तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105
यहोवा के कारण आनन्द (Rejoice in the LORD)
"क्योंकि चाहे अंजीर के वृक्षों में फूल न लगें, और न दाखलताओं में फल लगें, जलपाई के वृक्ष से केवल धोखा पाया जाए और खेतों में अन्न न उपजे, भेडशालाओं में भेड-बकरियां न रहें; और न थानों में गाय बैल हों, तौभी मैं यहोवा के कारण आनन्दित और मगन रहूंगा, और अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर के द्वारा अति प्रसन्न रहूगां।"
आज के समय में हबक्कूक इस बात को इस तरह कह सकता है, "क्योंकि हमारी फलें वर्षा की कमी के कारण नष्ट हो रही है, मुद्रास्फीति की दर ने पशुओं का चारा इतना महंगा कर दिया है कि अपने पशुओं को चारा नही दे सकते, यूनियन की मजदूरी दतनी अधिक है कि हम कटाई के लिए मजदूरों को वहन नही कर सकते, अधिक ब्याज दों के कारण धन दधार लेना असम्भव है, और इसके बावजूद भी हम अपनी फसलों को काटते है लेकिन उससे मिलने वाला धन खर्चो के लिए पर्याप्त नही होता, लेकिन तो भी मैं यहोवा के कारण आनन्दित और मगन रहूंगा।"
वर्तमान समय में हबक्कूक ये सब बातें कह सकता है लेकिन अन्तिम बात नही कह सकता। आज कल लोग यहोवा में आनन्दित और मगन नही है। आजकल लोग स्टॉक मारकेट, चीनी के बढते भाव, रसोई गैस की कमी, व्यापार में मन्दी और बढती बेरोजगारी के विषय में शिकायत करते है; लेकिन वे उद्धारकर्ता परमेश्वर के द्वारा अपनी अति प्रसन्नता को प्रकट नही करते है।
निश्चय ही हबक्कूक हमें यह सिखाना चाहता है कि हमें यहोवा के कारण आनन्दित रहना है न कि हमारे सामने आने वाली समस्याओं में स्चस्त रहना है। अधिकाशं लोग अपनी समस्याओं से दुखी होकर कराहते रहते है और वे अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर के द्वारा अति प्रसन्न रहने को भूल जाते है।
हम अपने विषय में क्या कहते है? क्या हम परमेश्वर के प्रेम से इतने परिपूर्ण है कि जब हम बीमार या बेरोजगार होते है तो यह प्रेम हममें चमकता है? क्या हम मानते है कि परमेश्वर ने दिया और परमेश्वर ने ले लिया – परमेश्वर का नाम धन्य है? क्या हम परमेश्वर से केवल भलाई ही प्रात्प करेगें, और क्या हम बुराई प्राप्त नही करेगें? जब हम कष्टों में होते है तो हम क्या करते है?
हमें जो भी समस्याऐं होती है वे परमेश्वर की ओर से होती है। क्या हम यह विश्वास करते है कि साधारण मनुष्यों के समान हमारी परीक्षायें नही होती है, परमेश्वर विश्वासयोग्य है और वह हमें ऐसी परीक्षाओं में नही डालता जो सहने से बाहर हो, बल्कि परीक्षाओं में होने पर भी वह एक माग प्रदान करता है कि हम उसे सह सकें?
अन्य समय के विश्वासी लोगों के जीवन का अध्ययन करके हम जान सकते है कि परीक्षाओं में हमें किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। हम जानते है कि हमें परीक्षाओं से गुजरना है, क्योंकि परमेश्वर जिससे प्रेम करता है वह अपने प्रत्येक पुत्र की निंदा व ताडना करता है।
नहेम्याह अन्दर व बाहर शत्रुओं से घिरा था, तो भी जो कार्य उसने किये परमेश्वर ने उन पर आशीष दी। परमेश्वर उसके सब शत्रुओं को मार सकता था जिससे नहेम्याह बिना किसी बाधा के दीवार का निमार्ण कर सके, लेकिन परमेश्वर हमें इस प्रकार भविष्य में बनने वाले उस मन्दिर के लि, तैयार नही करना चाहता जिसका हिस्सा होने की हम आशा लगाये है। यीशु हमसे प्रतिज्ञा करते है कि, "जो जय पाये, और मेरे कामों के अनुसार अन्त तक करता रहे, मैं उसे जाति जाति के लोगों पर अधिकार दूंगा।"
जब तक विजय पाने के लिए कुछ न हो तो विजय पाना असम्भव है। इस जीवन में भी कठिन कार्य करने में आनन्द है। टेनिस के खेल में कोई आनन्द नही होगा यदि चुनौती देने वाला कोई प्रतिद्वन्दि न हो।
जैसे ही हम नये वर्ष के आरम्भ में होते है, तो आओ हम इस बात को जानकर निश्चित हो जाये कि सभी बातें मिलकर, उनके लिए अच्छाई ही को, पैदा करती है जो परमेश्वर से प्रेम करते है और उसके उद्देश्य के लिए बुलाए गये है। हम जानते है कि यदि परमेश्वर हमारे साथ है तो कोई भी हमारे विरोध में नही हो सकता, इसलिए हम भी पौलुस के साथ कह सकते है कि, "जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।"
हम नही जानते कि आने वाला समय हमें क्या देगा। हम इतना अवश्य जानते है कि दानिय्येल ने कहा कि कष्टों का समय आ रहा है, और यह अभी नही आया, तो आओं हम यह जानकर अपने को हिम्मत दे कि, "मत डर; क्योंकि जो हमारी ओर है, वह उन से अधिक है; जो उनकी ओर है।"
एलीशा के ये सान्तवना देने वाले शब्द उसके दास के भय को समाप्त करते है जब वह देखता है कि सिरिया के सैनिकों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया है। जिन स्वर्गदूतों ने उस समय एलीश की सहायता की वे आज भी विद्यमान है और वे हमारी भी सहायता करने में सक्षम है यदि परमेश्वर की ऐसी इच्छा होगी। समस्याओं में भयभीत हो जाना एक साधारण बात है, लेकिन इसके बावजूद आओ हम अपने आप को यहोशू के समान हिम्मत दे जब वह भीभीत था। परमेश्वर ने उससे कहा, "हियाव बाधंकर दृढ हो जा, भय न खा, और तेरा मन कच्चा न हो, क्योंकि जहां जहां तू जायेगा वहां वहां तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा।"
इस विश्वास के द्वारा हम यहोवा के कारण आनन्दित और मगन रहेगें, और अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर के द्धारा अति प्रसन्न रहेगें।
‘यहोवा के कारण आनन्द’ (Rejoice in the LORD) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd
इस्राएल: चुना हुआ या त्यागा हुआ
(Israel: Chosen or Rejected)
परमेश्वर द्वारा अब्राहम से की गयी प्रतिज्ञाओ के वारिस कौन है? क्या अब्राहम के वशंज इसहाक और याकूब उन प्रतिज्ञाओ के उत्तराधिकारी थे? इस्राएल परमेश्वर के चुने हुए लोग है लेकिन क्या उनका यीशु मसीह को त्यागना उन्हें इस बात के लिए अयोग्य ठहराता है? यहां परमेश्वर के चुने हुए लोगों के रूप में इस्राएल पर अध्ययन है।
मुख्य पद: रोमियों 9: 1-16
पौलुस चाहता है कि सभी यहूदी अपने हद्वय को परिवर्ति करे, ठीक उसी प्रकार जैसे उसने अपने हद्वय को परिवर्तित किया। पौलुस उनके विषय में निराश था कि वे उन आशीषो को प्राप्त कर सकते थे तो भी वे परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी नही रहे। पौलुस नही समझ सका कि क्यों उन्होने परमेश्वर पर विश्वास नही किया और क्यों उसकी आज्ञाओ का पालन नही किया जबकि वह उन्हें ऐसी महिमा देना चाहता था।
- ऐसी कौन सी घटनाये थी जो, पौलुस को लगता है कि यहूदियो को परमेश्वर की ओर फेर सकती थी?
- पौलुस का क्या अर्थ है जब वह लिखता है कि, "जो इस्राएल के वंश है, वे सब इस्राएली नही"?
- पौलुस मूसा से कहे गये उन शब्दो का सन्दर्भ क्यों देता है कि, "मैं जिस किसी पर दया करना चाहूं, उस पर दया करूंगा, और जिस किसी पर कृपा करना चाहूं उसी पर कृपा करूंगा"?
परिभाषायें
इब्रानी— | इस्राएल राष्ट्र अलग होने से पहले अब्राहम के वशंज। बाद में इसे इस्राएली कहा गया। हो सकता है कि यह एबेर से चला हो जो अब्राहम का पूर्वज था। |
इस्राएली— | याकूब का वंश। परमेश्वर के द्वारा याकूब का नाम बदलकर इस्राएल रखा गया। (उत्पत्ति 32:28; 35:10) |
अन्यजाति— | ऐसा व्यक्ति जो जन्म से इस्राएली न हो। |
यहूदी— | यहूदा के दक्षिणी राष्ट्र का व्यक्ति। किसी इस्राएली नागरिकता रखने वाले व्यक्ति के लिए भी प्रयोग हुआ। |
परमेश्वर के चुने हुए लोग
यहूदी अपने परिवार के मुखियाओ, अब्राहम, इसहाक और याकूब के द्वारा एक प्राकृतिक विरासत रखते है।
इन लोगों से परमेश्वर ने प्रतिज्ञाये की जिन्हे नये नियम में बहुत ही महत्वपूर्ण प्रतिज्ञायें बताया गया है। इन प्रतिज्ञाओ के द्वारा ही यीशु मसीह के सुसमाचार का आधार बना। (2 पतरस 1:4)
इस्राएल के द्वारा ही परमेश्वर ने अपने आप को और अपनी योजना को मानवजाति पर प्रगट किया – राष्ट्र के भविष्यद्वक्ताओं और दूसरे अगुओ पर प्रगटीकरण के द्वारा।
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इस्राएल को परमेश्वर ने अपने गवाह होने के लिए चुना। यशायाह कहता है –
"यहोवा की वाणी है कि तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास हो जिन्हें मैने इसलिए चुना है कि समझकर मेरी प्रतीति करो..." (यशायाह 43:10)
दूसरे राष्ट्र इस्राएल को एक आदर्श के रूप में देखते थे – एक ऐसा समुदाय जिसको परमेश्वर की व्यस्था दी गयी। लेकिन दुभार्ग्यवश अधिकांश लोगों ने उसे नही अपनाये रखा।
यीशु, अब्राहम, इसहाक और याकूब का वशंज है। (मत्ति 1; लूका 3)
यूहन्ना ने लिखा "उद्धार यहूदियो में से" है। पुराने नियम में परमेश्वर ने यहूदियो पर जो प्रगट किया और जो प्रतिज्ञाये की वह उद्धार का द्वार है और यहूदी होने के कारण यीशु। (यूहन्ना 4:22)
यीशु का त्याग
बहुत से ऐसे यहूदी थे जिन्होने यीशु को मसीह स्वीकार किया। प्रेरितों के काम की पुस्तक में विश्वासियो की एक बडी संख्या का वर्णन है जो येरूशलेम में थे और अन्य दूसरे स्थानों में बहुत से पहले यहूदी विश्वासी थे। जबकि बहुसख्य यहूदियों ने यीशु के अधिकार को अस्वीकार किया। परमेश्वर के चुने हुए लोग होने के बावजूद भी, इस राष्ट्र ने यीशु का त्याग किया और इस प्रकार उसके पिता का त्याग किया। (लूका 10:16)
आज भी ठीक ऐसा ही है। इस्राएल में ना तो सरकार ना ही रूढीवादी यहूदी धार्मिक अगुवे और ना ही बहुसख्य लोग यीशु मसीह को मसीहा केरूप में स्वीकार करते है।
वे सब इस्राएली नही
रोमियों की पुस्तक के अध्याय 9 में पौलुस एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात बताता है। पौलुस लिखता है कि वे सब जो यहूदा (इस्राएल) के घराने में पैदा हुए, प्रतिज्ञाओं के वारिस नही थे। उसने गलतियों की पुस्तक उसके अध्याय 3 में भी लिखा कि जो इस्राएल के वशंज नही है लेकिन जिन्होने विश्वास किया वे प्रतिज्ञाओं के वारिस होगें।
"क्योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हो। और तुम में से जितनों ने मसीह में बपतिस्मा लिया है उन्होनें मसीह को पहिन लिया है। अब न तो कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो। और यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वशं और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो। (गलतियों 3:26-29)
इसलिए सच्चे इस्राएली वे है जो प्रतिज्ञाओं के वारिस होगें अपनी नस्ल के द्वारा नही बल्कि अपने विश्वास के द्वारा। पतरस लिखता है कि –
"पर तुम एक चुना हुआ वशं, और राज-पदधारी, याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और परमेश्वर की निज प्रजा हो, इसलिए कि जिस ने तुम्हें अनधकार में से अपनी अदभुत शांति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो। तुम पहिले तो कुछ भी नही थे, पर अब परमेश्वर की प्रजा हो; तुम पर दया नही हुयी थी पर अब तुम पर दया हुई है।" (1 पतरस 2:9-10)
जलपाई के वृक्ष का दृष्टान्त
रोमियों 11:17-24 में जलपाई के वृक्ष का एक दृष्टान्त है। इस दृष्टान्त में इस्राएल राष्ट्र को जलपाई वृक्ष के द्वारा प्रदर्शित किया गया है। इस जलपाई वृक्ष की कुछ डालियों को तोडा गया। ये डालियां उन यहूदियों को प्रदर्शित करती है। जिन्होनें परमेश्वर पर विश्वास नही किया और परिणामस्वरूप उसके उद्धार की योजना में शामिल नही हुए। जगंली जलपाई वृक्ष के अशं को जलपाई वृक्ष में साटा गया। ये जगली जलपाई के वृक्ष के अशं वे अन्यजाति के विश्वासी लोग है जो अपने विश्वास के कारण परमेश्वर के परिवार में साटे गये। अन्त में कुछ स्वाभाविक डालियों को जलपाई वृक्ष में साटा गया। ये डालियां वे यहूदि है जो परमेश्वर की ओर मुड गये और विश्वास किया।
पौलुस लिखता है-
"इसलिए मैं कहता हूं, क्या परमेश्वर ने अपनी प्रजा को त्याग दिया? कदापि नही; मैं भी तो इस्राएली हूं; इब्राहीम के वशं ओर बिन्यामीन के गौत्र में से हूं। परमेश्वर ने अपनी उस प्रजा को नही त्यागा, जिसे उसने पहिले ही से जाना।" (रोमियों 11:1-2)
यद्यपि इस्राएल ने परमेश्वर के भेजे हुए भविष्यद्वक्ताओं को और उसके बेटे को त्याग दिया तो भी परमेश्वर ने अपने चुने हुए लोगों को नही त्यागा। परमेश्वर ने कुछ यहूदियों को, जैसे पौलुस, यह अवसर दिया कि उन्हें फिर से उनके विश्वास के कारण जलपाई वृक्ष में साटा जाये।
सारांश
- याकूब के वशंज इस्राएल राष्ट्र कहलाये। उनके द्धारा परमेश्वर ने अपनी व्यवस्था और आज्ञाओं और भविष्यवाणियों को मानवजाति पर प्रगट किया।
- वे परमेश्वर के गवाह होने के लिए चुने गये। दूसरे राष्ट्रो के लिए वे परमेश्वर के लोग होने का उदाहरण थे।
- उनके द्वारा यीशु मसीह का त्याग और क्रूस पर चढाया जाना एक दुखद घटना थी।
- यहूदी और अन्य जाति लोग यदि विश्वासी हो तो वे उन प्रतिज्ञाओं के वारिस हो सकते है जो परमेश्वर ने इस्राएल के मुख्य पुरूषों से की है।
विचारणीय पद
- रोमियों 11:2 और रोमियों 11:20 को पढें। यहां प्रतित होने वाले विरोधाभाष की व्याख्या आप कैसे करेगें?
- पुराने नियम के समय में, अन्य जाति लोगों के लिए, परमेश्वर के चुने हुए लोगों में शामिल होने के लिए क्या व्यवस्था थी? देखें निगर्मन 12:48; लैव्यव्यवस्था 22:18-19; गिनती 15:14-16; व्यवस्थाविवरण 31:12-13; रुत 1:16-18; यशायाह 14:1; 56:6-8; यिर्मयाह 12:14-17
- रोमियों 9:16 को पढें। नीतिवचन 16:9; 21:31 को पढें। ये पद क्या शिक्षा देते है?
अन्य खोज
- बाईबल में जलपाई वृक्ष के अन्य उदाहरणो को खोजिए। क्या किसी अन्य स्थान पर भी जलपाई वृक्ष इस्राएल राष्ट्र को प्रदर्शित करता है?
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यहेजकेल 20:40-43 कहता है कि यहूदि दासत्व से वापस आने पर परमेश्वर की ओर फिरेगें।
- इस भविष्यवाणी से समानता रखने वाले अन्य दूसरे पदों को खोजिए।
- वर्तमान समय में अधिकांश यहूदी नास्तिक है। यह हद्वय परिवर्तन किस प्रकार हो सकता है?
‘इस्राएल: चुना हुआ या त्यागा हुआ’ (Israel: Chosen or Rejected) is from ‘The Way of Life’ by Rob J. Hyndman
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