्रतिज्ञा की है कि यदि हम उसकी इच्‍छा के अनुसार उससे कुछ मांगते है तो वह हमारी सुनता है। (1 यूहन्‍ना 5:14-15) तो क्‍या इसलिए परमेश्‍वर ने पौलुस के “शरीर का कांटा” नही निकाला? इस बात का निर्णय लेना कठिन है कि आप जो कुछ मांग रहे है क्‍या वह परमेश्‍वर की इच्‍छा के अनुसार है या नही। परमेश्‍वर हमारे आत्मिक विकास के लिए हमारे जीवन में कठिन समय दे सकता है, या शायद उसने आपके लिए कही कोई अच्‍दी चीज रखी हो। (इब्रानियों 12:4-11)
  2. क्‍या मैं इसके लिए नियमित रूप से प्रार्थना कर रहा हूँ?
    परमेश्‍वर चाहता है कि आप आग्रह करें, इसलिए किसी चीज के लिए एक या दो बार प्रार्थना करके ना छोडे। देखें लूका 18:1-8, यदि यह प्रार्थना महत्‍वपूर्ण है तो परमेश्‍वर से इसके लिए नियमित रूप से, गम्‍भीरता से, और विशेषता से प्रार्थना करके उसको यह प्रकट करें कि यह आपके लिए महत्‍वपूर्ण है। “धर्मीजन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है।” (याकूब 5:16)
  3. क्‍या मैं पाप को अनदेखा कर रहा हूँ?
    कभी-कभी परमेश्‍वर से हमें किसी प्रार्थना का उत्‍तर मिलने में महिनों या साल लग सकता है क्‍योंकि हो सकता है कि अभी सही समय ना हो। क्‍या आपके विचार में बाईबल में कोई ऐसा उदाहरण है जिसमें प्रार्थना का उत्‍तर मिलने में वर्षो लगे हो?
  4. क्या‍ मैं धैर्य रख रहा हूं?
    कभी-कभी ईश्वर से हमें किसी प्रार्थना का उत्तर मिलने में महिनों या वर्षो लग सकते है, क्योंकि हो सकता है कि अभी सही समय ना हो। क्या आपके विचार में बाईबल में कोई ऐसा उदाहरण है जिसमें प्रार्थना का उत्तर मिलने में वर्षो लगे हो?
  5. क्‍या मैं सुन रहा हूँ?
    शायद हो सकता है कि परमेश्‍वर आपको उत्‍तर दे रहा हो और आप उसे महसूस ना कर रहे हो।
  6. क्‍या मैं अपनी भूमिका निभा रहा हूँ?
    प्राय: परमेश्‍वर आपकी ओर से भी प्रयास चाहता है। ये कुछ ऐसा है कि कोई विद्यार्थी अच्‍छे परिणाम के लिए प्रार्थना करता है लेकिन पढ़ाई नहीं करता। यदि आप अपनी भूमिका नही निभा रहे है तो हो सकता है कि परमेश्‍वर आपकी प्रार्थना को ना सुनें।

सारांश

  • बपतिस्‍मा लेने से पहले यीशु मसीह पर विश्‍वास करने वाले एक व्‍यक्ति के जीवन में प्रार्थना बहुत ही महत्‍वपूर्ण है।
  • यदि आपका व्‍यवहार सही है तो परमेश्‍वर आपकी प्रार्थना को सुनेगा।
  • परमेश्‍वर ने प्रतिज्ञा की है कि यदि हम विश्‍वास करते है और परमेश्‍वर के वचन को अपने अन्‍दर रखते है तो जो भी हम उससे मांगेंगे वह हमें देगा।
  • आपकी प्रार्थना साधारण और विशेष होनी चाहिये। आपकी प्रार्थना में प्रसन्‍नसा, अंगीकार, धन्‍यवाद और आग्रह होने चाहिये।

विचारणीय पद

  1. 1 इतिहास 4:9-10 को पढें। अपने देश को बढाने और अच्‍छे जीवन की याबेस की प्रार्थना को परमेश्‍वर ने क्‍यों सुना? क्‍या आप परमेश्‍वर से इन चीजों के लिए प्रार्थना कर सकते है?
  2. एक व्‍यक्ति इस बात के लिए प्रार्थना करता है कि परमेश्‍वर से उसका घनिष्‍ठ सम्‍बन्‍ध हो जाये, लेकिन वह अपना समय संगीत सुनने और उपन्‍यास पढ़ने में व्‍यतीत करता है। एक दूसरा व्‍यक्ति इस बात के लिए प्रार्थनाकरता है कि उसकी लॉटरी लग जाये। इन दोनों उदाहरणों में क्‍या गलत बात है इस पर विचार कीजिये।
  3. यीशु मसीह चेतावनी देते है कि प्रार्थना में अनावश्‍यक बातों को नही दोहराना चाहिये। आप इससे कैसे बच सकते है?
  4. “यीशु के नाम से” प्रार्थना करने का क्‍या अर्थ है? क्‍या ईश्‍वर से प्रार्थना करते समय इन शब्‍दों को प्रयोग करना आवश्‍यक है?
  5. क्‍या आज एक विश्‍वासी के लिए किसी विशेष दिशा में या किसी विशेष चिन्‍ह के साथ प्रार्थना करना उपयुक्‍त है?
  6. प्रार्थना में अपने ‍विचारों को बहकने से रोकने के लिए आप क्‍या कर सकते है?
  7. जब पौलुस कहता है कि “निरन्‍तर प्रार्थना में लगे रहो” तो इसका क्‍या अर्थ है? (1 थिस्‍सलुनीकियों 5:17)

अन्‍य खोज

  1. याकूब 5:14-16; प्रेरितों के काम 1:14; 12:15,12 को पढें। इन सभी पदों में विश्‍वासी लोग प्रार्थना के लिए विशेष रूप से इकट्ठे हुए। इस तरह समूह में प्रार्थना करने से क्‍या लाभ है? यदि आपने कभी इस तरह की सामूहिक प्रार्थना में भाग नही लिया है तो क्‍यों?
  2. बाईबल के कुछ ऐसे उदाहरणों को लिखों जहाँ लोगों ने दूसरों के लिए प्रार्थना की। उदाहरणके लिए लूका 6:28; कुलुस्सियों 4:3; याकूब 5:16; अय्यूब 42:8 देखें। ऐसे लोगों की सूचि बनाइये जिनके लिए आप अगले सप्‍ताह में प्रार्थना करेंगे।
  3. आपके जीवन में प्रार्थना की क्‍या भूमिका है इसके विषय में सक्षिंप्‍त विवरण लिखिये। कुछ ऐसी प्रार्थनाओं के उदाहरण भी लिखिये जो आपको लगता है कि सुनी गयी और कुछ ऐसी विशेष बातों को लिखिये जो आपको लगता है कि आप अपनी प्रार्थनाओं को सुधारने के लिए प्रयोग में ला सकते है।

‘प्रार्थना’ (Prayer) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman

एक बात आवश्‍यक है (भाग-1)
(One Thing is Needful – Part 1)

सत्‍य के साथ जीने वाला जीवन एक बहुत ही संतोषजनक जीवन होना चाहिये और यह एक सम्‍पूर्ण जीवन जीने का तरीका है जो इस ग्रह पर रहने वाले सभी लोगों के लिए उपलब्‍ध है। यह आरम्‍भ करने के लिए एक साहसिक कथन है। इस बात को सिद्ध करने के लिए, आईये हम कुछ ऐसी बातों पर क्षण भर के लिए सोचे, जिनके विषय में लोग साधारणतया सहमत होते है कि ये सब चीजें, एक संतोषजनक और सम्‍पूर्ण जीवन के लिए आवश्‍यक है। ये योग्‍यता के क्रम में नही है-

  1. पर्याप्‍त भोजन
  2. पर्याप्‍त वस्‍त्र
  3. रहने के लिए घर
  4. पर्याप्‍त धन
  5. अच्‍छा शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य
  6. अच्‍छा भावुक स्‍वास्‍थ्‍य (आत्‍म सम्‍मान, सुरक्षा)
  7. अच्‍छा मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य (चिन्‍ताऔर पागलपन की कमी)
  8. अच्‍छे सम्‍बन्‍ध
  9. उद्देश्‍य की समझ (एक विश्‍वास, कि जीवन अर्थपूर्ण है)
  10. आनन्‍द (ऊपर लिखी चीजों में से कोई भी इमसे दूर नही होगी)

अधिकांश लोगों के अनुसार ये दस चीजें एक संतोषजनक और सम्‍पूर्ण जीवन के लिए आवश्‍यक है। बड़े दुख की बात है कि वास्‍तव में कुछ लोग इनमें से केवल आधी चीजें प्राप्‍त कर पाते है। अधिकांशतया वे इन चीजों के बीच सन्‍तुलन रख पाने में असफल होते है। इसलिए मैंने अन्तिम चीज सावधानीपूर्वक कही: आनन्‍द जो ऊपर लिखी चीजों में से किसी को भी हम से दूर नही करेगा। इसलिए अधिकांश लोग आनन्‍द मनाने के लिए जाते है, या असीम आनन्‍द के लिए जाते है, तो वे सफल जीवनके लिए आवश्‍यक चीजों में से एक या अधिक को खो देते है।

क्षणभर के आनन्‍द में जीने वाला व्‍यक्ति इस प्रकार होता है कि जैसे एक सुबह वह उठता है और उसको एहसास होता है कि उसका जीवन अर्थहीन और उद्देश्‍यहीन है, जिससे उसका आत्‍मसम्‍मान और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य प्रभावित होता है और उदासीनता की शुरूआत हो जाती है। स्‍त्री जो विवाहेतर संबंध में आनन्‍द करती है वह अपने जीवन में संबधों को बर्बाद कर देती है। एक जुआ खेलने में आनन्‍द लेने वाला व्‍यक्ति, हो सकता है कि उसके पास अपनी आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए भी पैसा न रहे। और दूसरे अन्‍य छोटे या बड़ें तरीकों से लोग गड़बड़ करके अपने सन्‍तोषजनक जीवन को बर्बाद कर लेते है।

लेकिन इन सभी दस चीजों को प्राप्‍त करने के लिए (या उनका अधिकतम प्रतिशत प्राप्‍त करने के लिए), अद्भुत सत्‍य यह है कि आपको इन सब चीजों को प्राप्‍त करने के लिए संघर्ष करने की आवश्‍यकता नही है। वास्‍तव में आपको इनमें से एक चीज के लिए भी संघर्ष करने की आवश्‍यकता नही है। आपको केवल एक ही चीज पर ध्‍यान केन्द्रित करने की आवश्‍यकता है। आपको केवल अपने आत्मिक जीवन पर ध्‍यान केन्द्रित करने की आवश्‍यकता है।

पढें, खोजे, विश्‍वास करें और सबसे महत्‍वपूर्ण है कि सदैव निम्‍न आत्मिक सत्‍यों से भरें रहे: और अपनी सारी चिन्‍ता परमेश्‍वर पर डाल दो क्‍योंकि उसका तुम्‍हारा ध्‍यान है (1 पतरस 5:7); और यह कि यदि तुम परमेश्‍वर के राज्‍य और धर्म की खोज करोगे तो तुम्‍हें पर्याप्‍त खाने और पहिनने की चिन्‍ता करने की आवश्‍यकता नही है, ये चीजें तुम्‍हें मिल जायेगी (मत्‍ती 6:33); परमेश्‍वर तुम्‍हारे मांगने से पहले ही जानता है कि तुम्‍हारी क्‍या आवश्‍यकता है (मत्‍ती 6:8) क्‍योंकि वह तुम पर बहुत कड़ी नजर रखता है (मत्‍ती 10:30,31); और जो अपने आत्मिक जीवन ध्‍यान देते है उनके जीवन में सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्‍पन्‍न करती है। (रोमियों 8:28)

जब यह सत्‍य आपके मन में बस जाता है तो आप सब कुछ प्रापत करने के सही मार्ग पर होते है, जो आपके जीवन को सन्‍तोषप्रद और सम्‍पूर्ण बनाता है। क्‍योंकि वे आवश्‍यक चीजें आत्मिक जीवन के उपोत्‍पादों के द्वारा ही सम्‍पूर्ण हो जाती है। जैसा कि खुशी के विषय में कभी-कभी कहा जाता है कि खुशी पाने के लिए आपको सीधे तौर पर प्रयास करने की आवश्‍यकता नही है बल्कि यह साधारणतया दूसरे किये जाने वाले कार्यो के उपोत्पाद के रूप में मिलती है। खुशी की तलाश खुशी को हमेशा के लिए भविष्‍य में रखती है। उस चतुर बिल्‍ली के समान बनो जिसको पता है कि जब वह अपनी पूंछ का पीछा करना बंद करती है तो पूंछ उसके पीछे होती है। उन चीजों का पीछा ना करो, जिनके विषय में आपको लगता है कि वे खुशी लायेंगी, आप बस अपने आत्मिक जीवन पर ध्‍यान केन्द्रित कीजिये और ये सब चीजें अपने आप आपके पास होंगी- और खुशी आपके पीछे होगी।

यीशु ने कहा, “एक बात अवश्‍य है|”

पौलुस ने कहा, “केवल यह एक काम करता हूँ|”

लूका 10:38-42 में यीशु ने मारथा से कहा कि वह “बहुत बातों के विषय में चिन्‍ता करती और घबराती है” वह बहुत ही महत्‍वपूर्ण गिनी गयी। वह मसीह और उसके चेलों के लिए खाना तैयार करने के लिए रसोई में व्‍यस्‍त थी। लेकिन उसकी बहन मरयिम सबसे पहले आत्मिक बातों को जानने के लिए उत्‍सुक थी। रसोई में अदृश्‍य होकर मरियम, यीशु के मुंह से सत्‍य को जानने के अवसर को खोना नही चाहती थी। खाना बाद में भी तैयार हो सकता था - यह एक ना चुकने वाला अनुभव था। उसने उस बात को चुनाव किया जो आवश्‍यक थी, और यीशु ने भी उससे ऐसा ही कहा।

इसका अर्थ यह नही है कि हमें अपने दैनिक काम छोड़ देने चाहिये। ऐसा भी नही कि आपके घर में कूड़ा फैल जाये, बच्‍चों को खाना खिलाना छोड़ देना चाहिये, ताकि आप अपना सम्‍पूर्ण समय आत्मिक बातों को जानने में लगा सके। हम जानते है कि निश्‍चय ही यीशु ऐसी शिक्षा मारथा को देने का प्रयास नही कर रहे थे।

यदि हम आत्मिक बातों को प्राथमिकता देंगे तो सांसारिक चीजें भी सही समय पर प्राप्‍त हो जायेंगी। मारथा ने यह महसूस किया कि यदि मरियम भोजन तैयार करने में साथ नही देगी तो कुछ भी कार्य नही होगा। उसने सोचा कि तुरन्‍त भोजन की व्‍यवस्‍था करना अतिआवश्‍यक है। लेकिन नही, ऐसा नही था। वे लोग इतने भूखें नही थे। वे तो किसी न किसी प्रकार भोजन कर ही लेते, भले ही थोड़ा देर से सही, तो इससे क्‍या हो जाता। लेकिन यदि मारथा अपने आप का व्‍यस्‍त रखती तो वह आत्मिक भोजन से वंचित रह सकती थी।

किस प्रकार कोई खाना बनाने के लिए, स्‍वंय प्रभु से वचन को सुनने के अनोखे अवसर को छोड़ सकता है। जरा कल्‍पना कीजिये कि यीशु आपके घर में जीवन का अर्थ बता रहे है और आप रसोई में जाकर व्‍यस्‍त हो जाते है। यदि आप ऐसे अवसर को खो सकते है तो इससे आपके आत्मिक चीजों को प्राप्‍त करने के साधारण उत्‍साह के विषय में क्‍या पता चलता है? मारथा के आत्मिक उत्‍साह के विषय में यह क्‍या बताता है? यह उसका गलत मनोभाव था। अपनी आत्मिकता को, दैनिक कार्यो की अपेक्षा, द्वितीय स्‍थान पर रखकर उसको कभी भी अपने जीवन में सन्‍तोष नही मिलने वाला था। बहुत से लोग है जो कहते है कि उनके पास परमेश्‍वर के लिए समय नही है वे बहुत ही व्‍यस्‍त है। बहुत से लोग दुखी है,और वे प्राय: इस सच्‍चाई से बचने के लिए कि वे दुखी है, वे अपने आप को व्‍यस्‍त रखते है। आजाद होने के लिए केवल एक चीज की आवश्‍यकता है। मारथा और उसके जैसे लोगों को अपने आत्मिक जीवन पर ध्‍यान देने की आवश्‍यकता है।

‘एक बात आवश्यक है’ (One thing is needful) is from ‘The Fruit of the Spirit’, by Colin Attridge

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