8. एक व्‍यवस्‍था जो जीवन नहीं दे सकती थी

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8. A law that could not bring life

साप्ताहिक पाठ – उत्पत्ति, अध्याय 27-29; 1 तीमुथियुस, अध्याय 1-3

प्रश्‍नोत्‍तरी के लिये पाठ – इब्रानियों, अध्याय 9-10

व्‍यवस्‍था का होना अनिवार्य

आप जरा सोचिए कि अगर हमारे समाज में यदि कोई व्‍यक्ति किसी अन्‍य व्‍यक्ति का कोई कार्य पसन्‍द नही करता है या किसी व्‍यक्ति के किसी कार्य से किसी को कुछ हानि हो जाये और हानि पाने वाला व्‍यक्ति अपनी मर्जी से जैसी उसकी इच्‍छा हो वैसी सजा उसकी हानि करने वाले व्‍यक्ति को दें तो हमारे समाज में क्‍या दशा होगी। इस स्थिति में सब लोग हिंसक होकर एक दूसरे को मार देंगे।

तो इसलिए जहां कहीं भी, गांव में या शहरों में मनुष्य एक साथ रहते हैं वहां एक व्‍यवस्‍था का होना आवश्यक है। यह व्‍यवस्‍था अच्‍छी होनी चाहिए, और कोई ऐसा होना चाहिए जो इस व्‍यवस्‍था का पालन किए जाने पर निगरानी रखें।

मूसा की व्यवस्था

हम बाइबिल में पढ़ते है कि किस तरह से परमेश्वर यहूदियों को मिस्र की बन्‍धुआई से बाहर लाया; और किस प्रकार उसने रहने के लिये उन्‍हें इस्राएल देश दिया। छठवे पाठ से आप को याद होगा कि किस तरह ईश्‍वर उनका राजा बना और किस तरह से उसने उन्हें एक व्‍यवस्‍था दी।

हम इस व्‍यवस्‍था को मूसा की व्यवस्था कहते हैं क्योंकि परमेश्वर ने यह व्‍यवस्‍था पहले मूसा को दी और मूसा ने फिर यह लोगों को दी। मूसा की व्‍यवस्‍था का एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण भाग है जो "दस आज्ञाऐं" है और सभी बाइबिल पढ़ने वाले लोग बाइबिल के भाग से अच्‍छी तरह से परिचित होते है क्‍योंकि ये ईश्‍वर की वे दस आज्ञाऐं है जो उसने इस्रालियों को मूसा के द्वारा दी।

इनमें 'विश्राम दिन' की व्‍य्‍वस्‍था भी थी।

परमेश्वर द्वारा दी गई एक व्‍यवस्‍था

क्योंकि मूसा की व्यवस्था परमेश्वर द्वारा दी गई थी इसलिए यह मनुष्‍यों की बनायी गयी व्‍यवस्‍था से बिल्‍कुल अलग थी। हम इन भिन्न आज्ञाओं को दो भागो में बाटँ सकते हैं।

पहला, दैनिक जीवन के लिये नियम थे, लोगों का क्या खाना चाहिये, किस प्रकार के वस्त्र पहिनना चाहिये और किस प्रकार से उन्हें एक दूसरे के प्रति व्यवहार करना चाहिये इस सम्‍बन्‍ध में नियम थे। वास्तव में ये नियम उनके दैनिक जीवन के हर एक क्षेत्र के लिए मार्ग दर्शक थे।

परन्तु इनके अतिरिक्त दूसरे और नियम भी थे। बहुत से नियम थे जो लोगों को बताते थे कि परमेश्वर के प्रति उनका कैसा व्यवहार होना चाहिए और किस तरह उन्हें उसकी उपासना करनी चाहिए।

जब लोग परमेश्वर से अपने पापों की क्षमा मांगने आते थे या उसकी प्रसन्‍नसा और धन्यवाद की भेंट चढाने आते थे तो उन्हें एक पशु, सामान्‍यत: मेमना या मेमने का बच्‍चा, लाना होता था और उसे बलि करना होता था।

पशु का यह बलिदान यहूदियों को इस बात का स्मरण कराने के लिये था कि वे पापी है और मृत्यु के योग्य है। यह उन्हें यह भी स्मरण दिलाने के लिये भी था कि वे परमेश्वर की उपासना अपनी विधि से नही बल्कि परमेश्‍वर के द्वारा बतायी गयी विधि के अनुसार करें।

व्यवस्था का पालन करना कठिन था

मूसा की व्यवस्था जो यहोवा द्वारा दी गई वह बहुत अच्छी व्यवस्था थी। रोमियों के सातवें अध्याय और उसके बारवें पद में पौलुस कहता है कि,

‘व्यवस्था पवित्र है, और आज्ञा भी ठीक और अच्छी है।’ (रोमियों 7:12)

परन्तु स्वभाव से मनुष्य अच्छे नहीं हैं। बहुत से यहूदियों ने व्यवस्था पालन का प्रयास तक भी नहीं किया और जिन्होने प्रयास भी किया वे असफल रहे। जितना अधिक व्यवस्था पालन का उन्होंने प्रयत्‍न किया उतना ही अधिक वे जान गये कि वे पापी थे।

हमने देखा कि ऱाज्‍य पर शासन करने के लिए मूसा की व्यवस्था आवश्यक थी। परन्तु केवल इतना ही नही था। लोगों ने जाना कि वे पापी है और ईश्‍वर की व्‍यवस्‍था का पालन करने में अयोग्‍य है।और क्योंकि वे पापी थे इसलिए वे मृत्यु के योग्य थे।

रोमियों के तीसरे अध्याय और उसके उन्नीसवें पद में पौलुस कहता है,

‘हम जानते हैं कि व्यवस्था जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्था के अधीन है; इसलिये कि हर एक मुँह बन्द किया जाए और सारा संसार परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे।’ (रोमियों 3:19)

एक बहुत अच्‍छा मार्ग

व्यवस्था ने मनुष्यों को बता दिया कि वे पापी थे और मृत्यु के योग्य थे। उन्हें किसी ऐसे की आवश्यकता थी जो उन्हें उनके पापों से बचा सके।

व्यवस्था उन्हें बचा नहीं सकती थी, व्‍यवस्‍था केवल उन्हें यह दिखा सकती थी कि वे पापी है। इसलिये परमेश्वर ने अपने प्रेम में कुछ बहुत ही अच्‍छा प्रबन्‍ध किया। परमेश्वर ने अपने पुत्र यीशु मसीह को पाप के लिए बलिदान होने के लिए दे दिया। हम भजन संहिता के 40 अध्याय और उसके 6 से 8 पद में पढ़ते है कि,

‘मेलबलि और अन्नबलि से तू प्रसन्न नहीं होता तू ने मेरे कान खोदकर खोले हैं। होमबलि और पापबलि तू ने नहीं चाहा। तब मैं ने कहा, “देख, मैं आया हूँ; क्योंकि पुस्तक में मेरे विषय ऐसा ही लिखा हुआ है। हे मेरे परमेश्वर, मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूँ; और तेरी व्यवस्था मेरे अन्‍तकरण में बसी है।"’ (भजन संहिता 40:6-8)

यीशु ने हमेशा वही किया जिससे परमेश्वर प्रसन्न होता था। वह एक सिद्ध बलिदान था जिसने अपने आप को हमारे लिए पापों के लिए बलि किया।

इसलिए अब जब हम परमेश्‍वर की उपासना के लिए आते है तो हमें बलिदान के लिए कोई पशु लाने की आवश्‍यकता नही है।

बल्कि हमें प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्‍वर के पास आना है। प्रभु यीशु ने कहा कि,

‘मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।’ (यूहन्ना 14:6)

व्यवस्था से हमारे लिये शिक्षाऐं

व्यवस्था ने यहूदियों की मसीह के पास आने में सहायक की क्योंकि व्‍यवस्‍था ने उनको दिखाया की अपने आप वे कितने आशाही और असहाय थे। मनुष्‍यों के लिए यह सीखना बहुत ही मुश्किल है लेकिन तो भी हमें भी परमेश्‍वर के पास आने से पहले और उससे सहायता मांगने से पहले यह पाठ सीखना है।

मूसा की व्यवस्था इसमें हमारी सहायता कर सकती है। हम यहूदियों से अधिक अच्छे नहीं हैं उन्‍ही के समान हम भी असफल होते है। व्यवस्था हमें एक बड़ी शिक्षा दे सकती है: कि परमेश्वर पवित्र है और हम पापी है, और जो तरीका उसने चुना है उसी के द्वारा हम उसके पास तक पहुंच सकते है और वह मार्ग है प्रभु यीशु।

परमेश्वर हम से यह नही चाहता कि हम मूसा की व्यवस्था का सम्‍पूर्ण रूप से पालन करें। लेकिन उसने मूसा की व्यवस्था को बाइबिल में हमारे लिये लिख दिया है, ताकि हम उसे पढ़कर और उस पर विचार करके परमेश्‍वर के मार्गो के विषय में और अधिक सीखें।

सारांश

  1. मूसा को व्यवस्था परमेश्वर द्वारा यहूदियों को दी गई थी।
  2. (अ) इसमें उनके दैनिक जीवन के लिये नियम थे।
    (ब) यह उन्हें यह भी सिखाती थी कि किस तरह परमेश्वर की उपासना करना चाहिये।
  3. व्यवस्था अच्छी थी, परन्तु मनुष्य बुरा होने के कारण उसका पालन नहीं कर सका।
  4. परमेश्वर नें मसीह में एक नई योजना का प्रबन्ध किया।
  5. मूसा की व्यवस्था निर्गमन, लैव्यव्यवस्था, गिनती और व्यवस्थाविवरण नामक बाइबिल की पुस्तकों में है। हम आज भी मूसा की व्यवस्था से बहुत सी बातें सीख सकते है।