तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105
गुणवत्ता बनाम गति (Quality vs. Speed)
प्रिन्टिंग कार्य के व्यापार में एक पुरानी कहावत है कि, “आपकी प्रूफरीडिंग की सराहना, आपकी कार्य करने की गति को भुला दिये जाने के लम्बे समय बाद, की जायेगी।”
कई माता पिता अपने बच्चों को यह सिद्धान्त सिखाना चाहते है कि “किसी भी कार्य का मूल्य तभी है, यदि वह कार्य सही किया जाये।” इसके बावजूद भी कई लोग अपने जीवन में गलत कार्य कर रहे है और जिस योग्यता से वे कार्य कर सकते है वास्तव में कभी भी उस योग्यता से कार्य नही कर रहे है।
पौलुस ने फिलिप्पियों से कहा कि, “यह एक काम करता हूं” (फिलिप्पियों 3:13) और सुलेमान ने हमसे कहा कि, “जो काम तूझे मिले उसे अपनी शक्तिभर करना।” (सभोपदेशक 9:10)
यदि हम प्रूफरीडिंग का कार्य करते है तो हमें इसे अपनी सर्वश्रेष्ठ योग्यता से करना चाहिये। कोई भी ऐसा टाईप करने वाला नही है जो बिना गलती के टाईप कर सके। प्रूफरीडर का उद्देश्य किसी भी प्रकाशन को छपाई के लिए भेजने से पहले गलतियों को ढूंढना होता है ताकि छपाई के बाद सही और श्रेष्ठ प्रकाशन तैयार हो। ठीक इसी प्रकार इससे पहले कि हम इस जगत का न्याय करने वाले के सामने अपने पापों का लेखा देने के लिए बुलाये जाये, हमें अपने पापों की क्षमा के लिए उन्हें पहचानना और उनके लिए क्षमायाचना करना आवश्यक है। जिस प्रकार कोई भी ऐसा टाईप करने वाला नही है जो बिना गलती के टाईप कर सके, ठीक उसी प्रकार कोई भी ऐसा मनुष्य नही है जिसने पाप न किया हो। सुलेमान कहता है कि, “निष्पाप तो कोई मनुष्य नही है।” (1 राजा 8:46) एक प्रूफरीडर का कार्य तभी श्रेष्ठ होता है जब वह एक भी गलती को नजर अन्दाज न करें ताकि अन्तिम उत्पाद त्रुटि रहित हो। तो क्या आज हम इतने जल्दी में है कि हम अपने जीवन की गलतियों या पापों पर ध्यान नही देते है? जो लोग अपनी गलतियों को सुधारने के बजाय उन्हें छिपाने का प्रयास करते है वे वास्तव में गलती करते है। यह सच है कि कुछ गलतियां है जिन्हें हमें सुधारना है, तो क्या हम ऐसा सोचते है कि जल्दबाजी करके और ईधर उधर दौड़कर हम इस सच्चाई को नजरअन्दाज कर सकते है? क्या हम ऐसा सोचते है कि हमारी उन गलतियों पर ध्यान नही दिया जायेगा?
हमें एक बात याद रखनी चाहिये कि प्रूफरीडिंग करते समय हम किसी पृष्ठ को सरसरी नजर से नही देख सकते है क्योंकि ऐसा करने से जब हम जल्दबाजी में होते है तो हमारी आंखे एक चाल चलती है और यह वही देखती है जो यह देखना चाहती है और हम गलतियों को नही देख पाते। जो गलती हमसे छूट जाती है वे फिर हमेशा के लिए रहती है। धीरे-धीरे और ध्यान से पढ़ कर हम, अमरता और अनैतिकता के बीच के अन्तर को पहचान सकते है। अपने जीवन में भी हमें थोड़ा विस्तार से ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि जल्दी में प्राय गलतियां होती है और ऐसे में गलत किया गया कार्य, शुरू ना होने के बराबर ही है।
एक व्यक्ति थोड़ा सा झूठ बोलता है क्योंकि उसको लगता है कि रूककर पूरी सच्चाई बताने का समय उसके पास नही है, कोई व्यक्ति थोड़ी सी चोरी करता है क्योंकि यह कार्य को करने का एक सरल और जल्द तरीका था, कोई बिना पैसे दिये कुछ चीज ले लेता है क्योंकि लाईन बहुत ही लम्बी थी, ये सब पाप को अपने दिमाग में न्यायसंगत ठहराने के उदाहरण है।
तो आईये हम जरा ठहरे और अपने जीवन में झांक कर देखें कि कही ऐसा तो नही कि जल्दबाजी में हम सही कार्य करने में असफल हो रहे हो। क्या हमें इस बात की अच्छी समझ है कि कौन सा कार्य कब करना चाहिये फिर चाहे हम उसे उस समय पर चाहते हो या नही? ईश्वर कभी भी हमारी सामर्थ से अधिक करने के लिए हमें नही कहता, लेकिन वह यह अवश्य कहता है कि हम जो भी कर सकते है वह अपनी सम्पूर्ण श्रेष्ठ योग्यता से करें।
हमारे जीवन की प्रूफरीडिंग उसके द्वारा की जाती है जो हमारे जीवन के उतार और चढाव को जानता है, जो हमारे विचारों को समझता है, और “मेरे मुँह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो” (भजन संहिता 139:4) वह इतनी जल्दबाजी में नही है कि हमारी छोटी सी असावधानी को भी नजरअन्दाज कर दें और “अवश्य है कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के सामने खुल जाये, कि हर एक व्यक्ति अपने अपने भले बुरे कामों का बदला जो उसने देह के द्वारा किए हों पाए।” (2 कुरिन्थियों 5:10)
तो आईये हम प्रिंटिग के व्यापार की उस पुरानी कहावत पर ध्यान दें कि, “आपकी प्रूफरीडिंग की सराहना, आपकी कार्य करने की गति को भुला दिये जाने के लम्बे समय बाद, की जायेगी” और इस कहावत को अपने जीवन में लागू करें जिससे यह हमें इस बात को याद रखने में हमारी सहायता करें कि उस कार्य की गुणवत्ता, जो हम प्रभु यीशु मसीह के लिए करते है, हमारी गति को भुला दिये जाने के लम्बे समय बाद की जायेगी।
‘गुणवत्ता बनाम गति’ (Quality vs. Speed) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd
मन फिराना या पश्चाताप (Repentance)
“मन फिराओ और बपतिस्मा लो।” इस साधारण सी आज्ञा को मानना इतना कठिन क्यों है? यहां हम मन फिराव से मिलने वाले पुरस्कार और उसकी कठिनाईयों और उसके महत्व के विषय में बातें करेंगे।
मुख्य पद: लूका 19:1-10
लोगों को इस बात के लिए बाध्य करना, कि वे रोमियों को कर दें, बहुत ही बुरा था। लेकिन एक यहूदी के लिए यह बहुत ही बुरा था कि वह रोमियों के लिए कर इकट्ठा करें। और चुंगी लेने वालों का सरदार सब लोगों में बहुत ही घृणित समझा जाता था। जक्कई चुंगी लेने वालों का सरदार था और यीशु उसके घर में मेहमान था। यीशु इस तरह के घृणित व्यक्ति से कैसे मिलें?
यीशु के पास इसकी एक बहुत ही अच्छी वजह थी – “मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूँढने और उनका उद्धार करने आया है” (लूका 19:10) जक्कई “खोया” हुआ था, उसके पास कोई आशा नही थी और वह “पाप के दासत्व” में था। मनफिराकर इस खोए व्यक्ति ने ईश्वर और उद्धार को प्राप्त किया।
- जक्कई का मन अचानक कैसे परिवर्तित हो गया? उसके पास इस बात का क्या परिणाम था कि यीशु ने जो कुछ कहा वह सत्य था?
- क्या जक्कई को “चौगुना” लौटाना आवश्यक था? यह मन फिराव के विषय में आपको क्या बताता है?
- जक्कई एक यहूदी था। जब यीशु जक्कर्इ को “अब्राहम का पुत्र” कहता है तो इसका क्या अर्थ है?
मैं मन फिराता हूँ!
“मन फिराव” का अर्थ है मुड़ना। पापों की से मुड़ जाना और ईश्वर की ओर मुड़ने का निर्णय आपके जीवन का सबसे अच्छा निर्णय होगा। मन फिराव से आपकी भावनाओं पर, आपके विवेक पर, आपके विचारों पर और आपके जीवन पर एक शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है। ईश्वर ने हमें जो उपहार दिये है उनमें से एक सबसे बड़ा उपहार यह है कि उसने हमें अपने अपराधों और “पाप के दासत्व” से छुटकारा दिया है लेकिन तो भी कुछ लोग इसे नही चाहते है। क्यों? जरा इस विषय में सोचिए: क्या आप पाप से दूर होना चाहते है, इस दुनिया की बातों को अस्वीकार करना चाहते है, और अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वर के प्रति समर्पित करना चाहते है? यह एक बड़ी वचनबद्धता है, लेकिन यदि आप इसके बदले मिलने वाले पुरस्कारों को जानते है तो यह निर्णय लेना आसान है और ये पुरस्कार है:
- एक साफ विवेक और अपराधों से मुक्ति;
- ईश्वर के स्वरूप में बदलना;
- अनन्त जीवन और सदा सर्वदा के लिए ईश्वर की आराधना करने का अवसर।
पहला पुरस्कार:
जब आदम और हव्वा ने पाप किया तो उन्होंने अपने को अपराधी महसूस किया और ईश्वर से अपने को छिपाने का प्रयास किया। सामान्यत: जब आप अपने अपराध को छिपाने का प्रयास करते है तो ऐसा नही हो पाता क्योंकि आपका विवेक इतना मजबूत है कि आप इसे हमेशा याद रखते है चाहे दूसरे लोग भले ही भूल जाये। (1 तिमुथियुस 4:2)
वास्तव में, आपका विवेक ईश्वर से मिली एक बड़ी आशीष है; यह पाप से बचने में आपकी बहुत सहायता करता है। इसके बिना आपको मन फिराने की आवश्यकता कभी महसूस नही होगी। जैसे-जैसे आप र्इश्वर के निकट आते है, आपका विवेक और अधिक मजबूत होता जाता है और पाप का प्रलोभन इतना मजबूत नही रहता।
यदि आप मन फिराते है तो ईश्वर हर बात को क्षमा करता है; और फिर इसे स्मरण नही रखेगा। (यशायाह 43:25) मन फिराने के बाद आपके जीवन की एक नयी शुरूआत होती है। अपराध और पाप का बोझ हमेशा के लिए हट जाता है। इन दो पदों पर विचार किजिए:
“यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।” (1 यूहन्ना 1:9)
“यहोवा कहता है, ‘आओ, हम आपस में वादविवाद करें: तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम के समान उजले हो जाएँगे; और चाहे अर्गवानी रंग के हों, तौभी वे ऊन के समान श्वेत हो जाएँगे।’” (यशायाह 1:18)
दूसरा पुरस्कार:
मन फिराव से सकारात्मक बदलाव होते है:
“आपको सिखाया गया कि, तुम पिछले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमाने वाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो और अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ, और नये मनुष्यत्व को पहिन लो जो परमेश्वर के अनुरूप सत्य की धार्मिकता और पवित्रता में सृजा गया है।” (इफिसियों 4:22-24)
जक्कई अपने पापों से इतना लज्जित हुआ कि उसने अपने ॠण का चार गुना लौटाने को कहा। उसने अपने में सुधार किया और बदल गया। मन फिराव ने जक्कई को नाटकीय रूप से प्रभावित किया और उसने, अपनी उदारता और सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा करने के द्वारा, इसे प्रदर्शित किया।
मन फिराव प्रत्यक्ष होता है – पापों को त्यागने का अर्थ है कि सांसारिकता को त्यागना और इससे आप भीड़ से अलग हो जाते है। और जब एक विश्वासी भीड़ से अलग होता है तो ईश्वरीय होकर, वह ईश्वर रहित लोगों को एक प्रभावी गवाही दे सकता है, और अपने आसपास के लोगों को दिखा सकता है कि ईश्वर कैसा है।
यद्यपि बदलना अक्सर कठिन होता है। पापों को सकारात्मक कार्यो से बदलना, जैसे उदारता, प्रेम, शान्ति और धैर्य, का आपके जीवन पर बहुत अच्छा प्रभाव होता है। उदाहरण के लिए:
- ईमानदार होना → इससे लोग आप पर विश्वास करते है।
- उदार होना → लोग आपकी सहायता करेंगे।
- खुश रहना → लोग आपके साथ रहना पसन्द करेंगे।
ईश्वरीय होने से आपके जीवन में किस प्रकार का सकारात्मक प्रभाव होता है?
तीसरा पुरस्कार:
“परन्तु अब पाप से स्वतंत्र होकर और परमेश्वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिससे पवित्रता प्राप्त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है। क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।” (रोमियों 6:22-23)
वास्तव में सदा जीवित रहने की कल्पना करना मुश्किल है। क्या आप उब जायेंगे? आप क्या कार्य करने में सक्षम होंगे? क्या आपके मित्र होंगे? पवित्र शास्त्र बताता है कि अनन्त जीवन का उपहार प्राप्त करने के लिए आपको सबकुछ छोड़ना होगा और इसलिए यह अकल्पनीय है। इस उपहार को प्राप्त करने की शर्त है कि आपको मन फिराना होगा। यह ईश्वर का एक अद्भुत प्रस्ताव है कि आप मन फिराये और पापों का त्याग करें और बपतिस्मा लें और ईश्वर की अनन्त जीवन देने की प्रतिज्ञा को प्राप्त करें, आपको यह प्रस्ताव अस्वीकार नही करना चाहिये।
ईश्वर, मुझे स्वंय को बदलने में मेरी सहायता कर!
प्रत्येक व्यक्ति यदि कुछ गलत करता है तो वह सोच सकता है कि उसने गलत किया है और वह अपने को बदलने का प्रयास करता है लेकिन फिर बार-बार गलती करता है। कभी-कभी कोई विशेष पाप या गलत कार्य एक आदत बन जाती है और इसको बदलना मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि आपको कोई बुरी आदत है और आप झूठ बोलते रहते है, यद्यपि ऐसा करके अच्छा महसूस नही करते लेकिन तो भी आप झूठ बोलते रहते है। सच्चा मन फिराव यही है कि आप सदैव बदलने का प्रयास करते रहे, ईश्वरीय होने का प्रयास करते रहे और पापों से मुंह मोड़ ले।
ईश्वर से सहायता मांगना सबसे पहली अतिआवश्यक चींज है। परिवार, मित्रों, सह विश्वासियों से समर्थन मिलने से भी मन फिराव आसान हो जाता है।
“इसलिए तुम आपस में एक दूसरे के सामने आपने-अपने पापों को मान लो, और एक दूसरे के लिए प्रार्थना करो, जिस से चंगे हो जाओ: धर्मीजन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है।” (याकूब 5:16)
कभी-कभी हम अपने पापों को तुरन्त नही देख पाते और हमें मन फिराव की आवश्यकता महसूस नही होती। इसलिए यह अच्छा है कि हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह हमारे जीवन के पापों को हमें दिखाये, ताकि हम इस बात से अवगत रहे कि हमें क्या बदलाव करना है।
यह भी सहायक है कि आप पवित्रशास्त्र में ढूंढे कि, क्यों ईश्वर ने कुछ व्यवहारों को और कार्यों को पाप युक्त कहा है। ऐसा करने से हमें ईश्वर के मागों को सीखने में सहायता मिलती है, और हम पाप में गिरने से बचते है। इससे हम अपने जीवन में पापों से और अधिक अवगत होते है।
सम्बन्धित पद
मन फिराव | मत्ती 3:2; लूका 13:3,5; यहेजकेल 18:32 |
मन फिराव के चिन्ह | अय्यूब 42:6; मत्ती 18:3; लूका 3:8; प्रेरितों के काम 2:38 |
मन फिराव का समय | प्रकाशितवाक्य 2:21 |
मन न फिराने वाल | रोमियों 2:5; 1 कुरिन्थियों 6:9-10 |
जानबूझकर किया गया पाप
जब आप जान बूझकर कोई गलत काम करते है तो ईश्वर को दुख होता है। जान बूझकर पाप करने के द्वारा आप यह बात प्रदर्शित करते है कि आप ईश्वर से प्रेम नही करते और उसकी परवाह नही करते है। यहां तक कि जान बूझकर किया गया पाप भी क्षमा हो सकता है। पर यदि आप जान बूझकर पाप करते जायेंगे तो ईश्वर आपको क्षमा नही करेगा। आपको बदलना आवश्यक है:
“क्योंकि सच्चाई की पहिचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। हाँ, दण्ड का एक भयानक बाट जाहना और आग का ज्वलन बाकी है जो विरोधियों को भस्म कर देगा।” (इब्रानियों 10:26-27)
ऐसा समय आता है जब ईश्वर कहेगा कि, “बस और नही, बहुत हुआ” नूह ने प्रचार किया लेकिन किसी ने भी मन नही फिराया और किसी ने भी अपने पापों से मुंह नही मोड़ा। उन्होंने ईश्वर को अस्वीकार किया और इसलिए ईश्वर ने जहाज का दरवाजा बंद कर दिया और वे नाश हो गये। ठीक इसी तरह से यदि आप पिता की पापों से मन फिराने की बुलाहट को अनदेखा कर रहे है और यह आशा कर रहे है कि आप अन्तिम क्षण में बच जायेंगे तो आप ईश्वर की परीक्षा ले रहे है। सावधान रहो क्योंकि हो सकता है कि दरवाजा बंद हो जाये।
मन फिराओ और बपतिस्मा लो
पिन्तेकुस्त के दिन पतरस ने लोगों से कहा कि, “मन फिराओं और बपतिस्मा लो।” (प्रेरितों के काम 2:38) यह एक साधारण आज्ञा है और जो इसको मानते है उनके लिए यह एक महान पुरस्कार है।
“... सकेत है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुँचाता है; और थोड़े है जो उसे पाते है।” (मत्ती 7:14)
इस पर चलना थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन मार्ग में आपके लिए सहायता है।
सारांश
-
मन फिराव का अर्थ है कि अपने पापों से फिरकर ईश्वर की ओर मुड़ना।
- मन फिराव का अर्थ है अपने मन, जीवन, कार्यो को बदलना।
- मन फिराव से हम ईश्वर की दृष्टि में पवित्र और शुद्ध बन जाते है।
- मन फिराव हमें अनन्त जीवन की प्रतिज्ञा की ओर ले जाता है।
विचारणीय पद
- इब्रानियों 6:4-6 को पढिये। क्या इन पदों का यह अर्थ है कि यदि एक विश्वासी पाप करता है तो उसके पाप क्षमा नही हो सकते? “फिर क्रूस पर चढाने” का क्या अर्थ है?
- नीचे लिखी बातें पर विचार कीजिये – आपके जीवन की ये बातें मन फिराव से कैसे परिवर्तित हो सकती है? इनमें से हर एक बात के लिये अपनी भावनायें, कमजोरी और सामर्थ को लिखिये। अपने साथ ईमानदार रहिये: क्या आपने जीवन में मन फिराव है या पश्चाताप किया है?
- अपने माता पिता से बात करने का आपका तरीका।
- प्रभु भोज में सम्मिलित होते समय आप कैसा महसूस करते है।
- आपका पेशा और जीवन का उद्देश्य।
- आप अपना पैसा किस पर खर्च करते है।
- घर पर काम करने की आपकी इच्छा।
- बाईबल कक्षा के बाद आप किस विषय में बातें करते है।
- समय, जो आप ईश्वर को देते है।
- दूसरों के लिए अपने को उदाहरण बनाना कि आप ईश्वर के जन है।
- आप अपने मित्रों से किस तरह की बातें करते है।
- व्यक्तिगत बाईबल अध्ययन और मनन।
- आप स्वंय और अपने परिवार के साथ कैसे प्रार्थना करते है।
- आपके महिला मित्र या पुरूष मित्र।
- किस तरह की फिल्में आप देखते है और किस तरह का संगीत आप सुनते है।
अन्य खोज
- मत्ती 3:1-12 को पढियें।
- हम किस प्रकार “मन फिराव के योग्य फल” ला सकते है?
- इन पदों में हम एक क्रम देखते है जिसमें पापों को मानना, मनफिराव, बपतिस्मा और फल सम्मिलित है। ये सभी चरण क्यों महत्वपूर्ण है?
- पुराने नियम और नये नियम से ऐसे दो-दो पात्रों को लीजिये जिन्होंने पाप किया और फिर मन फिराया। प्रत्येक स्थिति, उनकी प्रतिक्रिया और ईश्वर की प्रतिक्रिया की तुलना कीजिये।
- उन्होंने अपने मन फिराव को कैसे सिद्ध किया?
- मन फिराव ने उनके जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया?
- क्या मन फिराव से वे पाप के प्राकृतिक परिणाम से बचे?
- क्या ईश्वर ने इन पापों के लिए अलग तरह से व्यवहार किया?
- ने मन क्यों फिराया?
‘मन फिराव या पश्चाताप’ (Repentance) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman
ईश्वर कार्य कर रहा है! (God at Work! – Part 1)
“सुन, इस्राएल का रक्षक, न ऊँघेगा और न सोएगा।” (भजन संहिता 121:4)
24 घण्टे का कार्य! जी हां, यहोवा परमेश्वर हमेशा कार्य करता रहता है। कार्य की एक विशेषता यह है कि इससे हमें कुछ प्राप्त होता है। क्योंकि आप कुछ प्राप्त करना चाहते है तो आप नौकरी या कार्य करते है। लेकिन जब हम ईश्वर के कार्य के विषय में बात करते है तो ऐसा नही है कि वह पृथ्वी की प्रणाली को सुचारू बनाये रखने के लिए या अपनी स्थिति सुधारने के लिए कार्य कर रहा है। हम बात कर रहे है कि ईश्वर वास्तव में बदलाव कर रहा है।
अब यदि हम मनुष्यों की बात करें तो उनके लिए बदलाव वह चीज है जो उनको सबसे अधिक डराती है। हम लोग परिचित चीजों से प्रेम करते है। हम अचानक से होने वाले बड़े बदलाव को पसन्द नही करते है। अक्सर ऐसा होता है कि यदि हम घर से दूर किसी ऐसे स्थान पर जाते है जहां की भाषा, रहन-सहन, खाना, लोग, वातावरण, उससे बहुत ही अलग हो जिनकी हमें आदत है तो हमें असुविधा महसूस होती है और घर की याद आती है। इसलिए ऐसे में हम कहते है कि “घर जैसी कोई जगह नही है।” हम सोचते है कि हमारे पुराने जीवन जैसी कोई जगह नही है जिससे हम परिचित है और जिसके हम वर्षो से आदि हो गये है।
हमारी इस तरह की सोच, हमारे लिए उस स्थिति में खतरनाक हो सकती है, जब वह समय आता है कि हमें अपने जीवन को ईश्वर को सौंपने के लिए वचनबद्ध होना होता है और ईश्वर को इस बात की अनुमति देनी होती है कि वह “अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डालें” (फिलिप्पियों 2:14) और इसका अर्थ होता है बदलाव। तो क्या हम इसके लिए तैयार है – या फिर हम अपने जीवन से, जैसा भी यह है, पूरी तरह सन्तुष्ट है? क्या हम उन पुराने विचारों और कार्यो के आदि हो गये है जिनमें हम एक शारीरिक मनुष्य के रूप में बढे? हमें अपनी सन्तुष्टि के लिए उन सब बातों पर निर्भर नही होना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर के कार्य करने का मतलब है – बदलाव।
ईश्वर ने यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कार्य किया और यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता ने जो बातें कही उनके द्वारा एक बड़ा बदलाव किया। यह इतना बड़ा बदलाव था कि ईश्वर ने यिर्मयाह के विषय में कहा कि
“सुन मैंने आज के दिन तुझे जातियों और राज्यों पर अधिकारी ठहराया है; उन्हें गिराने और ढा देने के लिये, नष्ट करने और काट डालने के लिये, या उन्हें बनाने और रोपने के लिये।” (यिर्मयाह 1:10)
परमेश्वर ने यिर्मयाह से कहा कि ये बातें ऐसे ही होंगी, क्योंकि मैंने तुम्हारे द्वारा इन शब्दों को कहा है। और ये बातें थी अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर एक नाटकीय बदलाव होने की और हम पद 9 में भी पढ़ते है कि, “मैंने अपने वचन तेरे मुँह में डाल दिये हैं।” आप देखते है कि परमेश्वर के वचन एक बदलाव लाते है। जहां भी ईश्वर अपने शब्दों को भेजता है वहां वे पूरे होते है।
“उसी प्रकार मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस कार्य के लिये मैंने उसको भेजा है उसे वह सफल करेगा।” (यशायाह 55:11)
ईश्वर के वचन कार्य करेंगे और इन्हें कार्य करना है क्योंकि पद 8 में ईश्वर कहता है कि, “मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं हैं, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है।”
ईश्वर के सोचने के तरीके और हमारे सोचने के तरीके में एक बहुत ही विशाल खाड़ी के समान अन्तर है। यदि हम अपने आप को बदलकर र्इश्वर की ओर मुड़ना चाहते है तो इसका मतलब है कि ईश्वर हममें कार्य करके एक बहुत बड़ा बदलाव करेगा। यदि हम जीवते ईश्वर के बच्चे होना चाहते है तो हमें ईश्वर के विचारों को और ईश्वर के तरीकों को अपनाना होगा न कि अपने विचारों ओर तरीकों को।
भजन संहिता 25 में दाऊद उन लोगों के लिए प्रार्थना करता है जो लोग ईश्वर के विचारों और कार्यो के अनुसार चलते है:
“हे यहोवा, अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे।” (भजन संहिता 25:4) वह कहता है कि “अपना मार्ग” और “अपना पथ” – क्योंकि ईश्वर के मार्गो और ईश्वर के पथों और हमारे मार्गो में बहुत – बहुत बड़ा अन्तर है। पद 5 में कहता है कि, “मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे।” तो क्या हम ईश्वर के मार्गो में चलना चाहते है और उसकी सच्चाई को सिखना चाहते है? क्या हम अपनी पुरानी मानवीय सोच से दूर होना चाहते है? क्या हम अपने आप को सम्पूर्ण रूप से बदलकर ईश्वर और उसके विचारों के तरीके को अपनाना चाहते है? पद 8 बताता है कि ईश्वर वास्तव में हमारा मार्गदर्शन करेगा, लिखा है कि, “यहोवा भला और सीधा है; इसलिए वह पापियों को अपना मार्ग दिखलाएगा।” जो नम्र और दीन है ईश्वर उन्हें अपने मार्ग सिखायेगा, जैसा पद 9 बताता है। वह हमें अपने मार्ग सिखायेगा, यदि हम वास्तव अपनी इच्छा से ऐसा चाहते है। हमारी ऐसी ही इच्छा है और हम जानते है कि पद 10 सही बताता है कि,
“जो यहोवा की वाचा और चितौनियों को मानते है, उनके लिये उसके सब मार्ग करूणा और सच्चाई है।” (भजन संहिता 25:10)
इसलिए हम इस परिवर्तन के लिए प्रार्थना करते है।
प्रभु यीशु मसीह के समय में यहूदी उस परिवर्तन के लिए तैयार नही थे जिसकी यीशु मसीह उनसे मांग कर रहे थे। लूका 16:13 में हम एक बहुत ही अच्छी बात पढते है, लिखा है कि, “कोई दास दो स्वामियों की सेवा नही कर सकता।” यहूदी अपनी आर्थिक स्थिति और अपनी प्रतिष्ठा के विषय में चिन्तित थे। उनकी रूचि उन बातों में थी जो उनकी प्रतिष्ठा को बनाये रखने में सहायक थी और जो उनकी उन उपलब्धियों को प्राप्त करने में सहायक थी जो वे पाना चाहते थे - हमारी ऐसी सोच के द्वारा हम ईश्वर की स्तूति और अराधना न करके मनुष्यों की स्तूति अराधना करते है। इसलिए यदि यूहन्ना लोकप्रिय था तो उसका अनुसरण करें, और यदि यीशु मसीह लोकप्रिय था तो उनका अनुसरण करें।
ये बातें उन्होंने अपने पुराने स्वार्थी जीवन के विचारों में जोड़ दी थी। औ प्रभु यीशु मसीह कहते है कि, “आप ऐसा नही कर सकते है” यदि आप ईश्वर की सेवा करना चाहते है तो पुराने जीवन को त्याग दें। आप अपने जीवन की नाव को लोगों की लोकप्रियता और विचारों की हवा के अनुसार नही चला सकते है। इसलिए यीशु मसीह लूका 16:15-18 में फरीसियों को उनके इस व्यवहार के कारण दोषी ठहराते है। वे उनसे कहते है कि वे व्यभिचारियों के समान अपनी ही इच्छाओं के अनुसार चल रहे है। यहां यीशु मसीह शारीरिक व्यभिचार के विषय में शिक्षा नही दे रहे है बल्कि यहूदियों को बता रहे है कि वे किसी भी नयी घटना में अपने विचारों के अनुसार व्यभिचारियों के समान कार्य करते है।
उनकी इच्छाओं ने उनके विश्वास को आकार दिया। यीशु मसीह बताते है कि आप ऐसा नही कर सकते है ऐसा करना व्यभिचार (पाप) है। और हम ऐसा नही कर सकते है। हमारे विश्वास के अनुसार हमारी इच्छायें होनी चाहिए। ईश्वर के प्रति हमारी वचनबद्धता, विवाह के समान ही, जीवन भर की वचनबद्धता है। सच्चे ईश्वर की सच्चाई के प्रति एक सम्पूर्ण और विशेष वचनबद्धता। आप उस सच्चाई को अपनाओ जो जीवन के लिए है। ईश्वर सत्य है जो कभी बदलता नही। यह ईश्वर के प्रति हमारा व्यक्तिगत समर्पण है। रोमियों के 6 अध्याय में पौलुस इसका वर्णन करता है कि, आप पाप के दास न होकर ईश्वर के दास बन जाओ।
मत्ति 9:16 में भी हम पढ़ते है कि, “कोरे कपड़े का पैबन्द पुराने वस्त्र पर कोई नही लगाता।” इसी तरह पुराने मार्गो को ईश्वर के मार्गो के साथ नही मिलाया जा सकता। हम ईश्वर की धार्मिकता के मखमल को अपने गन्दे चिथडे़ के समान जीवन के साथ नही जोड़ सकते है। हम अपने पुराने गन्दे विचारों के कपड़ो में ईश्वर की शिक्षाओं के नये कपड़े का पेबन्द नही लगा सकते है। क्योंकि हमारी सम्पूर्ण धार्मिकता उस गन्दे कपड़े के समान है जिस पर हमारे पापों की गन्दगी लगी है। हमें इन कपड़ो से छुटकारा पाने की आवश्यकता है और उन कपड़ो को पहनने की आवश्यकता है जो ईश्वर की ओर से है।
पद 17 में यीशु मसीह इसी विषय में बताते है कि, “नया दाखरस पुरानी मशकों में नही भरते है।” आप मेरी आत्मिक शिक्षाओं के नये दाखरस को अपने पुराने, कठोर, रूखे शारीरिक विचारों वाले मस्तिष्क में नही रख सकते। आपको अपने शारीरिक विचार छोड़ने होंगे। आपको अपना मस्तिष्क आत्मिक बातों से भरना होगा। ये आत्मिक विचार ईश्वर के विचार है। आप इन दोनों विचारों को मिला नही सकते है।
काना के उन दाखरस के मटकों पर विचार किजिये। क्या जब ईश्वर की सामर्थ से वह पानी दाखरस में बदला गया तो उसमें कुछ अशं पानी और कुछ अंश दाखरस था? कदापि नही यह एक सम्पूर्ण बदलाव था अर्थात शुद्ध पानी का शुद्ध दाखरस में बदलाव, इसमें कोई मिलावट नही थी। यह एक उच्च गुणवत्ता का दाखरस था।
रोमियों 8 अध्याय भी इस बात पर जोर देता है। हमें आत्मिक विचारों से परिपूर्ण होना चाहिए और ऐसा तभी सम्भव है जब हम शारीरिक विचारों को पूरी तरह से त्याग दें। पद 7 साफ रीति से बताता है कि, ऐसा नही है कि हम अपने मस्तिष्क के किसी कोने में शारीरिक विचारों को भी रखे रहे, बल्कि हमें उन्हें पूरी तरह से अपने मस्तिष्क से बाहर फैंकना होगा। क्योंकि ये शरीरिक विचार ईश्वर के शत्रु है। इन शारीरिक विचारों और मार्गो को छोड़ना है। ईश्वर ऐसा करेगा लेकिन क्या आप बदलाव के तैयार है?
यीशु मसीह जानते थे कि आप अपने शारीरिक विचारों पर नियन्त्रण नही रख सकते है। हमारे सामने प्रलोभन है जिनका हमें सामना करना है और इसलिए जब 1930 में वैज्ञानिकों ने व्यवहारिक मनौविज्ञान की खोज की तो उससे लगभग 1900 साल पहले ही यीशु मसीह ने हमें अपने “विचारों को रोकना”, “विचारों को बदलना”, और “विचारों पर नियन्त्रण” करने के विषय में बताया। बाईबल गलातियों के 4 अध्याय में हमें शिक्षा देती है कि शारीरिक विचार और आत्मिक विचार एक साथ नही रह सकते है।
“और जैसा उस समय शरीर के अनुसार जन्मा हुआ आत्मा के अनुसार जन्में हुए को सताता था, वैसा ही अब भी होता है। परन्तु पवित्रशास्त्र क्या कहता है? ‘दासी और उसके पुत्र को निकाल दें, क्योंकि दासी को पुत्र स्वतन्त्र स्त्री के पुत्र के साथ उत्तराधिकारी नही होगा।’” (गलतियों 4:29-30)
हमारे मस्तिष्क में जिन शारीरिक विचारों ने घर बनाया हुआ है उन्हें हमें बाहर निकालकर उनसे छुटकारा पाना है। हमारे मन और मस्तिष्क में केवल एक ही है जो बसना चाहिए और इसलिए हमें अपने दासत्व के विचारों को निकाल फेंकना है।
यह आसान नही है। उत्पत्ति 21:11 में हम देखते है कि अब्राहम के लिए अपने शारीरिक पुत्र को छोड़ना बहुत ही दुखद था। उसको इश्माएल की आदत हो गयी थी। वह वर्षो तक अपने उस बेटे के साथ रहा। ठीक उसी तरह से हम भी अपने पापों के आदि हो गये है। हमें अपने शारीरिक विचारों और मार्गो की आदत हो गयी है क्योंकि बहुत लम्बे समय से हम उनके साथ रह रहे है। लेकिन हमारे मस्तिष्क में एक शारीरिक और आत्मिक द्वन्द चलता है। हम इस द्वन्द को कैसे समाप्त कर सकते है? इस विषय में पवित्र शास्त्र क्या बताता है? पाप के साथ समझौता करने का कोई विकल्प नही हो सकता है। यह ऐसा मामला नही है कि दोनों पक्ष आमने सामने बैठकर खुशी से कोई समझौता कर लें। शरीरिक विचार और आत्मिक विचार एक साथ नही रह सकते है। इनका एक दूसरे से अलगाव होना ही चाहिए। केवल तभी जीवन और विकास है। उत्पत्ति का पहला अध्याय इसको साफ रीति से बताता है। केवल पहले तीन दिनों के काम, अर्थात अन्तर या अलगाव - रोशनी का अन्धकार से, नीचे के जल और ऊपर के जल और समुद्र से भूमि, के परिणामस्वरूप ही जीवन और विकास का आरम्भ हुआ।
यूहन्ना 5:6 में यीशु मसीह एक बीमार व्यक्ति से एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न पूछते है कि, “क्या तू चंगा होना चाहता है?” यीशु मसीह ने उस व्यक्ति से यह प्रश्न इसलिए पूछा क्योंकि वे जानते थे कि वह बहुत लम्बे समय से इस दशा में था। तो कही ऐसा तो नही था कि उस व्यक्ति ने अपने आप को उस स्थिति में ढाल लिया था और उसने उसमें सन्तोष कर लिया था? तो क्या एक अलग जीवन या एक नये जीवन का विचार इतना डरावना, अशान्त और चिन्तन करने योग्य था?
“पवित्र शास्त्र (बाईबल) इस विषय में क्या कहता है?” कुलुस्सियों 3:5 में लिखा है कि, “अपने अंगो को मार डालो”, गलातियों 5:24 में लिखा है कि, “शरीर को उसकी लालसाओं और अभिलाषाओं सहित क्रूस पर चढा दिया।” हम ऐसा नही कर सकते कि हम शारीरिक बातों को नीचे रखकर इनको आत्मिक बातो के साथ बने रहने दें। इस्राएल ने कनानियों के साथ ऐसा करने की कोशिश की लेकिन ऐसा नही हो पाया।
यह ईश्वर की अपेक्षा है कि केवल वही हममें शासन करें, ईश्वर ईष्या रखने वाला ईश्वर है। हमारे विश्वास की नींव है कि केवल एक ही ईश्वर है। उसके समान दूसरा कोई नही है। केवल यही हमारे विचारों में होना चाहिए कि, ईश्वर के समान कोई दूसरा नही है। केवल ईश्वर ही हमारे विचारों और हमारे कामों में विद्यमान होना चाहिए। तो आओ हम उस बदलाव और काटं-छांट (मरकुस 9:43) के लिए अपने को तैयार करें, जो ईश्वर हमारे जीवन में करेगा। जब हम बपतिस्मा लेते है तो हम एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करते है और हमारे जीवन को बचाने के लिए जिस भी सर्जरी की आवश्यकता है उसको करने की अनुमति ईश्वर को देते है। ईश्वर कॉस्मेटिक सर्जन नही है बल्कि वह मस्तिष्क और हद्वय सर्जन है, जो हमें मसीह में एक नया मस्तिष्क और हद्वय देता है।
तो आओ हम ईश्वर को अपने जीवन में कार्य करने की अनुमति दें, क्योंकि
“ईश्वर के काम खरे है।” (व्यवस्थाविवरण 32:4)
‘ईश्वर कार्य कर रहा है!’ (God at Work! – Part 1) is from ‘Caution! God at work’, by Tim Galbraith
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